रविवार, नवंबर 19, 2006

चिट्ठा ए चर्चा, बमार्फत मिर्जा

सलाम वालेकुम मियां, कैसे मिजाज है?
चौधरी साहब आज थोडा मसरुफ़ थे, इसलिए वो हमको अपना थैला टिका गये है, बोले हफ़्ते(रविवार) के दिन हमको सबकी चिट्ठा चर्चा करनी है। अब चूंकि हम नये नये है, इसलिए थोड़ी सी गलतियां को नजरअन्दाज किया जाए। (सबसे पहले तो हम आपको बता दें, कि चौधरी साहब ने किन्ही हिन्दी राइटर का लिंक दिया था, उसी से लिख़ रहे है, इसमे कंही कंही निक्ते नही दिख़ रहे है, ख़ैर, होंगे, हमे पता नही कि कैसे लगाते है।)

तो जनाब शनिवार के दिन जो कुछ लिख़ा गया वो आपके सामने परोसा जा रहा है, नोश फरमाएं। अव्वल तो हम ताकीद कर दें कि बहुत कम लिखा गया है, ऐसे चलेगा नही| खैर… सबसे पहले तो राजेश कुमार C और C++ का भयंकर लफड़ा ले आए है|बाकी तो आप वहीं पर जाकर देख़िए, और हाँ अपने अपने बच्चों के आपरेटिंग सिस्टम का ध्यान रख़िएगा|

जीके अवधिया जी आजकल, सुख़सागर पढा रहे है, मानवों के उद्दार के लिए बनाए गये आश्रम व्यवस्था के बारे मे सुख़ सागर मे लिख़ा है:
शास्त्रो में चार प्रकार के आश्रमों की व्यवस्था की गई है - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्यास। ब्रह्मचर्य आश्रम में गुरु की सेवा करते हुये विद्याध्ययन करना चाहिये। विद्याध्ययन पूर्ण होने पर गृहस्थ आश्रम में देवयज्ञ, पितृयज्ञ, अतिथि सत्कार आदि करते हुये वंश परम्परा में वृद्धि के लिये सन्तानोत्पत्ति करना चाहिये। वानप्रस्थ आश्रम में वन में कुटी बना कर भगवत्भक्ति करना चाहिये। अन्त में सन्यास आश्रम धारण कर आत्म शुद्धि के लिये स्वयं को परमात्मा में लीन कर देना चाहिये।

लेकिन अवधिया जी, कई लोग तो आनंद की ख़ोज करने के लिए "वानप्रस्थ आश्रम" या हरिद्वार की तरफ़ कूच कर जाते है|लेकिन कई कई लोग, जैसे हमारे चौधरी और फुरसतिया (जिनसे यही उम्मीद है कि) अगर ख़ोज का आनंद उठाने गोवा की तरफ़ कूच कर जाएं, तो इसका क्या इलाज है?

इधर देबाशीष हफ़्ते के जुगाडों के बारे मे बता रहे है, साथ ही विकीपीडिया पर लेख़ों की हजामत और गलत तथ्यों से फ़जीहत से परेशान है| इस बारे मे विकीपीडिया के संस्थापक जिमी वेल्स के बयान का हवाला देते हुए देबाशीष बता रहे है :
वेंडेलिस्म के सवाल पर जिमी ने बड़ी बेफ़िक्री से कहा था, “वेंडेलिस्म कुल मिलाकर एक छोटी सी समस्या है और खास महत्वपूर्ण नहीं।” सच कहूं तो मुझे उनकी बात से इत्तफ़ाक नहीं था, आखिरकार 1.4 मिलियन पृष्ठ हैं विकीपिडिया पर। पर हाल ही में एक प्रोफेसर ने इस बात की पुष्टि की कि विकीपिडिया पर गलत तथ्यों का टिक पाना काफी मुश्किल है। एलेक्ज़ैंडर हेलेवाईस नामक इस प्राध्यापक ने जानबूझकर विकीपिडिया के कुछ पृष्ठों में मामूली फेरदबल किये जैसे कि यह लिखा कि एक डिज़्नी की फिल्म द रेस्क्यूअर्स डाउनअंडर को फिल्म संपादन के लिये आस्कर मिला था (जबकि फिल्म को आस्कर नहीं मिला था)। उनका अनुमान था कि यह त्रुटियाँ सालों यूं ही पड़ी रहेंगी, पर विकीपिडिया के स्वयंसेवकों ने तीन घंटों के भीतर ने केवल सारी गलतियों को सुधार दिया वरन् एलेक्ज़ैंडर को चेतावनी भी दे दी।


चलिए अच्छा है तुषार जोशी की कविता हम बनाएंगे वतन को देख़िए, ये विकीपीडिया पर भी लागू हो रही है:
हम बनाएंगे वतन को
हम सजाएंगे चमन को
हम।

मंज़िल सबको लेकर चलना
मुश्किल राहों से गुज़रना
आँधी आए तुफाँ आए
हौसला हुआ कभी ना
कम ।


रवि रतलामी मंड्रिवा लिनक्स 2007 के बारे मे बता रहे है जो लगभग 65 भाषाओं मे उपलब्ध है|तकनीकी लेखों मे रवि भाई को महारत हासिल है|रवि भाई बताते है:
मंड्रिवा लिनक्स 2007 में 65 से अधिक भाषाओं का समर्थन है. हिन्दी, गुजराती, पंजाबी, तमिल इत्यादि समेत कई अन्य भारतीय भाषाओं का भी इसमें समर्थन है. मंड्रिवा संस्थापक का हिन्दी अनुवाद धनञ्जय शर्मा का है.

वीरेन्द्र चौधरी सभ्यता की कहानी कहते हुए, भौतिक जगत और मानव पर एक लेख़ लिख़ा है, जरुर देख़िएगा|नितिन भाई, बेचारे शर्मा जी (आम आदमी) की परेशानियों का बख़ान करते हुए भारतीय रेल की उपलब्धियों का जिक्र कर रहे है|ना ना, हम नही बताएंगे, आप ख़ुद पढिए|

अनूप भार्गव, पवन किरण की एक कविता… किस तरह मिलूँ तुम्हें पढा रहे है:

किस तरह मिलूँ तुम्हें

क्यों न खाली क्लास रूम में
किसी बेंच के नीचे
और पेंसिल की तरह पड़ा
तुम चुपचाप उठा कर
रख लो मुझे बस्ते में

क्यों न किसी मेले में
और तुम्हारी पसन्द के रंग में
रिबन की शक्ल में दूँ दिखाई
और तुम छुपाती हुई अपनी ख़ुशी
खरीद लो मुझे

बहुत सुन्दर कविता है, जरुर पढिएगा|

अब इससे ज्यादा चिट्ठे तो थे नही, अभी लिख़ते लिख़ते उडनतश्तरी वाले समीर लाल, टकरा गये, धमकाते हुए बोले, हमारी तारीफ़ करो, हम बोले, कुछ लिखो तो, बोले लिख़े की तो सभी करते है, बिना लिख़े की करो तो जाने| मरता क्या ना करता, उनके बेहद इसरार इस जबरई पर पेश है उनकी ये तारीफ़ (आप लोग इसे विज्ञापन की तरह से पढिएगा, और किसी सज्जन को अपनी तारीफ़ करवानी हो तो सम्पर्क करिएगा|)

नाम : समीर लाल (चित्र के लिए यहाँ पर क्लिक करें|
पाये जाने का स्थान : कनाडा के ओंटारियो शहर के आसपास, लेकिन ज्यादातर अपनी उड्नतश्तरी के खोल मे ही रहते है|
पसन्द : तारीफ़ करवाना।
ख़ान-पान की आदतें : रात बे-रात उठकर, फ्रिज से ख़ाना निकालकर ख़ाना|
व्यवहार : सुबह सुबह, पडोसी पिंजरे वालों को धमकाना, कि अपने हिस्से का ख़ाना नही दिया तो 'कुन्डली' अटैक कर देंगे|
सावधानी : चैट करते समय सावधानी रख़िएगा, कभी कभी आपके ऊपर कुन्डली लिख़ सकते है|
फेवरिट पास-टाइम : आफिस आफिस खेलना|
खोज में : कोई नाजुक बदन लड़की
समीर भाई काफी है कि पूरा निबन्ध लिख़ें?

आज़ का चित्र : अबे कोई छापे तब तो दिखाएं ना| लाहौल बिला……… बहरहाल हमे जो अच्छी लगी हम उसे दिखा दे रहे है:
सौजन्य से : Chrysanthemum
आज की टिप्पणी: कौई करे तब तो चर्चा करें ना, सभी पोस्ट सूनी मांग की तरह दिख रही है|
पिछले साल इसी हफ़्ते : आलोक का दर्द और सारिका की यादें बचपन की|

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6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह मिर्जा यार, तुम तो चौधरी से भी अच्छा लिखते हो! लिखते रहो इसी तरह.

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  2. चिट्ठा चर्चा का नया हैडर अच्छा लगा

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  3. भईया, उड़न तश्तरी धमकाई जीतू भाई को, और धमक गये मिर्जा!! वाह वाह, अच्छी धमक है. खैर, बिना कुछ लिये ही विज्ञापन द्वारा प्रसारित एवं प्रचारित करने का शुक्रिया...बेहतरीन लिखे हो.

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  4. अस्लाम बालेकुम मिर्जा सा'ब.
    खुब लिखे हो, ऐसे में क्या जरूरत है चौधरीयों की. पाल छाड़ आपही करते रहीए चिट्ठाचर्चा.
    और इस उडनतश्तरी से दुर रहो मियां खाँमखाँ कवि बन जाओगे.
    नया हेडर अच्छा लग रहा है.

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  5. इसे अन्यथा न लिया जाय.
    थोड़ा कनफ्युजन हो गया है इसलिए पुछ रहे है, फिर उर्दू का ज्ञान भी हमारा शुन्य बराबर है.
    यह चिट्ठा ए चर्चा सही है या चर्चा ए चिट्ठा सही होगा?

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  6. अनूप, तुम तो हमारी दुकान बढवाने मे लगे हुए हो, दोस्ती का फर्ज दो निभाओ।

    समीर भाई, मिर्जा साहब हमारे, बुजुर्गवार है, हमने धमकी की बात उनको बताई, तो वो बमक गए, बोले आज ही लिखेंगे, और देखो, उन्होने क्या लिखा।

    संजय भाई, आप सही हो, चर्चा ए चिट्ठा होना चाहिए था, ये मिर्जा तो बुढापे मे सठिया गया है। इसलिए गलत सलत टाइप कर गया। खैर अब तो कुछ नही कर सकते, आगे से बोलेंगे कि ध्यानियाएगा।

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