शनिवार, मई 09, 2009

रुकावट के लिए खेद है !

नमस्कार ! चिट्ठाचर्चा में आपका स्वागत है !

यह चर्चा बिना किसी दबाब के स्वेच्छा से की जा रही है ! आप सभी से निवेदन है कि

इलाहाबाद में हुए हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया नामक कार्यक्रम के फ़ोटू देखकर आज किसी

तरह काम चला लें ! वैसे बिलागर श्रेष्ठ ने
चाय की दुकान पर चर्चा करने की प्रेरणा दे ही दी

है , तो इससे आगे की चर्चा चाय वाले को सुनाऊँगा ! रुकावट के लिए खेद है !

चलते-चलते :

इलाहाबाद में मिल गए, बिलागरन के नैन .
फ़ोटू देखे तो लगा, हम ना हुए हुसैन .
हम ना हुए हुसैन, नहीं तो क्या कर लेते ?
थाम हाथ में माइक हम भी भाषण देते .
विवेक सिंह यों कहें कभी हम भी जायेंगे .
फ़ोटू सबके खींच ब्लॉग पर चिपकायेंगे .

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16 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार ! चिट्ठाचर्चा में आपका स्वागत है !:)

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  2. इतनी छोटी चर्चा करके कहां चले ?

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  3. माईक्रो पोस्ट तो सुना था मगर माईक्रो चर्चा पहली बार पढ रहा हूं।

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  4. बहुत अच्छा लगा सचित्र रीपोर्ट देखकर - आभार !

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  5. चलते चलते चर्चा कर गये आप । अच्छी है । धन्यवाद

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  6. इतना ही काफी है विवेक भाई वहां आकर इससे ज्यादा क्या उखाड़ लेते -मतलब यहाँ तो ज्यादा ही उखाड़ते पछाड़ते हैं !

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  7. अरविन्द जी की बात ही ठीक सी लगती है.

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  8. vivek bhai pehle to ye batao ki aap ho kahaan , charchaa achhee lagee hameshaa kee tarah itnaa to mat tarsaao yaar, ab to aa hee jao maidaan mein itnee saja to bahut hai unke liye , jiske liye aapne mukararr kee thee...

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  9. आये थे तो तस्सली से चर्चा करते? कोई बात नहीं फिर कभी सही..

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  10. YAH VIVEK SINGH NAYE CHARCHAKAAR HAE KYA . BINA CHITTHA LIKHE CHITTHACHRCHA PAR ROK LAGNI CHAHIYE . AGAR SHOUK HAE TO SWAPNLOK CHAALU KARO

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  11. भाई ये झलक दिखाके कहां चले?:)

    रामराम.

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  12. Vivek! ab pariksha s farig ho gaye hain aap, to aa kar apna morcha samhale rakhiye poorva-vat.
    kayi din baad dikhi yah jhalak bhi vaah vaah.

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  13. क्या बात है विवेक जी..........चर्चा छोटी पर असरदार,........

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  14. यदि यह चर्चा अँगड़ाई है,
    तब तो तुम्हें बधाई है !


    :) मन्नैं तो यह चुप्पै से मजा देण आली चर्चा की लुगाई लाग्यै !

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  15. ओह! नेट से दूर रह कर भी यह तो पढ़ ही लिया बरास्ते लिंक।
    चाय की दुकान बहुत क्रियेटिव जगह है। बतौर स्टूडेण्ट पिलानी में चाय की दुकान वाले के बहुत मुड्ढे घिसे हैं। अब तक घिसने का मौका मिलता तो शायद नोबल प्राइज ले गिरे होते! :-)
    (बोकारो से पोस्ट किया)

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