शुक्रवार, नवंबर 10, 2006

चर्चा को चर्चा ही रहने दो कोई नाम न दो!

पिछले कुछ दिन से देख रहा था कि चिठ्ठे कम लिखे जा रहे थे और चर्चायें ज्यादा। एकाध बार ऐसा भी देखने को मिला कि कुछ चिठ्ठाकार बँधु पसड़ गये कि हमरी पोस्ट काहे नही बांची? वही कुछ अति उत्साही चर्चाकार ऐसे भी आगे आये जिन्होने चिठ्ठो के उगते ही चर्चा की गुगाली कर डाली ।

यह सब जहाँ उत्साह जगाता है कि वह महायज्ञ जो अनुप शुक्ला जी ने शुरू किया उसमें इतने सारे चिठ्ठाकार भाई इतने प्रेम से आहूति दे रहे हैं, वही मेरे मन मे कुछ प्रश्न छोड़ रहा है। अपने शंकालु दिमाग में जो विचार घुमड़ रहे हैं उन्हे यहाँ उकेर दे रहा हूँ , कृपया इन्हें मेरे निजी विचार समझ कर मत व्यक्त करिये ।

  • चिठ्ठा चर्चा को नारद का पूरक नही समझना चाहिये। हर चर्चाकार की रूचि अलग होती है, उसे अपने हिसाब से चर्चा करने की खुली छूट होनी चाहिये , जिन चिठ्ठो को वह छोड़ दे, ऐसा मान लिया जाये कि या तो उस दिन चर्चा के लायक नही थे या फिर चर्चाकार की रूचि मे फिट नही बैठे। यह आवश्यक नही कि उसे पूरक चर्चा के द्वारा सबको फिर से पढ़ाया जाये, नारद किसलिये है फिर?
  • अगर चर्चाकार ज्यादा हो गये हो तो अब विभिन्न भाषाओं , श्रेणियो के हिसाब से चर्चा हो।
    कभी कभी कुछ टिप्पणियों से ऐसा लगा कि कुछ नये चिठ्ठाकारो मे यह भ्रम है कि सब चिठ्ठाकार कुछ खास चिठ्ठाकारो की ही चर्चा करते हैं , जैसे मानो कि कोई काकस हो। मैं यहाँ यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि कुछ पुराने चिठ्ठाकारो में आत्मीय संबध इसलिये बने कि वे गिने चुने ब्लागरो के जमाने से एक दूसरे को जानते हैं पर काकस जैसा कुछ नही यहाँ। बात सिर्फ व्यक्तिगत रूचि का है। उदाहरण के लिये, हो सकता है कि मुझे लाल्टू, नीरज दीवान और ईस्वामी के तीखे तंजो की या फिर फुरसतिया, जीतू वगैरह की हास्य की चर्चा करना ज्यादा अच्छा लगता हो और वही जीतू को उन्मुक्त की तकनीकि कौशल का बखान सुहाता हो। इसमें व्यक्तिगत संबध कही से नही आते।
  • चर्चा समीक्षात्मक हो , ड्राईंगरूम मे बैठकर विदेशनीति पर चर्चा करना अलग है और पान की दुकान पर खड़े होकर शोऐब अख्तर की लुच्चई की सुर्रेबाजी अलग। हम कैसी चर्चा चाहते हैं चिठ्ठाचर्चा में?

फिलहाल इतने ही विचार है अपने दिमाग में। आप सबके सुझावो का इंतजार रहेगा।


अब देखे क्या लिखा गया।

लाल्टू जी ने वाघा के आडंबर की धज्जिया उड़ा दी। साथ ही चित्रो के लिंक के लिये उन्हे धन्यवाद देना चाहूँगा।

बिहारी बाबू ने समाज में नैतिकता का सर्टिफिकेट बाँटने वालो की खासी मौज ली है। अगर बिहारी बाबू इस लेख के दूसरे संस्करण में इन तथाकथित संगठनो, सर्टिफिकेट बाँटने वालो के चरित्र की पोल खोल दें तो मजा दुगुना हो जाये।

त्रिवेणी कविता की विधा के बारे में समीरलालजी का ज्ञानपरक लेख है, बुकमार्क करके रखने लायक है मेरे जैसो के लिये जिन्हे कभी कभी तुकबंदी की खब्त सूझती है।

अब कुछ और मस्त ब्लागो की चर्चा।

  • एरियाना हफिंगटन को जानते हैं? वही जिन्होने कैलिफोर्रनिया के चुनाव में आर्नोल्ड श्वाजनेगर से पंजा लड़ाया था। उनके इस ब्लाग पर बड़े पत्रकार लिखते हैं। एक बार जरूर देखिये।
  • मिर्ची सेठ के पसंदीदा ब्लाग मे शामिल है ब्रिज सिंह का यह जबरदस्त तकनीकि ब्लाग। अगर मेरी जानकारी ठीक है तो ब्रिज सिंह भी कनपुरिया हैं।
  • क्या आपको पता है दीपक चोपड़ा, शेखर कपूर , नंदिता दास और राहुल बोस भी ब्लाग लिखते हैँ? नही, अमां कहाँ रहते हो आप भी। इंटेंट ब्लाग हफिंगटन पोस्ट से बीस ही है।
  • और यह देखिये भारत को जहाँ हम विकसित बनाने के सोच रहे हैं सूचना क्रांति के जरिये तो कुछ दिलजले भी हैं दूसरी तरफ।

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13 टिप्‍पणियां:

  1. सब अपनी अपनी चिट्ठियों के बारे में सुनना चाहते हैं चाहे वे टिप्पणियां हों या फिर चिट्ठा चर्चा। लेकिन यह ठीक है कि चिट्ठा चर्चा न ही नारद का दूसरा नाम है और न ही इसे उस तरह से लेना चाहिये। नारद में सब चिट्ठों की चिट्ठियां आती हैं: चिट्ठा चर्चा को केवल उस चिट्ठा कार की पसंद की तरह से देखना चाहिये, जो वह अपने काम के साथ कम समय में देख पाया।

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  2. चिट्ठाचर्चा कितने चिट्ठो की करनी होती हैं?
    मुश्कील से दस. सामान्यतः एक दिन में इससे ज्यादा नहीं लिखे जाते. ऐसे में लिखे गए चिट्ठो का नाम शामिल करना कोई मुश्किल काम नहीं हैं. पुराने चिट्ठाकारों के नाम तो वैसे भी शामिल होते ही हैं, नए लोगो के शामिल होंगे तो उन्हे उत्साह मिलेगा. जरूरी नहीं कि अप्रभावि लिखे गए पर ज्यादा कुछ लिखो मात्र नाम शामिल करना भी बहुत होगा.
    साथ में चिट्ठाचर्चा में अपने चिट्ठे को शामिल नहीं किए जाने की शिकायत करना भी उच्चीत नहीं है.
    कल मैंने मध्यान्हचर्चा इसलिए नहीं की कि मुख्यचर्चाकार के पास उनके अनुसार चर्चा के लिए चिट्ठे बचते ही नहीं. यानी चिट्ठे कम लिखे जा रहे हैं. हो सके तो सबको शामिल करें, बाकि जबरदस्ती तो किसी से कि नहीं जा सकती. सबकि अपनी अपनी रूची है.

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  3. "वही कुछ अति उत्साही चर्चाकार ऐसे भी आगे आये जिन्होने चिठ्ठो के उगते ही चर्चा की गुगाली कर डाली।"
    यह शब्द मेरे लिये ही प्रयोग किये गये हैं धन्यवाद अतुल जी इस सम्मान के लिये।
    मेरे अलावा किसी और नये चर्चाकार ने चिठ्ठाचर्चा नहीं की, बाकी के सारे तो नियमित चिठ्ठाकार हैं ही।
    मैने जब जुगाली करने का दुस्साहस किया तब नारद पर किसी कारण रात से चिठ्ठे नहीं दिख रहे थे सो मैने यह अपराध किया। मेरा उद्धेश्य मात्र यही था कि लोगों का चिठ्ठे की जानकारी मिल जाये और सच पूछिये तो मेरी लिखी पोस्ट जो मैने Make a Foundation के बारे में थी, मित्रों तक पहुँचाना चाहता था।
    अगर वाकई मैने अपराध किया है तो सारे चिठ्ठाचर्चाकारों के दल से क्षमायाचना करता हूँ।

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  4. अरे ! सागर भाई
    "वही कुछ अति उत्साही चर्चाकार ऐसे भी आगे आये जिन्होने चिठ्ठो के उगते ही चर्चा की गुगाली कर डाली।"

    यह मेरे लिए लिखा लगता है, आप टेंशन-फ्री रहो. :)

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  5. बहुत दिनों बाद लफडा हुआ लगता है। मजा आ गया अपने को तो। आप लोग लगे रहो... :)

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  6. नमस्ते अतुल जी,
    /हम कैसी चर्चा चाहते हैं चिठ्ठाचर्चा में?/
    ऐसी ही! जैसी आप सब लोग करते हैं,बिल्कुल बेबाक.

    आपकी इन बातों से मै सहमत हूँ-
    /हर चर्चाकार की रूचि अलग होती है, उसे अपने हिसाब से चर्चा करने की खुली छूट होनी चाहिये , जिन चिठ्ठो को वह छोड़ दे, ऐसा मान लिया जाये कि या तो उस दिन चर्चा के लायक नही थे या फिर चर्चाकार की रूचि मे फिट नही बैठे। /
    /काकस जैसा कुछ नही यहाँ। बात सिर्फ व्यक्तिगत रूचि का है। /

    लेकिन आपकी इस बात मे विरोधाभास लगता है-
    /यह आवश्यक नही कि उसे पूरक चर्चा के द्वारा सबको फिर से पढ़ाया जाये,/
    ये भी तो हो सकता है कि जिसे एक चर्चाकार ने छोड दिया है वो चिट्ठा दूसरे चर्चाकार को पसँद आया हो!
    और मेरी समझ से जिसे जो पढ्ना होता है, वो वो ही पढ्ता है, चाहे जितनी भी चर्चा कर लीजिये!हाँ पहली बार पाठक जरूर यहाँ से जा सकता है, लेकिन बाद मे अपनी मर्जी से ही पढेगा..
    वैसे ये सब कहने को मै नई हूँ, लेकिन जब कुछ कहने को मन मे हो और चुप रहें तो चिट्ठा जगत मे होने का मतलब ही क्या है?
    बस इतना ही..आजकल 'चर्चा' पर चर्चा और 'टिप्पणी' पर टिप्पणी का दौर है!

    कुछ नई लिन्क्स देने के लिय बहुत धन्यवाद्...

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  7. करीब तीन सप्ताह के बाद हिंदी चिट्ठों की दुनिया में वापस आने का मौका मिला है. मुझे अतुल तुम्हारी बात बिल्कुल ठीक लगी है, मेरे विचार में चिट्ठा चर्चा का अभिप्राय है कि चर्चा करनेवाले उन चिट्ठों की बात करे जो उस दिन उसे अच्छे लगे न कि सभी लिखने वालों के बारे में कहे, यानि कुछ कुछ वह बात हो जैसे अँग्रेजी के चिट्ठे "देसी पंडित" में थी.
    यह सच है कि शायद आज हिंदी में लिखने वालों की कमी है, पर सब चिट्ठों के बारे में बताने के लिए तो "नारद" है. हाँ अगर उत्साह बनाने के लिए सब चिट्ठों की चर्चा करना आवश्यक लगे तो यह लिख सकते हें कि कोई चिट्ठा आप को क्यों अच्छा नहीं लगा, पर फ़िर उससे क्या सचमुच उत्साह बढ़ेगा?

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  8. भाई मेरा तो यही मानना है कि सबको अपनी बात कहने रखने का अधिकार है. और जो सुनता है उसे अपने हिसाब से उसका मतलब निकालने का अधिकार है.न ही चिट्ठाचर्चा को यह अधिकार है कि किसी को रोके कि भाई तुम मत करो हम कर रहे हैं.

    हर एक लेखक का अपना अंदाज है जब यह बात अतुल मानते हैं तो फिर कोई प्रारूप तय करने का कोई मतलब नहीं है. जिस लेखक को जो फार्म पसंद आये उस हिसाब से अपना काम करे
    लिखे.जिसने आज कुछ लिखा है उसको उत्सुकता रहती है कि उसका जिक्र किस तरह से होता है.
    होता भी है या नहीं. तमाम सीमायें हैं कभी कोई पोस्ट दिख नहीं पाती कभी किसी की चर्चा दो-तीन बार हो जाती है. अभी तो यह शुरुआत है.न जाने कब चर्चा के फार्म तय होंगे ,तय होंगे फिर टूटें. लेकिन चर्चायें चलती रहनी चाहिये.

    जहां तक श्रेणियों की बात है तो कुछ एक को छोड़कर आज की तारीख में कोई ब्लाग ऐसा नहीं है कि उसकी 'कैट्रेगरी' तय की जा सके.
    फिर कैसे होगा यह सब कम से कम मैं इस बारे में निश्चित नहीं हूं.

    लेखक की हैसियत से अगर चर्चा करने वाले को यह अधिकार कि वह अपने मन के हिसाब से चर्चा करे तो पाठक की हैसियत से किसी को भी कुछ भी पूछने का अधिकार है.जहां भी 'लोग' होंगे वहां कुछ न कुछ लगाव/दुराव होगा ही. यह तो समय तय करेगा कि चर्चा कितनी निष्पक्ष है और कितनी सार्थक.

    एक बात और चर्चा पर कोई राशनिंग नहीं है. अगर कोई पोस्ट इस काबिल है कि उसकी चर्चा एक से अधिक बार हो सकती है तो होने में क्या बुराई है. दूसरा लेखक दूसरे नजरिये से करेगा, नये नजरिये से करेगा.

    नारद और चिट्ठाचर्चा की तुलना करना दोनों के नाइन्साफ़ी करना है.दोनों एक दूसरे सहयोगी हैं
    प्रतिद्वंदी नहीं .दोनों हिंदी ब्लागिंग के काम में सहयोग देने के लिये हैं.

    अतुल,सागर चंद नाहर और संजय बेंगाणी तीनों लोग बहुत संवेदनशील हैं और जो कहना होता है कह देते हैं बिना किसी संकोच या कुटिलता के.
    लेकिन अपनी इस बेहद दुर्लभ अच्छाई के चलते
    हमें मजबूर कर दिया कि हम इतनी बड़ी टिप्पणी करें.

    वैसे न तो मुझे सागर चंद नाहर से कोई शिकायत है, न अतुल से और न हीं पंकज बेंगानी से. हम तो कह रहे थे कि सागर को भी शामिल कर लेते हैं अपने दल में ताकि कुछ ताकत और बढ़े.

    पंकज का काफी का मग हम रात को खोजते ही रह
    गये.

    अतुल के लेख निरंतर में किन लोगों ने न पढ़ें हों वे पढ़ें और उनको शाबासी दें.

    मेरी टिप्पणी कुछ ज्यादा ही लंबी हो गयी है लेकिन यह सोचकर पोस्ट कर ही दे रहा हूं कि जहां लोगों ने इतनी टिप्पणियां पढ़ लीं वहां एक और सही.

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  9. ऊपर कुछ जगह संजय की जगह पंकज लिख गया है उसे सही करके पढ़ लें.

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  10. आप हमेशा ऐसा करते हो

    लिखना होता है संजय लिखते हो पंकज और मैं अच्छा, शरीफ, समझदार, हेंडसम और तारीफ के काबिल बच्चा सोचता रहता हुँ कि हाय मैने ऐसा कब कहा? :)

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  11. इस पोस्ट पर टिप्णियाँ आनी जरूरी थी तभी सबकी राय जाने को मिलती। अब तक मिली सबकी राय के लिये धन्यवाद।

    एक बात जोड़ना चाहूँगा, अनूप भाई साहब ने जो निरंतर की बात कही है, वहाँ टिप्णियाँ बहुत कम हैं सारे लेखो पर। सारे लेख बहुत मेहनत से लिखे गये हैं, और सबसे बढ़कर देवाशीष ने उन्हे संवारने मे बहुत मेहनत की है, कृपया उनका उत्साहवर्धन निरंतर पर ही करे। व्यक्तिगत रूपसे मेल पर बधाई देने से काम नही चलेगा।

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  12. अतुल भाई

    अभी तो रोज प्रकाशित ब्लागों की संख्या इतनी कम है कि सभी को आराम से कवरेज दी जा सकती है. इससे जहां नये ब्लागरों का उत्साह बढ़ता है, वहीं पुरानों का उत्साह जारी रहता है.
    नारद निश्चित रुप से पूर्ण सजगता से सभी को दर्शाता है, मगर यहां पर चर्चा हो जाने से उत्साह और बढ़ जाता है. आगे चल कर, जब नियमित लेखों की संख्या बहुत बढ़ जायेगी, तब निश्चित तौर पर सिर्फ़ कुछ चुनिंदा प्रविष्टियों की चर्चा करना स्वभाविक भी हो जायेगा और समय की मांग भी. और फिर जैसा कि आप कह रहें हैं कि यह चर्चाकार की पसंद की बात है कि वो क्या लिखना चाहता है, तो फिर चलने दें, जब तक इस तरह चल पाता है.

    वैसे वाकई इस बार की निरंतर में आपका दहकता आलेख पढ़ कर मजा आ गया.

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  13. अरे वाह! बहुत दिनो बाद फड्डा हुआ? और इसमे भी अतुल का हाथ पैर है, गुड है।

    देखो भई, चिट्ठा चर्चा की जहाँ तक बात है, इसमे चिट्ठा लिखने वाले के ऊपर छोड़ा जाए कि वो क्या लिखना चाहता है, किसे रखना चाहता है किसे छोड़ना चाहता है।

    जो भी साथी चिट्ठा चर्चा करना चाहते है, वे स्वतन्त्र रुप से करें, बिना किसी दबाव के, अतुल भाई, आप भी नोट करें, कि यदि सागर भाई चिट्ठा चर्चा करना चाहते है तो ये उनकी मर्जी है, इसमे किसी भी वरिष्ट चिट्ठाकार को कोई आपत्ति नही है और ना ही होगी कभी।

    सागर भाई, आप टेन्शन मत लो यार! सबकुछ अपने आप समझकर अपने दिल को दुखाने आपने पीएचडी कर रखी है का? टेक इट इजी यार!

    और अतुल भाई, आप हमसे मौज लो, फुरसतिया से लो, काहे नए नवेले सागर भाई से लेते हो, फुरसतिया से मौज लो तो वो आपको कुछ दादरा ठुमरी सुनाए या अपनी नई कविताएं पढकर सुनाएं।

    तो भई, अब बात यहीं पर खत्म होती है, मस्ती से चिट्ठा चर्चा करो। बिना किसी रुकावट के, एक दिन मे एक से ज्यादा चर्चाए करों, बिन्दास!

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