सोमवार, नवंबर 27, 2006

मध्यान्हचर्चा दिनांक : 27-11-2006

चिट्ठाचर्चा से ज्ञानार्जन के बाद धृतराष्ट्र काफी ओजस्वी लग रहे थे. संतो जैसी मुस्कान के साथ कोफी के घूंट भर रहे थे. संजय थोड़े हिचकिचाहट महसुस कर रहे थे. नारदजी तक उनकी आवाज नहीं पहुंच रही थी, तब पूरक को पुकार लगायी.
धृतराष्ट्र : संजय लगता है आज गीत-संगीत का माहौल है, चिट्ठा दंगल में.
संजय : हाँ महाराज, अनुभवशाली गीरिन्द्रनाथजी गुलजार की गज़ले सुना रहे हैं, तो राजीवजी भी गजल के माध्यम से खुदा कह रहे है की ज़िन्दगी अब सही नहीं जाती.
इधर आदित्यजी कह रहे हैं की हम हम हैं.
धृतराष्ट्र : (कोफी का घूँट भरते हुए) अच्छी बात हैं की आप, आप हैं, आप कोई और नहीं हैं.
संजय : महाराज जब भारतीय क्रिकेट-टीम ‘जे रामजी की’ हो गई हैं, उनके गुरूजी को राजेशजी राम-राम कर रहे हैं.
धृतराष्ट्र : एक बात समझ लो, जब पूरा देश राम-भरोसे चल रहा है, तो टीम को भी गुरू नहीं राम ही तारेंगे.
संजय : महाराज जब बात की निकली है तो स्वामीजी भी बात को पकड़ कर कह रहे हैं की हमारे यहाँ लोकतंत्र नहीं खटारातंत्र है.
धृतराष्ट्र : यानी कम से कम कोई तंत्र तो है, हम तो समझ रहे थे...
संजय : आप मजाक के मूड में हैं महाराज, लिजीये एक हरीयाणवी छोरे स्युं एक मखौल ‘सुणते’ हुए आगे चलें. आगे है छायाचित्रकार जो एक और तस्वीर लिए खड़े हैं, तथा शीर्षक सुझाने के लिए कह रहें हैं. फिल्म ‘कैसीनो रॉयाल’ की समीक्षा लेकर आएं हैं अमित तथा फिल्म धूम-2 की समीक्षा कर रहें हैं संजय-रवि. यानी मनोरंजन का फुल मसाला है. महाराज आप आनन्द लें तथा मैं होता हूँ लोग-आउट.

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2 टिप्‍पणियां:

  1. भाई यो धिरितरासटर माराज चौबीस घंटे कॉफी पींदा रह्या करै, गैस हो ज्यागी। फेर नी कइयो बताया कोनी था।

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  2. बड़े लोग बड़ी बाते. कुछ सिगार फुंकते हैं तो कुछ दारू पेट में उडेलते हैं. ये तो बेचारे फिर भी कोफी पीते हैं. :)

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