सोमवार, जनवरी 22, 2007

सद्दाम का असहनशील भारत


सद्दाम को फ़ांसी दे दी गई. दो हफ़्ता गुजर गया. परंतु उसके विरोध में भारत में प्रदर्शन जारी है. मौलाना मुलायम निठारी छोड़कर दिल्ली में प्रदर्शन करते पाए गए थे और हाल ही में बैंगलोर में हिंसक प्रदर्शनों के दौर में एक मासूम तो मारा ही गया, दुकानों-वाहनों को छति पहुँचाई गई, आग लगाया गया. इस व्यथा कथा का वर्णन दो अलग-अलग तरीके से कर रहे हैं प्रतीक तथा पंकज

छोटे शहरों से बड़े शहरों की ओर पलायन क्यों हो रहा है? क्या वजह है कि लोग बड़े शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं? गिरीन्द्रनाथ झा इस बात का कुछ खुलासा कर रहे हैं तो कुछ प्रश्न भी कर रहे हैं. मैं भी एक छोटे से शहर रतलाम में रहता हूँ. यहाँ दिन में अभी 5 से 7 घंटे बिजली बंद रहती है. कल ही पास के कस्बे जावरा में जो कि रतलाम से भी छोटा है, जहाँ 7-10 घंटे बिजली बंद रहती है, गुस्साए नागरिकों ने बिजली दफ़्तर में भारी तोड़ फोड़ कर डाली. मैं सोचता हूँ कि मैं भी इंदौर या भोपाल माइग्रेट कर जाऊँ. वहां बिजली सुबह सिर्फ 1-2 घंटे ही बंद रहती है. ख़ैर, अपने अपने किस्से हैं शहरों में माइग्रेट करने के. आपके भी होंगे? तो अगली पोस्ट इसी बात पर कर डालिए.

आशीष की अंतरिक्ष यात्रा बदस्तूर और तीव्र गति से जारी है. लगता है उन्हें ब्रह्मांड नापने में ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला. प्लूटो, शेरान, निक्स और हायड्रा के बारे में तो उन्होंने लिखा है ही, प्लेटो को उसके पद - पृथ्वी के ग्रह से निकाल बाहर किया गया इस पर भी कुछ प्रकाश वे डाल रहे हैं.

यह माना जाता है कि खरीदारी में औरतें बहुत सारा समय लगाती हैं और उनकी खरीदारी बड़ी ही कॉम्प्लैक्स किस्म की होती है. एक सर्वेक्षण में पाया गया था कि जब तक कोई स्त्री अपने लिए एक परिधान खरीदती है, उतने ही समय में एक पुरुष क्रिसमस तथा नए वर्ष के त्यौहार की संपूर्ण खरीदारी कर लेता है. परंतु बात अंडरवियर की खरीदारी की हो तो? तब तो यह काम पुरुषों के लिए भी आसान नहीं होता. और सचमुच, अंदर की बात यह है कि मुझे भी आजतक मेरा आइडियल अंडरवियर नहीं मिला. यही बात तो उन्मुक्त भी बता रहे हैं!

राइटर्स ब्लॉक के बारे में बहुत कुछ कहा-सुना-बोला-छापा जाता है और जाता रहेगा. ये राइटर्स ब्लॉक क्या है भाई? यह होता है नौ महीने का दर्द. कोई लेखक - चाहे वह एक पंक्ति का ब्लॉग लेखक क्यों न हो - वह उसी किस्म की प्रसव पीड़ा से गुजरता है तब जाकर उसका लेखन अस्तित्व में आता है. अपने इसी पीड़ा को बयाँ करते हुए अभिषेक मीडिया द्वारा परोसी जा रही अवांछित पीड़ाओं का भी जिक्र करते हैं, जो जाहिर है वो हमारी अपनी भी है.

राहु केतु से डरने की जरूरत नहीं है. हो सकता है कि किसी ग्रह के साथ मिलकर यह आपकी कुंडली में राज योग बना दे - बस बातों को गहराई में जाकर समझने की है. इन्हें समझाने की कोशिश कर रही हैं प्रेमलता.

अगर आप चिट्ठाकार हैं, और आप अपनी आवाज रेडियो पर सुनकर रोमांचित होना चाहते हैं तो फौरन अनुराग मिश्र को अपने स्काइप में शामिल कर लें और 27 जनवरी को उनके बताए समय पर ऑनलाइन रहें. किसी के पास यह सुविधा हो कि इसे एमपी3 में रेकार्ड कर सके तो हमारे जैसे ऑफ़लाइन-जीवी को बहुत फ़ायदा होगा. बाद में इसे शांति से डाउनलोड कर आराम से सुनेंगे.

आखिर में एक कहानी. फ़िल्म के बनने की कहानी. तरूण बता रहे हैं कि एक फ़िल्म को बनाने के लिए कहानी की जरूरत होती है. होती होगी. हॉलीवुड में तो होती होगी. परंतु अपने बॉलीवुड में आमतौर पर फ़िल्म बनाने के लिए किसी कहानी की आवश्यकता ही नहीं होती. बॉलीवुड घटिया प्रेम-प्रसंगों वाली कहानी युक्त फ़िल्मों से अभी उभरा ही नहीं है. अपना बॉलीवुड तो भइये 16 साल की मानसिकता का बना हुआ है, और लगता है बना ही रहेगा.

और, अंत में फ्रस्ट्रेशन कथा. बिहारी बाबू ऐश्वर्या की शादी को लेकर एतना फ्रस्टियाए एतना फ्रस्टियाए कि गूगल भी फ़्रस्टिया गया. ऊपर का चित्र उसी का है.

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3 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़ियां है:
    १. चर्चा अच्छी लगी.
    २. व्यंजल की कमी खली.
    ३. बाकी सब ठीक.

    :) :)

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  2. बढिया बाबू... मजा आया, चर्चा मस्त चल रही है, बाकी कुछ लोग रह गये चर्चा में.....इतने कम लिंक्स देख कर यही लगा बस.

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  3. रवि भाई , मै भी लाइन मे खडा हूँ, अनुराग जी का रेडियो प्रसारण सुनने के लिये , लेकिन अब घर पर इन्टर्नेट कन्केशन तो है नही इसलिये अगर mp3 का जुगाड हो जाये तो वाह जनाब !

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