शनिवार, नवंबर 04, 2006

गाऒ खुशी के गीत

शुकुलजी सबेरे-सबेरे सो रहे थे कि उनको हिलाकर जगाया गया। नींद से कुनमुनाये तो देखा कि फुरसतिया हांफ रहे थे।
शुकुलजी बोले:अरे सोने दो यार। अभी तो सबेरे के छह ही बजे हैं।
फुरसतिया: अरे गुरू तो का अमेरिका समझ लिये हो अपने देश को जहां लोग शनिवार को अंगड़ाई लेते हुये दिन गुजार देते हैं?
शुकुलजी: ऐसा नहीं है लेकिन फिर भी कुछ देर सोने दो।
फुरसतिया: अरे उठो महाराज चिट्ठाचर्चा करनी है।
शुकुलजी: अरे आज तो शनिवार है। आज तो ब्लाग जगत के पितामह देबाशीष करेंगे चर्चा।
फुरसतिया: अरे गुरू अभी उनके औजार ठीक नहीं है। उमर का असर है। उनसे अब कुछ होता नहीं है। पिछ्ले एक महीने से अपना कम्प्यूटर नहीं ठीक करवा पाये। हमे तो यही नहीं समझ में आया आजतक कि ई कैसे तकनीकी काम संभालते हैं कि अपना कम्प्यूटर महीना भर में नहीं ठीक करा पाते। खैर अब उठ जाओ और अपना काम निपटाऒ।

शुकुलजी: चलो अच्छा जो करना है उसे निपटा ही देते हैं। तुम चाय बना लाओ तब तक हम जितना हो सकता है हाथ-मुंह धोकर, नहा-निपटकर आते हैं।

इसके बाद कामर्शियल ब्रेक हो गया और दस मिनट तक वातावरण में सुई पटक सन्नाटा छाया रहा। दस मिनट बाद जब चर्चा के लिये बैठकी हुयी तो शुरुआत हमेशा की तरह 'कन्फ्यूजन' से हुई। फुरसतिया कुछ लोगों को टिप्पणी का वायदा करके आये थे इसलिये जीतेंन्द्र की तरह अपना काम शुकुलजी को टिकाकर फूटने के चक्कर में थे। उधर शुकुलजी के ऊपर देबाशीष की आत्मा सवार थी जो कह रही थी काम चाहे हो या न हो लेकिन हो तो कायदे से हो।

फुरसतिया बोले: गुरू ऐसा न करें कि अतुल के अंदाज में गागर में सागर भर दें जैसा उन्होंने कल किया?
शुकुलजी: अरे अतुल जैसा क्लास हम लोग कहां से लायेंगे। उनकी तो हर पोस्ट की हर अदा निराली है। उनके जैसा काम तो सिर्फ वही कर सकते हैं। हम लोगों से उतना बढि़या नहीं हो पायेगा। और फिर जरूरत क्या है जितना औकात है उतना लिखो। लोग अब बुरा नहीं मानते।
फुरसतिया: तो गुरु एक और आइडिया है। बुरा न माने तो बताऊं?
शुकुलजी: बताओ, तुम तो अदायें मारने लगे। एकदम विजय वडनेरे हो गये। करोगे वही सब कुछ और नखरे ऐसा दिखाऒगे जैसा कोई नया शादीशुदा दिखाता है।
फुरसतिया: गुरूजी, कल एक खबर छपी कि कुंडलिया किंग की फोटू पर माला चढ़ गयी। उसी की बहाने आज छुट्टी कर लेते हैं ।
शुकुलजी: अबे इसे कोई प्राइमरी स्कूल समझ रखा क्या कि जब मन आया घंटा बजा दिया! और फिर समीरलाल और उनकी कीर्ति पताका उसी तरह फहरा रही है जिस तरह किसी प्रौढ़ा नीम में नये कल्ले फूटते हैं( साभार परसाईजी)। वे नये सिरे से जवान हो रहे हैं। अपने मन के सिस्टम में कुछ ऐसा इंतजाम करते हैं कि नयी-नयी आती हैं सपने में उनके। वे पता नहीं क्या करते हैं उनका लेकिन बाकी लोग जयचंद की तरह दुखी हैं कि संयोगिता को ये लिये जा रहा है। बहरहाल अब शुरू करो चर्चा। देर न लगाओ।
फुरसतिया: तो किससे फीता काटें? कुंडलिया, हायकू, चौपाई या कोई अपना सड़ा शेर!
शुकुलजी: अरे यार अब वो सब न करो। लोग बिदकते हैं। खासकर बेंगाणी बंधु तो ऐसा बिदकते हैं जैसे नरेंद्र मोदी मेधा पाटकर के नाम से उछलते हैं। अब वे हमारे ब्लाग-पार्टनर हैं। उनके हाथ में तरकश है। उनके घर की बिटिया खुशी, खुशी-खुशी बढिया राजस्थानी गीत सुनाती है। अब उनका इतना तो लिहाज करना ही पढेगा।
फुरसतिया: लेकिन कवि लोग तो बुरा नहीं मानेंगे।
शुकुलजी: मानेंगे लेकिन बाद में उनकी कविता की तारीफ़ कर दोगे तो खुश हो जायेंगे।

बहरहाल शुरू हुआ शुकुलजी और फुरसतिया के बीच संवाद और काट-छांट के बाद ये चर्चा हुयी।

आज की सबसे खास बात रही खुशी की राजस्थानी गीतों की प्रस्तुति। आप इसका आनंद उठायें और बिटिया को प्रोत्साहित करें। दूसरी महत्वपूर्ण पोस्ट रही विज्ञान विश्वि में श्याम ऊर्जा के बारे में चर्चा:-

यह विषय एक विज्ञान फैटंसी फिल्म की कहानी के जैसा है। श्याम उर्जा(Dark Energy), एक रहस्यमय बल जिसे कोई समझ नही पाया है, लेकिन इस बल के प्रभाव से ब्रम्हाण्ड के पिंड एक दूसरे से दूर और दूर होते जा रहे है।

यह वह काल्पनिक बल है जिसका दबाव ऋणात्मक है और सारे ब्रम्हाण्ड मे फैला हुआ है। सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार , इस ऋणात्मक दबाव का प्रभाव गुरुत्वाकर्षण के विपरीत प्रभाव के समान है।

श्याम उर्जा १९९८ मे उस वक्त प्रकाश मे आयी , जब अंतरिक्ष विज्ञानीयो के २ समुहो ने विभीन्न आकाशगंगाओ मे विस्फोट की प्रक्रिया से गुजर रहे सितारो(सुपरनोवा)(१) पर एक सर्वे किया। उन्होने पाया की ये सुपरनोवा की प्रकाश दिप्ती अपेक्षित प्रकाश दिप्ती से कम है, इसका मतलब यह कि उन्हे जितने पास होना चाहिये थी , वे उससे ज्यादा दूर है। इसका एक ही मतलब हो सकता था कि ब्रम्हांड के विस्तार की गति कुछ काल पहले की तुलना मे बढ गयी है!(लाल विचलन भी देंखे)

सबसे मजेदार पोस्टों में पानी के बताशे,लखनवी की एफ पी ऒ, डा.टंडन की मटरगस्ती , दिल्ली ब्लाग का क्रिकेट और विजय वडनेरे की कुलबुलाहट रहीं। लक्ष्मी भैया भी मौज लिहिन हैं लेकिन अभी वो मजा नहीं आया जो उनकी पोस्ट पढ़ने में आता है।

कविताऒं में प्रियंकर और रत्नाजी की कवितायें हैं। प्रियंकर तमाम साल प्रिंट मीडिया में छप-छ्पाकर ब्लाग जगत में आये हैं। बड़े मन से लिखने वालों की हौसला आफजाई करते हैं। कल की प्रत्यक्षा की कहानी पर उनकी टिप्पणी इस बात की गवाह है। आज उन्होंने जो कविता पेश की वह जनसत्ता के दीपावली वार्षिक अंक में छप चुकी है। सबसे बुरा दिन की आशंकाऒं के एकदम विपरीतमहास्वप्न कविता में आशावाद चरम पर है:
कुछ सुना तुमने
जमीन की तासीर बदल गई है
अब कुछ भी बोओ फसल प्यार की ही उगेगी
स्नेह रक्तबीज बन गया है
अब से वृक्षों की किस्में नहीं होंगी
केवल स्नेह के बिरवे ही रोपे जायेंगे
किसी ने हवा-पानी सब में स्नेह घोल दिया है
राजहंस अब स्नेह की लहरों पर ही तैरेंगे
सोनपाखी प्यार में ही उड़ान भरेंगे
और प्यार ही गाया करेंगे

इस कविता को आप स्वयं पढ़कर आनंदित होंगे लेकिन ये भाषा की कल्पना भी देख लें:-

कुछ सुना तुमने
स्नेह की भाषा यौवन पर है
स्नेह से सराबोर सब सकते में हैं
स्नेह का वेगवान प्रवाह
तोड़ चुका है छंदों के बंधन
सारे कवि स्तब्ध हैं सुख की अतिशयता से
बह चली है त्रिवेणी
काव्य की स्नेह की सुख की


रत्नाजी की कविता में जहां निराशा के रंग हैं:-

क्या उसकी लाचारी
आँखों की खिड़की से दिखती
कभी उसकी परछांई
आज़ादी के लिए तरसती

तो वहीं आशावादी स्वरों की भी गूंज है:-


भावों को बोलती भावुकता मिले
रंगों की पाए वो इतनी विविधता
सांझ का सूरज ज्यों दिखे पिघलता
खामोश जुबां पर कलम मेरी बोले
अनुभव की गठरी को धीरे से खोले
कविता गूंजे जैसे कोयल की कूक
किस्से कहानी ज्यों सर्दी की धूप
लेखों से अर्थों का सागर बहे
भाषा जो सीधी जा दिल में रहे




कामना है उनकी सारी आशायें पूरी हों।

अन्य पोस्टों में रवि रतलामी के मर्फी के नियम की निर्माण प्रकिया का खुलासा है। वैसे यह पोस्ट मजेदार की श्रेणी में रहनी चाहिये लेकिन रविरतलामीजी ऐसे क्षमतावान हैं जो किसी जगह के मोहताज नहीं हैं। वे जहां रहेंगे शानदार करेंगे। वे एक अंतर्राष्ट्रीय ठहराव स्थल की व्यवस्था का जायजा लेते हुये मर्फी के कुछ नियम बता रहे हैं:

-जब आप सोचते हैं कि कोई कार्य आप जैसे भी हो कर ही लेंगे, तो किसी न किसी बहाने, हर हाल में वह कार्य नहीं ही हो पाता है!
-मुफ़्त के साबुन को ज्यादा मात्रा में और ज्यादा देर तक मलने में ज्यादा आनंद आता है, भले ही उसमें ज्यादा मैल निकालने की ज्यादा क्षमता न हो!
- भव्य स्नानागार के बारे में जब आप सोचते हैं कि सब कुछ भव्य है तो पता चलता है कि उसके शॉवर में तो पानी ही नहीं है!
- साबुन लगाने के बाद ही पता चलता है कि शॉवर में पानी आना बंद हो गया है.
- स्नानागार में साबुन लगाने से पहले अपने लिए पानी की एक बाल्टी भर रखें - और भव्य स्नानागार में दो बाल्टी.


जीतेंद्र ने नारद के बारे में सफाई पेश की तथा मुकेश अंबानी के खुदरा बाजार में कूदने की जानकारी भी। संजय बेंगाणी ने अपने सर्वे, हिजड़े से कैसे निपटें, की रपट जारी की। उधर माइक्रोसॉफ़्ट ने मुक्त स्रोत की हिमायत की। राजेश ने बताया कि अपने क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की कोई साइट नहीं है। अब इसका जवाब तो यही हो सकता है कि कहा जाये कि उनका खाता ब्लागस्पाट पर खोल दिया जाये या फिर यह कहा जाये जो कि सच है कि जिसके बारे में देश के सारे अखबार, टीवी चैलेल और दूसरे मीडिया तंत्र गाना गाते रहते हैं उसको अपनी साइट की क्या जरूरत।

एक दिन के लिये इंस्पेक्टर बनाये गये कैंसर पीड़ित मोहक को देखिये हितेंद्र की पोस्ट में और देखिये सड़क पर दौड़ती ट्रेन को जिसमें खासतौर पर तैयार किये गये रबर के पहिये लगे हैं। चलते-चलते स्वयंसेवी संस्थाओं के किस्से भी सुन लीजिये सागर चंद नाहर से।

चलते-चलते आओ फारमूला ६९ भी देख लें जिसमें सीमाकुमार जी के भाई ने भी काम किया है।

फिलहाल चिट्ठाचर्चा में आज सबेरे इतना ही। अगर किसी ग्राहक से उलझ नहीं गये तो दोपहर को आपको मिलेंगे संजय बेंगाणी और कल सबेरे मेरा पन्ना वाले जीतेंन्द्र चौधरी। जिनका वीक एंड शुरू हो गया उनको मुबारक। बाकी लोगों को भी कुछ शुभकामनायें। भारत में अभिव्यक्ति की आजादी का लाभ उठायें।
आपको आजका चिट्ठाचर्चा कैसा लगा बतायें।

आज की टिप्पणी


1.भविष्य फल जानने अपना
ये कैसे भक्त पधारे हैं
गुरु का ऐसा मेकअप कि
लगे है स्वर्ग सिधारे हैं.

--यहां पर कई डॉक्टर अपना विज्ञापन करने के लिये दो फोटो छापते है, इलाज से पहले और इलाज के बाद. आपने तो सिर्फ़ इलाज के बाद वाली तस्वीर ही छापी है.
:)
समीरलाल

आज की फोटो


सड़क पर रेल
सड़क पर रेल

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5 टिप्‍पणियां:

  1. ह्म्म्म...

    प्रसन्नचित मन। सुप्रभात के साथ फुरसतिया. जैसे बेड टी. वाह

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  2. वाह, अनूप भाई, वही अनोखा अंदाज और वही लहर. क्या प्रवाह है, मजा आ गया, माला पहनने के बाद भी.:)

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  3. सुबह सुबह चिट्ठाचर्चा (सम्पुर्ण) देख मन प्रसन्न हो गया. सचमुच यह पुर्ण चर्चा रही.
    इसका एक फायदा यह भी हुआ हैं कि चिट्ठाचर्चा तथा मध्यान्हचर्चा में भेद स्पष्ट हो रहा हैं.

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  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. सुई पटक सन्नाटा!
    सही है :)

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