बुधवार, जनवरी 03, 2007

समझो हो ही गया..

तरकश पर अब जाय के, करिये मत का दान
उदयीमान में टॉप के, छांटो तीन ठो नाम,
छांटो तीन ठो नाम कि सब हैं आपको ताके
असल वोट है आपका जो कि इन्हें जिता दे
कहे समीर कविराय कि सुनो न कोई बहाना
लेखन जिसका भाये, उसी को वोट लगाना.


-समीर लाल 'समीर'



तो लीजिये जनाब, अब आपके सामने हाजिर हैं वो २००६ के बारह उदयीमान चिट्ठाकार जिन्हें निर्णायक मंडल के द्वारा चुन कर आपके मत जानने के लिये भेजा गया है. आपको इन बारह में से अपने पसंदीदा तीन चिट्ठाकारों को अपनी पसंद के क्रम में वोट करना है. आपके ही मत से चुने जायेंगे इस साल के तीन सर्वश्रेष्ट उदयीमान चिट्ठाकार, जिन्होंने सन २००६ से चिट्ठाकारी शुरु की है. आप अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें, तभी सर्वमतेन चिट्ठाकारों का चुना जाना संभव हो पायेगा.इस अलंकरण का आयोजन तरकश के द्वारा किया जा रहा है था मतदान करने इस लिंक को क्लिक करें. ध्यान रहे कि मतदान की आखिरी तारीख ५ जनवरी, २००७ है.


यह इस वर्ष की मेरी पहली चिट्ठा चर्चा है. मैं आप सबको नये वर्ष की हार्दिक बधाई देता हूँ. अब जारी होती है आज की चर्चा.

सबसे पहले तो हमारी ही उड़न तश्तरी उड़ी और नये वर्ष का निवेदन कर आई सभी मित्रों से कि:

जब भी लिखो
जी भर के लिखना
जुबान की नहीं
बस दिल की बात लिखना.....


खैर, चुनाव के वक्त उड़न तश्तरी का उडना तो समझ में आया और मित्र श्रीश शर्मा का विन्डो लाईव राईटर की कक्षा लगाना भी सही समय पर सही कार्य की तर्ज पर समझ में आ गया मगर भाई जगदीश भाटिया तो मुन्ना भाई सर्किट को लेकर निकल पडे वोट मांगने और कहते हैं समझो हो ही गया . हम तो डर ही गये और अपनी उम्मीदवारी भूल कर वहीं जिंदाबाद जिंदाबाद के नारे लगा आये. अरे भईया, झंझट में कौन पड़े. हम तो अभी भी उनकी ही जिंदाबादी गा रहे हैं-जगदीश भाई, जिंदाबाद.

नये साल की खुमारी भी जबरदस्त होती है, जाते जाते ही जाती है, और फिर साल खत्म होने को आ जाता है. इसी खुमारी में तपस जी नये वर्ष की शुभकामनायें दे रहे हैं, साथ ही जापान से नव वर्ष की शुभकामना दी जा रही है और बाकी अभी भी पुराने साल का हिसाब किताब, अवलोकन करने में लगे नितिन बागला जी कहते हैं कि उन्हें याद रहेगा साल और फुरसतिया जी तो फुरसतिया जी हैं, जब वो एक दिन का किस्सा सुनायें तो पन्ना भर जाता है, आज तो पूरे पुराने साल का लेखा जोखा लाये हैं, अब आप दिखिये कि क्या क्या है उनके लेखा जोखा में:


आज नये साल का पहला दिन है। नये साल का मतलब है सबेरे देर तक बिस्तर पर ‘ऐंड़ियाऒ’। उठने के लिये उचको और फिर रजाई में दुबक जाऒ! डरते और मुस्कराते हुये कहो-यार, ज़रा चाय पिलाऒ। लेकिन हमें नये साल पर हमेशा खुंदक आती है। ससुरा आते ही शुरू हो जाता है। और हम सोचते रह जाते हैं कि नया साल आयेगा, बैठेगा, ‘हेलो,हाऊ डू यू डू’ कहते हुये हथेलियां रगड़ते हुये कहेगा-आपका समय शुरू होता है अब! लेकिन नहीं, ये तो आते ही शुरू हो गया और जब तक हम ‘हैप्पी न्यू यीअर’ और ‘सेम टु यू’ के झंझावात से उबरें तब तक साल का पहला दिन अपनी पारी समेट चुका था।


और कहते हैं कि:

जब यह रागदरबारी और दूसरी साहित्यिक किताबों को नेट पर लाने की मुहिम चल रही है तब मैं यह सोच रहा हूं कि क्या कोई ऐसे तरकीब नहीं है जो हिदी के लिखे को ‘टेक्स्ट’ के रूप में(फोटो नहीं) स्कैन कर सके ताकि टाइपिंग का झंझट कम हो सके? सुना है कि अंग्रेजी में इस तरह की सुविधा मौजूद है!

अरे भाई, होगी भी तो कौन बिल्ली के गले में घंटी बाँधे. अभी जब नहीं है तब तो इतना बड़ा बड़ा लिख कर पढ़वाते हैं, जब हो जायेगी तब तो रोज एक किताब पढ़वायेंगे और पूछेंगे, कैसी लगी. अब हमारे जैसे भक्त तो मरे. रोज पूरी किताब पढ़ो और फिर महाराज को बताओ, कि कैसी लगी. :) और तब तक दूसरी किताब हाजिर.

भाई जी, मजाक कर रहा हूँ. पता किया जा रहा है और जैसे ही पता चलेगा, सूचित किया जायेगा.


संजय भाई, तरकश के मुख्य कर्ता धर्ता, हमारे बताने के बाद भी, औपचारिक रुप से घोषणा कर हैं कि मतदान प्रारंभ हो गया है. अरे, आप नहीं भी बताते तो भी सारे उम्मीदवार ढ़ोल बजा बजा कर बता ही देते सबको. मगर औपचारिकतावश यह आवश्यक भी है.



अभी हम संजय भाई का ऐलान सुनकर वोट के जुगाड़ मे भागे चले जा रहे थे कि राजीव भाई बोले कि कविता तो सुन जाओ कि इस गॉव में क्या हो रहा है, चुनाव का मौका है, मना न कर पाये, बैठ कर पूरी सुने और जब उन्हें तसल्ली हो गई कि हमने सुन ली है तभी निकले. इतने व्यस्त समय में भी लोग कहाँ मानते हैं. अब देखिये न! जज होते हुये भी हमारी व्यस्तता नहीं समझ रहे और ज्ञान बांट रहे हैं हमारे रवि रतलामी जी. कहते हैं आई ई के बगैर काम नहीं चलेगा. अब नहीं चलेगा तो न सही, दो दिन बचे हैं जैसे भी चलेगा वैसे ही चलायेंगे फिर देखेंगे.

अब एक नया तरीका सीखें मनीष जी छाये रहने का. बडी दूर दृष्टी है भाई मनीष की. अगली २५ पोस्ट का जुगाड करके बैठे हैं. यहाँ तो आज लिखते हैं तो लगता है कि बस अब आखिरी है, कल क्या लिखेंगे, क्या पता. और इनका अगली २५ पोस्ट का जुगाड. मान गये भाई और वो भी लोगों को इंतजार लगवा लगवा कर. अब से हम भी सिरियल लिखा करेंगे यार. यह वन टाईम लेखन में कुछ नहीं धरा सिवा टेंशन के. खैर २५ में से दूसरा वाला सुनें: वादा तैनू याद राखियो. खैर, इनक तो इंतजाम है अगली कई पोस्ट का तो आगे चलें और सुखसागर पर देखें कि द्रौपदी की लाज रक्षा कैसे हुई और इससे बिना विचलीत हुये मिडिया युग कह रहा कि कई गड्डे टीवी कैमरे से अभी भी दूर हैं. इसके बाद भी और गहराई नापनी हूँ तो दिव्याभ आर्यन का चिंतन का भाग ५ पढ़ें.

अब ज्ञान की बात चली है तो ऐसा ज्ञान भी लिया जाये जिससे आर्थिक लाभ भी हो. तो हमें मिली सलाह फायदे की. और बिना आर्थिक फायदे वाली, मोहन और महादेव का किस्सा सुने शैशव पर.

ज्ञान तो ज्ञान है, बांटा गया तो ग्रहण भी किया गया और जीतू जी ने तो अमल भी कर लिया विंडो लाईव राईटर का इस्तेमाल करके.
जब हमारे चलने का समय आया तो शशी भाई बम्बई वाले आवाज मारे कि ऐसी खबर है जो बेखबर नहीं होने देती , तो हम सुनने बैठ गये और है तो बात सही, वाकई उन सब खबरों के आधार पर कोई जवाब तलाशना होगा.

अब चलते हैं तब तक आप लोकतेज जी से रुपाली जी कहानी सुनें और मुनीर नियाज़ी साहब की रचना सुनें.

अब हम चलते हैं और आप याद रखें वो उपर वाली बात तरकश पर चुनाव. :)

आज की तस्वीर:

तरुण के चिट्ठे से:


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5 टिप्‍पणियां:

  1. हमने तो अपना वोट डाल दिया है, समीर जी समझो हो ही गया.....

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  2. हाँ जी, बहुत दिनो बाद अपनी रंगत में चर्चा की है आपने, कहना न होगा की मजा आया.
    चुनाव के कुछ फायदे तो दिख ही रहे है ;)

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  3. समीर जी आपको रोज लिखने की जरूरत क्या है, वैसे भी आपकी १ पोस्ट मेरी २५ पोस्टों से भारी पड़ती है :):) ! वैसे
    इस गीत को मैंने ई -छाया को समर्पित किया है ताकि जहाँ भी हों अपना किया वादा याद कर तुरत हिन्दी चिट्ठा जगत में वापस आ जाएँ ।

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  4. वाह जी साल की पहली चर्चा धांसू रही। मुबारक हो !

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  5. सही कहा संजय भाई ने लेकिन मैं तो कहता हूं कि इस शानदार चर्चा की वजह आखिरी 12 में शामिल होना लगता है. घबराइये मत समीर भाई आखिरी तीन में भी आयेंगे... भगवान(पंचों को परमेश्वर ही तो कहते हैं और वोटरों को शायद भगवान) ने चाहा तो पहले नंबर पर भी आ सकते हैं. वैसे हमने अपना वोट ठोक दिया है. शुभकामना.

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