शनिवार, अगस्त 29, 2009

बीवी उधार चाहिए..

रचना जी ने अपने ब्लॉग हिंदी ब्लोगिंग की देन में एक लिंक दिया है.. लिंक पर क्लिक करने पर आप पहुँचते है प्रभात गोपाल जी के ब्लॉग पर जहाँ वे फरमाते है..
हे विद्वान ब्लागरों हमारी संवेदना को जानो, भाषा की गलतियों को नहीं

प्रभात गोपाल जी लिखते है
बहुत से ऐसे लोग भी ब्लागिंग की दुनिया में होंगे, जो कभी नहीं लिख पाते होंगे। भाषा क्या, किताबों से उनकी मित्रता बीते जमाने की बात होगी।वे संयोग से ब्लागिंग की दुनिया में कूद पड़े हों। कम्युनिकेशन या संवाद के लिए क्या जरूरी है, एक शब्द, एक संकेत या एक चित्र कुछ भी। अब आप उसमें भी गुण दोष निकालने लग जा रहे हैं। यही बात यहां चुभ जा रही है। कृपा करके ब्लाग जगत को मठाधीशी की परंपरा से मुक्त कर दें।


इस पर कई लोगो ने अपने अपने कमेन्ट दिए.. आइये देखे किसने क्या टिपण्णी दी..

रचना said...

Prabhat

hindi bloging mae aap ko jitnae log milagae jo dusro ki galtiyaa spelling ki bhasha ki bataatey haen aur apnae ko vidvaan kehtaey haen aap unkae blog par bhi vahii tankan ki galtiyaan paayegae . par ham aur aap likhey to ashudhi aur wo likhae tpo tankan ki galti


is kae allawa agar koi unpar kuch likh dae yaa aaina deekha dae to wo ek naa ekl blogger ko pakad kae aap kae upar post likhaa daetey haen ki aap hindi bloging ko barbaad kar rahey haen .

2 saal sae yahaan hun pehlae maere upar english kaa arop lagaatey the
phir roman kaa aur inki apni hindi aesi haen ki badae badae shabd likhaegae chahey uska matlab bhi naa pataa ho yaa uska asli matlab kuch uar ho



परन्तु विवेक रस्तोगी जी कुछ और ही फरमाते है.. उनका कहना है

Vivek Rastogi said...

आपकि बात सहि है परंतू अगर कोइ ब्लोगर इस तरह कि गल्तीयां सतत करता है तो उसको टोकना हमारा नैतीक कर्तव्य है, जीससे उसे कम से कम यह तो पता चले की वह गलति कर रहा है और वह उसे सूधार सकता है। लोग तो केवल बोल ही सकते हैं बाद में उस ब्लोगर को पढ़ना बंद कर देगे, क्योंकी कीसि को भि अपनि मातृभाषा कि टांग तोड़ना पसंद नहिं आयेगा।

आपकि बात सहि है कि वैचारीक अभीव्यक्ती होनि चाइये,परंतु समझने वालि और बोलचाल वालि भाषा में अगर क्लीष्ट शब्द लीख देंगे तो कोइ क्या पड़ पायेगा।

ऊपर मात्राओं की गल्तियां लिखने में मुझे बहुत परेशानी हुई, उसके बाद उसे पढ़ने पर बहुत तकलीफ़ हुई, परंतु शायद आप मेरी बात समझ सकें।


अरविन्द मिश्र जी का कहना है..

Arvind Mishra said...

अपनी कमजोरियों को ढाल देने के लिए ऐसे प्रलाप बंद होने चाहिए -अंगरेजी भाषियों में भी व्याकरण और वर्तनी की गलतियां अक्षम्य हैं ! किसी मुगालते में न रहिये भाई -परिश्रम करिए और जहाँ तक संभव हो भाषा की शुद्धता बनाए रखिये -चाहे वह कोई भी भाषा हो !
आप भाषायी गली कूंचों के स्लम डाग /बिच क्यों बनते हो ? माद्दा है तो भाषायी शेर शेरिनी बन दहाडों -मिमियाना बंद करो !

वही संजय बेंगाणी जी कहते है

संजय बेंगाणी said...

यह विनम्र निवेदन है, कृपया अन्यथा न लें.

मैं चार साल से ज्यादा समय से ब्लॉगिंग कर रहा हूँ. आज जब पूरानी प्रविष्टियों को देखता हूँ तो शर्म आती है कि कितना अशुद्ध लिखता था. आज भी साथी ब्लॉगर टोकते रहते है, मगर जहाँ तक हो सकता है, वर्तनी दोष से मुक्त लिखने का प्रयास करता हूँ. क्योंकि शुद्ध लिखना एक कर्तव्य जैसा भी है. मगर ब्लॉगिंग मुक्त अभिव्यक्ति का माध्यम है. बिंदास लिखा जाना चाहिए, बिना भय के. मगर क्या सुधार के प्रति थोड़ा बहुत प्रयास भी नहीं करना चाहिए. मैं हिन्दी सीख रहा हूँ, हर पोस्ट के नीचे लिखता हूँ त्रुटियाँ बताएं. अखबार अय्र पत्रिकाएं ध्यान से देखता हूँ, और अगर एक अखबार का उप-सम्पादक ऐसी पोस्ट लिखेगा तो हम जैसे सीखने वालों का क्या होगा.

आपका ब्लॉग है, चाहे वैसे लिखें. टिप्पणी भी करते रहेंगे और पढ़ेंगे भी. सर्वज्ञ कोई नहीं है. अपराध वर्तनी दोष नहीं है, उसे न मानना है.




हम कन्फ्यूज हो रहे थे कि एक आध अक्षर की छोटी मोटी गलती से कोई फर्क पड़ता है या नहीं इतने में विवेक भाई की एक पोस्ट दिखी.. जिसपर अनूप जी कुछ उधार मांगते हुए नज़र आये.. तफसील की तो पता चला कि बीडी मांगी जा रही थी.. हमने भी सुबह सुबह अनूप जी से चैट पर बीडी उधार मांगने की सोची और गलती से बीडी के डी में डी की जगह वी लिख दिया.. और लिख बैठे कि बीवी उधार चाहिए.. अब आप ही सोचिये लेखन की एक छोटी सी त्रुटी ने मेरा बैंड बजवा देना था.. पर भला हो अनूप जी का सिचुएशन समझ लिए तुंरत और मामला टल गया...

अब बात कुछ यु है कि चर्चा पर इल्जाम लगता रहता है कि इसमें हमेशा कुछ ही लोगो की चर्चा होती है.. इसलिए आज की चर्चा में आपको निम्नलिखित नाम नहीं मिलेंगे..
  1. ज्ञानदत्त पांडे
  2. ताऊ
  3. शिव कुमार मिश्र
  4. अनूप शुक्ल
  5. आलोक पुराणिक
  6. प्रीति बङथ्वाल
  7. पूजा
  8. समीर लाल

पर चर्चा में नाम तो आ गए.. अब ?

अब क्या..? जो रह गए है उनकी चर्चा कर डालते है.. फिर डाल कर देखते है कि आपको कितनी पसंद आई..

शुरुआत करते है लाल किला से.. नहीं नहीं दिल्ली का लाल किला नहीं.. ब्लॉग लाल किला जिसे विद्युत मौर्य जी लिखते है.. और अपनी पोस्ट में वे रिटेल स्टोर्स और मल्टीप्लेक्स में छाई मंदी पर अपने निजी अनुभव को रोचक अंदाज़ में लिखते है..
मैंने लव आजकल देखने का निर्णय लिया। टिकट काउंटर पर जाने पर मालूम हुआ है कि लव आजकल की एक भी टिकट नहीं बिक पाई है, लिहाजा इसमें संदेह है कि शो चलेगा भी की नहीं। बुकिंग करने वाली लड़की ने सलाह दी कि आप कमीने देख लें। मैं घर से फिल्म देखने का तय करके चला था लिहाजा मैंने कमीने ही देखने को सोची। जब मैं सिनेमाघर अंदर दाखिल हुआ तो कमीने देखने वाले भी सिर्फ पांच लोग थे। पांच सौ लोगों की क्षमता वाला आडिटोरियम पूरा खाली था। यानी सिनेमाघर के एसी चलाने का भी खर्चा निकालाना मुश्किल है।


वही ब्लॉग हम सर्फर पर आप देखिये सैयद अकबर जी बता रहे है आपको कि केसर कैसे बनायीं जाती है.. वो भी आकर्षक तस्वीरो के साथ..


वही एक और खबर की तरफ इशारा किया फ्रेंकलिन निगम ने अपने ब्लॉग पर.. किसानो की समस्याओ पर लिखते हुए वे कहते है
पिछले दिनों खबरों की दुनिया में एक खबर दबी रह गयी। इस खबर ने पाठकों पर अमिट प्रभाव नहीं छोड़ा और चैनलों ने इसपर नज़र तक नहीं फेरी। यकीनन ये सनसनीखेज नहीं थी। ये खबर एक किसान की थी। खबर के मुताबिक जौनपुर के गौराबादशाहपुर में किसान राजबहादुर की स्थिति प्रेमचंद के किसानों जैसी है। तकरीबन नौ साल पहले राजबहादुर ने किसी साहूकार से अपनी माली हालत के चलते 300 रूपये कर्ज़ लिया और बदले में अपना हल गिरवी रख दिया। इन नौ सालों में ब्याज के तौर पर 25 हज़ार रूपये चुकता कर दिए गए हैं। लेकिन असल मूल अभी तक चुकाना बाकी है।


दुःख इस बात का है कि किसी भी ब्लोगर की नज़र इस लेख पर नहीं पड़ी.. सिवाय श्रीमान समीर लाल जी के, उन्होंने तो बाकायदा टिपण्णी भी दी इस पोस्ट पर.. प्रस्तुत है उनकी टिपण्णी
1 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari said...

बड़े दिन बाद दिखे भाई!
28 August, 2009 11:58 AM




लेकिन ऐसा नहीं है कि ब्लॉग जगत में पाठको का टोटा है.. देखिये एक ब्लोगर को पहचानने में सताईस लोग लगे है..


अनुराग अन्वेषी जी पढ़ा रहे है आपको अपने ब्लॉग पर भाई विवेक की एक कविता..
विवेक भाई के ब्लॉग का नाम है थोडा सा इंसान.. पर जब आप पढेंगे तो पायेंगे कि ये सिर्फ एक मुकम्मल इंसान ही लिख सकता है..

कत्ल के बाद
बहनें... वक्त हैं
वक्त के बोलते रिवाज़ हैं
रिवाज़ों की बढ़ती जरूरत हैं
जरूरतों की भटकती अहमियत हैं
अहमियत का सुर्ख अहम हैं
अहम की पिघलती इज़्ज़त हैं
इज़्ज़त की वेदी हैं
वेदी की ठंडी अग्नि हैं
अग्नि की पवित्रता हैं
पवित्रता की बासी फूल हैं
फूलों की सिसकती माला हैं
मालाओं के पीछे की चुप तस्वीर हैं


बहनों के कत्ल से पहले
भाई...मर्द हैं
बहनों के कत्ल के बाद
भाई... मर्द हैं।।


अनूठे ब्लॉग 'वेबलॉग' पर इस बार की पोस्ट है पुनर्जन्म के बारे में..पुनर्जन्म चक्र पर एक चिंतन : गांधीजी केपरिप्रेक्ष्य में
जिसकी शुरुआत में कुछ यु कहा गया गया है..
विज्ञान का कोई भी छात्र अमूमन पुनर्जन्म जैसे विषय को एक गप्प मान नकार देगा। लेकिन मैं कहीं -न कहीं पुनर्जन्म को पूर्णतः नकारने को तैयार नहीं हो पाता। इसका कारण भी विज्ञान ही है। मैं भूगर्भ-विज्ञान का छात्र हूँ।


संयोग देखिये अशोक गौतम जी भी पुनर्जन्म में विश्वास रखते है पर उनकी वजह दूसरी है..
एक विशुद्ध भारतीय दुरात्मा होने के नाते मेरा इस जन्म पर भले ही विश्वास न हो पर पुनर्जन्म पर घोर विश्वास है।


खैर वजह चाहे जो भी हो दोनों ही पोस्ट शानदार है और पढने लायक ..

देखिये
आज जरुरत गाँधी या भगत सिंह के पुनर्जन्म (पड़ोसी के घर में) की प्रतीक्षा करने की नहीं,बल्कि अपने आस-पास की ऐसी विभूतियों को पहचान उनके कार्यों में यथासंभव योगदान कर उनका उत्साह बढ़ाने की है।

ये भी देखिये

जबकि प्रेमचंद का पुनर्जन्म नहीं हो पाया। वैसे प्रेमचंद पुनर्जन्म लेकर करते भी क्या? आज तो साहित्य व साहित्यकार उससे भी बुरी स्थिति में हैं।

एक टुच्चा सा चिन्तक होने के बावजूद अपनी तो सोच है कि बेहतरीन लेखक का पुनर्जन्म कदापि नहीं होना चाहिए। उसे मोक्ष मिल जाना चाहिए बस! किंतु पात्रों के पुनर्जन्म को कौन रोक सकता है? कोई नहीं। न आप, न मैं, न सरकार, न व्यवस्था और न ब्रह्मा ही।


अब जब दी एंड का टाईम ही गया है तो खिसक लेते है.. चर्चा को फाड़ डालने वाली चर्चा बनाने के सपने के साथ जो कुछ शुरू किया था उसका अंत आते आते जो बना है वो आपके पचाने लायक है... ये तो आपके पढने के बाद ही निर्भर करता है या फिर आपके पाचन तंत्र पर.. जब तक मैं हाजमोला खाकर डा. अमर कुमार जी को बधाई दे देता हु.. आज उनका जन्मदिन जो है...

वैसे एक और बात चर्चाकार होने के नाते अपनी ही की हुई चर्चा की वाट लगते नहीं देख सकता.. इसलिए कुछ इन्तेजाम किया है.. जब शुरुआत उधारी से हुई थी तो अंत भी उधारी से ही करते है..

पप्पू पान भण्डार पे लगी तख्ती उधार मांग कर लाये है.. जिस पर लिखा था

कृपया इन शब्दों का प्रयोग ना करे..

कल देता हूँ
पहचानते नहीं क्या
भरोसा नहीं है क्या
भाग थोड़े ही जाऊंगा
बाद में दे दूंगा

इसी तख्ती को पलटके हमने भी कुछ लिख दिया

कृपया टिपण्णी में इन शब्दों का प्रयोग ना करे

अच्छी चर्चा
सुन्दर चर्चा
आपतो कमाल की चर्चा करते है
आपकी चर्चा का जवाब नहीं
वाह एक साथ कितने ही ब्लॉग समेट लिए आपने


और खबरदार जो किसी ने अमर कुमार जी को जन्मदिन की बधाई दी.. बधाई देने के लिए अमर कुमार जी के निजी ब्लॉग अथवा हिंदी ब्लोगरो के जन्मदिन पर जाए और वही टिपण्णी दे..

तब तक हम सोफे पे बैठकर चाय पीते है.. हे हे हे उधार की चाय है..

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17 टिप्‍पणियां:

  1. भगवान बड़ा कारसाज है। एक दिन में दोपहर तक कोई चर्चा नहीं देता और दोपहर के बाद एक साथ दो दो चर्चा थमा देता है। एक के साथ एक फ़्री वाले अंदाज में। जिन बातों के लिये मना किया गया वो हम जबरिया कह सकते हैं लेकिन कहेंगे नहीं लेकिन चर्चा बांच के आनन्दित हुये। यह देखना मजेदार अनुभव है कि लगभग एक ही समय में की गयी दो चर्चाओं के चिट्ठे, मूड और अन्य चीजें एक दम जुदा है। एक चर्चा आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार ने की और दूसरी ये वाली।

    जिन लोगों के नाम लिये उनके ब्लाग के लिंक दे देते तो पता तो चलता कि आखिर ये लोग हैं कौन!

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  2. घटिया चर्चा,

    बदसूरत चर्चा,

    जब आपको चर्चा करना आता ही नहीं तो करते क्यों हो,

    इससे अच्छी चर्चा तो चींटी भी कर लेगी,

    कितने अच्छे-अच्छे ब्लॉगरों के लिंक देना भूल गए हो आप !

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  3. और हाँ डॉक्टर साहब को उनका हैप्पी बड्डे बहुत बहुत मुबारक हो,

    अभी सठियाने में कितनी कसर है ?

    पब्लिक को सूचित किया जाए :)

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  4. दूई दूई चर्चा एक्के साथ, क्या बात है. और गजब यह कि दोनों के स्वाद अलग अलग. बधाई हो.

    आपकी चर्चा देख...हम अभी अभी टिपिया आये...

    अदरणिया परभात गोपल जि

    अप जो काह रहे है वह उतन ही सही है जितना की यह टिप्पनि. लोगो को दुसरो कि ग्ल्ती बतने मे अचछा लग्ता है. आप ऐसे हि लीख्ते रहे, जिन्हे अचछा लागेगा वह पदेगे नही तो नही पदेन्गे.

    शुभ काम ना

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  5. चिट्ठा चर्चा :)

    डॉ अमर :)

    बाकी कुछ भी लिखना मना है.

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  6. डॉ. अमर को हमने सीधे बधाई मेल कर दी है। पाब्ला जी के जन्म दिन ब्लाग पर भी दे दी है। आप कहते हैं तो खबरदार हो कर यहाँ नहीं देते हैं।
    चर्चा अच्छी है।

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  7. "जन्म दिन" की "जनम दिन" की बधाई दूँ इसी झमेले मै हूँ
    क्या सही हैं कोई बताये

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  8. मुझे तो लगता हैं हिंदी ब्लोगिंग मे शब्दों के सही प्रयोग पर ज्यादा ध्यान देना चाहिये .
    भाषा विज्ञान पढ़ कर ही ब्लॉग लिखे . बहुत से लोग दूध का दूध
    ना कह कर क्षीर का क्षीर का कह कर खुश होते
    हैं तो क्या हुआ पानी तो पानी ही हैं नीर का नीर
    कहो या पानी का पानी .

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  9. चर्चा है तो चाय के कप सी स्वादिष्ट.

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  10. नहीं जी...बिलकुल अच्छी चर्चा नहीं...आठ आठ लोगों के नाम और लिंक एक भी नहीं, कौन हैं जी ये लोग, कोई नए ब्लॉगर हैं क्या? अनूप जी ठीक कह रहे हैं, लिंक देना चाहिए था, बिना लिंक के चर्चा कैसी...
    भासा की असुद्धि...का बात कर रहे हो...विद्वन असुध्ह बात नहि करते है...कुस तुम ऐसि बात मत लिखा करो

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  11. "मैंने लव आजकल देखने का निर्णय लिया। "

    भले आदमी से कहो कि लव देखने की नहीं करने की चीज़ है। बीवी आटोमेटिक मिल जायेगी:)

    आप कॉफ़ी छोड चाय कब से????? शायद अधजली बीड़ी का असर:)

    भाई अमर जी के जनम दिवस पर जन्मदिन की बधाई॥

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  12. अच्छी चर्चा
    सुन्दर चर्चा
    आपतो कमाल की चर्चा करते है
    आपकी चर्चा का जवाब नहीं
    वाह एक साथ कितने ही ब्लॉग समेट लिए आपने

    ham to wahi kahenge jo hamaaraa man kahega

    kaa kalloge???

    venus kesari

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  13. आईला, तैंने तो मेरा जन्मदिन सार्वजनिक कर दिया रे ।
    चल उठा यह बधाईयों का टोकरा, जरा घर तक भी पहुँचा दे ।
    वापसी में बीवी लेते अईयो, मुझे अनूप जी जैसा मत समझ लेना ।
    मैं तो राहखर्च और मेन्टेनेन्स भत्ता भी देने को राज़ी हूँ, कम से कम कुछ पोस्ट तो बिन टोकाटाकी लिख ही लूँगा ।

    जवाब देंहटाएं
  14. यहाँ तो बहुत कुछ बिखरा पड़ा है भाई। क्या-क्या बटोरूँ?

    आपको अमर जी का अच्छा(?) ऑफर मिला है। भगवान आपका भला करे। शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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