पुलिस सेवा किसी भी अन्य नौकरशाही की तरह रचनात्मकता विरोधी है। मैंने पिछले तैतींस वर्षों की सेवा के दौरान यह अनुभव किया है कि यदि आप नौकरी के अतिरिक्त दिलचस्पी के दूसरे क्षेत्र नहीं रखेंगे तो धीरे-धीरे आप जानवर में तब्दील होते जायेंगे।
जो भाई लोग केवल नौकरी में मशगूल रहते हैं वे समझ लें। फ़िर न कहें कि बताया नहीं।
...लेकिन स्तन क्या इतने ही अवांछनीय और शर्मिंदगी का विषय हैं कि उनके बारे में चर्चा भी सहज होकर न की जा सके? दरअसल यह बात मुझे काफी देर हो जाने के बाद समझ में आई कि ये शर्मिंदगी का विषय तब हैं, जब छोटी-छोटी अनभिज्ञताओं की वजह से नवजात शिशु दूध न पी पाए। समय पर उनका वास्तविक इस्तेमाल न हो पाए।
अत: अमरीका का अर्थ-तंत्र कर्ज आधारित है. उपभोक्तावाद का बोल-बाला है. वैसे तो काफ़ी कुछ है लिखने के लिये पर लब्बो-लुआब ये की पिछली उछाल वाली साईकल में उत्पादकता और तरलता की दर अधिक होने से बेरोजगारी और महंगाई अपेक्षाकृत नियंत्रित रही हैं. लोगों में सुरक्षा की भावना थी - यूं समझा जाए की इसका फ़ायदा उठाने वाली साईकल शुरु की गई थी
ब्लागस्पाट की अपनी कुछ सीमितताएं हैं - जिनके चलते कबाडखाना वर्डप्रेस या टाईप-पैड आधारित ब्लाग्स जितना ‘स्ट्रक्चर्ड’ नहीं हो पाता वर्ना यह सामूहिक ब्लाग अन्य हर मानक पर हिंदी में सर्वश्रेष्ठ है!कबाड़ाखाना को जन्मदिन मुबारक।
नये चिट्ठाकार
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एक लाइना
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- अब और लिखने को क्या बाकी रह गया योगेश...बिना कलम ,स्याही, दवात इत्ता लिख गये ये कम है क्या भाई! :
- जागों हिंदुस्तान.. जागो हिंदुस्तानियों :उठो और अपना-अपना ब्लाग लिखो
- भर्ती मे देरी हुई तो प्राचार्य दोषी माने जाएंगें...:और उनको उन्हीं के स्कूल में भर्ती करा दिया जायेगा।
- जब मैं लूँगा हिसाब! :तो सबके होश ठिकाने लग जायेंगे
- तू सी ग्रेट हो : कहते हो तो मान लेते हैं
- क्यों नहीं श्मशान चला जाता? :और वहीं से अपना ब्लाग लिखता
- मेरा 'चौथा खड्डा' नवभारत टाईम्स पर :नवभारत टाइम्स में भी खड्डा खोद दिया पासपोर्ट के लिये
- फायदेमंद है मुहब्बत :चल गुरु हो जा शुरु
- बाढ़ है, मजाक नहीं : जो मुंह फ़ाड़ के हंस रहे हो, हाथ पर हाथ धरे
- जीरो साइज ठानी बाबा:कैसी कही कहानी बाबा
- इक बार तेरा चेहरा फिर देख लूँ :इसके बाद एक बार फ़िर देखेंगे इसके बाद फ़िर...
- भगत सिंह की सुनो :वो तुम्हारी सुनेगा
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- अलविदा ब्लागरो, फीर कभी और मीलेंगे (आखरी बार मूलाकात) :अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं
- आज विश्व ह्रदय दिवस पर सचित्र कुछ शायरियां :दिल शायरी में भी कूद पड़ा
- प्लेन में धक्का :लगाना पड़ता है तब स्टार्ट होता है जी
- आजमगढ़- कासे कहूं मैं जिया की बतियां:कहो हम सुन रहे हैं यार
- भारत नहीं है बेटियों का देश नहीं फिर क्यों मना रहे हैं डाँटर्स डे ?:लेकिन मना लेने में हर्ज क्या है जी?
तय करो किस ओर हो
इस ओर हो, उस ओर हो.
बातों को मनवाना हो तो
तर्कों में कुछ जोर हो.
या फिर
कुछ ऐसा कर जाओ कि
सदियों तक उसका शोर हो.
तय करो किस ओर हो
इस ओर हो, उस ओर हो. साधवी
मेरी पसन्द
दर्द में भी जो हंसना चाहो,
तो हंस पाओगे,
टूटे फूलों को भी पानी में डालो,
तो उनमें भी महक पाओगे।
जिन्दगी किसी ठहराव में,
कंही रुकती नहीं,
हिम्मत जो करोगे तो
मन्जिल में दोस्तों को पाओगे,
टूटे फूलों को भी पानी में डालो,
तो उनमें भी महक पाओगे।
अरमान कभी पूरे नहीं होते,
जो देखे जाते हैं,
वो भी आंसुओं के साथ,
आंखों से निकल जाते हैं,
फिर भी, किसी की खातिर,
खुद को सवांरोगे तो,
सराहे जाओगे,
टूटे फूलों को भी पानी में डालो,
तो उनमें भी महक पाओगे।
प्रीति बड़्थ्वाल’तारिका’
और अंत में
हमने तो उनको समझाया कि-ब्लागिंग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। बस। दुनिया के लोग यहां भी हैं। वैसा ही होगा सब कुछ जैसा दुनिया में होता है। समझे बिरादर!
और भी लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं। आप भी कुछ कहेंगे इस बारे में?
बरोब्बर!
जवाब देंहटाएंसई कया आपने "धांस के काम करें। मौज मजे से रहें। ब्लागिंग तो चलती ही रहती है."
काए परेसान हैं लोग अपने कबी लोग कै गए हैं-
'रहिमन यहु संसार में भांति-भांति के लोग,
कुछ तो...
चिन्ता कछु नांय.
शुक्रिया...!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंपहले शीर्षक पर ही टिपिया लूँ, फिर बाकी पोस्ट पढूँगा...
कद्दू दिवस ! आनन्दम आनन्दम...
कभी एक पोस्ट लिखी थी भारत एक दिवसप्रधान देश है...
पर मुझ् हतभगी के सूक्ष्म खोपडी में यह विचार क्यों न आया ?
डायनिंग टेबल पर कटने के इंतज़ार में रखा कद्दू मुँह चिढ़ा रहा है..
टके का आदमी मुझ 20 रूपये किलो के कद्दू का मज़ाक बना रहा है..
बाभन जिमाने को मुझे कल हेरता फिर रहा था ।
यह ब्राह्मण लोग इतने कद्दूप्रेमी क्यों हुआ करते हैं जी ?
पुलिस सेवा किसी भी अन्य नौकरशाही की तरह रचनात्मकता विरोधी है। मैंने पिछले तैतींस वर्षों की सेवा के दौरान यह अनुभव किया है कि यदि आप नौकरी के अतिरिक्त दिलचस्पी के दूसरे क्षेत्र नहीं रखेंगे तो धीरे-धीरे आप जानवर में तब्दील होते जायेंगे।
जवाब देंहटाएंDITTO ....
आज सिर्फ इतना कि कद्दू खाओ सेहत बनाओ, जो चले गए उन्हें याद करो और प्रसन्न रहो।
जवाब देंहटाएंकद्दू की कोई पाक विधि किसी के पास हो तो कृपा कर हमारे साथ शेयर करे
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह समग्र और उत्कृष्ट चर्चा।
जवाब देंहटाएंकद्दू तो हमारा पारिवारिक खाद्य है! :-)
बहुत ही कद्दू चिटठा चर्चा है :).यह चिटठा चर्चा भी .पसंद आई ,क्यूंकि कद्धू पसंद है :)
जवाब देंहटाएंसबसे पहले बधाई ....आपने जिन चार पोस्टो को उनके सन्दर्भ सहित चुना .....वाकई काबिले तारीफ.....आज की कई एक लाइना ...धाँसू है....सबको यहाँ समेटना मुश्किल है.......इसलिए फ़िर एक बार .....लाजवाब चर्चा
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनूप जी आपकी चिटठा चरचा से हमें कद्दू दिवस के बारे मे पता चला । :)
जवाब देंहटाएंशुकल जी , बड़ी उत्तम चर्चा ! आज लगता है सर्व पित्री अमावस्या है सो आदरणीय द्विवेदी जी ने
जवाब देंहटाएंसबको याद दिला दिया ! और लगता है अधिकतर घर में आज कद्दू अवश्य बना होगा ! भाई हमारे
यहाँ तो बना है ! और जिनको नही बनाना आता हो वे जाकर आदरणीय द्विवेदी जी के ब्लॉग पर
स्मार्ट इंडियन जी की टिपणी में विधी पढ़ कर बना ले ! बड़ा उत्तम स्वाद है कद्दू महाराज का !
बेहतरीन कद्दुमय चर्चा-आनन्द आया. जारी रहें.
जवाब देंहटाएंवाह मजा आ गया.. आच की चिट्ठा चर्चा में तो कद्दू ही कद्दू है..अब तो हम लोगों से कह सकते हैं कि भाई कद्दू खेत, छप्पर, और छत पर ही नहीं फलता.. हमारे ब्लॉगजगत में भी इसकी बहुतायत है :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चिठ्ठा चर्चा ! कद्दू दिवस याद दिलाने के लिए धन्यवाद ! वैसे आज अमावस पर भरपूर खीर, इमरती और कद्दू की सब्जी भूत लोगो ( दिवंगत ) के नाम पर डकारी गई hai ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंअनूप जी मेरी रचना को पसन्द करने के लिए शुक्रिया। फिर वही आपकी वन लाइना मेरी पहली पसन्द है। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपूरी चर्चा में अतिम लाइन बहुत पसंद आई। शुक्रिया।
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