बुधवार, मई 13, 2009

नियमित होते होते अनियमित हो गए !

आज हम चर्चा करने में देरी कर गए.... कल अनूपजी की चर्चा देर रात पढ़कर नियमित होने की जितनी कोशिश की थी, आज असफल हो गए लेकिन शायद कोशिश करते रहना ही हमें सफलता की ओर ले जाता है...
अपने बेटे के हाथ की चाय का आनन्द ले रहे हैं और स्पप्नदर्शी जी के चिट्ठे पर अलग अलग चाय के प्रकार देख रहे हैं .... चाय के तलाब्चियों के लिए चाय के बारे मे कुछ ........................ जानकारी आप भी जानिए.

आप अगर ऑफिस में हैं तो टी बॉय को कहने की बजाए उठिए और अपनी चाय खुद बना कर आइए फिर पढ़ना शुरु कीजिए....

कुछ देर खड़े होकर अभिषेक ओझा के बताए खतरों को ध्यान से पढिए.... बड़ी बारीकी से ब्लॉगिंग के खतरे गिना रहे हैं....
एक और छोटा खतरा है आपके स्वास्थ्य का। अगर अतिशय ब्लॉग्गिंग करने लगे तो फिर देर रात तक जागना, कम नींद और बेचैनी घेर सकती है. सोने और टहलने की बजाय अगर आप कंप्यूटर के सामने बैठे हैं और रिफ्रेश करके टिपण्णी का इंतज़ार… तो समझ लीजिये ये खतरा आप पर मडरा रहा है.

यह कोई छोटा सा खतरा नहीं है...सेहत हज़ार नियामत है.... आप क्या सोचते हैं...? हम जैसा ही सोचते हैं तो उठिए...थोड़ा टहल कर आइए.... नहीं टहल सकते ....कोई बात नही....अपनी सीट से उठ तो जाइए....
कहीं आपको पढ़ कर गुस्सा तो नहीं आने लगा.... अपने पर या हम पर... किसी पर भी गुस्सा आने से पहले...... खुशियों के विज्ञान को समझ लीजिए... ज़ाकिर अली 'रजनीश' इस विषय पर विस्तार से लिख रहे हैं..
कोई व्‍यक्ति आपको लाख नापसंद करता हो, आप 15 दिनों तक लगातार उसकी चीजों की प्रशंसा करिए..........15 दिनों के बाद अगर आप जाँचें, तो आप पाएंगे कि उस व्‍यक्ति के प्रति आपका नज़रिया पूरी तरह से बदल गया है........पर प्रशंसा करते समय इस बात का ध्‍यान अवश्‍य रखें कि उसमें कहीं भी उपहास/बनावट के भाव न हों......तारीफ करते समय सामने वाले को लगना चाहिए कि वे शब्‍द आपके दिल से निकल रहे हैं....

बेटे और उसके दोस्त ने नाश्ता बनाया है... नाश्ता करने के बाद तारीफ के दो बोलों ने ही उनके चेहरे की चमक को कई गुना बढ़ा दिया.... नाश्ता करने के बाद लौटी तो पारुल की कविता पर नज़र गई...
बच्चे पढ़ते है माँ का मन
समझते हैं कई दफ़ा अनकही पीड़ा
सुलझाते हैं अपनी सामर्थ्यानुसार
अपने सामर्थ्य से ऊपर की पहेलियाँ


पापा ! पापा ! मैं आ गयी
(बच्चे के संसार में आने के बाद हर पिता अपना छूटा हुआ बचपन पा लेता है..बच्चे के बड़े होने के साथ-साथ वह भी उसकी तरह ऊर्जावान होने लगता है ..और थम जाता है कुछ पल के लिए शरीर पर चढ़ता बुढ़ापा)

समाज के एक हिस्से में बेटी के आने पर कुछ पिता झूमते भी हैं.... लेकिन रचनाजी ने जिस माँ के दर्द को कविता के रूप में दिखाया है...
ईश्वर बस बेटी न देना...
माँ की हर धड़कन कहती है ....
ईश्वर लड़की ना देना...

माँ के इस दर्द को एक माँ ही समझ सकती है.... समाज की यही विडम्बना है... इससे इंकार नहीं किया जा सकता..... तभी तो समय समय पर समाज में बदलाव लाने के लिए स्त्री संघर्ष करती है...अपनी आवाज़ बुलन्द करनी पड़ती है.....
गलत होता देखती हूँ तो उसे अपना भाग्य मान स्वीकार नहीं करना चाहती। बहुत कुछ स्वीकार किया है स्त्री ने, अब और नहीं.......

समाज का एक वर्ग ऐसा भी जहाँ भाई उदय वर्मा अपनी स्वर्गीय बहन आदरणीय दीदी शैलप्रिया के विचारों को अपनी यादों में जीवित रखता है...वे विचार चिंतन करने को बाध्य करते हैं.....

शैलप्रिया क्या सोचती थीं स्त्री संघर्ष को लेकर, किसी स्त्री की पीड़ा को किस रूप में देखती थीं वह। और किसी स्त्री को पराजित क्यों मान लेता है पुरुष - इन्हीं बातों को रखता है उनके भाई उदय वर्मा के संस्मरण का यह हिस्सा --- - अनुराग अन्वेषी

अपने पारिवारिक जीवन और सामाजिक ढांचे की सुरक्षा के लिए औरत जो त्याग करती है अगर हार-जीत की भावना से ऊपर उठ कर देखा जाये तो सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा।'

जिनके कारण आज हम यहाँ हैं... वही दोस्त अर्बुदा फिर से अपनी एक नई रचना के साथ ब्लॉगजगत में दिखाई दीं...

आज बस इतना ही ...... उत्तरदायियत्त्व कई लदे हैं.... उन्हें निभाने निकल रहे हैं......
लेकिन चलते चलते कुछ लिंक्स पर हमारी नज़र गई जिन्हें हमने प्रिंट कर लिया है, किसी मॉल या समुद्र के किनारे इत्मीनान से पढ़ेगे....

आपके पास वक्त हो तो अभी पढ़ने का आनन्द लीजिए.....
होइहै सोई जो ब्लाग रचि राखा
हिन्दी तो मती सिखाओ जी!
गुरु से जुपिटर तक

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20 टिप्‍पणियां:

  1. उल्लेखनीय़ प्रविष्टियों की चर्चा के लिये धन्यवाद ।

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  2. मीनाक्षी जी, तस्लीम को याद करने के लिए आभार।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  3. अरे वाह, "रजनीश" जी बहुत काम की सलाह दे रहे हैं! प्रशंसा तो मुक्त भाव से करनी चाहिये।

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  4. बहुत अच्छी और उपयोगी.. परिचर्चा..के लिए धन्यवाद..

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  5. भाई वाह तस्लीम जी का अंदाज दिलचस्प है..ओर ज्ञान भी...

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  6. बहुत अच्छी और उपयोगी

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  7. चुनी गई एक एक पोस्‍ट
    है जैसे नगीना
    मीनाक्षी जी ने
    चिट्ठाचर्चा में
    बहाया है खूब
    पसीना।

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  8. जाकिर भाई की ज्ञानगंगा में नहा लिये.

    वैसे कभी कभी अनियमित होने का आनन्द भी लेने में कोई बुराई नहीं है.

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  9. मीनाक्षी जी...........आपने चुन चुन कर नगीने निकाले हैं..........मुलाक़ात नहीं कर सका अभी तक व्यस्त होने के कारन कुछ बिटिया के एक्साम के कारण.............क्षमा प्रार्थी हूँ ....... पर मन में इच्छा है इसलिए जरूर मिलेंगे

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  10. आप की चर्चा संक्षिप्त किन्तु
    सार्थक रही. किन्तु कभी इन
    चर्चाओं में कुछ लोग अच्छा
    लिखने वाले भी छूट जाते हैं
    हो सकता है काम की अधिकता हो
    किन्तु फिर भी अनुग्रह है कि
    चर्चाकार अधिक पड़ें वे इसके दायित्व से मुक्त
    नहीं होते .
    मेरा सोचना है हो सकता है गलत भी हो
    आभार सहित

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  11. संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण चरचा।

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  12. @दिगम्बरजी,,व्यस्त हम भी हैं नही तो 'अतिथि देवो भव' सोच कर हम ही अचानक पहुँच जाते..
    @मुकुलजी, आप सही सोच रहे हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा चिट्ठे पढ़ने चाहिए...आइन्दा कोशिश रहेगी कि काम और चर्चा का तालमेल सही बैठ सके...

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  13. बहुत सार्थक चर्चा की है।
    घुघूती बासूती

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  14. बेनामीमई 14, 2009 12:55 pm

    चिट्ठा चर्चा पर आज ही आया हूँ. उल्लेखनीय चिट्ठों के मोती पिरो-पिरोकर आपने जो माला बनाई है, भगवान करे वह कभी टूटने ना पाए और दिन-ब-दिन लम्बी होती रहे, ऐसी मेरी शुभकामनायें हैं.

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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  15. कहीं नाहक तो परेशान नहीं हों गयीं, आप ?
    नियमित रहने वाले चर्चाकार की बात जोही जा रही है ।" अनियमित ब्लॉग की क्षमा मागंने में शर्म आ रही है फिर भी बेशर्मी से लिख रहा हूँ. "

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