मंगलवार, नवंबर 28, 2006

मध्यान्हचर्चा दिनाकं 28-11-2006

संजय ने नियत समय पर कक्ष में कदम रखा, तब धृतराष्ट्र ‘टी-ब्रेक’ के दौरान कोफी का जायका लेते हुए चिट्ठों का हालचाल सुनने को तैयार थे. उन्होने संजय का मुस्कुराकर स्वागत किया तथा अपनी कुर्सी में धंस गए. संजय संजाल का संचार करने में व्यस्त हो गए.
धृतराष्ट्र : देखो संजय आज चिट्ठाकार किस मूड में हैं?
संजय : महाराज, आज लगता है सब के सब चिट्ठाकार उपयोगी जानकारियाँ बांटने पर उतारू हैं. पहले यह देखें, जिन्हें अपना ब्लोग बनाना हैं पर इसका अनुभव नहीं हैं, उन्हे परेशान होने की आवश्यक्ता नहीं हैं, अब वे सरल-सदृश्य ई-शिक्षक की सहायता ले सकते हैं, जानकारी दे रहें हैं पंकज बेंगाणी.
एक बार चिट्ठा बन जाने पर उसे पूरी दुनियाँ देखे इसका इंतजाम किया है नितिनजी ने.
इधर चोरी के विण्डोज को मुफ्त में अधिकृत करने का तरीका खोज लाए हैं बनारसीबाबू.
धृतराष्ट्र : वाह! बहुत खूब.
संजय : तकनीकी ज्ञान के बाद थोड़ा धर्म-ध्यान करना हो तो रा.च.मिश्रजी से गीता-पाठ सुने तथा होम, हवन, यज्ञ में हिस्सा लें या हनुमानजी के दर्शनों का लाभ लें.
साथ ही अवधियाजी से सुनें कृष्ण शंकर के युद्ध की कथा सुखसागर से.
धृतराष्ट्र ने पहलु बदला, तथा एक घूँट कोफी का भरते हुए संजय की ओर देखा.
संजय : महाराज इसके अलावा एक कवि भी मैदान में हैं, संगीताजी अंतर्मन से हथेलियों में चाँद उगा रही हैं.
इधर साहिलजी का मानना है की इंसान कभी नहीं सुधरेगा, तो शुएब टेक्सी-चालको के व्यवहार से खिन्न है. इस पर रविजी का कहना है की इंटरनेट ही सभी बुराईयों की जड़ है.
धृतराष्ट्र की कोफी समाप्त होने को थी. वे तल्लीनता से सुन रहे थे.
संजय : अब कुछ हल्का-फुलका खोजता हूँ, हाँ यहाँ ई-पण्डितजी सुना रहे हैं चुटकुला, तथा देशी टूंज लेकर आए हैं कार्टून. तथा फिल्म ‘कैसिनो रोयाल’ की समिक्षा करने की कुलबुलाहट हो रही है विजयजी को.
अब महाराज आप अपने काम की जुगाड़ बटोरीये, तथा सुनिलजी के साथ गयाना की सैर पर निकल पड़ीये.
अब मैं होता हूँ लोग-आउट.

(आज के अबतक के सभी चिट्ठो को शामिल करने कि कोशिश की है, फिर भी नारदजी की अनुपस्थिती में छूट गए चिट्ठो के लिए क्षमाप्रार्थि हूँ.)

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1 टिप्पणी:

  1. वाह, आज मध्यान्ह चर्चा बेहतरीन रही, मुझे तो बड़ा आराम हो गया. :)

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