गुरुवार, नवंबर 02, 2006

मध्यान्ह चिट्ठाचर्चा : दिनांक 2-11-2006

धृतराष्ट्र हमेशा की तरह कॉफी के घुँट लेते हुए संजय से मैदान-ए-चिट्ठाजगत का हालचाल पूछ रहे थे. संजय ने अपने लेपटोप पर संजाल का संचार किया और दृश्य उभरने लगे.
धृतराष्ट्र : क्या बात हैं, संजय? इतने संशय में क्यों हो? नेट नहीं चल रहा क्या?
संजय : नहीं बॉस, सब ठीक हैं पर संजाल का संचार होने पर भी नारदजी के करतालों की ध्वनि क्यों नहीं सुनाई दे रही, इससे हेरान हूँ.
धृतराष्ट्र : जो भी हो, सम्बन्धीत चिकित्सक नारदजी को तत्काल स्वस्थ कर देंगे यह तुम्हारे बस का रोग नहीं, तुम योद्धाओं को टंटोलो.
संजय : जी, मैं देख रहा हूँ... देवी रमा को अनुभूति हो रही हैं कि सच्चे प्रेम का मूल्य कोई नहीं समझ पा रहा वहीं रिश्ते अपना मूल्य मांगते हैं.
और अवधियाजी बिना थके लगातार पौराणीक कथाएं परोस रहे हैं. जहाँ इसके रसिको को आनन्द आ रहा है वही हिन्दू मिथको से अनजान योद्धा सर खुजा रहे हैं. आज आनन्द ले हिरण्यकश्यपु और हिरण्याक्ष के जन्म की कथा का.
धृतराष्ट्र : तुम फिर से उलझन में दिख रहे हो, संजय...
संजय : हाँ महाराज, हैरान हूँ यह चिट्ठाचर्चा नामक स्थल नहीं है फिर भी यहाँ चिट्ठाचर्चा की गई हैं.
धृतराष्ट्र : यह पराक्रमी योद्धा कौन है?
संजय : ये नाहर हैं सागरचन्द, जो दहाड़ कर दस्तक दे रहे हैं. इनकी समीक्षा पढ़े तथा नेट प्रेक्टिस का हौसला बढ़ाए.
धृतराष्ट्र : फिर कहाँ खो गए संजय?
संजय : कुछ नहीं महाराज योद्धा रविजी पुस्तचिन्हक लगाने के गुर सिखा रहे हैं उसी का लाभ उठाते हुए पुस्तचिन्हक लगाने की कोशीष कर रहा था.
धृतराष्ट्र : हो जाए तो आगे बढ़ो..
संजय : जितेन्द्र चौधरी फिर एक उपयोगी जानकारी ले कर मैदान में है, इसबार ये सिलसिलेवार बता रहे हैं वर्डप्रेस 2.0.4 से 2.0.5 के अपग्रेड करने का तरीका.
और साथ ही दर्शनो का लाभ ले, पुण्यभूमि भारत अवतरीत हुई जापान के एक कौने टोक्यो में.
तो आज इतना ही महाराज. जय जम्बूद्वीप.
धृतराष्ट्र : यह क्या बला हैं?
संजय : अपना इंडीया महाराज.
धृतराष्ट्र : अच्छा..अच्छा....

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1 टिप्पणी:

  1. हमारा यही कहना है कि संजय-धृतराष्ट्र की जोड़ी बढ़िया खेल रही है. और पता नहीं नारद के डाक्टर कहां गये. हमें लगता है कि ये सब भाई लोग भी तेंदुलकर हो गये हैं, जब जरूरत हो तब आउट हो गये.

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