शुक्रवार, अगस्त 21, 2009

अपना रास्ता लो बाबा ! माफ करो !


आज चिट्ठाचर्चा नही करनी होती तो मै शायद एक ऐसे पोस्ट पढने से वंचित रह जाती जो इतने महान विचारों से अनुप्राणित है कि उसके आगे सबका कद बौना है!टहलते टहलते मेरी निगाह शायदा की इस पोस्ट पर जा टिकीं।

मुझे कतई हैरानी नही हुई कि एक सज्जन मुस्लिम महिलाओं को उनके समाज मे मिले कष्टों से उबारने के लिए हिन्दू युवकों का आह्वान कर रहे हैं कि आओ क्रांतीवीरों इन अबलाओं का उद्धार करो , इनसे विवाह करो और बहुत से मित्र इसे एक्सीलेंट आइडिया मान कर सहमत हुए जा रहे हैं। हैरानी इसलिए नही हुई कि हमारी सरकार, प्रशासन, न्यायलय तक जैसी रैशनल संस्थाओं को स्त्री के उद्धार का यही मात्र तरीका नज़र आता है कि उसे पत्नी बनाकर ,दो जून की रोटी देकर बदले मे बिस्तर से लेकर रसोई का हर सुख उससे लेकर उसे उपकृत किया जाए।कभी सामूहिक विवाह करवा कर कन्याओं पर उपकार करने के भोंडे प्रयत्न किए जाते हैं , कभी बलात्कारी से पीड़ित स्त्री के विवाह की बात समाधान बन जाती है ।कुल मिलाकर निष्कर्ष यह कि ऐसी व्यवस्था की रचना करो कि स्त्री अबला,मजबूर हो ..और तब आप उसका उद्धार करने के लिए उससे विवाह कर महान बनें।

स्त्री की गरिमा का ऐसा उपहास उडाते कुछ भद्र पुरुष संकोच नही करते।क्या वे अपने गिरेबाँ मे कभी झाकेंगे कि वे किस हद तक अपने अहंकार मे चूर हैं ? ऐसे पुरुषों के मन मे झाँक कर देखिए जो स्वयमेव ही कार्यस्थल पर किसी महिला कार्यकर्ता के भाई, पिता, या मित्र के रूप मे उसे भोली , नादान ,कमसिन ,अबला मान उसका संरक्षक बनने चले आते हैं मानो वे ठेका ले बैठे हों। लेकिन साहस से बोलती एक भी स्त्री का साथ देने इनमे से कोई नही आता।निरीह स्त्री के आँसू पोंछने के लिए कईं आ जाएंगे ,रोने के लिए कन्धा देने भी आएंगे लेकिन अन्याय का प्रतिकार करती किसी स्त्री के साथ खड़े होने इनमे से कोई नही आता।अपने हित को ताक पर रख किसी स्त्री की सहायता के लिए इनमे से कोई कभी आगे नही आता।
मै सहमत हूँ इस बात से जब शायदा लिखती हैं -

और हां, एक बात औरसमझलीजिए कि औरत का भला करने के लिए उसे सिर्फ पत्नी बना लेना ही एकअकेला रास्ता नहीं है, ऐसा लिखकरआपने खुद को उन लोगों की जमात में खड़ा करलिया है जो वास्तव में जानते ही नहीं कि औरत भोग के अलावाऔर क्या है।

और जब बात मुसलमान महिलाओं की है तो भी मै शायदा से पूरी तरह सहमत हूँ कि -

मैं हर दिन ऐसी कम सेकम बीस खबरें देखती हूं जिसमें हर धर्म और समाज मेंऔरतों पर होने वाले अत्याचार और जुल् की कहानी होतीहै। अमेरिका से लेकरयूरोप और अरब से लेकर हरियाणा तक में औरतों पर होने वाले अत्याचार की भाषाएक है।कितनी गिनती आती है आपको बता दीजिएगा क्योंकि ऐसी कहानियां हमारे देशमें हर रोज बनती और खत् होजाती हैं जिसमें औरत को कलंकित किया जाता है, उसपर जुल् किया जाता मैं हर दिन ऐसी कम सेकम बीस खबरें देखती हूं जिसमें हर धर्म और समाज मेंऔरतों पर होने वाले अत्याचार और जुल् की कहानी होतीहै। अमेरिका से लेकरयूरोप और अरब से लेकर हरियाणा तक में औरतों पर होने वाले अत्याचार की भाषाएक है।कितनी गिनती आती है आपको बता दीजिएगा क्योंकि ऐसी कहानियां हमारे देशमें हर रोज बनती और खत् होजाती हैं जिसमें औरत को कलंकित किया जाता है, उसपर जुल् किया जाता है।
यह ध्यान रहे कि स्त्री हर धर्म , हर समुदाय , हर सम्प्रदाय , हर भाषिक समुदाय, हर उम्र , हर वर्ग ,हर देश मे कम या ज़्यादा पीड़ित , प्रताड़ित होती है , हाशिए पर रहती है। उसकी मूल वजह लोगों के मनों में स्थापित पितृसत्ता और तद्जन्य अहंकार है।धर्मयुद्ध जैसे ब्लॉग लेखकों से आग्रह है कि उसे काबू मे रखिए ।
हमें नसीहतों , निर्देशों ,प्रवचनों ,उपदेशों से बख्शिए ! हमारे उद्धार व कल्याण के लिए

अपनी छत्रछाया ऑफर करने से बाज़ आइए !कृपया आत्मालोचन कीजिए ! कुछ करसकते

हैं तो हमारी गरिमा का सम्मान कीजिए।

वर्ना हमें माफ कीजिए । अपना रास्ता लीजिए !



सुजाता

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24 टिप्‍पणियां:

  1. औरत अभी भी दुनिया में मनुष्य होने का दर्जा नहीं पा सकी है। पर यह दर्जा उसे खुद ही पाना होगा। वह क्यों जानवर होना स्वीकार करती है?

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  2. अगर आज की चर्चा आप को ना करनी होती
    तो क्या इस पोस्ट पर इतनी विस्तार से इस मंच
    पर बात होती . शायद नहीं .
    बस हम सब एक जुट हो कर अपने कर्तव्यों
    की पूर्ति इसी प्रकार से करे तो धर्मयुद्ध की नहीं
    कर्मयुद्ध की बात होगी

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  3. एक निष्प्रयोजन और निरर्थक सोच का सार्थक शोधन ही सबसे अच्छा ढंग हो सकता है, हमारे तय रास्ते हमेशा ऐसे लोगों के लिए एक सबक होने चाहिए.

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  4. "हमें नसीहतों , निर्देशों ,प्रवचनों ,उपदेशों से बख्शिए ! हमारे उद्धार व कल्याण के लिए अपनी छत्रछाया ऑफर करने से बाज़ आइए !कृपया आत्मालोचन कीजिए ! कुछ करसकते हैं तो हमारी गरिमा का सम्मान कीजिए। वर्ना हमें माफ कीजिए । अपना रास्ता लीजिए !"

    "आपके एक एक शब्द से इत्तेफाक रखती हूँ... सही है... माफ़ करो बाबा !
    लेकिन सोचिये तो ज़रा कितना तिलमिला जाते होंगे इन शब्दों से तथाकथित महान लोग !
    हाहा !
    वाकई ये दंभ तो हमे ही धराशायी करना होगा. हम अब वो नहीं है जिन पर लोग तरस खाएं, हम इतनी काबिल हैं की लोगों पर तरस खा सकती हैं."

    बेहतरीन चर्चा.
    धन्यवाद.
    रश्मि.

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  5. अमूमन ऐसी पोस्टो को इग्नोर करना चाहिए ..देर से चिटठा चर्चा खोल रहा हूँ ..हर औरत के पास एक जिरहबख्तर होता है .जाने कैसी कैसी चोटो को ताउम्र सहन करता है...कभीकभी हैरान होता हूँ ..उसकी रूह की ताकत पर .उसकी जिजीविषा पर ...इस देश के कई हिस्सों में घूम चूका हूँ .एक दो बार देश से बाहर भी... कितना कुछ देखा है ..शायद कुछ तो ब्यान नहीं कर सकता ..शराबी गंदे मर्द के साथ जीवन गुजारती औरते ....किसी यौन रोग से पीड़ित मर्द के साथ जीवन गुजरती औरते ..गरीबी ,घरेलु फ्रंट ओर बाहर की नजरो से एक साथ लड़ती औरते ..फौरी टिपण्णी नहीं करना चाहता ...मन में गुस्सा भी है आक्रोश भी ..ओर हैरान भी हूँ ..क्यूंकि सोचता था .कम्पूटर के इस ओर पढ़े लिखो की जमात बैठती होगी...पर हम पढ़ लिख सिर्फ अपनी चालाकियों को पैना करते है...
    शोषण के कई प्रकार होते है ...हर जगह मर पिटाई हो ऐसा नहीं है ..पढ़े लिखे मर्द चुप्पी को हथियार के तौर पे इस्तेमाल करते है ....
    हर मजहब में औरत सताई हुई है ...आप भले ही कितने शब्दों के जाल बुन ले .कितने की कसीदे पढ़ ले .....
    सच को कितने ही खूबसूरत लिबासों से ढंकने की कोशिश कर ले.....

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  6. पर हम पढ़ लिख कर सिर्फ अपनी चालाकियों को पैना करते है...

    इस वाक्य पर अनुराग जी को बहुत धन्यवाद ..जाने कब तक ऐसा होता रहेगा की विज्ञान, कला, समाज, धर्म, परम्परा और साहित्य की बिसात पर इन चालाकियों का धिनौना जाल बुना जाता रहेगा...कुछ प्रतिशत लोग माहौल की दूषित कर देते हैं ...जिन्होंने भी इन घृणित मानसिकता के लोगों के विरुद्ध आवाज उठाई उनका ह्रदय से धन्यवाद.

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  7. जिनका मन दूषित है, दिमाग दूषित है वो चाहे किसी मजहब....किसी जात के हों...किसी देश के हों...उनका पढ़ा लिखा होना भी उन्हें बुद्धि नहीं देता....ऐसे लोग हर जगह रोग फैलाने की चेष्टा करते हैं....

    वो औरतों की ना सोचें खुद के बारे में सोच लें....आपने बिलकुल सही कहा....

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  8. डा.अनुराग की टिप्पणी हमारी बात कहती है।

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  9. अनूप जी की टिप्पणी हमारी बात कहती है।

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  10. कुछ कर सकते हैं तो हमारी गरिमा का सम्मान कीजिए। वर्ना हमें माफ कीजिए । अपना रास्ता लीजिए !-यही आत्मविश्वास होना चाहिए. सहमत हूँ और डॉक्टर साहब तो सब कुछ कह ही गये हैं:

    कम्पूटर के इस ओर पढ़े लिखो की जमात बैठती होगी...पर हम पढ़ लिख सिर्फ अपनी चालाकियों को पैना करते है-कितनी जबरदस्त बात कही है.

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  11. डा. अनुराग की टिप्पणी का मेरा सकुटुम्ब समर्थन !
    वह बहुत ही स्पष्टता से अपने पक्ष का अनुमोदन कर पाये हैं ।

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  12. डा. अनुराग की टिप्पणी का मेरा-- समर्थन !

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  13. बहुत ही सार्थक चर्चा.

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  14. इतना कुछ कहा जा चूका है की अब बाकी क्या रहा ...ब्लॉग जगत पर कदम रखते समय सोचा था ...यहाँ तो सभी बुद्धिजीवी होंगे ..कोई अबला नारी जैसी बात नहीं होगी ..मगर ...खैर ..अभी संघर्ष का बहुत बड़ा रास्ता तय करना है नारी को ..!!

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  15. डॉ अनुराग के बाद हर किसी ने
    उनकी बात का समर्थन कर दिया क्यूँ ? जब भी
    ऐसा कुछ होता हैं क्यूँ हमारे शब्द हमारा साथ
    छोड़ देते हैं ??

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  16. @ रचनाजी, डा.अनुराग ने हमारे मन की बात कह दी इसलिये हमने उसका समर्थन कर दिया। क्या जरूरी है कि हमसे बेहतर कोई बात कह चुका है उसे फ़िर से उससे कमतर ढंग से दोहरायें।

    यह कुछ-कुछ इसी तरह भी है जैसे कि आप अपने ब्लागों में केवल लिंक देकर दूसरों के लेख पोस्ट करती हैं या फ़िर अपनी राय बताये बगैर लोगों की राय पूछती हैं। अपनी राय आप केवल कमेंट में जाहिर करती हैं- वह भी कम्प्यूटर में हिन्दी की सुविधा न होने के कारण रोमन में लिखती हैं। उसमें भी नहले पर दहला मारने की हड़बड़ियों के कारण वर्तनी की तमाम गड़बड़ियां रहती हैं। इस मसले पर आपने भी लिंक देने के अलावा क्या विचार व्यक्त किये हैं?

    क्या इस मसले पर आपने अपने कोई विचार व्यक्त किये? केवल लिंक दे देने और धर्मयुद्ध कर्मयुद्ध कह देने मात्र से आपका पक्ष जाहिर हो गया।

    धर्मयुद्ध में क्या होगा यह भी तो बताइये इस मसले पर। धर्मयुद्ध हरेक के अलग-अलग होते हैं। हो सकता है जो एक के लिये जो धर्मयुद्द वह दूसरे के लिये अधर्मयुद्ध हो!

    इस तरह के लेखों के तमाम पहलू होते हैं। एक टिप्पणी में सबको समेटना हमेशा संभव नहीं होता। तो जो सबसे बेहतर ढंग से कह चुका उसकी बात को समर्थन देने पर सवाल उठाकर आप क्या कहना चाहती हैं।

    अपना-अपना अभिव्यक्ति का तरीका है। आपकी अपनी समझ हमारी अपनी समझ!

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  17. अजी सुनते हो, एक बात बोलू: आज कोई भले ही जो कुछ बोल लिख ले, फर्क नहीं पड़ता, लेकिन वह समय बहुत जल्दी आने वाला है जब आपको बिना बोले यही करने के लिए मजबूर होना पडेगा! उसका कारण बतावू, हम हिन्दुओ द्वारा अपनी बेटियों का गर्भ में ही गला दबा देना, नतीजा पुरुष-स्त्री अनुपात में लगातार बढ़ता अंतर ! और वह दिन दूर नहीं जब एक ही चारा रह जाएगा, जो उन लेखक महाशय की मंशा थी...................!

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  18. कमेण्टेटर उवाच : मैं देख रहा हूँ कि पिच पर एक कीड़ा आ गया है,

    बल्लेबाज का बल्लेबाजी से ध्यान-भंग हो गया है,

    वह लगातार कीड़े की तरफ़ देखे जा रहा है,

    जबकि सबको मालूम है कि यह एक सामान्य कीट है जिसकी तरफ ध्यान देना अपनी टीम को कमजोर करना है,

    बल्लेबाज तक यदि हमारी बात पहुँच रही है तो आग्रह करेंगे कि यदि कीटों की वजह से ध्यान-भंग होता रहा तो हो ली बल्लेबाजी !

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  19. anup
    maere vicchar naari blog par sabne padh liyae haen aur yahaan bhi maenae kehaa haen
    क्यूँ हमारे शब्द हमारा साथ छोड़ देते हैं ?? kisii par bhi koi aakeshp kiya haen kyaa jo aap itna bhadak gayae

    rahii baat vartni ki ashudhiyon ki to bahut sae haen usko sudharnae kae liyae

    aur is charcha manch par likha haen sab bhashao kae blog ki charcha so roman mae likh diyaa to kyaa farak padtaa haen ???

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  20. O I C तो यह है रोमन भाषा ? सोनिया गांधी जी शायद इसीलिए भारतीय राजनीति में सफल हो गईं क्योंकि रोमन और हिन्दी में केवल लिपि का ही अन्तर है, और रोमन तो उन्हें आती ही होगी !

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  21. अनुराग जी से सहमत..

    ढेंन ट ढेंन....

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  22. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  23. shukriya sujata. sath hi un sab ka bhee bahut-bahut dhanyawad jo is mudde par khulkar bole.

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  24. बेशक डॉ अनुराग की टिप्पणी कई लोगों के मन की बात कह रही है, उनसे हम भी सहमत है......दरअसल औरत ममता और सहनशीलता का ज़िरहबख्तर पहन कर ही जन्म लेती है....उसकी इस छिपी ताकत का हर पल इम्तिहान लिया जाता है...और वह हर बार अव्वल आती है बस यही जीत उसका जीना दूभर कर देती है...

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