कोसी का कहर जारी है। रवीश कुमार ने लिखा है-
कुल मिला कर यही कहना चाहता हूं कि इस बाढ़ ने साबित कर दिया कि राजनीति ने गरीबों को छोड़ दिया है। सियासत अब मिडल क्लास की चिंता करती है। सामाजिक और राजनीतिक एकजुटता होती तो पहले दिन से 50 हेलीकॉप्टर लगाये जाते। दस दिनों तक तीन हेलीकॉप्टर से राहत का काम हुआ, जिनसे एक दिन में सिर्फ तीन हजार पैकेट की एयर ड्रॉपिंग होती थी। समझ लीजिए कि कितने लाख लोग कितने दिनों तक भूख से तड़प रहे होंगे। इतनी बड़ी त्रासदी भी बिहार की सत्ता, समाज और सोच को नहीं झकझोर सकी है।
मनोज बाजपेयी कहते हैंबिहार की बाढ़ से हारना नहीं है। इस आपदा के समय भी मनोज की चिंता है
लेकिन आगे मैं उस व्यक्ति के बारे में जरुर लिखना चाहूंगा, जिसने अपने ब्लॉग पर मेरे बारे में कई गलत बाते लिखी हैं। उसका जवाब देना मैं उचित समझूंगा। निसंदेह उस व्यक्ति का मेरे जीवन से बड़ा गहरा नाता रहा है और उसका नाम है राम गोपाल वर्मा।इससे लगता है हम पल में ग्लोबल और छिन में लोकल कैसे हो सकते हैं।
प्रसिद्ध कवि वेणुगोपाल नहीं रहे। उनके बारे में लिखते हुये रवीन्द्र व्यास ने लिखा:
यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदी में कवियों की लिस्ट जारी करने की आदत रही है। इसमें वेणुगोपाल और कई महत्वपूर्ण कवि अक्सर छूटते रहे हैं। बरसों तक उन्हें जारी लिस्ट में छोड़ते आए हैं जबकि वे अपनी कविता में हमेशा महत्वपूर्ण बने रहे।
अब हिंदी पट्टी में कोई बड़ा जनआंदोलन नहीं है। मानवीय गरिमा और वंचितों के लिए अब कोई उठ खड़ा नहीं होता। हिंदी पट्टी में अब कोई जनआंदोलन नहीं है और न कवि का समाज और जीवन में बड़ा कद और दूर तक सुनाई देने वाली आवाज।
सच्ची कहानियों के सच्चे किरदार में मनविन्दर भिंभर ने इमरोज के अमृता प्रीतम के बारें उद्गगार बताये।
सुनिये देखिये: गणपति बप्पा मोरिया
आज के नये चिट्ठे
- जावेद जावेद चित्रकारी को पूजा की तरह मानते हैं और यही कारण है की आज तक उन्हों ने अपनी कला का मूल्य नहीं लगाया है। उन्होंने अपनी रंगशाला ब्लाग पर भी खोली है।
- धीरेन्द्र प्रताप सिंह दुर्गवंशी जौनपुर के हैं। पीर पर्वत सी हो गयी इनकी। सो पिघला रहे हैं। अलग विचार पेश कर रहे हैं।
- जवाहरलालनेहरू विश्वविद्यालय के विशिष्ट संस्कृत अध्ययन केन्द्र में एम.फिल के छात्र मुकेश कुमार मिश्र को कविताएँ पढना व लिखना बहुत प्रिय है । हिंदी कवितायें ब्लाग शुरू किया है।
- सनातन धर्म भी है यहां। बताया जा रहा है परमात्मा कैसा है?
- राधिका वुधकर अपने ब्लाग वीणापाणी और आरोही शुरू कर रही हैं। ये नये ब्लाग्स उन्होंने इसलिये शुरू किये क्योंकि उनके पुराने ब्लाग्स के पासवर्ड खो गये हैं।
- कोटा, राजस्थान के ई.भारतरत्न गौड़ मेरा भारत महान कह रहे हैं।
- नोयडा प्रेस क्लब अपराध सूचनायें देने के लिये क्राइम न्यूज शुरू कर रहा है। करीना-बिपाशा की दोस्ती भी लगता है प्रेस क्लब की निगाह में क्राइम न्यूज है।
- राजीव कुमार बनारसी हैं। आतंकवाद के खिलाफ़ खड़े हैं।
- दिल्ली विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लोगों नेचुनाव के लिये ब्लाग शुरू किया है। चुनाव के बाद तेरा क्या होगा रे ब्लाग!
- डा. नजर महमूद का दुनिया को देखने का अपना ही नजरिया है। मई से शुरू हुये ब्लाग में अभी तक दस पोस्टें हुयीं हैं।
- १४ साल की यामिनी गौड़ कोटा राजस्थान से हैं। चित्र संसार में अन्तर्मन की उड़ती कल्पनाएं पेश करती हैं।
- साहित्य शिल्पी हिन्दी और साहित्य की सेवा का एक एसा अभियान है जो न केवल स्थापित एवं नवीन रचनाकारों के बीच एक सेतु का कार्य करेगा| सेतु अभी निर्माणाधीन है।
- प्रशान्त वर्मा अवाम के माध्यम से अपनी बात कहना शुरू कर रहे हैं।
सभी नये साथियों का स्वागत है जी इस ब्लाग जगत में।
एक लाइना
- माना पोस्ट मेरी नही है पर चोरी कतई नही है जी : हर चोर यही कहता है!
- ऐतिहासिक मन्थन से क्या निकलता है? :बहसियाने, गरियाने, लतियाने, जुतियाने के अनेकानेक अवसर!
- उस शायर को जो रेडियो मे घुसकर लोरिया सुनाता था :मेरठ के एक डाक्टर ने पकड़ के अपनी पोस्ट के कोने में चेंप दिया।
- तेरा ख्याल :आजकल अपना काम ठीक से नहीं करता। रुला ही नहीं पाता। ऐसे कैसे चलेगा जी!
- ब्लॉग पोस्ट का टॉपिक, बालकिशन और विदेशी कवि:सब एक ही पोस्ट पर कब्जा कर लिये।
- बिहार की बाढ़ से हारना नहीं है :हां भाई, ये भी कोई बात हुयी। हारना अच्छी बात नहीं है।
- भिय्या ये तोगड़िया खसक गया है क्या? : बिहार की बाढ़ की बातें कर रहा है।
- क्या जाग रहे हो : आओ कविता पढो़ , टिपियाओ, हौसला बढ़ाओ।
- रिश्तों की परिभाषा : इत्ते दिन बाद दे रही हैं।
- अपनी भूल सुधारे कौन :सुधारना दूर की बात, यहां अपनी गलती ही नहीं मानेगा कोई!
- मिलिए बर्ग वार्ता वाले स्मार्ट इंडियन से :क्या करें मिलकर जी! पढ़ तो लिया ब्लाग पर। क्यूट हैं!
- भिय्या ये तोगड़िया खसक गया है क्या? : बिहार की बाढ़ की बातें कर रहा है।
- इतनी बड़ी त्रासदी के बाद भी... उफ्फ! :ये भारत है भाई रवीश कुमार!
- क्या कभी टीवी पर ये सीन देखा है आपने नहीं देखा तो क्या देखते हो यार! अच्छा इसे पढ़ो! :
- ये क्या हुआ? :क्यूं हुआ? कैसे हुआ? मेरे दो ब्लाग उड़ गये।
- थम थारी अठ्ठन्नी थारै धोरै राखो ! : तेरी अक्ल ख़राब हो री सै के तिवारी ?
- क्या बाढ़ राहत में कंपनियों का कोई दायित्व नहीं! : ये सवाल कंपनियों के लिये आउट आफ़ कोर्स है!
- ताकि हमेशा कायम रहे अपने पर अटूट आस्था :जिसकी अपने पर आस्था खत्म हुई, समझो वह निपट लिया।
- नर-नारी समानता: शास्त्री जी के सौजन्य से
- बिहार में बाढ़ और राष्ट्रीय शर्म :उड़ीसा में।
- :
इतिहास की मिक्सियां
मुझे ये दोनो (इतिहास की) मिक्सियां अपने काम की नहीं लगती हैं। एक २००० वोल्ट एसी सप्लाई मांगती है। दूसरी ३००० वोल्ट बीसी। दोनो ही सरलता से नहीं चलती हैं। वजह-बेवजह शॉक मारती हैं।
ज्ञानदत्त पाण्डेय
मुझे ये दोनो (इतिहास की) मिक्सियां अपने काम की नहीं लगती हैं। एक २००० वोल्ट एसी सप्लाई मांगती है। दूसरी ३००० वोल्ट बीसी। दोनो ही सरलता से नहीं चलती हैं। वजह-बेवजह शॉक मारती हैं।
ज्ञानदत्त पाण्डेय
सच बोलने से हमेशा कुछ न कुछ लफड़ा खड़ा हुआ है. झूठ बोलने से अक्सर लफड़े बैठ जाते हैं. सच अगर नहीं बोला जाता तो इतिहास बनता ही नहीं क्योंकि लफड़े नहीं होते!शिवकुमार मिश्र
लोग खुद से रूबरू होकर यही कहते रहे,
कितना मुश्किल है मियां शर्मो-हया को ढूंढना.
अजनबी नगरी में अपनापन मिले तो किस तरह,
है बहुत मुश्किल यहां राहे-वफ़ा को ढूंढना.योगेन्द्र मौदगिल
कितना मुश्किल है मियां शर्मो-हया को ढूंढना.
अजनबी नगरी में अपनापन मिले तो किस तरह,
है बहुत मुश्किल यहां राहे-वफ़ा को ढूंढना.योगेन्द्र मौदगिल
लोग फ़ासले लाख बढा़यें पर बढ़ नही पाता,
जुदाई में भी इश्क कभी मर नही जाता,
महबूब से जन्नत सी लगती है जिंदगी,
पर तनहाई में एक पल रहा नही जाता।सुनीता शानू
जुदाई में भी इश्क कभी मर नही जाता,
महबूब से जन्नत सी लगती है जिंदगी,
पर तनहाई में एक पल रहा नही जाता।सुनीता शानू
सात सौ लोग मारे गए,
अखबार कहता है
टूटे हुए खंडहरर और शहतीर दूरदर्शन दिखाता है
मेरे भीतर से कई खबरें आतीं है हरहराकर।रघुवीर सहाय
अखबार कहता है
टूटे हुए खंडहरर और शहतीर दूरदर्शन दिखाता है
मेरे भीतर से कई खबरें आतीं है हरहराकर।रघुवीर सहाय
अब हिंदी पट्टी में कोई बड़ा जनआंदोलन नहीं है। मानवीय गरिमा और वंचितों के लिए अब कोई उठ खड़ा नहीं होता। हिंदी पट्टी में अब कोई जनआंदोलन नहीं है और न कवि का समाज और जीवन में बड़ा कद और दूर तक सुनाई देने वाली आवाज।रवीन्द्र व्यास
अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"
किसी बस्ती की गलियों में किसी सहरा के आँगन में ...
तुम्हारी खुशबुएँ फैली जहाँ भी हों मैं जाता हूँ सीमा गुप्ता
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"
किसी बस्ती की गलियों में किसी सहरा के आँगन में ...
तुम्हारी खुशबुएँ फैली जहाँ भी हों मैं जाता हूँ सीमा गुप्ता
आंखे खोज रही हैं उस मां को
जो बह निकली जलधारा संग
और पिता का भी कुछ अता नहीं
कहां है वो उसको पता नहीं
प्रीती बङथ्वाल "तारिका
जो बह निकली जलधारा संग
और पिता का भी कुछ अता नहीं
कहां है वो उसको पता नहीं
प्रीती बङथ्वाल "तारिका
मेरी पसन्द
लाखों तारे आसमान में नीचे इन्हे उतारे कौन,
काँटों के सौदागर सारे घर और द्वार बुहारे कौन.
नसीहतों से भरे टोकरे लिए खड़े हैं लोग तमाम,
मुल्लाओं की महफ़िल में अपनी भूल सुधारे कौन.
तालीमों की किसे जरूरत किसको इंसानों से काम,
दरवाजे पर दस्तक देकर मेरा नाम पुकारे कौन.
खुशहाली में सभी पूछने आते थे मेरे हालात,
लेकिन तन्हाई के लम्हे मेरे साथ गुजारे कौन.
हालात से समझौतों में खामोशी बन गया जमीर,
सन्नाटे में चौराहे पर दिल की बात गुहारे कौन..
विनीता वशिष्ठ
... और अंत में
कल की चर्चा में डा.अमर कुमार ने हमारे ऊपर पंक्चुअलिटी का आरोप लगाया
-चर्चा तो पढ़ ली,नितीश राज ने कहा:
पर यह बताइये कि पंक्चुअलिटी एवार्ड आपको क्यों न दिया जाय ?
अनूप जी फिर से वो ही लाइन बढ़िया चर्चा, लेकिन कई बार सोचता हूं कि इतना पढ़ कब पाते हो आप और फिर सब पर कमेंट फिर चर्चा...सच बहुत काम है।
लवली कुमारी ने भी लिखा
:अब इन अब बातों के क्या जबाब दिये जायें? डा.अमर कुमार कह ही चुके हैं कि तारीफ़ भी एक तरह की घूस है। कल कानपुर में एक दरोगा अन्दर हो गया। वह डी.आई.जी. को घूस देने की कोशिश कर रहा है। डी.आई.जी. ने उसे पकड़वा दिया।
हमेसा की तरह अच्छी चिठ्ठा चर्चा .आश्चर्य होता है आप वक्त कहाँ से निकालातें हैं.
चर्चा अपने मजे और खुशी के लिये करता हूं। समय निकल आता है अगर आप करना चाहें कोई काम मन से। इसका भी मजा ही कुछ और है। ब्लाग लेखन के बारे में हमने काफ़ी पहले लिखा था:
आंख खुलते ही लैपटाप से चिपक जाने का
चाय लाती पत्नी को देखकर सकपकाने का
‘बड़ी अच्छी लग रही हो’ कह मस्का लगाने का
‘उठो बच्चों’ कह फिर से टाइपिंग में जुट जाने का
मजा ही कुछ और है।
यही हमारे बारे में चुगली करती है। आज भी बहुत सारे ब्लाग छूट गये। प्रमोद जी ने एक बहुत अच्छा लेख लिखा कल वह छूट गया। प्रगति मैदान की सैर छुट गयी। और न जाने क्या-क्या। लेकिन जो पकड़ पाये वो यहां पेश है। अनुराग शर्मा ने कहा भी है-लेट परफेक्शन नोट बी दि एनेमी ऑफ़ द गुडमतलब कुछ नहीं से कुछ तो बेहतर है। आज की चर्चा कुश को करनी थी। वे न कर पाये सो आपको हमें ही झेलना पड़ा। क्या करें। होइहै सोई जो राम रचि राखा।
फ़िलहाल इतना ही। बकिया फ़िर।
ये जो नई हरियाली दाहिनी तरफ़ दिख रही है, ये बड़ा अच्छा है. मेहनत तो लगी होगी... पर सराहनीय. (वैसे भी मेहनत की तो आदत हो ही गई है आपको... वो कहते हैं ना की मुर्दे के ऊपर ८ मन लकड़ी रखो या ४० मन उसको क्या फर्क पड़ना !)
जवाब देंहटाएंकृपया मुर्दे वाले उदाहरण को सीधे अर्थ में ना लें...! :-)
.
जवाब देंहटाएंटिप्पणी रीत सदा चलि आयी
कुछहु लिखहूँ औ’ हम टिपियायी
सो, अनूप सर मेरे या किसी और के टिप्पणी
करने की गुंज़ाइश तो रखा करें सरकार ।
बहुत विस्तार से लिखी है आज की चर्चा ..अच्छी लगी ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंहम तो कुछ नहीं कहेंगे... बस पढ़ते रहेंगे। क्योंकि आपकी चर्चा जानदार है...
जवाब देंहटाएंआपने कहा "नर-नारी समानता: शास्त्री जी के सौजन्य से "
जवाब देंहटाएंगलत !! यह तो परमात्मा के सौजन्य से हुआ है!!!
Anup ji,
जवाब देंहटाएंhar baar ki tarah se chrcha aaj bhi jaandaar hai.
Amtrit Imrroj ka jikr hai....achcha laga
iske liye shukriya....
kai naye blogger ki jaankaari ke liye bhi sadhuwaag
Anup ji,
जवाब देंहटाएंhar baar ki tarah se chrcha aaj bhi jaandaar hai.
Amtrit Imrroj ka jikr hai....achcha laga
iske liye shukriya....
kai naye blogger ki jaankaari ke liye bhi sadhuwaag
Anup ji,
जवाब देंहटाएंhar baar ki tarah se chrcha aaj bhi jaandaar hai.
Amtrit Imrroj ka jikr hai....achcha laga
iske liye shukriya....
kai naye blogger ki jaankaari ke liye bhi sadhuwaag
आपका काम वा्कई बड़ी मेहनत का है। घर-बाहर के अलावा आपको एक तरह से ब्लोगरों की भी देख-रेख करनी पड़ रही है। इतना बड़ा परिवार संभालते कैसे हैं भला!
जवाब देंहटाएंआंख खुलते ही लैपटाप से चिपक जाने का
जवाब देंहटाएंचाय लाती पत्नी को देखकर सकपकाने का
‘बड़ी अच्छी लग रही हो’ कह मस्का लगाने का
‘उठो बच्चों’ कह फिर से टाइपिंग में जुट जाने का
मजा ही कुछ और है।
ये तो मूलमंत्र दे दिया है अनूप जी, आगे याद रखने की कोशिश करेंगे नहीं याद रही तो फिर आपके यहां यूं ही टिपिया देंगे।
अब ये इल्जाम ना लगाईएगा कि यहां से कॉपी की और यहीं चेप दी।
इस बार का ये अंदाज अच्छा लगा। कुछ की लाइनें जो आपने डाली हैं, वन लाइन के साथ। अच्छा लगा। लेकिन मेरी कविता?
जवाब देंहटाएं1.आंख खुलते ही लैपटाप से चिपक जाने का
जवाब देंहटाएंचाय लाती पत्नी को देखकर सकपकाने का
‘बड़ी अच्छी लग रही हो’ कह मस्का लगाने का
‘उठो बच्चों’ कह फिर से टाइपिंग में जुट जाने का
मजा ही कुछ और है।
2.दूसरों की चिठ्ठा चर्चा देखकर कुढ़ जाने का
अपने ब्लॉग को नंबर वन पज़िसन पर ले आने का
सपना यह पुरा न होते देखकर भुनभुनाने का
मज़ा ही कुछ और है .
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एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.
प्रीतिजी, जो रह गया था उसमें आपकी कविता भी थी। अब आपके याद दिलाने पर उसे शामिल कर लिया।
जवाब देंहटाएंanoop ji aap ne hamara accha parichay diya uske liye dil se sukriya- lekin aap to jante hi hoge ki peer parvat hone pr pighlti bhi hai aur pighlati bhi hai-pr kya kahu sabke apne apne alag vicher hote hai--khair aaj ka chittha charcha vakai achha hai- aap ke liye-- prem hamra aamar rahe jaise anant me dhru tara-bhatka karta hai virhi man jaise koi aavara- kendrit rahe vasant yougo paryant umar ki bagiya me-path aalokit rahe sada-manglamaya ho jivan sara-- apka dhirendra junpuriya
जवाब देंहटाएंविस्तृत और मस्त!
जवाब देंहटाएंAchchia Chiththa cahrcha.Dhnywad .
जवाब देंहटाएंअरे अनूप भाई शुक्रिया अदा किजिये परिभाषा दी तो सही...:)
जवाब देंहटाएंकुछ लोग तो अक्सर भूल जाते हैं
कहते कुछ है और कुछ बताते है
हम आये तो सही कुछ देरी के बाद
तुम भूल गये भैया राखी की सौगात|
सुनीता
चिट्ठा चर्चा की रोचकता और इसके आयाम में लगातार विस्तार होते देखना बहुत सुखद है। आप के प्रयास और परिश्रम को नमन।
जवाब देंहटाएं