रविवार, जनवरी 07, 2007

हमारे घर के हर बरतन पर आईएसआई लिखा है

आज की चिट्ठाचर्चा भाई गिरिराज जोशी द्वारा

4 जनवरी की पहली पाती रही अविनाशजी के नाम, जो यादों में खोये नज़र आये। अपने छोटे से लेख में उन्होने ऊँची इमारतों को फटी आँखों से देखा तो इमारते ही फटने लगी। अरे नहीं, नहीं भाई, कोई प्राकृतिक आपदा नहीं दरअसल हमारे नये मास्साब ई-पंडितजी कुछ जाँच कर रहे थे और परीक्षण करने के चक्कर में धडाधड़ लिख मारे। फटती इमारतों को देखकर अविनाश जी बिलकुल भी विचलित नहीं हुए। हमने उनसे पुछा के भाई आपको डर नहीं लगता तो सीना फाड़कर (कुछ ज्यादा ही चौड़ा कर लिए) बोले – हमारे घर के हर बरतन पर आईएसआई लिखा है।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है

मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है


लगता है जोगलिखी के जोग प्रभू को दोबारा लिखने पड़ेंगे, आजकल बहुत आलसी होते जा रहे हैं। महाराजा भी कल से कॉफी के मग को छू नहीं रहे और साहबजादे नये चिट्ठाकारों को हिन्दी टंकण सिखाने की आड़ में समाचार-पत्र में छपे अपने नाम को बार-बार टंकित करवा रहे हैं। नये चिट्ठाकार गुस्से में आकर इनकों शाप देना चाह रहे थे मगर किसी तकनिकी खराबी के चलते यह शाप दुर्योधन को लग गया, बेचारा दुर्योधन। हालाँकि यह साफ हो चुका है कि यह सब-कुछ तकनिकी खराबी के चलते हुआ है मगर चुनाव के माहोल में किसी पर कीचड़ ना उछाला जाये, यह हो ही नहीं सकता। प्रमेन्द्रजी ने ऐलान कर दिया कि यह सब नेताओं के धन्धे हैं। नेताओं के बारे में अपने अनुभवों को आगे बयाँ करते हुए प्रमेन्द्रजी कहते हैं –
इनकी महिमा गज़ब निराली,

खाते हैं ये सब से गाली।

आते हैं कंगाल बन कर,

जाते हैं मालामाल होकर।
रविन्द्रनाथ जी ने पांचाली के माध्यम से अच्छा व्यंग्य किया है। हिन्दी प्रेमियों के लिए एक अच्छी ख़बर लेकर आये हैं, श्री रविशंकर श्रीवास्तव, हिन्दी के प्रति लोगों की बढ़ती रूची ने प्रभासाक्षी की पाठक संख्या 3 लाख के पार पंहुचा दी है और वो भी एक दिन में।

अनुभव पर जाना कड़वाहट पूर्ण रहा, गिरिन्द्रनाथ जी ने नववर्ष के साथ मनाये गये पर्व ईद पर खुदा से सवाल किया कि क्यूँ मूक जानवर की बलि दी जा रही है? तो प्रिय रंजन झा जी कहते हैं कि नये साल में नशा तो कीजिये मगर सिर्फ दारू का, अच्छा कटाक्ष किया है उन्होने व्यंग्य के माध्यम से। इधर रत्नाजी कुम्भ मेले से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने का प्रयत्न करती नज़र आई, मगर हमें तो उनके लेख से ज्यादा तस्वीरे पसंद आई, आप भी देखियेगा। पिछले कुछ समय से पंकज भाई अजीब-अजीब सी हरकते करने लगें है, कहाँ तो पहले मास्साब बनकर शिक्षा का दीपक जलाते थे, और कहाँ आजकल बन्दरों की तरह बस खी....खी..खी..खी करने लगे हैं, ऐसा ही हाल कुछ गुरू समीरानन्द जी के शिष्य कविराज का भी है, कहते हैं मन नालायक हो गया है, अरे भाई लायक था ही कब? इधर मनिषाजी ने नये साल का कलेण्डर प्रिंट किया है और मुफ़्त में बांट भी रही है, भई हमें तो अगस्त वाला प्रिंट सबसे प्यारा लगा, अब आपको कौनसा लगा? जरूर बताईयेगा। अब यदि आप जानना चाहते है कि तपस जी मुस्कुराते क्यूँ है तो इसके लिए आपको आत्म-संवाद की शरण में जाना पड़ेगा।

क्या आपने वो गाना सुना है? दो दिल मिल रहे हैं मगर...... क्या कहा, नहीं। कोई बात नही अब सुन लिजिये छायाचित्रकारजी से। पुनरावलोकन और संकल्प क्या होते हैं? कब किये जाते है? कौन-कौन करता है? इन सभी सवालों के जवाब दे रहें है क्षितिज कुलश्रेष्ठजी। क्या कहा? आपको इसके अलावा बिग बॉस की आगे की कहानी भी जाननी है, तो यह लिजिये हाजिर है। मिथिलेशजी पाली, राजस्थान से दरभंगा के मौहल्ले में जाकर सबको बता रहें है कि उनको कैसा लगा उस वक्त जब उनके बच्चे ने उनकों पहली बार माँ कहा, भई समीरलाल जी होते तो 2-4 रसीद कर देते, यह भी कोई बात हुई पापा को पापा कहने के बजाय माँ कह रहा है। इधर फुरसत से फुरसतिया जी को पढ़ने पर पता चला कि गुरूदेव मदिरा पीकर इस कदर बहके की खाली पन्ने पर ही लिख दिया – " आप बहुत अच्छा लिखती हैं, लिखती रहें"

तरूणजी निठारी कांड पर कठोर सिंह जी द्वारा की गई टिप्पणी – " यह तो एक छोटी और रोज की घटना है, ऐसी घटना घटती रहती है, इस बार तिल का ताड़ बन गया" पर चिंतित दिखे, अरे भाई इन नेताओं से और क्या उम्मीद करोगे? क्यों टेंशन लेते हो भाई? श्रीशजी गिरिराजजी को हँसाने के लिए जोक लेकर आये हैं, थोड़ा मूड फ्रेश कर लिजिये, इन नेताओं के कथनों पर चिंतित ना होवें। और यदि मजा ना आयें तो मंतव्य पर जाकर बन्दरों की उछल-कूद देख आईये। यह सब भी मास्साब गिरिराज जी को हँसाने के लिए कर रहें है। अरे भाई यदि हँसाना ही है तो मनिषजी को हँसाओ, बेचारे इतना टेंशन में है कि सारी-सारी रात सो नहीं पा रहे हैं। बापू की गोद में आगे क्या हुआ? यदि आप यह जानने के इच्छुक हैं तो आपको सेवाग्राम आश्रम जाकर भणसाळीकाका से मिलना होगा।

इधर तरकश पर चल रही सर्वश्रेष्ठ प्रतियोगिता का समापन हुआ और इधर शैलेश भारतवासीजी सर्वश्रेष्ठ कवि और सर्वश्रेष्ठ पाठक प्रतियोगिता का आयोजन करने की उद्दघोषणा कर रहें है -
हिन्दी-ब्लॉगिंग के क्षेत्र में, प्रथम बार, अंतरजाल पर हिन्दी-प्रयोग के प्रोत्साहन हेतु, पुरस्कार-राशि, सम्मान और साहित्यिक पुस्तकों के वितरण का कार्य आरम्भ किया जा रहा है। इस कार्य के लिए धनराशि का प्रबन्ध अंशदानकर्ताओं के आर्थिक सहयोग से किया जा रहा है। वस्तुतः, हमारा 'हिन्द-युग्म' संघ हिन्दी की प्रत्येक विधा में यह प्रयोग करने को कटिबद्ध है, परन्तु धन के अभाव के कारण हम कविता से आरम्भ कर रहे हैं। जैसे-जैसे अंशदानकर्ताओं की संख्या बढ़ेगी, हम कार्य का विस्तार करते जायेंगे।


आज की टिप्पणीं:
कविराज द्वारा ई-पंडित के चिट्ठे पर -

मजा नहीं आया भाई. डाकू गब्बर सिंह मेरी कविता सुने बिना ही रामगढ़ छोड़कर चला गया

इसे ऐसे लिखना चाहिए था -

कविराज - अब मेरी सुनो, एक बार मुझे भी रामगढ़ गाँव में डाकुओं ने घेर लिया।

डाकुओं का सरदार गब्बर सिंह बोला - जो कुछ है हमारे हवाले कर दो।

कविराज -

हे गब्बर सिंह, हम कृतार्थ हुए
अब तुम भी हमरे श्रोता हुए
मैं आपका दिल बहलाऊँगा
काव्य-रस से नहलाऊँगा

ये चाकू, कटार, पिस्टल, दूनाली
क्या इनमें ही उलझे रहोगे?
शत्रु पर विजय को नवशस्त्रों का
क्या अभ्यास नहीं करोगे?

दोहा, रोला, मात्रा, क़ुण्डली
ग़ज़ल, व्यंज़ल, शेर, मुण्डली
लो ये नये हथियार उठाओ
चाहे जिसे शिकार बनाओं

इनका निशाना भी अचूक है
निर्भय होकर कर दो चढ़ाई
जिस पर भी चलाना हो तुमको
बस इनसे तुम कर दो बढ़ाई

अर्द्धचेतन-नृत्य* करवाते रहो, जब तक
ना करे मातृ-चरण-वंदन* बेचारा
फिर भी गर ना चुमे-चरण
दिखा दो कष्ट-निवारक-गलियारा*

—–
* -> इनके अर्थ यहाँ हैं

आज की तस्वीर -


आज की पहली तस्वीर रत्नाजी के ब्लाग सेयह कुंभ हैगये

आज की दूसरी तस्वीर रंजू के ब्लाग से
यह ज़िंदगी कुछ यूँ.

और आज की आखिरी तस्वीर सुनील दीपक के छायाचित्रकार से
प्रेम की बतियां

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6 टिप्‍पणियां:

  1. धृतराष्ट्र के साथ अब इतनी घनिष्टता हो गई है कि जिस दिन मध्यान्हचर्चा नहीं होती, सुनासुना लगता है.
    जोगलिखी पर लिखने का असर मध्यान्हचर्चा पर नहीं पड़ा है, जोगलिखी पर लिखने में पाँच मिनिट से ज्यादा का समय नहीं लगता. अचानक दिमाग में कोई बात आई उसे टंकित किया और बिना सम्पादन या पुर्वावलोकन के प्रकाशित कर दिया. इसके विपरीत मध्यान्हचर्चा को दो घंटे का समय देना होता है, जब हर दिन सम्भव नहीं भी होता है.
    जोगलिखी की अंतिम पोस्ट का उद्देश्य था लोगो तक जानकारी कैसे पहुंचाई जाए यह पुछना. विषय को स्पष्ट करने के लिए तथा यह बात दिमाग में कैसे आई यह बताने के लिए अखबारी खबर का जिक्र किया था.

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  2. भाई वाह कहना पड़ेगा, बड़ी मजेदार चर्चा करने लगे हैं कविराज आप!अब इस विधा में भी आप पारंगत हो गये हैं, आशा है अब अक्सर आप द्वारा की गयी चर्चा पढ़ने को मिलेगी।

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  3. यह चिट्ठाचर्चा अनूप शुक्ला जी ने लिखी है या गिरिराज जी ने ? क्या कविराज भी चिट्ठाचर्चा करने लगे हैं ?

    एक और बात इस चर्चा के प्रकाशित होने की तारीख छपी है ७ और टिप्पणियों पर है ६। पोस्ट छपने से पहले ही टिप्पणियाँ कहाँ से आ गई ?

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  4. हमारा यही कहना है कि यह चर्चा गिरिराज जोशी ने ही की है और दो दिन पहले भी प्रकाशित हुयी था। उस दिन फोटो ठीक से नहीं आये थे लिहाजा आज शायद देबाशीष जी ने इसे फिर से प्रकाशित कर दिया। जोशी जी ने इसे मात्र एक घंटे में लिखा इसके लिये वे बधाई के पात्र हैं और तुल के व्यस्त रहने के कारण शुक्रवार को नियमित चर्चा करने के लिये भी उपयुक्त पात्र हैं। देबाशीषजी से अनुरोध है कि जोशीजी को निंमंत्रण भेज दें!

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  5. @संजयजी,

    मेरे द्वारा सिर्फ मौज ली गई है, आपकी व्यस्तता से मैं भली-भाँती परिचत हूँ.

    @सागरजी,

    जी शुक्रिया.

    @ श्रीशजी,

    आपके सवालों का प्रतियूत्तर अनूप शुक्लाजी द्वारा दे दिया गया है.

    @गुरूदेव,

    आपकी आज्ञा का पालन होगा, आप आशिर्वाद बनाएँ रखें.

    @अनुप शुक्लाजी,

    आप द्वारा एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा रही है, मैं यथासंभव इसे पूर्ण करने का प्रयास करूँगा.

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