सोमवार, नवंबर 27, 2006

तमाम ज्ञान बांटता एक अज्ञानी...


आवेग में आकर हम कुछ ऐसी-वैसी टिप्पणियाँ कर देते हैं, परंतु आमतौर पर अज्ञानतावश ऐसा हो जाता है. लोगों की अज्ञानता को बहुत से बुद्धिमान - शयाणे भुनाते भी हैं, और, यह तो सदियों से चला आ रहा है. यूँ, अज्ञानता दूर भगाने के लिए, अंधेरे में प्रकाश करने के लिए, लोग-बाग़ अपने स्तर पर प्रयास करते हैं और कुछ तो आवेग में आकर अपने घर को ही जला लेते हैं. और जब ज्ञान मिल जाता है तो दुनिया जहान से, हिन्दी से भी प्यार हो जाता है!

कुछ (सरकारी) अज्ञानी, ज्ञान के प्रसार में यत्र-तत्र प्रतिबंध लगा देते हैं, परंतु ज्ञानियों के लिए कई रस्ते होते हैं और कई तोड़ होते हैं , जो जाहिर है, प्रतिबंध लगाने वाले अज्ञानियों को पता ही नहीं होते. पता होता तो क्या वे प्रतिबंध की सोचते भी?

गांधी गीता का ज्ञान इतना समग्र है कि नित्य नए स्तर पर मीमांसाएँ होती हैं. तमाम नक्षत्रों के बारे में भी बहुत से लोगों को बहुत सा ज्ञान बांटा गया है, परंतु शुक्र है कि अब लोगों को अपने गांव घर के बारे में ज्ञान मिलेगा.

क्या कोई पत्थर भी ज्ञानी हो सकता है? भारत के हर कोने में जहाँ पत्थरों को गाड़ कर सिंदूर पोत कर पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी जाती है, तब तो यह मानना ही पड़ेगा - ज्ञानी पुरुष पत्थरों को भी ज्ञानी बना देते हैं जो उनके लिए रोकड़ा कमा कर लाते हैं.

प्रश्न यह है कि ज्ञान कैसे मिलता है. ज्ञान की रौशनी पाने के लिए जिंदगियों की मशालें जलानी होती हैं. ज्ञान फिर भी नहीं मिलता और ज्ञान प्राप्ति के लिए वांटेड का इश्तिहार लगाना होता है.

कम्प्यूटर सीख चुके लालू ने प्रबंधन संस्थान में अपना ज्ञान क्या बांटा, भावी प्रबंधकों को यह ज्ञान आ गया कि काम के बेहतर माहौल भारत में नहीं, विदेशों में हैं!

किसे मानें ज्ञानी जब ज्ञानियों के ही विविध रंग हैं - ज्ञानी, महाज्ञानी, पराज्ञानी, अज्ञानी, अद्वितीयज्ञानी इत्यादि इत्यादि...

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व्यंज़ल


मैं अगर कभी मुसकुराया होऊंगा

अज्ञानता में ऐसा किया होऊंगा


जमाने को पता नहीं है ये बात

मजबूरन ये उम्र जिया होऊंगा


हंसी की क्षणिक रेखा के लिए

जाने कितना तो रोया होऊंगा


वो हासिल हैं ये तो दुरुस्त है

क्या क्या नहीं मैं खोया होऊंगा


ज्ञान के लिए कोशिशें करूं रवि

मैं यहाँ क्योंकर आया होऊंगा

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1 टिप्पणी:

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