चलिये आज की चर्चा शुरू करते हैं, जो दिल से बात करे वो शायर और जो दिमाग से काम ले वो कायर। इससे पहले कि आप मेरे पीछे ताऊ का लट्ठ उधार ले पीछे पड़ जायें तो बता दूँ जिस गजल को मैं अभी सुन रहा हूँ उसके बोल सुनकर आप भी शायद यही कहेंगे, मुलाहयजा फरमायें - "छा रहा है सारी बस्ती में अंधेरा, रोशनी को घर जलाना चाहता हूँ"। बात गजल की चल ही निकली है तो शुरूआत जुम्मे की चंद गीतों से करते हैं। इन गीतों में सुनियेः
1. जगजीत सिंह की गायकी, "मै रोया परदेस मे भीगा माँ का प्यार"
2. आशा भोंसले की आवाज़ में मियाँ की मल्हार में तराना
3. इकबाल बानो का गाया, बिछुआ बाजे रे!
4. गोपाल बाबू गोस्वामी का गाया, घुघूती ना बासा (गीत के बोल यहाँ देख सकते हैं)
5. तलत मोहम्मद और मोहम्मद रफी का गाया गीत सुनिये, चल उड़ जा रे पंछी ये देश हुआ बेगाना
6. पंछी बावरा... नय्यरा आपा की आवाज में एक मधुर गीत
7. पंकज मलिक का गाया, ये रातें ये मौसम ये हँसना हँसाना
ये रातें ये मौसम ये हँसना हँसानाआप में से शायद बहुत लोग जानते हों और शायद कुछ नही, बड़ी दिलेरी से खुदा सीरिज चलाने वाले चिट्ठेकार हैं शुऐब। आज उनका जन्मदिन है, आगे कुछ कहने से पहले उन्हें जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई। अगर आपने अभी तक उनकी लिखी खुदा सीरिज नही पढ़ी तो एक बार जरूर बाँचिये बिल्कुल निराश नही होंगे। काफी दिनों तक गायब रहने के बाद ये फिर से लिखना शुरू करने वाले हैं ऐसी खबरें जोरों पर है।
मुझे भूल जाना इन्हें ना भुलाना
ये बहकी निगाहें ये बहकी अदायें
ये आँखों के काजल में डूबी घटायें
फ़िज़ां के लबों पर ये चुप का फ़साना
मुझे भूल जाना इन्हें ना भुलाना
अभिषेक का किस्सा तो आपको पता ही होगा, ये उस किस्से का ही कमाल है कि आज वो कह रहे हैं -
अच्छा बुरा तो कुछ नहीं होता... जो किसी के लिए अच्छा वही किसी के लिए बहुत बुरा... या फिर जो कभी अच्छा होता है वही कभी बुरा हो जाता है।अब हम इतना ही कहेंगे कि अभिषेक हमारी भी थैंक्स टिका लो इन सुन्दर से शब्दों के लिये।
बात अच्छे बुरे की चल निकली है तो सोच रहे हैं चलते चलते कुछ जानवरों की बात भी बताते चलें कही ऐसा ना हो वो बुरा मान जायें - मछली की आँख देखिये पहले ही बता दें ये वो नही जिसे अर्जुन ने भेदा था। देख चुके तो अब मंगोलियन घोड़ों पर भी एक नजर दौड़ा लें। ये वो ही घोड़े हैं जिन्हें देखकर आस्तीन के साँपों को भी सूंघ गए साँप।
एक बात बतायें क्या आपने भी खिंचवाई है कभी अपनी नंगी तस्वीर? शर्मायें नही और इस दिलेर जवाँ बालक की तरह हम सबको दिखायें।
"कनक कनक ते सौ गुने" ऐसा कुछ पढ़ा था स्कूल में। आज जब पारूल को गमकते खनकते चमकते हुए पढ़ा तो फिर से कनक याद आ गया -
गमक गमकाये महुआ की डारी"इन्तहाँ हो गयी इन्तजार की" कुछ इसी भावना के साथ प्रीती भी किसी का इंतजार कर रही हैं, गोया कह रही हों तुम आओ ना आओ मुझे इंतजार रहेगा फिर भी -
घनन घन बाजे बदरिया कारी
चमक चमकाये रैन अंधियारी
खुली आंखों में न सही,वहाँ इंतजार था तो यहाँ इजहार है लेकिन बिल्कुल जुदा अंदाज में, कंचन कहती हैं ना ले के जाओ, मेरे दोस्त का जनाजा है -
बन्द पलकों के तले,
वो एक आंसू की बूंद-सा,
ठहर जाएगा
ना ले के जाओ, मेरे दोस्त का जनाजा है,अगली बात कहने से पहले साफ कर दूँ ये हम अपने लिये नही कह रहे बल्कि अपने रविजी कह रहे हैं। नहीं, नहीं, मेरे मोटापे का राज कुछ और ही है; भागवान्!
अभी तो गर्म है मिट्ती ये जिस्म ताज़ा है,
उलझ गई है कहीं साँस खोल दो इसकी,
............
जगाओ इसको गले लग के अलविदा तो कहूँ,
ये कैसी रुखसती, ये क्या सलीका है,
अभी तो जीने का हर एक ज़ख्म ताजा है
ना ले के जाओ, मेरे दोस्त का जनाजा है
नीलिमा किसी ब्यूटी पार्लर में सहमी बेटी की बात बताती हैं, ऐसा भी होता है ये हमारी सोच से परे है।
पंकज बड़ी ही खुबसूरत शब्दों का टाईटिल देकर कहते हैं इतना कायर हूं कि उत्तर प्रदेश हूं, लेकिन उत्तर प्रदेश क्या महज एक व्यक्ति का नाम है अगर हाँ तो मायावती के फोर्बस की मैगजीन में जगह बनाने पर शायद यही कहा जायेगा, इतनी सशक्त हूँ तभी तो उत्तर प्रदेश हूँ। बरहाल जातिवाद से दो कदम आगे जाकर भाषावाद की राजनीति करते राज ठाकरे और बच्चन परिवार के विवाद पर वो बताते हैं -
लेकिन असल जिंदगी में राज ठाकरे की एक धमकी ने महानायक का कचूमर निकाल दिया। तुरंत माफी मांग ली। .. शुक्रिया राज ठाकरे, हिंदी वालों और उनके फिल्मी महानायक की औकात बताने के लिए।ये राजनीति का फंडा है अपने समझ से परे की बात है और ऐसी ही समझ से परे धंधे का फंडा समझा रहे हैं अनिल रघुराज। उनका कहना है, यह अछूतोद्धार तो धंधे का फंडा है, नीच!
बालेन्दु थोड़ा सीरियस टाईप के ब्लोगर हैं, अपने राजनीति के ब्लोग मतांतर में वो चीन के साथ अपने देश की बात करते हुए लिखते हैं, चीन के सामने कब तक और क्यों झुकते रहें हम? -
बदलते हुए विश्व में ताकत की परिभाषा सैनिक कम, आर्थिक ज्यादा है। इसलिए भी कि अमेरिकी प्रभुत्व के सामने संतुलनकारी शक्ति के रूप में जिस तिकड़ी के उभार की बात की जाती रही है, उसमें रूस और चीन के साथ-साथ भारत भी है। इसलिए भी कि भारत-चीन व्यापार में तेजी से इजाफा हुआ है और उनके कारोबारी संबंध सुधर रहे हैं। और इसलिए भी, कि विश्व व्यापार वार्ताओं में दोनों देश साथ-साथ विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन एनएसजी में अपने आचरण से चीन ने उन सभी लोगों को असलियत से रूबरू करा दिया है जो उसके प्रति संशयवादी दृष्टिकोण छोड़ने की अपील करते रहे हैं। राष्ट्रपति हू जिंताओ द्वारा प्रधानमंत्री डॉण् मनमोहन सिंह को दिए गए आश्वासनों के बावजूद चीन ने वियना में अंतिम क्षणों तक भारत संबंधी प्रस्ताव को रोकने की कोशिश की।आने वाले समय में चीन का विजय होता तो दिख ही रहा है लेकिन ज्ञानजी पिछले दौर के गढ़े मुर्दे को उखाड़ कर के अचानक सवाल पूछते हैं, दुर्योधन इस युग में आया तो विजयी होगा क्या? -
शायद आज कृष्ण आयें तो एक नये प्रकार का कूटनीति रोल-माडल प्रस्तुत करें। शायद पाण्डव धर्म के नारे के साथ बार बार टंकी पर न चढ़ें, और नये प्रकार से अपने पत्ते खेलें।ज्ञानजी का सवाल सुनते ही ताऊ लाठी बजाता हुआ बोला, ऊंटनी कै दूध आले ३ ही थन होवैं सैं! अब खुद ही अंदाजा लगा लें विजयी होगा कि नही।
एक दूजे के लिये
1. एक प्रश्न बताओ तो कहाँ है गाँधी का मूल शौचालय?
2. क्या कहूं अनजान हूं पर तुमने मुझे चाहा ये आपकी नवाज़िश है
3. रूढ़ियों का टूटना जरूरी है क्योंकि यही है साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज
4. मैं और तुम और वो उदास याद
5. पहले बाढ़ से उजड़ी तस्वीर को रंगों से संवारने की कोशिश करनी चाहिये उसके बाद हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए
6. घर से भागी हुईं लड़कियां आप ही बूझें अच्छा या बुरा?
7. चलो एक दिन कुछ पॉजिटिव सोच लें सोच लिया तुम भी सुनो अंग्रेजी के मारे बाप बेचारे
8. कृपया सुनें अपील यह लेख मोहल्ला से ज्यों-का-त्यों उठाया गया है
9. अब क्या करेंगे मनमोहन सिंह कुछ नही बस एक ग़ज़ल मेरे शहर के नाम
10. मंत्री जी का कमाल सरेआम सास पर लिखी दो कवितायें-व्यंग्य कविता
11. पढ़िये चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा उसके बाद बतायें "विश्व का सबसे प्यारा शाकाहारी बच्चा कौन"
किसी की कोई अच्छी पोस्ट रह गयी हो तो वो हमें टिप्पणी के द्वारा जरूर लताड़ सकता है लेकिन ध्यान रहे अगर वो अपेक्षा में खरी नही उतरी तो अगली बारी हमारी होगी ;)। हमें दीजिये अब ईजाजत क्योंकि असली और भी काम है जमाने में चिट्ठाचर्चा के सिवा।
[आज का कार्टून कीर्तिश के सौजन्य से, आज चर्चा थोड़ा लंबा हो गयी है इसलिये झरोखा बंद कर के रखा है।]
अंत में पलट कर सिर्फ ये कहने आये हैं कि बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार के दिन गैरहाजिर रहने के कारण हम जाते जाते कानपुर की तरफ ये उछाल के फेंके जा रहे हैं -
कलयुग में ब्लॉगर हुए, था शुक्ला जी नाम।
करते वितरण ज्ञान का, मुक्तहस्त बिन दाम।
मुक्तहस्त बिन दाम, सूत्र हमको बतलाया।
हटा शब्द की जाँच टिप्पणी द्वार खुलाया।
विवेक सिंह यों कहें अब कहीं नज़र न आएं।
अनूप शुक्ल इति नाम दिखें तो हमें बताएं॥
हमारा यही कहना है कि बहुत खूबसूरती से अपना काम अंजाम किये हैं तरुण। तुम्हारा एक-दूजे के लिये खासकर जमता है। लिंक जोड़ना-जमाना और पेश करना काबिले तारीफ़ है। शोएब का लेखन अद्भुत है। वे फ़िर से आ रहे हैं मैदान में यह अच्छी बात है। उनको जन्मदिन मुबारक। आखिर में कवित्त भी ठेल दिये शुकुलजी सोच रहे हैं- ये निठल्ला किसके प्यार में कवि हो गया?
जवाब देंहटाएंतरुण जी राम राम ! आज की पोस्ट चिठ्ठा चर्चा की बेहतरीन पोस्टों में से एक है !
जवाब देंहटाएंताऊ नै लागै सै की ताऊ ग़लत नही होगा ! आज मुझे यकीन हो गया की ये वाकई
भविष्य का सुपर हिट कार्यक्रम होगा ! एकता कपूर के सास बहू का रिकार्ड अगर
कभी टूटा तो मुझे यहीं पर उम्मीद दिखाई देती है ! मजमा अच्छा जमता जा रहा है !
आप लोगो की लगन और मेहनत के लिए धन्यवाद और शुभकामनाएं !
अनूप शुक्ल>...आखिर में कवित्त भी ठेल दिये शुकुलजी सोच रहे हैं- ये निठल्ला किसके प्यार में कवि हो गया?
जवाब देंहटाएंक्या स्नेह करने को सुकुल ही मिले आप को?
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वैसे विवेक सिंह जी बहुत तनतना कर गये हैं हमारे टिपेरतन्त्र पर! उनका रियेक्शन समझ आता है।
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जवाब देंहटाएंकल की चिट्ठाचर्चा पढ़ने से छूट गयी,
इसमें कोई क्या करेगा, पर बता रहा हूँ वइसे ही..
कि इसमें राजनीति, गुटनीति, धुरनीति वगैरह न ढूँढी जाये ..
क्योंकि यहाँ ऎसा कोई तिनका भी नहीं है..
अब आज..
सब तो ठीक ठाक है, अनूप जी पहले ही ऎलान कर दिहें हैं,
झरोखा बंद है... वह भी मंज़ूर..
पर, बहैसियत पब्लिक प्रवक्ता यह पूछ लेना ग़ैरवाज़िब नहीं, कि..
झरोक्खे के पिच्छै क्या है.. झरोक्खे कै पिच्छै..
आखिर कुछ तो होबे करेगा.. आपके झरोखे में ?
चलो आपने थोडी चर्चा मेरी छटंकी की कर दी . धन्यवाद ! किन्तु कुछ महाराजाओं को शायद ये पसंद न हो .
जवाब देंहटाएंसमग्र एवं जीवंत चर्चा
जवाब देंहटाएंtaabadtod charcha rahi ji is baar.. ek duje ke liye ne to wakai rang jama diya.. shaniwar ki subah aur bhi badhiya hoti ja rahi hai..
जवाब देंहटाएंतरुण जी, बहुत बहुत शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएंये निठल्ला किसके प्यार में कवि हो गया
जवाब देंहटाएं@अनुप जी, ये कोई बताने वाली बात जो थोड़ी है, आप इसे सुनिये और मस्त हो जायें -
दिल का मामला है दिलबर खलबली है दिल के अंदर, वो मस्त मस्त मस्तकलंदर
@शुऐब, एक बधाई का तार अनुप जी तक भी पहुँचा दिया जाय जिन्होंने हमें याद दिलाया।
क्या स्नेह करने को सुकुल ही मिले आप को?
@ज्ञानजी, अब आप से क्या छुपाना शुकुलजी के कंधे पर तो सिर्फ बंदूक रखी है, निशाना कहीं और साधा है ;)
@ताऊ, अमरजी, विवेक, मसीजिवी और कुश, आपको अच्छी लगी पढ़ने और टिपयाने के लिये एक शुक्रिया का बैज आपके लिये भी धन्यवाद।
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जवाब देंहटाएंटिपेरा आज फिर अपना चारणत्व निभाने आया है..
पर निभायेगा नहीं, काहे कि ... ...
" आज का कार्टून कीर्तिश के सौजन्य से, आज चर्चा थोड़ा लंबा हो गयी है इसलिये झरोखा बंद कर के रखा है। "
पढ़ने के बाद लंबा हो गया है.. लंबी हो गयी है.. टाइप लिंगबोध देख कर
पंडित सुंदरलाल द्वारा कूटी भयी मेरी यह हड्डियाँ बहुत पिराने लगती हैं, भाय ...
हम काहे लिये कराहें.. लिंगभेद व लिंगनिर्धारण महकमा आजकल घोस्ट-बस्टर की बपौती है..
मेरी रचना को चिट्ठा चर्चा में स्थान दिया इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंशुऐब जी को हमारी और से जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई।