देश में विकट लफ़ड़ा मचा हुआ है। दिल्ली में आतंकी हमले हुये वहां आतंकवादी पकड़े गये। इंस्पेस्क्टर शर्मा मारे गये। टीवी पर दिन भर यही दिखता रहा। अखबार अमेरिका के बैंक का शटर डाउन होने के पोस्टमार्टम में जुट गये हैं। इधर मनोज बाजपेयी साम्प्रदायिक हिंसा से बचाव के तरीका बताते हैं:
हर धर्म के अनुनायियों से मेरी प्रार्थना है कि धर्म को आप अपने तक सीमित रखें। वो आपका विश्वास है। वो आपकी श्रद्धा है। जरुरी नहीं कि वो दूसरी की भी आवश्यकता बने। कृपया अपने धर्म का लाउडस्पीकर लगाकर प्रचार करना बंद करें, और उसकी जगह अपने घर के चारदीवारी के अंदर अपनी आत्मा को जगाएं।
सांप्रदायिकता पर अपने विचार व्यक्त करते हुये ज्ञानरंजन जी का मानना है:
हमें एक मिथक से उबरना होगा की हिंदू तो बेचारा है, विनम्र है और मूलतः अहिंसक है। भारत के अहिंसक समाज में सर्वाधिक हिंसा है। सारे धर्मान्तरण हिंदू धर्म की असहिष्णुता और शोषण के कारण हैं।
इस समय हिंदू की लडाई हिंदू से है। आप अपने को एक आदर्श हिंदू के रूप में बचाने में सफल हों , यही सबसे जरुरी है।
- सच होंगे सपने सारे: आमीन
- कुछ मेरी कुछ तेरी: होती रहेगी अब तो
- अपना हिंदी साहित्य पेश है आपके लिये।
- आत्महंता आस्थावान भी है!
- सम्पूर्ण शिक्षा:अभियान ब्लाग पर भी!
- कुछ कहना है: पारुल को
- बिटवीन द लाइन्स:हाजिर हैं मकरन्द।
- वकील : संजय गोयल आपकी सलाह के लिये हाजिर।
- अरुण पाल सिंह:की कवितायें शुरू
बोलते समय एक बिहारी लिंग निर्धारण अपने हिसाब से करता है। लेडिस आ रहा है,गाड़ी खुल रहा है। बिहार में लेडिस, पुलिस, बस के लिए पुल्लिंग का प्रयोग आम बात है। विनीत कुमार इसी अंदाज में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता में कहते भये:
जनसंख्या वृद्धि के लिए स्त्रियां ही जिम्मेवार है, इस विषय के विरोध में बोलते हुए जैसे ही मेरे मुंह से निकला कि - मैं मानती हूं कि, तभी सेमिनार हॉल में बैठे लोग ठहाके मारने लग गए।इस मजेदार संस्मरण को पढ़ने के बाद लगता है कि हर पुरुष के अंदर एक लेडिस ’रहता’ है।
शादी व्याह में जम के पैसा खर्चना भारतीय समाज का सहज स्वभाव है। राधिका बुधकर समझाती हैं
शादी को अविस्मरणीय बनाने के लिए रिश्तो में समझ की, प्रेम की,सादगी की, सरलता की जरुरत होती हैं ,न की पैसा फुकने की ,दिखावे की ,क्योंकि दिखावे के आधार पर बने रिश्तो की ईमारत ज्यादा नही टिकती,फ़िर भी पैसे खर्च करने हैं तो जरुर करे पर उसका अप्वय्य न हो इसका ख्याल रखा जाना चाहिए । नही तो शादी ,शादी कम बर्बादी ज्यादा लगती हैं ।
दिल्ली में धमाके हुये। धरपकड़ शुरू हुयी तो पंगेबाज इलाहाबाद निकल लिये। वहां महाशक्ति की शरण में आये। सारा कच्चा चिट्ठा आप जानना चाहते हैं तो पढ़ लीजिये पंगेबाज जी महाशक्ति के शहर में!
मांजी लोग भी सामान्य प्रसव और सीजेरियन बर्थ के हिसाब से बच्चों को प्यार करती हैं। समझ लीजिये।
रतन सिंह शेखावत जयपुर के कपड़ा उद्योग की संक्षिप्त लेकिन काम भर की जानकारी दे रहे हैं। प्रदूषण से बचाव का हिसाब भी रखा जाता है:
कपडे पर छपे रंग सुखाने के लिए केवल पखों का ही सहारा लिया जाता है धुले हुए कपड़े को भी हवा व धुप मै सुखा लिया जाता है जबकि इसी कार्य की उर्जा के लिए अन्य शहरों के कारखानों मै बायलर की जरुरत पड़ती है जिससे प्रदुषण तो होता ही हे साथ मै लागत भी बढ़ती है जबकि जोधपुर के उद्योग मै वायु व ध्वनी प्रदुषण बिल्कुल नही होता सिर्फ छपने के बाद धुलाई का रंग युक्त प्रदूषित जल निकलता है जिसे उपचारित करने के लिए एक साँझा सरकारी उपक्रम लगा है जिसके रखरखाव का खर्च सभी कारखाने के मालिक चुका देते है |
अगर आप अपनी बेबसाइट खरीदने के लिये मन बना चुके हैं तो कुन्नू सिंह की सलाहें पढ़ लीजिये ताकि आपको पछताना न पड़े।
आप चिट्ठाचर्चा में हमारे पचीसों एकलाइना बांचते होंगे। लेकिन अमित बताते हैं कि जित्ते में हम एक लाइना लिखते हैं उत्ते में ट्विटर में एक पोस्ट लिखने का जुगाड़ हैं। ट्विटर गागर में सागर भरने का औजार लगता है।
आपने सुना होगा कि लोग लाइब्रेरियों में प्रेम करने, बतियाने और गपशप करने जाते हैं। तमाम किस्से पढ़े होंगे। यही सब हुआ लाइब्रेरी में आज तक। लेकिन रवि रतलामी जैसे ही रवि भोपाली हुये वे लाइब्रेरी पहुंचे किताबें देखने। वहीं लफ़ड़ा हुआ। अब क्या हुआ ये सब उनकी ही माउसजबानी सुनिये।
बिहार की बाढ़ के बारे में एक रिपोर्ट पेश कर रहे हैं डा.विजय कुमार।
सफ़दर समूह के काम के बारे में जानकारी दे रही हैं आलोका!
केदार नाथ अग्रवाल और रामविलास शर्मा समारोह के आयोजन की जानकारी दे रही हैं कविता जी।
संजय पटेल के जन्मदिन पर केक पोस्ट करती हैं लावण्या जी। जन्मदिन मुबारक संजय जी।
उधर आभा-बोधिसत्व की बिटिया भानी का भी आज जन्मदिन हैं। उसको भी जन्मदिन की मंगलकामनायें। बोधिसत्व इस बार अपनी घरवाली का जन्मदिन मनाना भी भूल गये थे।
एक लाइना
- टी वी सीरियल में नारी
: बिना बलाऊज की पहनी हुई साडिया/ वस्त्र के अभाव से जूझती हुई नारिया - आदमियों के शहर में आदमी ढूंडती हूँ : बड़ी मेहनत का काम है।
- काटोगे जो इसे : तो वोट कटेंगे!
- कुछ ऐसे दृष्य, जिन्हें आप पसंद नहीं करेंगे : लेकिन हम उसे जबरियन दिखा के रहेंगे।
- देश में धर्म के नाम पर होती राजनीति सांप्रदायिक हिंसा को क्या बढ़ा रही है?: तो और क्या करे बेचारी राजनीति?
- मानो या न मानो . डाक्टर भी ऐसे होते है : मान लिया इसीलिये तो कहा-डॉ शेट्टी जिंदाबाद ,लगे रहो डाक्टर
- 'कैसा अनोखा अंग्रेज था' : जो उर्दू सीखता था।
- 700 प्रकाशवर्ष दूर जिंदगी : आपके सामने पेश है!
- दिवंगत प्रिय जन और हम : सबको खुश रहना चाहिये
- मंच नहीं विचार हैं महत्वपूर्ण : समझ लो। विचार नहीं तो कुच्छ नहीं!
- धर्मेन्द्र के इलाके से : एक बंदा टंकी पर चढ़ा!
- नदियों, पहाड़ो,जंगलों, खदानों और झरनों का प्रदेश है छत्तीसगढ़ : जे भली बताई भैया आपने। हम तो कुछ औरै समझे थे।
- इग्नू: परीक्षा शुल्क माफ: चलो सब लोग इम्तहान में बैठ लो।
- विचार आमंत्रित हैं : भेजिये जल्दी तो आगे काम शुरू हो।
- बाज़ार का गणित: हरेक के पल्ले नहीं पड़ता।
- सांप्रदायिक चश्मा उतारें: तो फ़िर देखेंगे कैसे?
- इतालवी माडल ने लगाई कौमार्य खोने की कीमत : एक घर खरीदने और एक्टिंग क्लासेस की फीस चुकाने के लिये।
- मैं भी अगर लड़की होता...एक जर्नलिस्ट का दर्द : तो लड़कियों के दर्द बताता!
- मैं कब बनूंगा आतंकवादी : सबको मौका मिलेगा, लाइन लगा लो।
- अनिता जी! मुझको पहचान ना पायेंगी आप, मैं हूं डॉन : ये भैया डॉन, कभी खाये हो पान?
- बाल्टी किसकी, हिन्दी या पुर्तगाली की : किसी की हो पानी तो बराबर भरेगी।
- बमात्मक चिंतन : कहीं बैरक चिंतन न करवा दे।
- ब्लॉगरी और माडर्न आर्ट : को समझने की कोशिश बेफ़ालतू है।
- टेनी (डण्डी) मारने की कला : में सीखने में इतवार बिताया ज्ञानजी ने!
- कस्बे की अदालत में कुछ घंटे :बिताने से उपजा यह पोस्ट ज्ञान!
- एक नेता की डायरी का पन्ना!! : समीरलाल की उड़नश्तरी से बरामद!
- जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है वह ख़ुद उसीमें गिरता है : इसलिये हर गड्ढा अपने साइज के हिसाब से खोदें।
- उम्र जलवों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं : लेकिन जितना है उतने में सबर हो ये जरूरी तो नहीं!
- करवट बदलने से टूट जाते हैं सपने :इसलिये हर करवट संभल के लेनी चाहिये।
- टूटते रिश्ते, दरकते संबंध : जिधर देखो उधर गंध ही गंध।
- क्या इनको लिफ़्ट देनी चाहिये थी? : दे दिये तो क्या पूछना?
- और भी गम हैं जमाने में गम के सिवा : और भी जाम हैं ढ़लकाने को आंसू के सिवा!
चुनाव के दिन पास आने लगे हैं
इसलिए नेताजी गाँव आने लगे हैं
हाथ जोड़ ले चुनावी झंडा
जनता के गुण उन्हें याद आने लगे हैं जीतेन्द्र सूर्यवंशी
इसलिए नेताजी गाँव आने लगे हैं
हाथ जोड़ ले चुनावी झंडा
जनता के गुण उन्हें याद आने लगे हैं जीतेन्द्र सूर्यवंशी
हर ग़म को अपने गले लगाना कोई ज़रूरी तो नही,
आँखों से आंसू पल पल गिराना कोई ज़रूरी तो नही,
सौ दर्द रहा करते हैं इस सीने में छुप के,
चेहरे पे उनकी नुमाइश सजाना कोई ज़रूरी तो नही, शेखर
आँखों से आंसू पल पल गिराना कोई ज़रूरी तो नही,
सौ दर्द रहा करते हैं इस सीने में छुप के,
चेहरे पे उनकी नुमाइश सजाना कोई ज़रूरी तो नही, शेखर
भावनाएं हाट, आंसू जिन्स, मन ग्राहक हुआ,
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब योगेन्द्र मोद्गिल
प्यार बनता जा रहा है दर्द का व्यापार अब योगेन्द्र मोद्गिल
मेरी पसन्द
फिर क्या हो जाता है
कि क्लास-रूम बन जाता है काफ़ी-हाउस
घर मछली बाज़ार?
कोई नहीं सुनता किसी की
मगर खुश-खुश
फेंकते रहते हैं मुस्कानें
चुप्पी पर,
या फिर जड़ देते नग़ीने !
करिश्मे अजीबोग़रीब -
और किसी का हाथ नज़र भी नहीं आता -
पहलू बदलते ही
जार्ज पंचम हो जाते हैं जवाहर लाल !
गिरिधर राठी सौजन्य शिरीष
...और अंत में
कल कुछ दोस्तों ने विकिपीडिया के बारे में जानकारी चाही। मैंने कल भी संबंधित लेख की जानकारी दी थी। काम भर की जानकारी इस लेख में दी है।
यह सब काम जुनूनी होते हैं। मन लगे तो समय मौका सब निकल आता है। इनके कोई रिटर्न नहीं मिलते। आपका संतोष सबसे बड़ा रिटर्न है। चूंकि विकिपीडिया पर जो लिखा जाता है उसमें आपका नाम भी नहीं होता कि आपने लिखा तो नाम कमाई भी नहीं होती। लेकिन अगर करेगें तो मजा आयेगा।
विकिपीडिया पर काम करने का एक तरीका जो हमें स्वामीजी ने सुझाया था वो यह है कि आप पहले कोई लेख या जानकारी विकिपीडिया पर डालें फ़िर उसे अपने ब्लाग पर डालें। देखिये करके शायद मजा आये।
नारी ब्लाग पर सलाह (विचार आमंत्रित किये गये हैं)मांगी गयी है कि अपने विचार भेजे। शमाजी ने एक आम परिवार में औरत की दास्तान तमाम किस्तों में लिखी है। देखें कि उनके झेले हुये दर्द किस तरकीब से कम हो सकते हैं। ऐसे कौन से कदम उठाये जा सकते हैं कि किसी महिला को अपनी जिन्दगी में इस तरह के कष्ट न झेलने पड़ें।
ब्लागजगत कल इतवार के दिन शान्त-शान्त सा रहा। बकलमखुद में रंजू की दास्तान पेश होनी शुरू हुई। उसी में काफ़ी टिप्पणियां आयीं। आज समीरलाल ने नेता की डायरी का पन्ना पेश किया। हमें लगता है कि अगर हमारे बीच नेता न हों तो हम शरम से डूब के मर जायें। नेता हैं तो सहारा रहता है कि अपने समाज की हर गंदगी नेता-गटर में उड़ेल के मस्त नींद सो जायें।
ऊपर बाबाजी की फोटो मुंहफ़ट से साभार!
फ़िलहाल इतना ही। नये हफ़्ते के लिये शुभकामनायें।
और अंत में पसंद आया।
जवाब देंहटाएंचर्चा बेहतरीन रही . पर इसको प्रकाशित करने का समय नित्य नियत होना चाहिये . सुबह से इसके इंतज़ार में खोल खोल कर देखते रहते हैं . कुछ मिलता नहीं . आज पहली बार में ही मिल गया . आभार ! बहस का जवाब भी आना चाहिए (पर छोटों की बात सुनता कौन है ?)
जवाब देंहटाएंनारी ब्लाग पर सलाह मांगी गयी है कि अपने विचार भेजे।
जवाब देंहटाएंkoi link nahin uplabdh haen salaah kehaa bheje
अरे, पान के तो हम दिवाने हैं भैया.. मगर लत नहीं है.. :)
जवाब देंहटाएंरचनाजी, नारी ब्लाग पर विचार आमंत्रित किये गये हैं उसका लिंक तो आपके पास है ही। शमा का ब्लाग पढ़ने की सलाह/अनुरोध किया है उसका भी लिंक यहां लगा है।
जवाब देंहटाएंlink sabke liyae uplabdh ho gayaa dhanyvaad anup ji aap ki salah nahi aaye us link par abhi tak !!!!!!!!
जवाब देंहटाएंबगैर नागा किये हुए एक बेहतरीन चर्चा नागा (Close to) के फोटो के साथ ;)
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंरिज़वाना कश्यप ( शमा ) कि ओर सभीका
ध्यान दिलाने का एक सराहनीय संवेदनीय एकता
का उदारहण आपने प्रस्तुत किया ।
अधिक प्रसंशा करूँगा तो उठा कर किसी गुट में फेंक
दिया जाऊँगा, फिर भी...
आ.. तनि ऊ विवेकवा के बतिया पर भी ध्यान दिहल जाय, सुकुल जी ।
ई अनुरोध सिरिफ़ आपहि से नहिं सबै कर्णधार प्रस्तुतकर्ता से किया हूँ !
बेहतरीन ..
जवाब देंहटाएंफिर से वन लाइनर बेहतरीन.... जो पढ़ने आया वो मिलगया। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआप तो पहले ही बिहार इश्टाइल में ब्लॉग चला रहे हैं. 'रचना कहते हैं' और 'रंजना [रंजू भाटिया] कहते हैं' दिखा कर. खैर चर्चा बढ़िया रही. एक लाइना का तो जवाब नहीं.
जवाब देंहटाएंविवेक भाई की बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए..
जवाब देंहटाएंबाकी चर्चा तो बढ़िया रही ही है.. हमेशा की तरह
हमार टेनी तो बड़े सस्ते में बेंच दी जी आपने! :-)
जवाब देंहटाएंभाई शुकल जी हर बार की तरह बेहतरीन चर्चा ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब... हेडलाईंस पर कमेंट। मजा आ गया। मैने तो पहली बार देखा, मेरे शीर्षक पर भी कमेंट है। क्या बात है। मैं तो केवल आत्मतुष्टि और टाइमपास के लिए ब्लागिंग करता हूं लेकिन आपलोगों की नजरे इनायत मुझपर भी है।
जवाब देंहटाएंआभार
विवेकजी को नित्य-नियत चाहिए... हमें अपने आलस को देखते हुए यह आग्रह करने की हिम्मत नहीं होती... आपकी मेहनत को सलाम कर निकल लेने में ही भरोसा रखता हूँ...
जवाब देंहटाएंपर विवेकजी की मांग गौर करने वाली है. :-)
अनूप जी, बहुत बेहतरीन चर्चा किए हैं आप तो. ऐसे ही करेंगे तो हमको बहुत अच्छा लगता रहेगा.
जवाब देंहटाएंविवेक भाई, इन्तजार का अपना मजा है, वो भी लिजिये. फिर व्यंजन आना तो तय है और अनूप जी पकायें, तो स्वादिष्ट होना भी. :) वैसे इसकी फीड अपने ईमेल में ले लिजिये तो बार बार चक्कर काटने से बच जायेंगे. जैसे ही छपेगा, ईमेल में खबर आ जायेगी.
bahut achchi charcha hai.....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा रही। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही चर्चा।
जवाब देंहटाएंइसमें आपने नए आया म भी जोड़े हैं।
शुक्रिया..
खूब जमा है रंग।
जवाब देंहटाएंभाई,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
सलाह दे रहे हो कि घर की चारदीवारी के भीतर अपनी आत्मा जगाएं और खुद अपनी चाहरदीवारी में रहकर दूसरों की आत्मा जगा रहे हो।