बिहार में बाढ़ की स्थिति लगातार खराब बनी है। रेयाज़ अपनी रिपोर्ट में बताते हैं:
इस पर सुशांत झा अपना गुस्सानामा भेजते हैं।70 साल के बूढे जोगेंदर ने सामान तो मचान पर चढा दिया है, लेकिन गेहूं-मकई नहीं चढा़ पाये। अकेले हैं। दोनों बेटे बहुओं-बच्चों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने गये हैं। खैनी ठोंकते हुए वे हंसते हैं, उदास हंसी, “यही तेजी रही तो कल तक सड़क पार कर जाएगा पानी।” 65-70 साल की जिदंगी में पहली बार देखा है अपने घर में पानी भरते हुए। घर गया। अनाज गया। उनके खेत उन्हें खाने लायक अनाज दे देते हैं - गेहूं, धान, मकई। इस बार सब खत्म। खेत में खड़ी धान की फसल को बाढ लील गयी, घर में रखा अनाज पानी में डूब गया। 12 साल का एक लड़का धीरे से आकर बैठ जाता है - मिथुन कुमार दास। कहता है “लिख लीजिए, मैं अकेले हूं यहां। मम्मी-पापा सहित सारे घरवाले गांव में हैं।” हफ्ते भर से वीरपुर में फंसे लोग अब निकलने लगे हैं लेकिन उनमें से भी वही लोग निकल पा रहे हैं, जो नाव के लिए दो से छह हजार रुपये खर्च कर पाने में सक्षम हैं।
शास्त्रीजी आजकल यौन-चर्चा कर रहे हैं। नर-नारी सबंधों पर ज्ञान बांट रहे हैं। हमने कल चर्चा करते हुये लिखा-नर-नारी समानता: शास्त्री जी के सौजन्य से! शास्त्रीजी बोले- गलत !! यह तो परमात्मा के सौजन्य से हुआ है!!! हमने इसका मतलब निकाला कि शास्त्रीजी यह बता रहे हैं कि नर-नारी समानता परमात्मा के सौजन्य से है। लेकिन आज जब सुजाता की पोस्ट पढी़ तो इसका अर्थ पता चला कि शायद शा्स्त्रीजी कहना चाह रहे थे- नर-नारी समानता (की बात) गलत (है)!! यह तो (असमानता) परमात्मा के सौजन्य से हुआ।
सुजाता की पोस्ट में शास्त्रीजी की जिन पोस्टों का जिक्र है उनको पढ़कर ताज्जुब होता है कि वे ऐसी शानदार धारणा रखते हैं-
पुरुषों से अधिक स्त्रियां बलात्कार करती हैं, लेकिन वे मानसिक सतह पर करती हैं इस कारण बच जाती हैं. समाज में जहां भी देखें आज अधनंगी स्त्रियां दिखती हैं. पुरुष की वासना को भडका कर स्त्रियां जिस तरह से उनका मानसिक शोषण करती हैं वह पुरुषों का सामूहिक बलात्कार ही है. किसी जवान पुरुष से पूछ कर देखें. पुरुष को सजा हो जाती है, लेकिन किसी स्त्री को कभी इस मामले में सजा होते आपने देखा है क्या.हमें तो तरस आ रहा है शास्त्रीजी की हालत सोचकर। बेचारे पुरुष हैं। अब तक न जाने कितनी बार बलात्कार हो चुका होगा लेकिन बेचारे पुरुष होने के नाते कुछ कह नहीं पाये क्योंकि पता है किसी स्त्री को सजा तो मिलने से रही। लेकिन कविता जी इस बात से तिलमिला उठीं
-कितने ही भोथरे तर्क गढ़कर आप पाप को पाप कहने की जद्दोजहद करते रहें पर पाप पाप ही रहेगा।पता नहीं शास्त्रीजी से कौन-कौन से पाठक ऐसे मासूम सवाल पूछते हैं। वे ब्लागर हैं या नानब्लागर! लेकिन शास्त्रीजी धन्य हैं जो ऐसे-ऐसे जबाब दे लेते हैं।
सुजाता की सजग पोस्ट काबिले तारीफ़ है। लेकिन अभी हम न करेंगे तारीफ़!! हम अभी चिट्ठाचर्चा कर रहे हैं। बिजी हैं जी। लेकिन अगर हम शास्त्री जी के लिये कहना चाहें- हे ईश्वर! इन्हें क्षमा करना, ये ज्ञानी पुरुष हैं इन्हें पता नहीं ये क्या कह रह हैं तो क्या गलत होगा? आप बता दो तब ही हम उनके लिये ऐसा कहेंगे! अपने मन से नहीं कहेंगे हम जब तक सबकी राय न होगी। वैसे परमजीत बाली कहते हैं- मन नंगा तो हर नारी से पंगा
रा्धिका टीवी धारावाहिकों में नारी पात्रों के प्रस्तुतिकरण के अन्दाज पर अपना नजरिया बताती हैं:
कुछ घरो में सास -बहू के अत्याचारों वाली घटनाये हो रही हैं ,पर यह समाज का एकतरफा दर्शन हैं ,कई घरो में उनमे भी स्नेहिल सम्बन्ध हैं । कितनी ही लड़कियाँ आज भी भारतीय समाज का आदर्श कहलाने के काबिल हैं ।पर इन धारावाहिकों में जो दिखाया जा रहा हैं ,वह बहुत ही ग़लत ,विकृत मानसिकता का परिचायक हैं ,इन धारावाहिकों का भरपूर विरोध करने के बजाय कई नारिया बडे प्रेम से इन्हे देख रही हैं .यह जानते हुए भी की इन धारावाहिकों के माध्यम से स्त्री पुरुषों के ह्रदय में बसते विश्वास ,प्रेम ,आदर,दया जैसे भावो को धीमे- धीमे मारा जा रहा हैं ।देश भर में गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाया जा रहा है। तमाम साथियों इस पर पोस्ट भी लिखी है। इस मौके पर पारूल की आवाज में सुनिये -गाइये गणपति जगवंदन!
आज के नये चिट्ठे
चिट्ठाजगत की सूचना के अनुसा्र सात नये चिट्ठे जुड़े।- परीक्षित ने ब्लाग लिखनाजून में शुरू किया। कुल जमा पूंजी छह पोस्ट। सितम्बर की शुरुआत में बात शाम की करते हैं।
- दरभंगा, बिहार के अवधेश झा ने अगस्त में ब्लाग लिखना शुरू किया। अब तक कुल पांच पोस्ट लिख चुके हैं। सितम्बर में सितम को बुलाने का आवाहन कर रहे हैं- आ भी जाओ सजन सावन में
- समीर यादव जबलपुर में उप पुलिस अधीक्षक हैं। अपने कर्त्तव्य के माध्यम से सेवा में रुचि है। वर्तमान में वर्तमान में उल्लेखनीय किताबों के वाचन प्रक्रिया से ही विलग हैं। अपना ब्लाग सखी शुरु कर रहे हैं।
- अंकिता मेडिकल की छात्रा हैं। तमाम किताबें पसंदीदा लिस्ट में शामिल हैं। ब्लाग है- जिंदगी मेरे घर आना अगस्त से शुरू करके अब तक कुल ११ पोस्ट लिख चुकी हैं।
- मीडिया से जुड़े अंशुप्रज्ञ मिश्र ने अपने ब्लाग की शुरुआत ठेठ कनपुरिया अंदाज में की-मेरी बातों को हलके में लेने की गुस्ताखी मत कीजियेगा हुजुर हमने आसमानों को सीने में दफ़न कर रखा है।
- दि्ल्ली के बिपिन तिवारी धनात्मक सोच वाले, आत्मविश्वासी , जागरूक इंसान हैं। गीता और विंग्स आफ़ फ़ायर पसंदीदा किताबें हैं। बिहार की बाढ़ से लोगों को बचाने का आवाहन करते हैं।
- बिलासपुर छत्तीसगढ़ के उमेश कुमार एक सान्ध्य दैनिक और एक समाचार एजेंसी के लिये कलम चला रहे हैं तथा जीविका के लिये खेतो मे हल चलाने से परहेज नही है। ब्लाग अल्पमत है। उपरोक्त सभी ब्लागों की हौसला आफ़जाई करने के लिये शोभाजी की टिप्पणी मौजूद थी। सभी ब्लागर साथियों का स्वागत है, अभिनंदन है।
एक लाइना
- संतौ नदिया ज्ञान की, बहे तुम्हारे द्वार : एक नदी के नखरे झेले नहीं झिल रहे हैं आप एक और बहा दिये।
- तेरे हाथ में जब मेरा हाथ हो: तो उसमें मोबाइल,पर्स,अंगूंठी जैसी कोई चीज नहीं होनी चाहिये अलगाव। केवल हाथ चाहिये।
- मुहब्बत जो कराए, सो कम है : देर रात टेलीफोन का तार जुड़वाये, क्या गम है!
- आओ बहनो , पहनो बुर्खा : अरे कहने दो उनको, जियो सर उठा के।
- इश्क एक जहर का प्याला है : एकाध घूंट पीने में कोई हर्जा नहीं। मुफ़्त है।
- कश्मीर पर क्या यह हिन्दुत्व का डंका है! बुद्धिजीवियों की बातें सरलता से समझना आसान नहीं होता!
- कृपया कोई जानकार मेरी मदद करिए ! जानकार यहां कौन है जी सब तो ब्लागर हैं।
- हिन्दी ब्लाग और पुरुष मानसिकता ने चिट्ठी पत्री करा डाली
- तराबी की प्रार्थना और मेरी अनभिज्ञता : के गठबंधन से इस पोस्ट की सरकार बनी।
- अमीरों की मर्मांतक पीड़ा! : भगत लोगों से कविता लिखवा रही है।
- ये कैसी औरतें? : पता नहीं भाई!शास्त्रीजी तो बताते हैं ये पु्रुषों के साथ सामूहिक मानसिक बलात्कार करती हैं।
- बाढ़ भ्रष्टाचार और नेता की उच्चस्तरीय बैठक बिहार में जारी
- अंधे को बनाया चौकीदार: अरे कुछ बनाया तो है यार!
- अनिश्चित काल के लिये निठल्ला चिंतन बंद : अभी न जाओ छोड़कर कि टीप अभी करी नहीं
- जी लो जिंदगी फ़िर एक बार : हां कोई पैसा तो पड़ना है इसमें। फ़्री गि्फ़्ट आफ़र है।
- उडान : हौसले के साथ है जी अकेले नहीं
- वनिशा, ईशा और पिया.. भारत की असली तस्वीर कहाँ है.
- सुनिये मोहन वीणा : सुन रहे हैं!
- क्यों हम भूलते जा रहे हैं कि हम सब एक हैं: वर्चुअल मेमोरी कम हो गयी है जी। माइक्रोसाफ़्ट बढ़ा ही नहीं रहा।
- जी हम भी कविता करते हैं : काहे को अपना और हमारा टाइम वेस्ट करते हैं जी!
- एक चिट्ठी से सरकारी गलियारे में हलचल : चिट्ठी इधर-उधर करो जी!
- एक शायर का बड़बोला पन- गालिब और मीर मुझसे जलते: और हमसे मांग के बर्नाल लगाते
- खुली छोड़ देते हैं : तब भी ये तबेले से बंधीं रहती हैं।
मेरी पसन्द
इसे देखो
अक्षरों के बीच
घिरे हुए आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना
कि यह लोहे की आवाज है
या मिट्टी में गिरे खून का रंग
लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।
धू्मिल
http://sarathi.info/archives/1124
जवाब देंहटाएंhttp://sarathi.info/archives/1126
http://sarathi.info/archives/1131
http://sarathi.info/archives/1132
in links ko bhii daekha jaaye
kyuki mae is vishy par niranter asmati prakat kartee rahee hun issii blog par so puneh usii baat ko usii blog par kehna ??
अरुण जी !
जवाब देंहटाएंआपका कार्य सराहनीय है , मगर आप हर कार्य ही "लाइट ले यार" मूड में ही करते हो ;-)
@सुजाता प्रकरण एवं परमजीत सिंह बाली !
हकीक़त में हमारा नंगपन, लोलुपता इस प्रकार के लेखों से बाहर आ रही है , कई ब्लाग ऐसे चल रहे हैं जिनमे स्त्री प्रसंग और संसर्ग चर्चा के बहाने ढूंढे जा रहे हैं ! और कड़वी सच्चाई यह भी है की ऐसे लेख पढने वालों की भीड़ कम नहीं है ! हिन्दी ब्लाग्स अभी शैशव अवस्था में है, लोग लिखते समय यह नही सोच पा रहे की लेखन का अर्थ क्या है , यह नही देख पा रहे की उनके इस प्रकार के लेखन के साथ साथ उनका चरित्र भी अमर हो जायेगा ! और उनके इसी चरित्र के साथ, उनके परिवार के संस्कार जुडेंगे ! जिसमें उतना ही स्थान महिलाओं और लड़कियों का है जितना पुरुषों का !
एक दिन यह दंभ और चरित्र सारे घर का चरित्र बन जाएगा ! ईश्वर सद्बुद्धि दे !
सतीश जी धन्यवाद , आपने हमारे काम को सराहा. पर ये लाईट मूड मे फ़ुरसतिया जी काम करते है हम नही अत: हम आपकी इस उलाहने को अनूप जी को भेज रहे है ताकी वो सुधर जाये और हमे उन के कारंण इस प्रकार की उलाहने ना सुनने पडे . आपके पुन: धन्यवाद के साथ :)
जवाब देंहटाएंIname se kai blog nahin padh paata... achchi charcha rahi.
जवाब देंहटाएंbada kathin kam kar rahe hain aap aapki mehnat se jyada himmat ki dad deta hun,bebak samiksha ke liye
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी तो फिदायीन हमला कर चुके। आप केवल मीडिया की भूमिका में रह गए। जो मैदान में था उस की कल की पोस्ट 150 में कहीं खो गई। भैया नीचे तक पढ़ लेते तो हमें कुछ बधाइयाँ तो मिलतीं।
जवाब देंहटाएंआपके इस चिट्ठे के दो पेराग्राफ आज हम ने सारथी पर डाल दिया है!!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंआज तो बड़ा बवाल है, बड़े भाई
मन में तो यही चल रहा कि,
टिप्पणी करी करी न करी
वइसे भी हमरे पास कहने को कुछ रहता ही नहीं..
भड़े लोगन के बीच हम छोटे ब्लागर को बोलना भी न चाहिये
ई नारी महाभारत करवा दिहिस
फिरौ मनईयन का गरियाये की रस्म अदा कर रही हैं, ईहाँ भी
नारी शब्दै बहुत है, बहस के लिये पुरुषों को न्यौते वास्ते
भाई, ईहाँ तो हम्मैं जो कुछ भी दिख रहा है कि,
यह केवल तिलमिलाहट है
अउर यह तिलमिलाहट टिलटिलाती हुयी बहुत दूर तलक जायेगी...
भले ही, शास्त्री जी की पोस्ट यहीं ठहर जाये..
कुछ ज़्यादा हो रहा हो, तो हमहूँ, एक पोस्टिया ठोक डारि का ?
अभी तो यही मन कर रहा है, कि..
ब्रह्मा.. ख़ुदा.. गाड.. सबको कान पकड़ के एक लाइन मॆं बइठा के हाज़िरी ले लेयी
ई कइसा पूरक बनाया है, कि हरदम फड़कता ही रहता है ?
ऊई चीन वाली देवी जी तो खुल्लमखुला ऎलान किहें हैं कि एक पुतला बनावा है,
नारी को संतुष्ट रखने के लिये.. और उसके अन्य काम निपटाने के लिये..
और बकिया समय का काम सौंपा जूते खाने के लिये
बिना एहसान जताये तुम्हें एक भी रोटी मिलती है, अपने पतिव्रता से ?
हमारे वेद पर कोनो सेंसर ब इठा रहा
हेडलाइन नारी को दे दिया कि ’ भाई ये देवी हैं ’
अउर मंत्रालय के नियम गोल मोल कर गया
चीन वाली नु वा को कोई नहीं देखता
ई लिंक पकड़ो और समझो कि मामला का है
नु वा ने आदमी को बनाया
नु वा ने दिया आदमी को दर्ज़ा
तो साबित कर दिया न कि
इसामें भी बाहरी विदेशी शक्तियों का हाथ है,
ई अंदरूनी विदेशी शक्तियाँ तो बस अपना काम कर रही हैं, भारतीय परिवेश में..
हमरी पोस्टिया से ई बदहज़मी अउर बढ़ जायी
सो, एक छोटे से कमेन्टिये से काम चलाओ
वैसे भी ईहाँ माडरेशन ला लागू नही है कि
अगले की मनमर्ज़ी एप्रूवल डिसएप्रूवल की फ़िकिर हो
फिर भी लग रहा है कि यह टाइमपास बहस से ज़्यादा कुछ नहीं है
यह हिन्दी चिट्ठा जगत अब तीन भागो में बट गया है -एक धुर नारी विरोधी एक धुर पुरूष विरोधी और एक अनूप शुक्ल जी के साथ के प्रज्ञा पुरूष जिन्होंने सदियों से नारी को केवल पूज्या समझा है -यत्र नार्यस्तु पूजन्ते रमन्ते तत्र देवता - वे अबला को सदैव सबला बनाने का अहैतुक दायित्व निभाते आए हैं !शास्त्री जी तो अप्रासंगिक हो चले और वे शायद यही डिसेर्वे भी करते हैं मगर भाई शुक्ला जी आप न सदियों से अप्रासंगिक हुए हैं और न होंगे !शामत तो हम जैसों की है जो ना घर के रहे ना घाट के .......
जवाब देंहटाएंहिन्दी चिट्ठाजगत तीन भागों में बट गया! नारी विरोधी धुर पर कौन लोग बैठे हैं, ये तो अरविन्द जी ने बताया ही नहीं. उन्होंने केवल प्रज्ञा पुरुषों के बारे में लिख दिया. वो भी अनूप जी के साथ वाले. वैसे अनूप जे के साथ कौन लोग हैं, ये भी नहीं बताया उन्होंने.
जवाब देंहटाएंनारी विरोधी पुरूष कौन हैं? और पुरूष विरोधी नारी (या फिर पुरूष) कौन हैं?
इस पर एक प्रकाश फेंकें.
"रवि रतलामी सुना है अब रवि भोपाली हो गये। सूरमा ने खुद नहीं बताया, हमारे आदमियों से पता चला।"
जवाब देंहटाएंअमाँ, आपने मेरी पिछली पोस्ट - कमरे कमरे पर लिखा है रहने वाले का नाम नहीं पढ़ी. मैंने तो सारे जहान को बताया था. नए घर की बालकनी से ली गई छोटी झील की तस्वीर समेत.
लगता है चार घंटे में 150 पोस्टों की भीड़ में यार का ये घोषणा पत्र वाला पोस्ट छूट गया....
आपकी वन लाइना मुझे पसन्द है और इस बार आपने मेरी लाइनों को भी स्थान दिया। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअनूप जी,
जवाब देंहटाएंआप बहुत मेहनत कतरके बहुत अच्छा लिखते हैं. कितनी बार बधाई कहूँ आखिर.
मैं आपके लेखन से मुग्ध हूँ. लिखते रहें.
आपका क्या कहना है?.
जवाब देंहटाएंAb kya kahen sabhi kuch to aap kah gaye ;)