सोमवार, जनवरी 08, 2007

संजय होने का मतलब है, तरकश का होना, हिन्दी चिट्ठाकारों की टिप्पणियों का होना, मध्याह्न चिट्ठाचर्चा का होना और वर्ष 2006 के सबसे उभरते चिट्ठाकार का होन



(शीर्षक थोड़ा लम्बा हो गया है. कोई बात नहीं, इससे नए ब्लॉगर के लंबे हिन्दी शीर्षक के बग की जाँच भी लगे हाथ हो जाएगी). पंकज ने सम्राट-टिप्पणीकार संजय के जन्मदिन पर बधाई देते हुए आगे लिखा -

संजय होने का मतलब है, किसीके द्वारा जन्मदिन की बधाई पाने से सख्त नफरत करना...

ठीक है, हम बधाई नहीं देते हैं, बल्कि उन्हें ये शुभकामनाएँ देते हैं-

संजय सौ बरस तक ऐसे ही हिन्दी चिट्ठाकारों को टिप्पणियाँ देते रहें, चिट्ठाचर्चा करते रहें...

हिन्दी के लिए नए साल की शुरूआत अच्छी रही. बहुप्रतीक्षित अभिव्यक्ति यूनिकोड में अंततः आ ही गया, इससे पूर्व दैनिक जागरण यूनिकोड पर परिवर्तित हो चुका था, प्रभासाक्षी का यूनिकोडित संस्करण जाँच अवस्था में है, परंतु इसका गैर यूनिकोडित संस्करण मासिक एक करोड़ हिट्स के जादुई आंकड़े को छूने को तत्पर है. इस बीच, हिन्दी कंप्यूटिंग के शानदार पच्चीस बरस भी पूरे हो गए!

विशेष खुशी की बात यह रही कि वर्ष 2006 के उभरते हुए चिट्ठाकारों का पुरस्कार तरकश द्वारा प्रदान किया गया. इंडीब्लॉग़ीज पुरस्कार 2006 के आने में संभवतः कुछ देरी है, और माइक्रोसॉफ़्ट भाषा इंडिया चिट्ठाकार पुरस्कार तो सबसे बड़ा ब्लंडर था जो माइक्रोसॉफ़्ट के उत्पादों की तरह क्रैश हो गया था, वायरस संक्रमित हो गया था ऐसे में तरकश का यह सफल आयोजन राहत देता है. प्रतियोगिता के परिणामों से सभी क्षेत्रों में यह निश्चिंतता दिखाई देती है कि प्रतियोगिता निष्पक्ष और सही रही. उन्मुक्त को यह खयाल जरूर आया कि प्रतियोगिता में महिला चिट्ठाकार के लिए कोई इनाम होना चाहिए था - वे पुरस्कृतों की सूची में अपने आपको आदमों से घिरे पाते हैं - कोई हव्वा नहीं है वहाँ. परंतु मेरे विचार में यह पुरस्कार ‘सिर्फ' उभरते हुए चिट्ठाकार के लिए था - जाति-धर्म-लिंग-भेद जैसा कोई आरक्षण था नहीं, इसलिए इस मामले में गमगीन न हुआ जाए तो अच्छा. परंतु अंतिम 12 सूची में कम से कम तीन नाम तो थे ही, और शायद इनकी थोड़ी सी असक्रियता (नियमित पोस्ट नहीं करना) ही थोड़ी सी बाधक रही अन्यथा, मेरा व्यक्तिगत विचार है कि पुरस्कृतों में इनमें से अवश्य शामिल होते. वैसे भी, लिंग-भेद करना अपराध है, और, बकौल सुनील, हम आम लोगों को तो अंतरलैंगिक, द्विलैंगिक, समलैंगिक और पता नहीं क्या-क्या के बारे में पता ही नहीं है!

इस बीच, हिन्दी युग्म द्वारा भी चिट्ठाकार कवि और टिप्पणीकार के लिए पुरस्कारों की घोषणा की गई है.

आइए, अब करते हैं कुछ त्वरित चर्चा कुछ ताजातरीन चिट्ठों की:

मानसी के हाथ कोई बारह बरस पुराने अख़बार की रद्दी हाथ में लग गई. उसे ध्यान से देखा तो पाया कि अरे! उसमें तो उनकी लिखी शानदार कविता छपी है. उधर जगदीश ने वर्डप्रेस के 5.75 लाख अच्छे चिट्ठाकारों को आईना दिखाया और अपना स्थान 69 (बढ़िया **** है!) पर बनाया. एक तरफ निठल्ले को अपने चिंतन में आश्चर्य हो रहा है तो भानुमति के पिटारे में से एक पेड़ निकल (जिसका चित्र आप ऊपर देख रहे हैं) आया.

चर्चा कुछ किताबी हो गई लगती है. चलो कुछ ब्रेक लेते हैं और नए साल की नई तुकबंदी करते हैं:

हर इक चिट्ठे में पोस्ट रहे

बुश मिडिल ईस्ट का दोस्त रहे,

सबकी प्लेटों में टोस्ट रहे,

पार्टी में मुर्गा-रोस्ट रहे।

सलमानों पर शर्ट रहे

मलिकाओं पर स्कर्ट रहे

अपने-अपने धंधे में,

हर इक बंदा एक्स्पर्ट रहे।

चेहरों पर हर्ष विशेष रहे,

बढ़ता अपना विनिवेश रहे,

विकसित देशों की सूची में,

सर्वोपरि अपना देश रहे।

इन्सानों में मेल रहे,

इन्बाक्सों में ई-मेल रहे,

ओलंपिक खेलों की सूची में,

गुल्ली-डंडा भी खेल रहे ।

पूरी के संग भेल रहे,

पटरी पर हर इक रेल रहे,

गुंडों को तिहाड़ की जेल रहे,

कम्फ्यूटर वायरस फ़ेल रहे।

हर इक दीपक में तेल रहे,

दूकानों में सेल रहे,

असुरक्षित जीवों की श्रेणी से,

बाहर मानव और व्हेल रहे।

राष्ट्रों में विचार-विमर्श रहे,

हर दिन अपना नव-वर्ष रहे,

हम सब भक्तों के मस्तक पर,

ईश्वर-कर का स्पर्श रहे।

यह कविता पढ़ कर हँसते हँसते पेट में जख़्म हो गया? कोई बात नहीं, क्योंकि:

हादसे होते हैं गुजर जाते हैं

घाव कैसे भी हों भर जाते हैं

परंतु पृथ्वी के घाव कभी नहीं भरते. इसीलिए प्लाचीमाडा की महिला नेता मायलम्मा पृथ्वी के भूगर्भ जल के अंधाधुंध दोहन के जरिए हो रहे घाव को भरने का आंदोलन चला रही हैं.

बहुत हो गई चर्चा-शर्चा, अब तो, जैसे कि शुरूआत में चर्चा हुई थी, हिन्दी के लिए नया साल अच्छा रहा और सम्राट टिप्पणीकार संजय का जन्मदिन भी है, आईना भी वर्ड प्रेस पर 69 वें स्थान पर है, हिन्दी कम्प्यूटिंग का रजतजयंतीवर्ष है, कुछ (कुछ? अरे! आओ आज तो इतना पिएं कि होश न रहे!¡) दारू-शारू हो जाए

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2 टिप्‍पणियां:

  1. आपने कहा और मैं चला पीने....दारू नहीं रे बाबा, केवल पानी. बधाई के लिए धन्यवाद.

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  2. संजय अपने स्वभाव के चलते आपकी बात सार्थक नही कर पायेंगे, हम भी जाते हैं उनके साथ, मगर आपकी बात के सही अर्थ को रखने के लिये... :)

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