शनिवार, जनवरी 20, 2007

मध्यान्हचर्चा दिनांक : 20-01-2007

टी-ब्रेक हुआ ही था, धृतराष्ट्र अपने कक्ष में कदम रख रहे थे, चपरासी कोफी तैयार करने में लगा था. और संजय? वे तो पहले से ही कक्ष में मौजूद थे. लैपटोप पर संजाल का संचार हो गया था. भाषाकिय प्रतिबधता दिखाते हुए हिन्दी ब्राउज़र पर नेट को खंगाला जा रहा था. पहले से ही उपस्थित संजय को देख धृतराष्ट्र विस्मित हुए. फिर अपनी कुर्सी पर धंस गए.

धृतराष्ट्र : क्या बात है? आज समय से पहले ही... खैर सप्ताहांत है. देखो सब छुट्टी के मूड में हैं या दंगल में उतरे है?
संजय : नहीं काफी चिट्ठाकार दिख रहे हैं.

धृतराष्ट्र : अच्छा! पर यह उदास-उदास कौन दिख रहा है?
संजय : महाराज, ये मान्याजी है. किसी की याद में तन्हा हो कर सन्नाटे में गीत लिख रही है.
तथा साथ खड़े समीरलालजी अपनी तन्हा मोहब्बत पर सफाई दे रहे है.
इस पर मनीषजी कहते हैं की ये हौसला कैसे झुके, ये आरजू कैसे रुके.. जब भी दिल में मायूसियाँ अपना डेरा डालने लगें ये गीत आप अवश्य सुनें.

धृतराष्ट्र : ठीक है, सुन लेंगे. (कोफी का घूँट भरते हुए..) तुम आगे बढ़ो.
संजय : जी, महाराज. आगे अन्तर्जाल पर हिन्दी की समृद्धि के लिए एक अपील कर रहे है भुवनेशजी.
इस पर अफ्लातुनजी आशा जगाते हुए कहा की वेब पत्रकारिता में अंग्रेज़ी का प्रभुत्व बहुत दिन नहीं रहने वाला है.
एक आशा उन्मुक्तजी भी जगा रहे है, उनके अनुसार ओपेन सोर्स आंदोलन न केवल सॉफ्टवेर के क्षेत्र में नये आयाम खोल रहा है पर उच्च शिक्षा के दरवाजों पर भी दस्तक दे रहा है.

धृतराष्ट्र : समय तेजी से बदल रहा है.
संजय : हाँ महाराज, समय के साथ वृद्ध होते शेर की दहाड़ भी अपनी प्रासंगिकता खो रही है. बाल ठाकरे पर पते की बात कर रहे है प्रियदर्शन.
बतौर जोगलिखी यह बात और है की लोग हर हाल में गर्व करने के बहाने खोज ही लेते है.
मगर मानव होने पर हम कितना गर्व कर सकते है? जब हमारा व्यवहार पशुओं की तुलना में ऐसा हो. आईना दिखा रहे हैं भाटियाजी.
वहीं गिरिन्द्रनाथजी का अनुभव कहता है की गर्व आखिर क्यो न हो जब शादी ही इतनी खास है...

धृतराष्ट्र : शादी से पहले पूजा-पाठ के अलावा खूब ग्रह नक्षत्र आदि को शांत करवाया गया है.
संजय : अपनी अपनी मान्यताएं है, महाराज. प्रेमलताजी मन की बात को आगे बढ़ाते हुए आज बुध के बारे में जानकारी से रहीं है.
वहीं अंतरिक्ष के ग्रह नक्षत्रों के बारे में दूसरे दृष्टिकोण की जानकारी से रहे है, आशिषजी.

धृतराष्ट्र : लगे हाथ फोटोग्राफरों को भी टटोल लो.
संजय : जी महाराज. कुरिल की तबाही की तस्वीरे लेकर आए है, क्षितिजजी.
तो मिश्रजी दिखा रहे हैं मनोहारी कैमेरिनो विश्विद्यालय का कार्बनिक रसायन (शास्त्र) विभाग के पास का क्षेत्र.
छायाचित्रकार सुनिलजी इसबार ले जा रहे हैं हुमायुं के मकबरे पर.

महाराज, आज के लिए इतना ही. मैं करता हूँ सत्रांत. होता हूँ लोग-आउट.

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3 टिप्‍पणियां:

  1. इतने सारे चिट्ठों को एक साथ बहुत अच्छे तरीके से प्रस्तुत किया है। बह्त अच्छे।

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  2. शानदार, आज पहली बार धृतराष्ट्र के पहले पहुँचने के लिये बधाई.

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  3. वाह भाइ संजय जी, आज कल सब नया नया है, भले ही ये चिटठा चर्चा ही क्यों ना हो...वाह

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