रविवार, नवंबर 12, 2006

चिट्ठा चर्चा: नवम्बर ११, २००६

बड़ी मुश्किल से जाकर कनैक्शन मिला है, जल्दी से पब्लिश कर लिया जाए, नही तो पता नही इन्टरनैट देव कब रूठ जाएं। तो भई शुरु करते है रविवारीय चिट्ठा चर्चा मतलब कि शनिवार के चिट्ठों की चर्चा।

शनिवार ११ नवम्बर, २००६

सबसे पहले तो मनीष के साथ पंचमढी की सैर का अगला भाग देखिए, भई मनीष का यात्रा विवरण बहुत शानदार होता है।मनीष बताते है:
चौरागढ़ ना जाकर हम सब बड़े महादेव की गुफा की ओर चल पड़े । कैमरा गाड़ी में ही रख दिया क्यो.कि इस बार वानर दल दूर से ही उछल कूद मचाता दिख रहा था । समुद्र तल से १३३६ मी. ऊँचाई पर स्थित ये गुफा २५ फीट चौड़ी और ६० फीट. लम्बी है। गुफा के अंदर प्राकृतिक स्रोतों से हर समय पानी टपकता रहता है । अंदर एक प्राकृतिक शिव लिंग है जिसके ठीक सामने एक पवित्र कुंड है जिसे भस्मासुर कुंड कहते हैं।


मनीष तो पहाड़ों पर टहलते हुए खाइयों से बचते बचाते अपनी यात्रा विवरणी लिख रहे है, उधर रत्ना जी को क्या हुआ पग पग कुँआ और पग पग खाई, की बाते करते हुए कहती है :
लोक अदालत की प्रभाव-हीनता और कानून के बंधे हाथ मुझे उस समय तड़पा गए थे जब दरोगा पत्नी ने ढिठाई से दबी ज़ुबान में कहा था– “कैसे छुड़वा देंगे। यह लोग कुछ नहीं कर सकते। कानून मेरे साथ है और फिर मैं तो कानून की रक्षक भी हूं। ऐसे सबूत जुटाउंगी कि तुम्हारी सात पीढियां न छुट पाएंगी।” कानून की शिथिलता और कोमलांगी कही जाने वाली अबला की कठोर क्रूरता से मेरा यह पहला परिचय था। .....

पुरूष-सहयोगी हंस कर कह रहे थे—पग-पग कुआं, पग पग खाई, ए मालिक क्यों नारी बनाई। सांस भी लें तो हिले खुदाई, ऐ मालिक क्या चीज़ बनाई। घर लौटी तो मन का गुबार पन्नों पर कुछ इस प्रकार बिखर गया था—

नई सदी में नव-निर्मित हुई
नारी की पहचान
संस्कारों के बंधन पर क्यों
लगते उसको अपमान...

बाकी का आप उनके ब्लॉग पर पढिए। इधर फुरसतिया जी ने राग दरबारी को इन्टरनैट पर लाने का आह्वान क्या किया पूरी ब्लॉगर बिरादरी जुट गयी है, राग दरबारी को इन्टरनैट पर लाने के लिए। कोई पहला अध्याय कर रहा है तो कोई तीसरा तो कोई आखिरी वाले पर जुट गया है। आप भी इस यज्ञ मे अपनी आहूति प्रदान करिए।

रीतेश की भावनाएं भी कलमों पर उमड़ रही है। एक कविता लिखी है " ताकि बन सके वो एक बेहतर इंसान....."
सेठ चाहता है नौकर को केवल नौकर की तरह
और नौकर चाहता है सेठ को केवल सेठ की तरह
पर नहीं चाहते दोनों एक दूसरे को इंसान की तरह
अगर चाहते तो नौकर दो पीढ़ी से नौकर नहीं रहता
बाकी का उनके ब्लॉग पर पढिए...

नए चिट्ठाकार नितिन हिन्दुस्तानी के ब्लॉग पर एक दो नही पूरी पाँच नयी रचनाएं है आज। बच्चों की याददाश्त कैसे बढाए, प्रधानमंत्री के घर डेंगू और भी बहुत सारी। ये लिखते है:
अधिकतर लोग मूडी होते है। मूड होता है तो काम करते है नहीं तो ये कह कर टाल देते हैं, कि 'अभी मूड नहीं है'। यदि आप भी ऐसा ही करते हैं, तो मेरी यही सलाह है कि आप इन बातों को ध्यान से पढ़े,तो हो सकता है आप मूड में आ जाए। समय पर करे हर काम का एक समय होता है, उसे उसके सही समय पर करे, टाले नहीं।


देखा इनकी बातो को सुनकर और किसी पर असर हो या ना हो, हम तो अपने हिस्से की चिट्ठा चर्चा नियमित रुप से करने लगे है। आजकल चिट्ठा जगत मे एक और बवाल हो गया है, अरे नही भई, घबराने की बात नही, ये तो वैचारिक रुप से चर्चा का विस्तृत रुप है, सृजन शिल्पी के ब्लॉग पर संजय की एक टिप्पणी और फिर प्रति टिप्पणी और फिर एक पोस्ट , और फिर अमित की पोस्ट लो जी, हो गया शुरु। सृजनशिल्पी और संजय की बाते तो आप सुन चुके हो, लो अब अमित को सुनो:
मास्टर जी को कदाचित्‌ यह ध्यान नहीं रहा कि पुरातन समय में भी ऐसा होता था, राजबालकों के गुरुकुल अलग भी होते थे जहाँ आम जनता के बालकों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। राजसी खाने और आम जन के खाने में पहले भी ज़मीन आसमान का अंतर होता था, अब पानी को फ़िल्टर करने आदि की तकनीक और मशीने नहीं थी उनके पास वरना राजसी पानी भी आम जन के पानी से अलग हो जाता!!!
बकिया आप स्वयं पढिए।

रचना बजाज को सुनील भाई के ब्लॉग पर एक बच्चे के चित्र को देखकर एक कविता सूझ गयी:
खूब किया तुमने जो महल खडे किये,
अब थोडी जगह उसके झोपडे को दो!
खूब किया तुमने, अपने पेट भर लिये,
अब थोडी रोटी उसके लिये छोड दो!


प्रभाकर भाई, दो भागो मे माँ मन्थरा सुना रहे है। अनुनाद भाई, गैर परम्परागत उर्जा स्त्रोतो की बात कर रहे है। डाक्टर साहब भी मटरगश्ती करते हुए अगले ओलम्पिक के कुछ चित्र दिखा रहे है। देबाशीष जी व्यवसायिक चिट्ठाकारिता की बात करते हुए कहते है:

तो बात हो रही थी नुक्ताचीनी करने के पैसे पर। यह बड़ा संवेदनशील मामला है। ब्लॉग हमेशा से संपादन तंत्र के दायरे के बाहर रहे, बिंदास बोल के प्रणेता रहे। ब्लॉगरों से अपेक्षा रहती है कि वे बिना किसी दबाव, लालच या मतलब के लिखें।
साथ ही देबाशीष भाई, रिव्यूमी के बारे मे बताते है। देबाशीष के लेख हमेशा जानकारीपूर्ण रहते है, ये बात और है कि वो अपने ब्लॉग की बत्ती महीने मे सिर्फ़ एक बार ही जलाते है।
रामचन्द्र मिश्र अपने सारे चिट्ठो को ब्लॉगर बीटा की शरण मे ले जा रहे है, साथ ही अपने फोटोब्लॉग पर एक सुन्दर सा चित्र दिखा रहे है। सुन्दर इसलिए नही कि चित्र मे हम भी है, सुन्दर इसलिए कि जोखी धाणी बहुत शानदार जगह है, जरुर जाइएगा।

आज का चित्र : डाक्टर साहब के ब्लॉग से


आज की टिप्पणी, रवि रतलामी द्वारा अमित के ब्लॉग से


“…अस्वीकरण: यह लेख एकाध अन्य लेखों और वैसी मानसिकता रखने वालों को धरातल पर लाने का प्रयास है। इसमें आलोचना भी है, कटाक्ष भी है, और व्यंग्य भी है, लेकिन किसी का अपमान करने का इरादा नहीं है। यदि आप इस सबको सही भावना से नहीं ले सकते तो कृपया आगे नहीं पढ़ें। कोई भी असभ्य टिप्पणी तुरंत मिटा दी जाएगी। आपको सावधान कर दिया गया है, आगे जो हो उसके ज़िम्मेदार आप स्वयं हैं।…”

चिट्ठाकारों के लिए यह डिस्क्लेमर बना कर आपने बड़ा पुण्य का काम किया है. इसे अपने चिट्ठे के मास्ट हेड पर स्थायी रूप से लगाना पड़ेगा ऐसा लग रहा है… :)



पिछले साल इसी सप्ताह : यानि भूले बिसरे चिट्ठों की श्रेणी मे इस बार की प्रविष्टियाँ है:
अजनबी देश है यह कविता सागर से,शब्द राज के ब्लॉग से चूहा दौड़ और बाल दिवस के अवसर पर विशेष बाल गीत जरुर देखिएगा।

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2 टिप्‍पणियां:

  1. हमारा तो यही कहना है कि आज इतवार के दिन जब हमारे यहां भी नेट रूठा-रूठा लग रहा था तब
    इस पोस्ट को लिखने का महान काम जीतू ने किया तो बरबस यह कहने का मन कर रहा है- जीतू तेरा ये बलिदान, याद रखेगा ब्लागिस्तान.

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  2. नेट का रूठ जाना प्रेमिका के रूठ जाने से भी ज्यादा कष्टकारी होता है. आपने काफी मानसिक कष्ट उठाया होगा. हमारी सहानुभूति आपके साथ है.
    बाकि चर्चा अच्छी रही. हम इसे सोमवार को पढ़ रहे है. यानी देर से भी प्रकाशित हुई हो तो भी हमारे लिए कोई फर्क नहीं पड़ा.
    आपका नेट अविराम चलता रहे इसकी कामना करता हूँ.
    जबसे वरिष्ट लोग कोमेंट करने लगे है, चिट्ठो का प्रकाशन बढ़ा है.

    जवाब देंहटाएं

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