मेरी पसन्द
सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना
सो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।
पलको की ओट तोहे निंदिया पुकारे,
देख रहे राह तेरी चन्दा सितारे,
भोली-भाली बतियों का जादू न डालना,
सो जा मेरी रानी मेरी कहना न टालना।
जल्दी जो सोये और जल्दी जो जागे,
जीवन की तौड़ पर सत्य रहे आगे,
प्यारे है बच्चा मोहे कहना जो माने
जुग-जुग जीवे झूले सोने का पालना।
सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना,
सो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।
फ़ुरसतिया से
एक लाइना
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- श्राद्ध और पंडितजी: दिन अब बस खतमै समझौ
- धमाकों के पीछे दहसतगर्द-सिमी अध्यक्ष : और अंबरीश कुमार
- मैं आभारी हूं मुशीरुल, अर्जुन, लालू और मुलायम का : उनके सहयोग के बिना ये पोस्ट न लिखी जा सकती थी
- याद आता है मुझको:तू लजाती, शर्माती और झिझकती थी
- शिक्षित भी गुलाम होते हैं: और बढ़िया/वफ़ादार गुलाम होते हैं
- थोड़ा कुछ अपने बारे में :बता लें फ़िर दिल और दिमाग खोलें
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- मेरे घर चलोगे: माँ ने रोशनदान में थोड़ी धूप छुपा रखी है तुम्हें दिखायेंगे
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- बस :बहुत हुआ यार...अब रोना बंद करो अझेल कर देते हो
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तुम सजल करो मेरे नयनों को
दो अश्रु धार बह जाने दो
भर सकूं हृदय को भावों से
ऐसा अतुलित तुम प्यार करो राहुल उपाध्याय
हौसलों की उड़ान क्या कहिये!
छोटा सा आसमान क्या कहिये !!
दर्द से कौन अजनबी है यहाँ!
दर्द की दास्तान क्या कहिये।डा.अमर ज्योति
टिप्पणी"स्मोकिंग मार्क्सवाद की तरह है. युवावस्था में आपको इसका अनुभव करना चाहिए. लेकिन आप महामूर्ख होंगे अगर समय रहते इससे बाहर नहीं निकल आते."
बाचीकरकरिया
प्रतिटिप्पणी
जिन लोगों ने मार्क्सवाद और धुम्रपान दोनों का ही अनुभव नहीं किया। उन का यह विशेषज्ञ विचार वैसा ही है जैसे बन्दर अदरख के बारे में दे।
बेनामी
और अंत में
ज्यादा टाइम न खायेंगे जी आपका। हमें पता है कि आज इतवार है और आप मौज मजे के मूड में हैं। हमें भी जाना है आफ़िस। हां भैया आफ़िस इतवार को भी। इसलिये ताकि उत्पादन काम में कोई बाधा न आये छुट्टी आने के कारण। जैसे-जैसे त्योहारों की छुट्टियां आती हैं हमारे इतवारों की हवा निकल जाती है।
कल चिट्ठाचर्चा करते हुये तरुण ने सुझाव दिया कि चिट्ठाचर्चा के स्वरूप में बदलाव होना चाहिये। इसपर कुछ प्रतिक्रियायें आयी हैं।
कई लोगों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियायें दी हैं। लेकिन यह तय नहीं हो पाया कि आगे क्या किया जाये। और सुझाव आयें तो शायद मामला साफ़ हो।
आज नये ब्लागरों के बारे में परिचय रह गया। और भी बहुत कुछ रह गया लेकिन वह फ़िर कभी।
फ़िलहाल तो आप मौज करें। धांस कर या खांसकर। लेकिन मुस्कराते रहियेगा वर्ना गाल पर झुर्रियां पड़ जायेंगी। फ़िर न कहियेगा हमने बताया नहीं।
कल दिल्ली में फ़िर धमाके हुये। फ़िर इस पर कुछ पोस्टें आयेंगी। क्रिया होगी तो न्यूटन जी की दुआ से प्रतिक्रिया भी होगी।
जवाब देंहटाएंएक लाईना तो क्या खुब कही आपने !! मजा आ गया आभार !!
ये प्रतिटिप्पणी वाले आपके लिए बेनामी होंगे, लेकिन हमारा साईटमीटर इनकी पूरी जानकारी दे रहा है. वैसे अंदाजा तो आप भी लगा ही सकते हैं. खैर, उसे छोड़ा जाए. बात ये है कि क्या केवल आग में जलने के बाद ही उसकी विभीषिका का अंदाजा लगाया जा सकता है? औरों के परिणाम से कुछ सबक नहीं लिया जा सकता? साबित हो चुका है कि दुनिया भर में (खास तौर पर भारत जैसे विकास शील देश में) प्रतिवर्ष होने वाली मौतों के एक बड़े प्रतिशत के जिम्मेदार तम्बाकू जन्य रोग हैं.
जवाब देंहटाएंआज का एक लाइना तो मैराथन रहा. रिकॉर्ड तोड़ ६७ प्रविष्टियाँ और सभी एकदम मस्त. मजा आ गया.
बढ़िया लिखा है आपने। रिकॉर्ड तोड़ ६७ प्रविष्टियाँ और सभी एकदम मस्त. मजा आ गया. सक्रियता बनाए रखें। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंwww.gustakhimaaph.blogspot.com
पर ताकझांक के लिए आमंत्रण स्वीकार करें।
.
जवाब देंहटाएंअभी न जाओ छोड़ कर, अभी ये दिल भरा नहीं ...
हमारी वाली रानी का निकाल कर भी 66 जन बाकी हैं,
पढ़े जाने को ! सो, हमहूँ निट्ठलई में बिज़ी हैं ।
बाकी चिट्ठाचर्चा को व्यवसायिक हो जाना चाहिये,
वरना अनूप की समाधि पर लगेंगे हर वर्ष मेले..
बस अनूप ही न होंगे, गर होंगे तो ब्लागरों के ठेले
अनिल सिंह जी और लता मगेंशकर जी को हमारी तरफ़ से भी जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनाएं। 67 की मैराथान में हम भी स्थान पा गये, धन्य वाद, आभारी हुए। 67 के गाल की झुरीयों का तो आप ने इंतजाम कर दिया, वो सब मुस्कुराने की कसरत कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंआप की पसंदीदा कविता देखते ही आप की माता जी का स्वर जहन में गूंज उठा, बहुत सुंदर गाया था उन्हों ने वो गीत। कैसी हैं माता जी? आशा है स्वस्थ और प्रसन्न होगीं। बकिया डा अमर सही कह रहे है।
bahut khoob.....
जवाब देंहटाएंlines to bahut hi achchi lagi
आज की चिठ्ठा चर्चा बेहद सुंदर बन पडी है ! बहुत धन्यवाद और
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं !
पुरी चर्चा पढ़ कर आनंद आ गया ! और एक लाइना के ऊपर आपकी
जवाब देंहटाएंकी गई टिपणी का तो क्या कहना ! बधाई !
बहुत अच्छी चिट्ठा चर्चा है। एकलाइना पढ़कर तो मजा आ गया। एकलाइना लंबा रहे तो अच्छा ही है। अधिक से अधिक चिट्ठों की चर्चा हो जाती है और जायकेदार टिप्पणियों में भी इजाफा हो जाता है।
जवाब देंहटाएं"3000 हजार रुपये की चपत के लिये आभार दोस्तों!!:आभार की क्या बात आखिर में इसे झेलना हमी को है "
जवाब देंहटाएंपहले से सूचना दे दी है. फिर मत कहना कि मालूम नहीं था!!
आपने एक-लाईनाओं की संख्या बढा दी है. यह एक अच्छी बात है क्योंकि इससे काफी चिट्ठाकारों को प्रोत्साहन मिलेगा.
प्रोत्साहन मिले तो लोग आसमान छू लेंगे -- और दुवायें देंगे आप को!!
-- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
आज आपने करीब सत्तर पोस्टों का हालृ-चाल जाना
जवाब देंहटाएंऔर बताया। किस किस की नब्ज़ पर हाथ धरे हैं आप ? इतनी बड़ी संख्या देखकर ही गश खा गया मैं तो। ग़जब की ऊर्जा है आपके पास....
ईश्वर आपका भला करे...
बहुत खूब...
आपका बहुत - बहुत धन्यवाद. मैंने हिन्दी में अभी चंद दिनों पहले ही लिखना शुरू किया है. पर आपके इस चिटठा चर्चा ने तो मेरा मन ही मोह लिया है. पहले आपने मेरे ब्लॉग को नए ब्लोग्गरों की सूची में डाला. फिर आज मैंने देखा कि आपने मेरी पोस्ट को 'एक लाईना' में जगह दी. वो भी पहले स्थान पे. उत्साहवर्धन के लिए बहुत - बहुत शुक्रिया. ये एकदम एक परिवार की तरह ही लगता है.
जवाब देंहटाएंपुन: शुक्रिया
नीरज
सबसे पहले तो आपकी सेवाओ , आपकी उर्जा और आपके कार्य के लिए बधाई ! मेरा चिठ्ठा भी आपके चर्चा एक लेना में स्थान पा सका, मैं अभी हिन्दी ब्लागिंग में नवागत हूँ और लिखता नहीं अपितु आप लोगों को पढता अधिक हूँ .
जवाब देंहटाएंदरअसल "कुछ अपनी कुछ जग" की पोस्ट "हिन्दी ब्लागिंग और व्यवसायिकता की चिंता" एक प्रतिक्रियात्मक लेख था, जिसे मैंने उसी मूल स्वरुप में विचारार्थ पोस्ट कर दिया...आपने सही टिप दिया है कि "कुछ बता तो दिए होते..??" वैसे व्यवसायिकता के दृष्टिकोण से जो सफलता पूर्वक कुछ अर्जित कर पा रहे हैं उनके विचार अधिक महत्वपूर्ण हैं. मैं जहाँ तक सोचता हूँ कि ब्लागिंग शुरू करते ही लाभ अर्जन की सोच के साथ आने वाले लोग न तो निष्ठापूर्वक हिन्दी ब्लागिंग करते हैं न ही व्यवसायिक लेखन को बढ़ावा दे पाते हैं और बल्कि ऐसी नकारात्मकता के साथ चर्चा करके जो ब्लागर साथी गंभीरता लेखन कर रहें हैं, उन्हें हतोत्साहित अवश्य करते हैं.
मैं तो अनवरत आसपास के माहौल से प्रेरणा लेते हुए हिन्दी लेखन में रत रहने की हिमायत कर रहा हूँ शेष तो...हो ही जाएगा .......अनूप भाई.
आप सभी के विचार, सोच और सहयोग से हिन्दी ब्लागिंग से जुड़े प्रतिभाशाली ब्लागरस के लिए गौरव के दिन आने में अधिक देरी नहीं दिखता है.