मंगलवार, नवंबर 21, 2006

मध्यान्हचर्चा दिनाकं 21-11-2006

धृतराष्ट्र कोफी की प्रतिक्षा कर रहे थे, संजय संजाल का संचार करने में व्यस्त दिखे. तभी सामने से धृतराष्ट्र की नीजि सचिव ने कोफी का मग लिए कक्ष में प्रवेश किया. चपरासी आज आया नहीं था. मौका देख संजय ने भी अपने लिए कोफी का अनुरोध कर दिया. धृतराष्ट्र ने तीरछी नज़र से देखा पर तब तक नारदजी की करतालों की ध्वनि गूँजने लगी थी. अनुज भी साथ था.
धृतराष्ट्र : तुम्हारी कोफी का इंतजार करें या चिट्ठा दंगल का हाल सुनाओगे?
संजय : कोफी तो आती रहेगी महाराज, स्क्रीन पर जो दृश्य उभर रहे हैं..... अरे यह सब हिन्दी में कैसे हो गया? महाराज ई-पंडितजी कोई मंतर बता रहे है, जिससे संगणक हिन्दीमय हो जाते है, पर सावधान चोरी के माल पर मंतर काम नहीं करता.
धृतराष्ट्र : खुश होने से पहले ही निराश कर दिया खैर.... यह दो का पहाड़ा कौन रट रहा है?
संजय : महाराज ये प्रत्यक्षाजी है, जो अब तक समझ नहीं पायी है की दो और दो, चार होते हैं या बाईस. उम्र के साथ गणित बदल जो जाता है. इधर लगता है दुबेजी का भी गड़बड़झाले के साथ दर्द का रिश्ता है. दार्शनिक बने बयान कर रहे है, कभी रिश्तों का दर्द तो कभी दर्द के रिश्ते.
धृतराष्ट्र : इस तरह तो हम भ्रमित हो जाएंगे... आगे देखो....लो तुम्हारे लिए कोफी भी आ गई.
संजय : धन्यवाद
फिर वे कोफी का एक घूँट भरते हैं.
संजय : महाराज दुःख की बात है पर अत्याचार हर युग में हुआ है. देखिये, कंस का अत्याचार बयान कर रहे हैं सुखसागर से अवधियाजी, तथा आधुनिक युग में श्रमिको पर हो रहे अत्याचार को बता रहे हैं अफ्लातुनजी.
धृतराष्ट्र : संजय यह तो तुमने कोफी का स्वाद कड़वा कर दिया, दिल दर्द से भर गया है.
संजय : क्या करूँ महाराज जहाँ जैसा हो रहा है मुझे तो बताना है, आप इन तस्वीरों को देखिये तथा कुछ मन बहलाईये. इन्हे दिखा रहे हैं, मिश्राजी तथा जितुजी
एक काम की जुगाड़ भी लेकर आएं हैं लूँटना न भूलें. अब महाराज आप जुगाड़ का विश्लेषण करें, तब तक मैं कोफी खत्म करता हूँ.

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5 टिप्‍पणियां:

  1. कोफी पी कर अब आराम करें. बाकी चर्चा हम करेंगे शाम को-और यह आपके धृतराष्ट्र तो स्टाफ बढ़ाते ही जा रहे हैं. करना धरना कुछ नहीं, सिर्फ़ कथा सुनना, कोफी पीना और निजि सचिव, चपरासी, आप सा कबिल वाचक सब चाहिये. सरकारी नौकरी समझी है क्या?

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  2. भई शाही इंसान है, हमारे धृतराष्ट्र. हाथ हिलने को भी कर्मचारी चाहिए.
    फिर आरक्षण कोटा आदि से स्टाफ भरा गया है, इसलिए कमी करने की सलाह न दें. सावधान, हमारे तार बंगाल से जुड़े हुए है.

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  3. भईये ईस्वामी और ईपंडित दो अलग अलग जीव हैं।

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  4. अतुल अरोरा जी ठीक बोले श्रीमान, हम ई-पंडित हैं ई-स्वामी नहीं, ई-स्वामी तो पुराने पापी (क्षमा कीजिए मेरा मतलब सीनियर चिट्ठाकार) हैं और हम तो चिट्ठाजगत में अभी-अभी अवतरित हुए हैं।

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  5. यह हमे मालुम है की पंडित और स्वामी दो अलग अलग प्रकार के जीव होते हैं, पर क्या है ना की वो आदतन स्वामी लिख दिये थे. छमा करें ठीक कर देते है.

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