हमने
वायदा किया था कि एक लाइना पेश किये जायेंगे सो पेश कर रहे हैं। हालांकि हमें यह भी पता है तमाम साथियों ने रश्मी तौर पर लिखा होगा कि इंतजार है लेकिन हम उसे सच मान रहे हैं। अगर ऐसे मासूम भ्रम न पालें तो बड़ा मुश्किल हो जाये।
कु्श ने आश्रम कथा लिखनी शुरू की और बेहतरीन लिखी। उसके किस्से सुनाकर हम मजा कम न करेंगे। आप खुदै
बांच लो इधर।कुश उधर आश्रम में सोटेंबाजी कर रहे थे इधर किसी ने उनका जी दुखा दिया। सो उन्होंने कल चर्चा नहीं करी। बताओ ऐसा भी कहीं होता है। कोई कुछ कह देगा और आपको कुछ-कुछ होने लगेगा। अरे लोग-बाग तो कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं।
हमने देखा है कि महिलाओं के ब्लाग के पात्र सिगरेट बहुत सुलगाते हैं। क्या कारण है इसका? धूम्रपान निषेध का ख्याल रखते हुये अपने पात्रों के फ़ेफ़ड़ों की हिफ़ाजत करनी चाहिये। आज
प्रत्यक्षाजीकी पोस्ट पर, पूजाजी की
पोस्ट पर और एक और
पोस्ट पर सिगरेट का धुंआ दिखा। हम एक बात कह रहे हैं। अपने पात्रों को आप जैसे मन आये वैसे रखें लेकिन इसके लिये आप लोग हमको हड़काना नहीं भाई। हम डर जायेंगे।
अविनाश वा्चस्पति के व्यंग्य लेख और कीर्तिश भट्ट की
जुगलबंदी भला देखने को मिलती अगर नैनो बंगाल में अब तक बन गई होती।
अब ज्यादा कहें? आप बांचिये एक लाइना। बीच-बीच में फ़िलर के रूप में और कुछ। आखिरी में टिप्पणियों के जबाब।
वर्तिका नन्दा कहती हैंइतने सालों में बाढ़ का चेहरा तो वही है पर उसे देखने-दिखाने का नजरिया बदल गया है। अब बाढ़ प्रोडक्ट ज्यादा है- मानवीय भावनाओं का स्पंदन करता विषय कम। जब तक अगला प्रोडक्ट पैदा नहीं होता(यानी अगली ब्रेकिंग न्यूज नहीं आती), तब तक वह प्रोडक्ट लाइफलाइन बना रहता है लेकिन कुछ 'नया' आते ही पुराने का गैर-जरूरी हो जाना तो तय है। यह मीडियाई मनोविज्ञान ही है कि बड़े विस्फोटों के कुछ घंटों बाद ही फिर से हंसो-हंसाओ अभियान शुरू कर दिए जाते हैं और सास-बहुओं से किसी भी हाल में कोई समझौता नहीं किया जाता। सब अपने स्लाट पर दिखाई देते हैं और सब अलग-अलग रंग भरते हैं ताकि ट्रजेडी में भी बना रहे ह्यूमर और जीए टीआरपी।
- अनेक रूपों वाला आतंकवाद:है यहां बोलो कौन सा पैक कर दें?
- तलाश में भटक रही हैं, नदी सी बह रही हैं!! कोई एक चीज करिये रानी जी
- जामियानगर का आतंक और बाटला हाऊस की तीसरी मंजिल : से कैमरामैन के बिना ये हैं पुण्यप्रसून बाजपेयी
- राजू भाई, छुट्टन और घर के बेदखल बूढ़े । सब युनुस के ब्लाग पर पाये गये
- क्रांति से शान्ति का ज़माना ला रहा : लाने दो जो ला रहा है सबसे एक-एक कर निपटा जायेगा
रात भर जागी आँखों को,
ऐ काश वो तस्सली देता,
"हम सोये क्युं नही" जो
एक बार ही पूछा होता..
सीमा गुप्ता
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- अविवाहित प्रधानमंत्री के बारे में क्या विचार है?: उसको चैन से नहीं बैठने दिया जायेगा-व्याह कराया जायेगा
- बाढ़ क्या संवेदना भी बहा ले जाती है ? : बा्ढ़ के पानी को किसी व्याकरण में बांधा नहीं जा सकता।
- प्रीति कथन : में तो ठोकर खाता रहा
- प्यार या बेबसी:बूझो तो जानें।
युनुस उवाचसवाल ये है कि छुट्टन या राजू भाई को अपने बुढापे में क्यों घर से बाहर रहना पड़ता है । पारिवारिक स्थितियां अच्छी होते हुए भी ये बूढ़े इसलिए काम कर रहे हैं क्योंकि उन्हें घर से बाहर रहने का बहाना चाहिए । बूढ़े बाप मुंबई में हमारे परिवारों का इस क़दर बोझ बन चुके हैं
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- और वक्त पास खड़ा देखता रहा: थक गया बेचारा खड़े-खड़े
- किनारे छूट जाते हैं:अब भंवर में तैरने में ये तो होगा ही
- मेरे ख्वाबों का हर एक: नक्स मिटा दे जोई- हमसे मिटता ही नहीं
बूरा जब वक़्त आता है, सहारे छूट जाते हैं।
जो हमदम बनते थे हरदम, वो सारे छूट जातेहै।
बड़ा दावा करें हम तैरने का जो समंदर से,
फ़सेँ जब हम भँवर में तो, किनारे छूट जाते है।
रजिया
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- अमेरिकी में बन चुका है फाइनेंस का बुलबुला : काहे से कि करेंसी हटी दुर्घटना घटी
पद्मा राय के ब्लाग से:
अब जब सोचतीं हूं तब समझ में नहीं आता कि उस समय की अपनी हरकतों पर हसें कि रोयें. हर साल तीज आती थी कई त्यौहार भी आते थे और तब आती थी चूडिहारिन. आलता और नहन्नी लेकर नऊनियाँ भी आती थी. भौजाई, चाची सभी रंग बिरंगी चूडीयाँ पहनते और फिर नऊनियां से अपने हाथ पैर के नाखून कटवाकर आलता से अपने पैर रंगवाते. पैरों पर नऊनियां रच रच कर चिरई बनाती. हम सबको यह सब करवाते हुये चुपचाप देखते और अपनी बारी का इंतजार करते लेकिन हमारी बारी जब अंत तक नहीं आती तब हम सारा घर सिर पर उठा लेते थे और अड जाते कि हमें भी भर हाथ चूडी पहननी है और पैरों में महावर लगवाना है.अम्मा हमें कुछ कहने के बजाय हमारे भाग को कोसतीं जातीं और अपने धोती के अचरा से अपने बह्ते आँसू पोंछती जातीं. लेकिन बडे होते जाने के साथ साथ हम सब कुछ अपने आप समझ गये थे.
- आपसे दोस्ती हम यूं ही नही कर बैठे: हमें आपकी टिप्पणी चाहिये
- इसलिए आज मैंने एक सिगरेट सुलगा ली : क्योंकि हमें पता है तुम कहोगे- सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है
- गडियाने को मन करता है : लेकिन हिम्मत नहीं पड़ रही है गुरू
- एक लड़का प्रेमाकुल सा :आजकल दिल्ली में दिल्ली में रहता है
मेरा नीद से पुराना रिश्ता है,
नींद कभी फैल जाती है,
मेरे आकार लेते सपनों पर,
सपने कभी लेट जाते हैं,
मेरी नींद में,
कुछ लोग कहते हैं,
मैं नींद में समाता हुआ,
एक सपना हूं।
पंकज नारायण प्रेमाकुल
- अंतिम इच्छा : बुआ रसगुल्ला खायेंगी
- दिनकर की बात पर इतनी क्यों?: मुंहफ़टई कर रहे हो?
- हादसे के बाद ही क्यों आते हैं मोहब्बत के पैगाम: इसके पहले हादसों का इंतजाम करना पड़ता है न!
- ये नंगी फ़िल्में नहीं हैं :चल झूठे
- आज इन दो दवाईयों की दो बातें करते हैं : खिलायेंगे कल!
- नरेगा का पैसा अधिकारियों का विकास: इसमें कौन बात है खास?
डा.प्रवीन चोपड़ा के दवाखाने से
कईं बार गैस्ट्राइटिस के सिंप्टम इतने ज़्यादा होते हैं कि पेट का एसिड बार बार मुंह तक आता है, बहुत ही अजीब सी खट्टी डकारें रूकने का नाम ही नहीं लेती और छाती की जलन परेशान कर देती है ....ऐसे में एक एमरजैंसी तरीके के तौर पर इस OMEZ- Insta को ट्राई किया जा सकता है।
- हे ईश्वर : आकांक्षा पारे अपनी दोस्त हैं?
- आईएसओ चोर, आईएसओ दर्शक : बस एक अदद आईएसओ लेखक चाहिये
उदासी भी बंटी
पर
छंटी नहीं
छाती चली गयी
हमारे बीच के अंतराल में
अरुणा राय
- नडिया नईंया : सच्ची गुईंया
- ब्लागर कैसे कैसे!! : पीठ खुजाते हैं!!
- हम दोनों अपनी अपनी माँ से इतने नाराज़ थे कि आत्महत्या कर सकते थे : और हम एक ब्लागर खो देते
- पीले अंधेरे में वो बैठा चुप सिगरेट पीता है।
- प्यार बांटते चलो वर्ना धरे-धरे सब सड़ जायेगा
ईश्वर!
इतने बरसों से
तुम्हारी भक्ति, सेवा और श्रद्धा में लीन हूं
और
तुम हो कि कभी आते नहीं दर्शन देने!!!
आकांक्षा पारे
- समीर लाल की कहानी--आखिर बेटा हूं तेरा: टिप्पणी तो करनी ही पड़ेगी
- समाज को रास्ता दिखाने की ठानी बुजुर्गों ने : और जलवे दिखा दिये।
- क्या समाज कभी बदलेगा? : इस बारे में हम कुछ न कहेंगे
.
और अंत में
पिछली चर्चाओं में कुछ साथियों की टिप्पणियों के जबाब इधर पेश हैं:
आज की चर्चा में टिप्पणियों के जबाब१. सर्वेश्वर जी पर आलेख के उद्धरण का धन्यवाद | बस एक बात थी , दरअसल संशोधन था , कि कल उनका जन्मदिन नहीं पुन्युतिथि थी | उद्धरण हेतु पुनः आभार |
साहित्य शिल्पीजी/दिव्यांशु शर्मा:
आपकी तारीफ़ का शुक्रिया। गलतियां ठीक कर ली।
२. एक लाइना का इन्तजार जारी है ..:
रंजू भाटिया
: पेश है एक लाइना। आपने अपने पहले क्रश को लेफ़्टिनेंट बना दिया।
३.बहुत आभार शुक्ल जी ! आपका यह मुश्किल और सराहनीय प्रयास हमारे जैसे नए चिट्ठाकारों को एक ही मंच पर सभी जानकारी न केवल मुहैया करा रहा अपितु आरम्भ से ही आप जैसे लोगों से जुड़ने, सीखने और अर्जित करने के लिए सतत् प्रेरणा भी दे रहा है. पुनः धन्यवाद् !
समीर यादव:
आप बस लिखते रहे हैं। प्रोत्साहन की यहां कौनो कमी नहीं है।४.सच कहु तो चर्चा करने का मन ही नही हो रहा.. किस पोस्ट की चर्चा करू? उसकी जिसमे शहीद शर्मा को श्रद्धांजलि दी जा रही हो या उसकी जिसमे उन पर सवालिया निशान उठ रहे हो.. सच कहु तो चर्चा करने के लिए बैठा भी था कल.. पोस्ट पर नज़र डाली तो गिनती की चन्द पोस्ट मिली जिनके बारे में कुछ लिख सके..
फिर ऐसा करता तो और इल्ज़ाम अलग लग जाता की कुश गुटबाजी करता है.. या फिर कोई टिप्पणी कर जाता की गुरु जल्दी में निबटा दिया इस बार...
कुश
कुश, इल्जाम/विल्जाम से डरे तो लोग दिग्जाम शूटिंग पहना के विदाई समारोह कर देंगे। लोगों का मुंह होता ही कहने के लिये है। आपको अपना मन साफ़ रखना चाहिये बस्स। इत्ता नाजुक मन रखोगे तो रोज लोग इस पर क्रिकेट पिच की तरह रोलर चलायेंगे। तुम्हारे सारे चाहने वाले यही समझा रहे हैं! समझ गये कि बुलवायें सोंटा गुरू को?५.पिछले दो बार से तो पोस्ट डालने से पहले न चिटठा जगत खोलता हूँ न ब्लोगवाणी ...मन अजीब सा हो जाता है....अगर खोलू तो कुछ अजीब सी बातें पढने को मिलती है .फ़िर मन नही करता..कोसी का पानी अभी सूखा नही है की दूसरे धमाके अब तक दीवारों को हिला रहे है....कभी कभी मन में उब सी होने लगती है....कुश का नही सबका यही हाल है....सच तो ये है की अब हम सच बोलने से भी डरते है.
डा.अनुराग:
डा.अनुराग,अब क्या कहें? इत्ता डरके भी क्या कर लोगे?६.मशहूर साहित्यकार डी.एन.झा या मशहूर इतिहासकार डी.एन.झा?
@आदरणीय डॉक्टर अमर कुमार साहब, लेकिन मैंने सहज हास्य भाव से टिप्पणी की थी, आप इसे कहां ले जा रहे हैं :)
अशोक पाण्डेय
: चूक की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिये शुक्रिया। बाकी आप डा.अमर कुमार जी की चिन्ता न करिये। ऊ बात को कहीं ले न जा पायेंगे। हम ले न जाने देंगे। मस्त रहें। परसों की चर्चा से१.कृपया रोज़ाना दो चार लोगों की टाँग खिंचाई एसे ही जारी रहे . बहुत मजा आता है. शुक्रिया- विवेक सिंह
बाकी का नहीं कह सकते लेकिन तुम्हारा ख्याल रखेंगे विवेक भाई।२.आकिरी तीन एक-लाईने पसंद आये, लेकिन वहां कुछ जोड दें तो तीन और चिट्ठाकारों का कल्याण हो जायगा !! शास्त्रीजी
शास्त्रीजी कल्याण का काम आपके जिम्मे हैं। हम तो बस ऐसे ही मौज लेते हैं।३.
"वैसे वे बड़े घाघ किस्म के आदमी थे – जल्दी कुछ उगलते नहीं थे"
ईश्वर को हाजिर-नाजिर रख कर कहता हूं कि ये शब्द मेरी पत्नी जी के ही हैं; और उन्होंने खास तौर से कहा कि मैं इन्हें तोड़ने-मरोड़ने का यत्न न करूं!
कहें तो उनसे बात करा दूं? :-) ज्ञानदत्त पाण्डेय
ज्ञानजी आखिर इमेज भी कोई चीज होती है। हम उनसे बात करके इत्ते मेहनत से बनाई आपकी इमेज अपने मन में नहीं तोड़ना चाहता।४. धन्यवाद्,
मुझे चिटठा चर्च में सबसे उपर दिखने के लिए...
जब मैंने हिन्दी ब्लॉग्गिंग करे की सोची थी तब मेरा सबसे पहला लक्ष्य यहाँ पर स्थान पाना था और आज शायद वो पुरा हो गया.
मै एक बार फिर से पुरे चिटठा चर्चा टीम को अपने तरफ़ से धन्यवाद कहूँगा.
अंकित
इत्ते से संतुष्ट हो लिये अंकित!!५.
अनूप जी सबसे पहले तो शुक्रिया। शायद आपने पहले ध्यान नहीं दिया कि मैंने अपनी फोटो पहले ही हटा दी थी। बहरहाल सिक्योरिटी कोड भी हटा रही हूं क्योंकि आप को तकलीफ ना हो, अगली बार टाइप ना करना पड़े। प्रीति बड़्थ्वाल
प्रीतिजी, आपने फोटो पता नहीं क्यों हटाई लेकिन वह अच्छी लगती थी। उसके हटने से आपके ब्लाग का सौंन्दर्य अनुपात गड़बड़ा गया है।
६. ऎ भाई, एक दिन गेस्ट एपीयरेन्स में ज्ञान जी को बुलाइये ना! डा.अमर कुमार, ताऊजी
ज्ञानजी सुन रहें हों तो जबाब दें, हुंकारी भरें एक दिन के हफ़्ते में।७.पाण्डे जी की डिमांड की जा रही है. हमारा वाला दिन दे दो. समीरलाल
हमें इस डिमांड में आपका भी हाथ दिख रहा है। आपका दिन हम उनको दे दें ताकि आप टिपियाने में व्यस्त रहो। ई न होगा। कुछ जिम्मेदारी से रहा करो भाई!
बाकी सबकी तारीफ़ का थोड़ा शरमाते हुये शुक्रिया।
अब कल मिलेंगे आपको मसिजीवी परिवार की चर्चा के जलवे इसके बाद तरुण के निठल्ले रंग।
आज नये ब्लागर का जिक्र छूट गया लेकिन वह शामिल किया जायेगा आगे कभी।
फ़िलहाल इत्ता ही। बाकी फ़िर।
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