मंगलवार, मई 12, 2009

ये रहा आपका उल्लू का पट्ठा !!!


उल्लू
आज जरा कुछ ज्यादा ही देर से चर्चा करना शुरू किये तो पहली ही पोस्ट अजित जी की दिखी। शीर्षक देखिये न जरा- पुराणिक जी, ये रहा आपका उल्लू का पट्ठा !!! हमें लगा हमारे आते ही उन्होंने ऐसा लिखा। हम सकपका गये लेकिन देखा कि वहां तो बड़े ज्ञान की बातें की गयीं:
उल्लू के लिए भारतीय भाषाओं में एक और शब्द है घुग्घू। यह भी संकेतों और लक्षण से विकसित हुआ है। संस्कृत में घुः या घू धातु है जिसमें विशिष्ट ध्वनि का भाव है। कबूतर की गुटुरगूं ध्वनि इसी घुः से उपजी है। घूकः का अर्थ होता है ध्वनि करनेवाला पक्षी। यह उल्लू भी हो सकता है और कौवा भी। घूकः से ही बना घुग्घू। हिन्दी में जड़बुद्धि के व्यक्ति को घुग्घू कहा जाता है और भोंदू की तरह बैठे रहनेवाले की मुद्रा को घुग्घू की तरह ताकना कहा जाता है। घुग्घू शब्द उर्दू में भी इस्तेमाल होता है।
लेकिन आलोक पुराणिक लगता है हमारे जबाब उल्लू का पट्ठा शब्द का उद्भव कैईसे हुआ? से ज्यादा संतुष्ट हैं इसलिये अभी तक अजितजी की टिप्पणी पर कुछ कहे नहीं अभी तक। हमने लिखा था:
उल्लू का पद तो अस्थायी टाइप का होता है लेकिन उल्लू का पट्ठा स्थायी होता है। उल्लूऒं को अपने पट्ठे चुनने की स्वतंत्रता नहीं होती। उल्लू की औकात के हिसाब से पट्ठे उससे अपने आप जुड़ते हैं। लेकिन उल्लू के पट्ठे अपना उल्लू खुद चुन सकते हैं।

उल्लू के पट्ठे गिनती में ज्यादा होने के कारण उल्लू से अधिक ताकतवाले होते हैं। उल्लू का पद तो अस्थायी टाइप का होता है लेकिन उल्लू का पट्ठा स्थायी होता है। उल्लूऒं को अपने पट्ठे चुनने की स्वतंत्रता नहीं होती। उल्लू की औकात के हिसाब से पट्ठे उससे अपने आप जुड़ते हैं। लेकिन उल्लू के पट्ठे अपना उल्लू खुद चुन सकते हैं। कई उल्लू के पट्ठे तो तमाम उल्लुओं को उल्लू बनाकर उनसे जुड़े रहते हैं। हर उल्लू यही समझता है वह केवल उन्हीं का पट्ठा है।

एक तरफ़ अजित जी ने उल्लू के पट्ठे की चर्चा की तो दूसरी तरफ़ अरविन्द मिश्र ने समीरलाल चर्चा शुरू की जिसे रचना सिंह जी ने ब्लागर मानने से ही इन्कार कर दिया और टिपियाया:

समीरलाल
who is he ? i think you should write about contemprory bloggers . he is obselete

i am sure he will agree to it and i am waiting for his reply

दूसरी तरफ़ तपेश्वरी आनन्द को समीरलाल जी में तहकीकात के गोपी अंकल दिखते हैं तो प्राइमरी के मास्टर जी को मस्त मौला तो कभी गाड फादर की तरह दिखते हैं।

आप भी अपनी प्रतिक्रिया अरविन्दजी के ब्लाग पर दे डालिये। सब मुफ़्त है भाई!

रविरतलामी के माध्यम से जानिये कि ब्लागर अपने स्वरूप में सुधार के लिये आपकी सलाह मांग रहा है। दीजिये न 14 मई तक।

कुश से अपने हिंदी के ब्लाग सपर नहीं रहे हैं लेकिन उन्होंने अपना अंग्रेजी का एक ब्लाग भी शुरू कर दिया। इस ब्लाग में वे अपने कुछ विचार और आल इंडिया ट्रक लिटरेटर एशोसियएशन की तरफ़ से प्रद्दत साहित्य का उपयोग करेंगे।


सिद्धार्थ त्रिपाठी
सिद्धार्थजी ने इलाहाबाद में हुई कार्यशाला के किस्से सुनाने शुरू कर दिये और विषय प्रवर्तन कर डाला:
मैने मुद्दे पर लौटते हुए सबसे पहले यह बताया कि ब्लॉग आज के जमाने की ऐसी विद्या है जिसे सीखने के लिए किसी गुरू की आवश्यकता ही नहीं है। यहाँ जो लोग आए हुए हैं वो सभी मात्र यही बताने आए हैं कि इसे बहुत टेक्निकल मानकर दूर-दूर न रहिए। केवल इन्टरनेट युक्त कम्प्यूटर के पास बैठने की देर है। यदि हमारे भीतर जिज्ञासा की जरा भी लौ जल रही है तो बाकी सारी पढ़ाई अपने आप हो जाएगी। इक्कीसवी सदी में परवान चढ़ा यह माध्यम हमें विचार अभिव्यक्ति का एक ऐसा मौका देता है जहाँ हम स्वयं रचनाकार-लेखक, सम्पादक, प्रकाशक और मुद्रक सबकी भूमिकाएं निभाते हैं। कोई हमारा हाथ रोकने वाला नहीं है। केवल हमारा अपना विवेक ही है जो हमें कुछ करने या न करने के लिए रास्ता दिखाता है।

और अंत में

आज दिन में पहले हम और इसके बाद बिजली गुल रही। दोनों के साथ लैपटाप की मुठभेड़ जब हुई तब रात के बारह बजने में कुछ मिनट बाकी थे। सोचा जितनी हो सके उतनी ही चर्चा ठेल दी जाये। बाकी भूल-चूक लेनी देनी। फ़िलहाल इतना ही। बकिया फ़िर आराम से कहा सुना जायेगा।

कल सुबह मीनाक्षीजी चर्चा पेश करेंगी।

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27 टिप्‍पणियां:

  1. जागते रहो!!!!!!!!!!!

    अजित जी जो किये सो किये..अरविन्द जी के ब्लॉग पर रचना जी हमारे कमेन्ट का इन्तजार कर रही है, इसलिए भाग आये-कोई मुझे सुझाओ तो क्या लिखूँ..हाय!! हम तो ब्लॉगर भी न रहे!!

    ऐसा गजब जुल्म-साहित्यकार कोई मानता नहीं-यही तो एक आसरा था कि चलो, ब्लॉगर तो हैं...अब क्या होगा!!

    फुरसतिया जी, आपे लाये थे ब्लॉगिंग में, आपे कुछ बतायें.. :(

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  2. obselete शब्द किस भाषा का है। कोई ज्ञानी बतलाएगा?

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  3. आपके नतीजे से सहमत हैं हम भी....:)

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  4. बेनामीमई 13, 2009 1:09 am

    समीर जी आप भी ना… :-)

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  5. ये झागवाला है?
    इस बारे में और ग्यान प्रकाशित करने की कृपा करें कि उल्लू का पट्ठा, अपना उल्लू कैसे चुनेगा

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  6. आज तो बस इतना ही कहेंगे कि हम नियमित रहने की कला आपसे सीख रहे हैं......देर से ही सही लेकिन मंगल की चर्चा पढने को मिल ही गई.. शुक्रिया

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  7. ईहाँ पट्ठे दिन भर इंतेज़ारै करते रह गये ।
    धन्य धन्य वह उल्लू, जो आपको चर्चाने ले आया,
    गरमी बहुत है, और आज का लिंक भी बासी हो चुका है, सेहत बिगड़ जायेगी ( वैसे ही कउन ठीक है ? )
    समीरलाल की ओर से हम वकालतनामा भर आये हैं, देखो अरविन्द जी मँज़ूर करत हैं कि नाहीं ?
    समीर भाई को आप लाये रहे.. तौन हम जईसे टपके हुये बिलागर भी अपना आसरा तलाशें का ?

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  8. समीर जी के लिए......
    ब्लॉग ब्लॉग ना रहा, ब्लॉगर ब्लॉगर ना रहा,
    पाठक/पाठिका तुम्हें हमारी ब्लॉगिंग पर एतबार ना रहा ।
    समीर जी से बहुत सहानुभूति हो रही है। अब वे शायद जब नेता की कुर्सी जाती है तो उनका दर्द समझ सकेंगे।
    जैसे नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज भी चले जाए तो क्या होता है वैसे ही तीन सौ पोस्ट लिखकर ब्लॉगर मान भी ले कि वह ब्लॉगर नहीं है यो क्या होता है। वे तीन सौ पोस्ट्स चिल्लाकर कहेंगी कि समीर लाल ब्लॉगर हैं, थे और रहेंगे।
    हमारे जमाने के अनुसार,
    QED
    घुघूती बासूती

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  9. समीर जी की ब्लॉगिंग के लिये कुछ कहना क्या ? पर समीर जी की खुद की परेशानी को क्या कहिये, उन्हें ’फिक्रो जवाब ने मारा’।

    कुश के ब्लॉग के लिंक का आभार ।

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  10. आज की ताजा खबर-ताजा खबर
    --------------------------------
    उडन-तस्तरी के समीरलाला को ब्लॉगर पद से हटाया गया।
    -----------------------------
    साहित्यकार/ब्लॉगर, दो दो पदो का लाभप्राप्ति किऐ हुऐ थे इसलिऐ (आर) सरकार ने लालाजी को ब्लोगर ना मानने का फैसला लेना पडा।
    ----------------------------------
    समीर-लालाजी, कल के अखबारो मे यह खबर हो तो कैसा रहेगा ?

    हे प्रभु यह तेरापन्थ
    मुम्बई टाईगर

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  11. आपकी बत्ती (पढ़ें बिजली) ज्यादा ही गुल रहने लगी है। जरा कनेक्शन ठीक कराइये। कहीं रचना सिंह जी आपको भी कण्टेपररी मानने से इन्कार न कर दें।

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  12. समीरजी, अव्वल तो आप ई बात सही न कह रहे हैं कि हम आपको ब्लागिंग में लाये। आप अपने आप आये और छाये। हमारा आपको लाने और छा जाने में कोई योगदान नहीं है। बोले तो मैं इसके लिये अपराधी नहीं हूं।

    रही बात रचनाजी की बात का जबाब देने की तो हमारी समझ में हर बात का जबाब देना भी कोई अच्छी बात नहीं होती। बहुत बार कोई जबाब न देना भी एक जबाब होता है। और अगर बहुतै मन हुड़क रहा है जबाब देने का तो एक जबा ये दिया जा सकता हैरचना जी की इस बात का जबाब मैं अपनी चार सौवीं पोस्ट लिखने के बाद दूंगा। ज्ञानजी बत्ती तो गाहे-बगाहे गुल होती ही रहेगी। बकिया हम अपनी पिछली पोस्ट में कह ही चुके हैं कि हम अप्रसांगिक होने का इंतजार कर रहे हैं।

    आप सबकी प्रतिक्रियाओं के लिये शुक्रिया।

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  13. महाराज मुम्बई टाईगर

    आप टाईगर हैं, क्या कहा जाये..अब अखबार में ही तो बचा है. बाकी तो सब मटिया गया है..सो वो भी कर ही दो...एक मन मिट्टी न भी पड़े तो मुर्दा तो खड़ा होने से रहा. तो काहे रोकना बेवजह... :)

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  14. भाई मेरे...

    चलो आने में न सही..छाने में अपने हाथ से तो मुकर नहीं सकते आप. चाहे, कित्ता ही जोर लगा लो. जब भी पकड़ायेंगे, आप को तो अटकायेंगे ही मय सबूत!! काहे कहे थे कि गद्य के मैदान में दंड पेलिये...वरना तो हम कविता कर रहे होते.

    और रही जबाब की बात..तो सब मात्र विनोद है..रचना जी का भी. अरविन्द जी की पोस्ट पर लिख आये हैं..कस्टम क्लिरेंस का इन्तजार कर रहे हैं. :)

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  15. आज की चर्चा बहुत ही उम्दा .

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  16. चर्चा में चित्र लगाने से अब कहीं जाकर ऐसे लगने लगा है कि भरपेट भोजन के बाद मिठाई भी पूछी गई. धन्यवाद.

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  17. अरविन्द जी पर कमेंट का अंश:

    रचना जी

    वो तो कठिन वाली अंग्रेजी में कुछ लिखी हैं और हम ठहरे ठेठ हिन्दी के ब्लॉगर. मगर हम तो उनके अनुज हैं, तो ऐसा लग रहा है जरुर तारीफ देखकर खूब खुश होकर आशीष दी होंगी और तारीफ के चार ठो शब्द और जोड़ दी होंगी.

    कठिन अंग्रेजी समझ लेते तो आज कितना खुशी ले रहे होते हम अपनी तारीफ सुनकर रचना जी के मूँह से.

    हमारे स्कूल में भी एक गुरुजी थे, जब खूब गुस्सा हों या खूब खुश याने भावना पर आपा खो दें, तो बड़ी जबरदस्त अंग्रेजी बोलते थे फर्राटे में, रचना जी जैसे.

    हम तो तबहो न समझ पाये और न ही अबहो.

    अब तारीफ तो की ही होंगी तो हमारा तो फर्ज है कि आभार प्रकट करें. त धन्यबाद, रचना जी. ऐसे ही स्नेह बनाये रखिये आगे भी.

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  18. वाह वाह बहुत ही आनन्द आया..चर्चा से ज्यादा टिपणियां पावरफ़ुल होगई...सही है अगर कोई कुछ है तभी तो ये बाते कही जायेंगी ना? अगर समीरजी कुछ ना होते तो किसको क्या पडी थी उनका जिक्र करने की? अब वो कुछ हैं तभी ना कुछ मानने से इन्कार किया जाता है..

    भाई आप लोग समझते तो कुछ हैं नही और बेकार मे पीछे पड जाते हैं किसी भी बात के.

    उस बात का मतलब ही ई है कि समीरजी बहुत कुछ हैं.

    रामराम.

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  19. ताऊ जी से सहमत ..आज चर्चा से ज्यादा टिप्पणिया प्रभावी हो गई है :-)
    मैं समझती हूँ की समीर जी को इमोशनल होने से पहले दुबारा सोंचना चाहिए. किसी अर्थ का कुछ अनर्थ तो नही हो गया.

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  20. लो कल लो बात ...दनादन ब्रेकिंग न्यूज़ है संसार में ..नीतिश सेकुलर नहीं रहे .....जयाप्रदा हारी तो आत्महत्या कर लेगी...प्रभाकरण आंतकवादी नहीं ......समीरलाल .उड़न तश्तरी वाले ब्लोगर नहीं ???तो वे कौन है जिनके यहाँ हम कल ही टिपियाये है ......३०० पोस्ट लिख कर वे दुनिया को धोखा देते रहे .....है कोई सजा मी लोर्ड ........अब कहिये समीर लाल जी से रखे कम्पूटर पे हाथ ओर कसम खाये ...हम ब्लोगर है ...







    आखिर में एक मासूम सा सवाल अनूप जी से.......ये उल्लू का पट्ठा कौन है ?

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  21. ब्रेकिंग न्यूज़ बन गयी इस चर्चा की "टिप टिप टिप्पणिया :)" इसी सनसनी खबर के अगले भाग की टिप्पणी जानने की उत्सुकता रहेगी ...:)

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  22. बिजली के मामले मे खुशकिस्मत हैं हम यंहा लाईट गुल नही होती।

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  23. चिट्ठा चर्चा में "उल्लू का पट्ठा" की चर्चा मौसम के अनुकूल ही है।

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  24. दरअसल रचना जी शायद लिखना अब्सोल्युट चाहती थीं और लिख गयीं आब्स्लीट और वह भी आदतन स्पेलिंग मिस्टेक के साथ -अब पिष्ट पेषण हो रहा है !
    समीरलाल जैसा कालजयी रचनाकार वैसे ही आब्स्लीट नहीं हो सकता जैसे फुरसतिया जी अप्रासंगिक -क्योंकि यदि ये वैसा हुए भी तो दोनों शब्दों की परिभाषाएं ही बदल जायेंगीं !
    यह भी हो सकता है कि रचना जी और समीर जी कूट भाषा में कह सुन लिए हों और हम नाहक ही टिपियाये जा रहे हों ! वैसे रचना जी ने मूल पोस्ट पर कुछ लंबा सा जवाब भी दिया है पर मेरी अक्ल उसे समझ पाने में जवाब दे गयी आप चाहें तो ट्राई मार सकते हैं !
    मेरी समझ तो भैय्ये बस इत्ती सी है कि आब्स्लीट मानें आउट ऑफ़ डेट !
    अब समीर भाई तन से या मन से या कहाँ से आउट ऑफ़ डेट हो चुके हैं ये तो रचना जी समझें या फिर समीर भाई ! हम इस पचडे में इब बिलकुल नहीं पड़ने का !

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  25. बेनामीमई 14, 2009 6:59 am

    who is he

    यानी कौन समीर ??
    यानी कौन समीर !!!!
    अब हिन्दी ब्लॉगर मे जब मै सीरियस लिखती हूँ तो भी समझ नहीं आता { अनूप को हा हां ही ही पर भी शोभ था } और जब मज़ाक मै प्रशन करती हूँ पर जान कर !!! नहीं लगती तब भी समझ नहीं आता । अब तो मज़ा आने लगा हैं आप सब को इस प्रकार दो लाइन के कमेन्ट के पीछे डंडा लेकर भागते देखने मे । कमेन्ट न हुआ भेस होगई { डॉ अमर को याद हो गा , इसी मंच पर उन्होने भेस मुझे पुरस्कार मे दी थी } ।
    समीर अगर मेरा अनुज हैं तो उसके साथ मे ठिठोली करू या ना करू ये मेरा और उसका मामला ठहेरा , अनूप के लिये तो ये यही कहूँगी काजी जी क्यूँ दुबले शहर के अंदेशे से ।

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  26. हुम्म्म! पट्ठे और उल्लू के सन्दर्भ में आप वाला तर्क वाकई दमदार है.

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