मंगलवार, मार्च 17, 2009

कविता तेरे प्यार में कवि बन गया हूँ

कल पाकिस्तान में जरदारी झुक गये, शरीफ़ उचक गये। चौधरी की वापसी हुयी लोकतंत्र की संभावनाओं के साथ। इधर देश में कल होली का अखिरी पर्व हुआ। कानपुर में गंगा मेला हुआ। भैंसे ठेले पर ड्रमों में रंग भरे होरियारे रंग खेलते। पता चला है कि ओसामा की हालत खराब है। हालत ओबामा की भी ठीक नहीं है। एक की शरीर की किडनी चौपट है दूसरे की देश की। लेकिन अब ऊ सब दुनिया के चोचले छोड़िये आइये आपके साथ ब्लाग वाक करते हैं।

आज मंगलवार है। हनुमान जी का दिन! जय हनुमान ज्ञान गुण सागर वाले बजरंगबली का दिन! लेकिन आज ज्ञान की बात कृष्णजी कह गये। राग मल्हार गाते हुये कृष्ण जी ने सुब्रमणियन जी की मार्फ़त मंदी की मार से जुझ रहे विश्व को तत्व ज्ञान दिया:
तुम जब नही थे, तब भी ये कंपनी चल रही थी,
तुम जब नहीं होगे, तब भी चलेगी,
तुम कुछ भी लेकर यहां नहीं आए थे..
जो अनुभव मिला यहीं मिला…
जो भी काम किया वो कंपनी के लिए किया,
डिग़्री लेकर आए थे, अनुभव लेकर जाओगे…

आम जनता पगार बढोत्तरी, प्रमोशन के की आश में हलकान रहती है। यही तमाम लोगों के दुख का कारण है। आज चवन्नी मिल रही है तो अठन्नी कब से मिलेगी! आज साइकिलिया है तो फ़टफ़टिया कब आयेगी? इसी बात की तरफ़ इशारा करते हुये कृष्ण मुरारी उपदेशियाते हैं:
ऎप्रेजल,इनसेंटिव ये सब अपने मन से हटा दो,
अपने विचार से मिटा दो,
फिर कंपनी तुम्हारी है और तुम कंपनी के…..
ना ये इन्क्रीमेंट वगैरह तुम्हारे लिए हैं
ना तुम इसके लिये हो


भगवान की बात तो अलग! उनको कुछ करना-धरना तो होता नहीं! सिर्फ़ उपदेश और वरदान के बेलआउट पैकेज देते रहते हैं। लेकिन आलोक पुराणिक सांसारिक बातें बताते हैं। जब दुनियां में बड़ी-बड़ी हीरो टाइप बैंके बड़े-बड़ों को लोन देकर डूब चुकी हैं तब भी छोटे कर्ज देने वाली बैंके मजे में हैं। छोटा कर्ज न कोई लफ़ड़ा न कोई मर्ज! माइक्रो फ़ाइनेंसिग पर आलोक पुराणिक बहुत विस्तार से ज्ञान लुटाते हुये बताते हैं:
गरीबों को कर्ज, मुनाफे का काम है-यह बात माइक्रोफाइनेंस सेक्टर बखूबी समझा रहा है। और गरीबों को कर्ज देना कारोबारी लिहाज से ज्यादा सुरक्षित है। लीमैन ब्रदर्स जैसे बड़े इनवेस्टमेंट बैंक जब डूब चुके हों, तब आम आदमी की बैंकिंग करने वाले माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र करीब चालीस प्रतिशत सालाना की बढ़ोत्तरी दिखा रहा है। यह परिघटना अपने आप में मुख्यधारा की बैंकिंग के लिए कई सबक देती है।
आलोक पुराणिक ने नाम न बताने की शर्त पर एक बार इंटरव्यू देते हुये बताया था कि माइक्रोफ़ाइनेंसिंग उनकी ड्रीमबाला है। वे इस पर बहुत काम करना चाहते हैं। वे माइक्रो फ़ाइनेंसिंग के कुछ सबक बताते हैं:

  • सबक नंबर एक तो यह है कि कानूनी तकनीकी जमानतें जहां फेल हो जाती हैं, वहां पर सामाजिक दबाव काम आता है।

  • सबक नंबर दो यह है कि गरीबो को कर्ज किसी धर्मादे का काम नहीं है। यह विशुद्ध लाभ देने वाला काम है।

  • सबक नंबर तीन यह है कि वित्तीय जरुरतें हर इलाके की अलग हैं, इसलिए वहां के लिए तरीके भी वहीं के हिसाब से नहीं निकलेंगे।

  • सबक नंबर चार यह है कि गरीब और अशिक्षित आदमी भी वित्तीय मसलों को खूब समझता है।



  • डा.अनुराग आर्य बनारस में भगवान की हालत देखकर कहते हैं:
    बंदूको के साये में हिफाजत से घिरे भगवान् से मै क्या मांगू ?फिर धकेल कर आगे कर दिया हूँ ...आगे .कोई पंडा एक सौ एक का दान मांगता है... एक रुपया नहीं है ...सौ के नोट को वो मुट्ठी में दबा लेता है...दाये बाये लोग झुके हुए है ....अजीब बात है अपने ही देश में अपने ही भगवान् को बंदूको के साये की जरुरत है .हम कहाँ जा रहे है ?

    डा.साहब की पोस्ट पढ़कर मुझे नंदनजी की यह कविता याद आ रही थी:
    बड़े से बड़े हादसे पर
    समरस बने रहना
    सिर्फ देखना और कुछ न कहना
    ओह कितनी बड़ी सज़ा है
    ऐसा ईश्वर बनकर रहना!
    नहीं,मुझे ईश्वरत्व की असंवेद्यता का इतना बड़ा दर्द
    कदापि नहीं सहना।


    लोग आज काम कल पर नहीं छोड़ते। बल्कि कुछ लोग तो महीनों पहले से कर लेते हैं। ऐसा ही हुआ एक जगह जब फ़रवरी माह में ही अप्रैल फ़ूल मना लिया गया:

    लावण्याजी ने होली मनाने का विवरण पेश किया सर्वे भवन्तु सुखिन: की भावना के साथ।

    शब्द सारथी अजितजी ने कल डोर और डोलने का किस्सा सुनाया। आज वे फ़िर से शून्य में समा गये। उनकी कल की पोस्ट पर नंदिनी महाजनजी की प्रतिक्रिया है:
    रेस्पेक्टेड वडनेर साहब, मैं आपके शब्द पढ़ कर सोच में हूँ कि क्या कहू? मेरा ब्लॉग जगत से रिश्ता आपके ब्लॉग से आरम्भ होता है क्योंकि [ नाम नहीं लुंगी ] जिनके साथ इस रेगिस्तान की सैर कई दिनों तक की उन्होंने ही बताया था मुझे आपके बारे में, मैं सवेरे जब काम के सिलसिले में बाहर निकलती हूँ तब मेरे पास सिर्फ अव्यवहारिक किन्तु भविष्य के लिए महत्वपूर्ण कार्य होता है, आपके ब्लॉग पर मैं पिछले एक महीने लगा तर आ रही हूँ और एक विद्वेता से कुछ कहना मुनासिब नहीं लगा. कृपया मेरा अभिवादन स्वीकार करें . नंदनी


    इसको पढ़कर मैं जब एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में पर्यावरण की निगरानी का काम देखने वाली नंदिनी जी के ब्लाग पर गया तो यह कविता देखने को मिली:
    उसको बेवफ़ा न कहो
    उसने किया है एक वादा
    कल रात कोई रफूगर आएगा
    मेरे चाक जिगर को रफू कर जाएगा

    हे आसमां की शहज़ादी
    लौटा दो मेरे चाक जिगर के टुकड़े
    कोई रफूगर आने को है .


    डा.भावना कंवर ने अपनी अम्माजी की कविता पढ़वाई:
    पता नहीं ये दिल की बातें दिल से कब हो जाती हैं
    दिल के भीतर जाकर फिर वे ख़्वाबों में खो जाती हैं।

    मुझसे था तो उसका रिश्ता, लेकिन उसने माना कब
    चर्चाएँ इसकी भी आख़िर घर-घर में हो जाती है।


    हम एकलाइना पेश करने में ही परेशान हो जाते हैं उधर रचनाजी चार लाइना पेश करती हैं:
    एक हैं सबके चहेते- आमिर खान,
    लोग इन्हे कहें बालीवुड की शान!
    कभी ये “गजनी” बन “एट पैक्स” लहराते हैं
    और कभी कभी तारों को जमीन पर ले आते हैं!

    आमिरखान के साथ उन्होंने और लोगों पर भी माउस चलाया है। ब्लागजगत के समीरलाल और फ़ुरसतिया को भी नहीं छोड़ा। समीरलाल तो तुरंत बदले की भावना से भर उठे और कह उठे:

    “रचना जी” के लेखन में अद्भुत सी इक धार है
    हमें सिखा दी ऐसी कविता जिसमें पंक्ति चार है,
    इसी तरह से रहे सीखते, अगर तुम्हारी पाती से,
    रोशन नाम हमारा होगा, ज्ञान की जलती बाती से.

    ब्लाग जगत के और भी महारथी मिलेंगे इस चतुष्पदी में देखिये तो सही।
    लोग कहते हैं मु्च्छ नहीं तो कु्च्छ नहीं। बच्चनजी का डायलाग तो दुनिया भर में मशहूर है- मंछे हों तो नत्थू लाल जैसी। इसी बात को कुछ इस अंदाज में कहते हैं डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंकजी:
    आभूषण हैं वदन का, रक्खो मूछ सँवार,
    बिना मूछ के मर्द का, जीवन है बेकार।
    जीवन है बेकार, शिखण्डी जैसा लगता,
    मूछदार राणा प्रताप, ही अच्छा दिखता,
    कह ‘मंयक’ मूछों वाले, ही थे खरदूषण ,
    सत्य वचन है मूछ, मर्द का है आभूषण।


    पूजा की पिछली पोस्ट में लिखा था-कुणाल कहता है की मैं सबमें सबसे ज्यादा बदमाश लगती हूँ!
    और बस पूजा कुणाल की बात गलत साबित करने के पीछें पड़ गयीं। आज की पोस्ट से उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि वे शरारती (बदमाश का सरल हिन्दी अनुवाद) दिखती ही नहीं हैं बल्कि हैं भी। शरारती लगने वाली बात सरासर गलत है।

    पूजा की शरारती बोले तो उलझाई होने की बात ताऊ ने भी कही:
    एक बात और लिखिये कि ये मिथुन राशि वाले फ़ेविकन..ताली...आदि बातों मे उलझाने के भी बडे पक्के माहिर होते हैं. इनकी पोस्ट जबरन पूरी पडती है.:)


    मनविन्दरजी कहती हैं:
    हम उल्टी दिशायों के बादल
    अचानक टकरा गये
    फिर सारी उम्र लड़ते रहे हवाओं के खिलाफ


    जिसनें भी कुछ दिन गणित पढी है उसका पाई से अवश्य पाला पड़ा होगा। १४ मार्च को पाई दिवस मनाया जाता है! अभिषेक ओझा ने इस मौके पर पाई से जुड़ी जानकारी दी है। आप भी देखिये ! अब गणित की बात सोचकर कहीं आप हनुमानजी की शरण में मत चले जाइयेगा क्योंकि हनुमान जी का भी हाथ गणित में थोड़ा तंग है यह गोपनीयजानकारी हमें आलोक सिंह से मिली है।

    प्रीती बङथ्वाल "तारिका" सवाल उठाती हैं:
    जब कहते हैं, आजाद हैं हम,
    तो नारी को, क्यों दिया बंधन,
    लम्बें परदें की ओटों में,
    क्यों बांध रहे उसको बंधन?


    कुसंग का ज्वर भयानक होता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की यह बात एक बार फ़िर याद आ गई जब अच्छे खासे निठल्ले को कवियों की संगत में कवि बनते देखा। कवि लिखता है:
    कविता तेरे प्यार में कवि बन गया हूँ
    झोला टांगे आदमी की छवि बन गया हूँ
    तूझको लिखना तो चाहता हूँ मगर बात नही बनती
    तू हो गयी आकाश और मैं जमीं बन गया हूँ
    अब तो शर्ट पैंट वालों की तू माशुका हो गयी है
    और मैं घर में रखी बस एक डमी बन गया हूँ।



    एक लाइना



    1. मंदी से प्रभावित आधुनिक गीता ज्ञान: का स्वादिष्ट अचार

    2. कितनी नफ़ीस बुनावट थी....... इंसान ने उधेड़ दी दुनिया : कोई हुनरमंद रफ़ूगर भी तो नहीं दिखता

    3. बिल्लु की जगह बिल्ली भी चलता.. : बिल्लु नहीं बाबा बिल्लू

    4. सोच को अपनी बदलकर देख तू :हम कैसे बदल पायेंगे भैये? गुरूजी ही अब इसमें कुछ बदलाव कर सकते हैं!

    5. "मुझे मदद चाहिये तुम्हारी: मिल जायेगी कित्ते किलो चाहिये?

    6. इंटेलेक्चुअल लेखन और हम: नदी के दो पाट जो कभी नहीं मिलते

    7. वादों के पुष्प :खिले हैं सीमा गुलशन में

    8. कुछ जोग इधर उधर से - जरा मुस्कुरा लें : अभी टाइम नहीं है भाई! मुस्कराने का काम हम सिर्फ़ इतवार को करते हैं!

    9. कहा-अनकहा: ब्लाग पर रहा

    10. “सारथी” चिट्ठे को टुकडों में बांटने की योजना!!: बनाते हुये शास्त्री धरे गये

    11. उफ़ अभी और कितने भांगो मे बटेगा , बेचारा हिन्दी ब्लॉगर : देखते जाइये, नैनो टेक्नालाजी का जमाना है जी

    12. नतीज़ा रहा सिफ़र ?: सिफ़र में तो सब कुछ समाया है डाक्साब!

    13. बेकाबू हो गए आसाराम बापू : और एक बार फिर छिछोरेपन पर उतर आए

    14. पोस्ट के बीच में रंगीन बॉक्स : बिना रंग/ब्रश के लगायें

    15. कन्या छेड़क अभिनंदन:प्रमाण पत्र सहित फ़ौरन अप्लाई करें

    16. तो तुम क्या समझते हो कि बॉस सो रहा है ? :वो तो सिर्फ़ खर्राटे भर रहा है।


    17. वो मेरा पहला कवि सम्मेलन
      : आखिरी क्यों न हुआ?

    18. नेता बनाम डाकू : चुनाव में दोनों एक हो गये ताऊ

    19. आयोग की आंखों में धूल झोंकने की तैयारी : अपने बचाव के लिये आयोग आंखें मूंद लेगा?

    20. शर्मनाक या शर्मआंख अथवा शर्मकान : होने से ब्लागिंग नहीं हो सकती भाई!- अविनाश वाचस्पति उवाच

    21. तस्कर समधी वाला एचिवमेंट: बहुत सुकून का विषय है आज के लिये

    मेरी पसंद


    आती हुई लहर ने किनारे से बेचैनी के साथ कहा
    "मुझे मदद चाहिये तुम्हारी"

    किनारे ने स्वागत के स्वर में पूँछा
    "किस चीज में"
    "दूसरा किनारा पाने में..........!"
    लहर ने और बेचैन हो कर कहा

    किनारा शांत....!
    लहर के आने से आये भीगेपन में
    कुछ खारापन मिल गया था,
    मगर वो चुप था।

    उसने खुद को किया और दृढ़
    और पत्थर....!

    लहर उससे अपनी भावना के वेग में टकराई,
    और उसी वेग से क्रिया प्रतिक्रिया के नियम से
    पीछे लौट आई
    दूसरे किनारे के पास

    लहर खुश थी....बहुत खुश...!
    बिना इस अहसास के,
    कि पीछे छूटा किनारा,
    अब भी पत्थर बना बैठा है।
    कंचन चौहान

    और अंत में


    अब इत्ता लिखने के बाद भी कुछ कहना उचित नहीं लगता लेकिन कहेंगे नहीं तो भी तो अच्छा नहीं लगता।

    आज की चर्चा का दिन विवेक सिंह का होता है लेकिन पहले उनका मूड उखड़ा रहा फ़िर कम्प्यूटर उखड़ गया। करेले में नीम चढ़ा यह हुआ कि वे अपने इम्तहान में पास हो गये और आगे पढ़ने के लिये कमर कसने लगे। अब अगर वे अपने घर पर होते तो हम उनसे कहते भी कि भाई चर्चा करके पढ़ो तब अच्छा होगा लेकिन वे चर्चा करने से बचने के लिये ही कन्याकुमारी निकल गये -सपरिवार। जब लौटकर आयेंगे अगले माह तब शायद फ़िर आपसे वो होजिसे रूबरू होना कहते हैं कुछ नामचीन लोग।

    चिट्ठाचर्चा का टेम्पलेट लगता है ऐंड़ा-बेड़ा हो गया है। कुछ लोग कहते हैं कि ये दिखता है कुछ कहते हैं वो नहीं दिखता। हमें सब दिखता है लेकिन कुछ बुझाता नहीं। आज देखते हैं देबाशीष से कुछ इलाज कराते हैं इसका! सब ठीक हो जायेगा। आप पड़सान न हों।

    कल की चर्चा का दिन कई लोगों का होता है। पहले समीरलाल करते थे। उनको आजकल पालिटिक्स से ही फ़ुरसत नहीं है। न जाने कौन-कौन पालिटिक्स में अपने पांव फ़ंसाये हुये हैं। कहते हैं जित्ते दोस्त हमारे पालिटिक्स में हैं सबका चुनाव प्रचार करेंगे। प्रचार में कविता सुनवायेंगे, सबको हरवायेंगे! समझाते हैं तो मानते ही नहीं। कित्ता समझाया जाये अब।

    दूसरा नम्बर कुश का आता है वे भी भारतीय मतदाता की तरह अनिश्चित रहते हैं कि चर्चा करेंगे कि नहीं। लेकिन कोई बात नहीं। कल की कल देखी जायेगी। आज काहे से कल के लिये हलकान हुआ जाये!

    आज तो मस्त ही रहिये। आराम से पढिये/बेखौफ़ होकर टिपियाइये! जो होगा देखा जायेगा। ठीक है न! तो हम चलें?

    देखिये एक बार भी कोई झूट्ठो नहीं कहता -अभी जाने की जिद न करो।

    खैर क्या करें! अब जा रहे हैं! दफ़्तर!

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    30 टिप्‍पणियां:

    1. आप जाएँगे तो आने वाले आएँगे, इसलिए कोई नहीं कहता।

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    2. aajki charcha mein to dher saari kavitaon ke link mil gaye.......ek laaina bhi bahut kamaal hai

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    3. कोई और हो न हो क्राइसिस मैनेजमेंट के लिया आप तो हैं ही. सब यही सोंचकर भाग जाते होंगे वैसे इतने सारे सदस्य और चर्चा कारों का टोटा ..बात कुछ हजम नही हुई

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    4. बिल्कुल मस्त होकर टिपीया रहे हैं कि चर्चा बडी मस्त है. लगता है अभी होली का पूरा असर बाकी है. दूसरी एक खबरथोडी देर बाद आकर देते हैं अगर सही निकली तो.:)

      रामराम.

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    5. इत्ती अच्छा करते हो तो कोई भी चुनाव लड़वाने निकल पड़ेगा फिर हम कौउन खेत की मूली है भई!!

      झक्कास चर्चा!! रोज किया करो बिना चिन्ता किए कि आज किसका दिन है.

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    6. शानदार LL TT चर्चा..
      बूझे के नाहिं, बड़ा न असान सूक्ष्मीकरण है.. लुकिंग लन्दन एंड टाकिंग टोक्यो ?
      हमहूँ कहें, कि कवन हन्नाय रहा है.. "I'm Feeling Lucky" , म्याला घुमि आयौ, तबहिन चहक रहे हो ?
      बढ़िया है.. अनूप बाबू, बढ़िया है..

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    7. बहुत बढ़िया चिट्ठा चर्चा .
      हम सच में कह रहे है -अभी जाने की जिद न करो।
      ऐसे ही अच्छी चर्चाये करते रहिये .

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    8. आज हनुमानजी का दिन है पर जब हनुमानजी ने हाथ उठा दिया तो रामजी ने मोर्चा सम्भाल लिया:) तभी तो आज कविता में चर्चा हुई-
      आती हुई लहर ने किनारे से बेचैनी के साथ कहा
      "मुझे मदद चाहिये तुम्हारी"

      किनारे ने स्वागत के स्वर में पूँछा
      "किस चीज में"
      अरे, इत्ता भी नहीं समझे, चिट्ठा चर्चा में:):):)

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    9. आपकी चिटठा चर्चा से रचना की चार लाईना पढने का मौका मिला । वरना तो वो छूट ही जाती ।

      और चर्चा तो है ही मस्त ।

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    10. बहुत ही अच्छी चर्चा रही अनूप जी।

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    11. देना पावना यहीं निपट जाये
      मन में क्यों मलाल रह जाये
      सो लौट आया हूँ, पँचों को बताने कि,
      देखिये, ई अनूप भाई.. हमको ठीक से लाइन नहीं मारे हैं ।
      ईनका बहिष्कार कईये दिया जाय का.. बोलिये का करें ?

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    12. चार लाइना, फिर आठ लाइना, फिर सोलह लाइना, फिर बत्तीस लाइना.... कितनी लाइना की बात अलग से करेंगे ।
      हर कविता कोई न कोई लाइना तो होती ही है ।
      लाइना संज्ञा है, या विशेषण ?
      एक लाइना ही लुभाती है |

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    13. चर्चा अच्छी रही | मैंने एक लाइना में अपने को ढूंढ़ा |

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    14. बहुत बढ़िया लाइना लंगी ..शुक्रिया बढ़िया चर्चा

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    15. आज कल बहुत से रचनाओं की , रचनाये ब्लॉग पर आ रही हैं . अब पूरा नाम दिया करे ताकि किसी एक रचना की वजह से कोई दूसरी रचना आहत ना हो . रचना , रचना मे अंतर होता हैं हर रचना को एक लाइन मे समेटना उफ़ क्या रचनात्मक कला प्रवीन हैं आप

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    16. आज आपके सूत्र पकड़कर कई ब्लॉग झान्केगे इसके लिए शुक्रिया....मोजिला इस्तेमाल करने वालो को चिट्ठा चर्चा में कोई कमी नजर नहीं आती .लगता है एक्स्प्लोरर में कुछ गड़बड़ होगी....
      एक लेना आप पेटेंट करवा ले ...कसम से .....

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    17. जिसे अच्छा भला आदमी समझें, वह भी कवि निकल जा रहा है। ब्लॉगिंग घणी संक्रामक है - कवि बनाने के लिये!

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    18. जिसको समय कम हो वो पढ़े अनूप भाई को । सब कुछ मिलता है यहां मिलावट के साथ । मस्त चर्चा

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    19. ham hamesha kahate hai ki aap ki pasand hame bahut pasand aati hai...aaj aap ki pasand me apani kavita padh kar samajh sakte hai kaisa laga hoga :) :)

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    20. हमने तो कुछ नहीं कहा जी...आपने जाने कैसे prove कर दिया की हम शरारती हैं...एक तमगा और मिला ब्लॉग की बदौलत...शरारती होने का, उसपर ताऊ से approve भी करा दिया...भगवान बचाए.
      और आप आजकल क्या कर रहे हैं, डॉक्टर अमर कुमार को तकलीफ है की आप उनको ठीक से लाइन नहीं मारे हैं, अरे, डॉक्टर अनुराग बोल दिए की एक लाईन को पेटेंट करा लीजिये तो इसका मतलब क्या है मनमानी कीजियेगा :)
      मस्त चर्चा रही...और अभी तक कोई नहीं कहा तो हम ही झुट्ठो मुत्ठो कह देते हैं अभी जाने की जिद मत कीजिये...अब खुश :)

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    21. इंटेलेक्चुअल लेखन और हम: नदी के दो पाट जो कभी नहीं मिलते
      कुछ जोग इधर उधर से - जरा मुस्कुरा लें : अभी टाइम नहीं है भाई! मुस्कराने का काम हम सिर्फ़ इतवार को करते हैं!
      कहा-अनकहा: ब्लाग पर रहा

      ये तीनों एक लाइना बहुत अच्‍छे लगे। धन्‍यवाद।

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    22. नवीनता से भरी चर्चा, सोचने के लिये बोरी भर सामग्री, और ऊपर से आपके शरारती एक-लाईने. एक फाईव-स्टार डिनर के लिये जरूरी सारी सामग्री को एक फाईव-स्टार "शब्द-शेफ" द्वारा प्रस्तुति. वाह मजा आ गया.

      अब मुख्य भोजन के बाद "पुडिंग" का इंतजार है -- अगले आलेख द्वारा!!

      सस्नेह -- शास्त्री

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    23. किनारा शांत....!
      लहर के आने से आये भीगेपन में
      कुछ खारापन मिल गया था,
      मगर वो चुप था।
      बहुत ही अच्छी चर्चा रही

      Regards

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    24. शानदार चर्चा है
      न इनकम है न खर्चा है.

      कविता की बात ही निराली है. उसके प्यार कोई भी कवि बन जायेगा.

      एक लाइना बहुत गजब की हैं. एक ठो क्लास दीजिये न एक लाइना लिखने का...:-)

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    25. रोचक महमोहक चर्चा आनंदित कर गयी.आभार.

      जवाब देंहटाएं
    26. डॊ. अमर कुमार जी , आपने टेलीफोन पर यह एक लाइना कई बार सुन ही चुके होंगे - सारी लाइने व्यस्त है, कृपया लाइन में लगे रहिए.....:) तो देखिये आपका नम्बर कब आता है।
      एक लाइना तो पेटेंट है ही - सभी चिट्ठाकार पेटेंटधारी से आज्ञा लेकर ही तो लिख रहे है- कापीराइट जो है:))

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    27. jabardasht charchaa ho gayee mahaaraaj, kamaal kar diya aapne ajee itaa sab kuchh kah diyaa aapne padh kar kuchh maja saa aa gaya , kuchh nahin bahut sara.

      जवाब देंहटाएं
    28. बहुत बढ़िया चिटठा प्रस्तुति ..

      जवाब देंहटाएं

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