सोमवार, सितंबर 15, 2008

माइक्रोचिप के पचास साल

 देश के हाल


कुछ लिखने के पहले कुछ समाचार: हिंदी दैनिक हिन्दुस्तान से साभार

  1. माइक्रोचिप के सफ़र की आधी सदी: पचास साल पहले जैक किंबले ने दुनिया का पहला माइक्रोचिप बनाया था। अगर आज माइक्रोचिप न होता तो हम जिस कम्प्यूटर को झोले में रखकर घूमते हैं वह एक अलमारी या कम से कम एक बक्से के बराबर तो होता ही।

  2. सेना की कैप्टेन नेहा रावत से छेड़छाड़ के मामले में मेजर जनरल ए.के.लाल बर्खास्त। कैप्टेन नेहा रावत के अनुसार गत सितंबर में मेजर जनरल लाल ने कैप्टेन नेहा रावत को साधना सिखाने के बहाने अपने बंगले पर बुलाया और उनकी साधना भंग करने की कोशिश की। कोर्ट मार्शल के बाद लाल साहब आराम से साधना कर सकते हैं।

  3. दिल्ली में हुये धमाकों के बाद केंद्रीय गृह सचिव मधुकर गुप्ता का बयान- हर धमाके से हम अनुभव हासिल कर रहे हैं।

  4. आंग सान सू की रिहाई के लिये टोक्यो में संराविवि के सामने बैठे समर्थक

  5. संसार के रहस्य की जानकारी पाने के लिये लगी महामशीन के कम्प्य़ूटर प्रोग्राम की हैकिग करके हैकरों ने बताया- ये प्रोग्राम स्कूली लड़कों के बनाये लगते हैं।


अब चिट्ठा जगत के समाचार:
नये चिट्ठाकार
 नीरज सारांश



  1. आओ बातें करें: नीरज सारांश से


  2. हिंदुस्तानी एकेडेमी :हिन्दी और उर्दू के विकास को समर्पित संस्था



  3. :खबरें आनलाइन : प्रेमजीत बाली के सौजन्य से


  4. नियो नाजी: मतलब राष्ट्रीय साम्यवादी


  5. चेतो अब तो सचिन मिश्र का आवाहन


  6. देश दीपक : प्रज्ज्वलित रहे


  7. दीपक भारतदीप की शब्द प्रकाश-पत्रिका:ग्वालियर से।


  8. सहज ज्ञान : पूनम के सौजन्य से।


  9. विचारोत्सर्ग: तरुन पराशर के विचार


 देश


कल अधिकतर पोस्टें हिंदी तथा दिल्ली के धमाकों पर केंद्रित रहीं। ताऊ ने अपना हिंदी लट्ठ बजाया!
हम मे आत्म सम्मान का होना जरुरी है और वो तभी होगा जब हम अपनी भाषा को सम्मान देना सीख जायेंगे !

इसी पोस्ट में डाक्टर अमर कुमार की टिप्पणी भी देख लीजिये:
मेरे ताऊ बावले... जैसे पितृपक्ष मनाया किया वैसे ही हिंदी पखवारा ..
या फिर जैसे पितृविसर्जन .. का दिन वैसे ही हिंदी दिवस !
अब हिंदी को किससे बचाना है.. या हिंदी को अपने ही से आगे बढ़ाने की अपील क्यों करवायी जाती है.. यही तो कोई बता नहीं पारहा है..


साहित्य शिल्पी का आवाहन है कि अंतर्जाल को हिन्दी सामग्री से भर दें..

शास्त्रीजी के ब्लाग पर संजय पटेल आवाहन करते हैं हिन्दी मात्र एक भाषा नहीं है!! शास्त्रीजी महान हैं। वे बिना टाइप किये अपने ब्लाग पर कापी पेस्ट की सहायता से साथियों को प्रोत्साहित करते हुये उनके लेख पोस्ट करने के महती काम सें संलग्न हैं। हिंदी की झमाझम सेवा कर रहे हैं। इसके लिये कोई सही मुहावरा याद नहीं आ रहा। पता नहीं- हर्र लगे न फ़िटकरी रंग चोखा यहां फ़िट बैठेगा या नहीं।

 मनोज बाजपेयी

आदमी का अतीत गाहे-बगाहे उसको चुटकियां काटता रहता है। मनोज बाजपेयी को अपना गांव याद आया:
गांव की याद और रामायण का कार्यक्रम की घटनाओं ने बचपन की याद भी दिला दी। मेरे गांव के घर के मंदिर में रोज सुबह दादा जी का रामायण का पाठ और उनसे रामायण की घटनाओं के बारे में सुनना याद आ गया। सच में अपने जगह की बात ही अलग है। सही कहा गया है कि तुम व्यक्ति को गांव से निकाल सकते हो पर गांव को व्यक्ति के अंदर से नहीं।


 अनिल पुसादकर

दिल्ली में हुये धमाकों के बाद अनिल पुसादकर की प्रतिक्रिया है-
धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता शब्द हिन्दूओं को खस्सी करने वाला साधन बन गया है और इसी को अल्पसंख्यक और उनके हितैषी अपने लिये सुरक्षाकवच की तरह इस्तेमाल कर रहे है। लेकिन उन्हें सोचना चाहिये कि हिन्दूओं की सहनशक्ति की भी सीमा है। उसके सब्र का बांध जिस दिन टूटेगा वो सबको बहा ले जायेगा।


ज्ञानजी भी आज गुस्साये हुये हैं। कहते हैं:
बहुत सच बोला जाना लगा है। उदात्त सोच के लोग हैं। सच ठेले दे रहे हैं। वही सच दे रहे हैं जो उन्हें प्रिय हो। खूब मीठे की सरिता बह रही है। करुणा भी है तो मधु युक्त। डायबिटीज बढ़ती जा रही है देश में।ज्यादा बुद्धिवादी सच ठिला तो सारा देश डायबिटिक हो जायेगा। कड़वा बोला नहीं जा सकता। कड़वा माने आरएसएस ब्राण्ड मिर्च। लिहाजा शुगर फ्री सच की दरकार है।


अनामदास काफ़ी दिन बाद आये लेकिन बात काम की बोल गये:
एक लाठी से समूची रेवड़ को हाँकना, एक कूची से सबको रंगना, एक सुर में सबको कोसना, एक गाली में पूरी जमात को लपेटना, एक सोच में पूरे देश को समेटना, एक कलंक पूरे मज़हब पर लगाना... आसान होता है, सही नहीं.
ख़ास तौर पर तब, जब हर तरफ़ बम फट रहे हों.



 अभिषेक ओझा

अभिषेक ओझा कृष्ण कथा कहते हुये बताते हैं कि दिल्ली धमाकों से किसको क्या मिला:
दिल्ली धमाको से आपको क्या मिला?

इनको तो मुंह माँगा मिला:

मीडिया को: ब्रेकिंग न्यूज़।
नेता को: एक और मुद्दा।
कचरे को: सिक्यूरिटी गार्ड।
ब्लोग्गर को: एक और पोस्ट।
नौकरशाह को: लिखने को एक भाषण और एक जांच कमिटी की सदस्यता।
पुलिस को: बहुत दिनों के बाद काम।
मोबाइल कंपनी को: कॉल में वृद्धि।
जनता को: आदत।
घायलों को: मुआवजा।


अरे बिरादर ने अपनी पोस्ट में खुलासा किया- ब्लागिंग में गिरोहबंदी: एक अप्रिय सच

 शमा

शमा अपने घर-परिवार के मुद्दों पर काफ़ी दिनों से विस्तार से बेबाकी से लिख रही हैं। उनके लेखों में उनके पति, बच्चियों और अपनी सास पर लिखे लेख हैं। उनके पाठक ,कम से कम टिप्पणियों से ऐसा लगता है, अभी उतने नहीं जितने शायद आगे आने वाले दिनों में बनें।

एक लाइना



 कीर्तीश भट्ट


  1. सौंदर्य बोध का हाईड एक्ट : सौंदर्य शास्त्री आलोक पुराणिक के सौजन्य से


  2. फ़िर आई गांव की याद : और फ़िर चली गयी


  3. शुगर फ्री सच की दरकार : अच्छा! इसलिये हो रही है फ़टकार


  4. जानने का हक है : छिपाने का भी तो कुछ हक होता होगा।


  5. अगले बरस तू जल्दी आ... : यही पोस्ट ठेल देंगे


  6. मैं तो, सिर्फ काग़ज हूं : मुझे आंसुओं के सागर में,मत डुबाना।


  7. ऑल ऑफ अस शुड यूज़ हिन्दी ? : इस हिंदी का अंग्रेजी अनुवाद क्या होगा विवेक सिंहजी?


  8. क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी : धरे रहो काम आयेगी आड़े वक्त।


  9. असली गुनहगारों को बचाने के लिए पोटा ज़रूरी है : अब हम क्या कहें?



और अंत में


कल जितेन्द्र भगत ने बताया कि हिदी ब्लाग जगत में गिरोहबंदी है। उनका आत्मविश्वास काबिले तारीफ़ है। जितेंद्र से अनुरोध है कि गिरोहों के नाम बता दें ताकि किसी को ज्वाइन करना हो तो ज्वाइन कर ले।

शास्त्रीजी, जैसा कि हम कह चुके हैं महान व्यक्ति हैं। हिंदी के उत्थान के लिये निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं। वे चाहते हैं कि हिन्दी का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार हो। इसके लिये वे अच्छी-अच्छी पोस्टों को अपने ब्लाग पर शरण देते रहते हैं। अब शास्त्रीजी चूंकि तमाम पारिवारिक सवालों का जबाब देने में व्यस्त रहते हैं वर्ना हम उनसे मेल करके पूछते- शास्त्रीजी आप समीर लाल जी आंख मींच कर टिप्पणी करते हैं!!या फ़िर दिनेशराय द्विवेदी सावधान हो जायें! शीर्षक क्यों रखते हैं अपने ब्लाग पोस्ट के। समीरलाल जी की आंख मूंचकर टिप्पणी करने वाली पोस्ट से हम उछल पड़े कि कुछ खुलासा हुआ होगा लेकिन देखा कि यह तो सारथी के अंदर का (हिन्दी)प्रचार शिशु है। शास्त्री जी की हिंदी प्रचार कामना वंदनीय च अनुकरणीय है।

ज्ञानजी के बारे में हम कुछ न कहेंगे। वे बहुत ताव में हैं आज! हमने कहा ढाक के तीन पात तो वे बोले नहीं नागफ़नी कह लो। आज उनके दफ़्तर में कोई न कोई अधीनस्थ हिंदी में डांटा जायेगा।

बहरहाल, यह हमारा मानना है। कहा सुना माफ़ न किया जाये। कहा जाये। फ़िलहाल चलें आफ़िस बुला रहा है।

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12 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi kathn kam me lage hue hain aap.sab ko padhna, padh kar chhantna, aur fir un sab ki samiksha ur pratikriya ,aur uske bad khood bhi likhna.kafi samay lene aur thaka dene wala safar tay karte hain aap, lekin aapki mehnat se hum jaise naye bloggediyaon ka nasha bana hua hai, aapka protsahan humari chilam ko khali hone se pehle hi fir bhar deta hai, aabhar aapka.

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  2. कल जितेन्द्र भगत ने बताया कि हिदी ब्लाग जगत में गिरोहबंदी है। उनका आत्मविश्वास काबिले तारीफ़ है। जितेंद्र से अनुरोध है कि गिरोहों के नाम बता दें ताकि किसी को ज्वाइन करना हो तो ज्वाइन कर ले।
    http://halchal.gyandutt.com/2008/07/blog-post_11.html#comment-6308652759277994980

    गिरोहों kae naam yaahan sae laelae jitendre to naye haen mehsoos kar paa rahey haen par aaj kal to pratyksh pramaan dena hota haen naa

    शास्त्रीजी आप समीर लाल जी आंख मींच कर टिप्पणी करते हैं!!या फ़िर दिनेशराय द्विवेदी सावधान हो जायें! शीर्षक क्यों रखते हैं
    http://chitthacharcha.blogspot.com/2008/06/blog-post.html
    yahaa jaaye aur apnii baat kaa jwaab paaye

    sab hee apeny aur apno kae prachaar mae lipt haen ab mahaan kaa tamga to ek dusrey ko aap sab khud hee dae daetey

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  3. स्त्रियों की जुती बैलगाड़ी का चित्र तो बहुत मन को कष्ट दे रहा है।

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  4. भार खिंचती नारियों पर गर्व करूँ या शर्म महसुस करूँ यही नहीं समझ पा रहा.

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  5. .

    टिपेर प्रवक्ता ™ की ओर से..
    असुविधा के लिये ख़ेद है..
    Ж आज हिंदी में डाँटने का संकल्प निश्चय ही एक नयी आशा की किरन है, माते हिंदी के लिये ...
    आइये हमसब हिंदीसेवी हिंदी-दिवसीय बुखार उतरने तक अपने अधीनस्थ एवं भृत्यजनों को हिंदी में ही डाँटने का व्रत लें..
    Ж यदि आप कड़वे सच की चाशनी पगी मिष्ठान से तंग आ गये हों, तो सूगरफ़्री के छेने से राहत पायें । अप्रिय सच के बहिष्कार से चहुँ ओर पवन पागल बसंती बयार का आनन्द लें
    Ж निकम्मे मर्दों का बल हैं , ये अबलायें.. कृपया इन पर तरस न खायें
    Ж विवेक जी, आई टू वांट टू एडाप्ट हिंदी, बट इट इज़ बिकमिंग डिफ़िकल्ट तो ट्रांसलेट माई वीपिंग एंड मोनिंग इन हिंदी.. अ्नीबाडी हैज़ सज़ेशन टू आफ़र ?
    Ж पोटा लगे तो सही... नकली गुनाहगारों को राहत देने की दिशा में एक अतिठोस कदम !
    Ж जी नहीं बाजपेयी जी, घर से बाहर जाते समय हम तो गाँव को एक तहमद की तरह तह करके सहेज़ जाते हैं,
    शहरी पायज़ामा की गाँठ भी गाहे बगाहे सम्मान समारोहों में खोल गँवई-दर्शन करा देते हैं,
    अब आत्मा निकार के दिखाना आपके बस की बात होगी, वैसे तो !
    Ж ताऊ बावले, यह आत्मसम्मान का पाठ मनमोहन सिंह मेमोरियल में तो नहीं पढ़ आया ?

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  6. @ आ. पाण्डेय जी एवं सँजय बेंगानी जी
    "स्त्रियों की जुती बैलगाड़ी का चित्र तो बहुत मन को कष्ट दे रहा है।"
    " भार खिंचती नारियों पर गर्व करूँ या शर्म महसुस करूँ यही नहीं समझ पा रहा."
    आप दोनों का धन्यवाद की आपका ध्यान इस और आकर्षित हुआ और शायद चिठ्ठाकार
    की नियत भी इन सबके पीछे यही रहती है की इन अनछुए पहलुओ पर भी पाठक ध्यान
    दे सके ! मैंने ये दृश्य अहमदाबाद की सड़को पर बहुतायत में देखे है ! शुक्ल जी ने कहाँ से
    यह फोटो ग्राफ लिया है यह तो वो ही बता पायेंगे !

    इसमे आ. पाण्डेय जी को पीडा हुई और बेंगानी जी असमंजस में हैं की वे गर्व महसूस करे या पीडा ?
    अब इसमे मेरी राय यूँ शामिल कर लिजीये - फोटो देख कर निश्चित ही पीडा होती है ! पर इसका हेतु
    पता होने पर गर्व होता है ! ये औरते मजदूरी करके अपना घर बार चलाती हैं ! और ये कोई किसी की
    दाब धौंस में ऐसा नही करती ! जयादातर इनमे मैंने पति पत्नी को गाडी खींचते देखा है ! अब ये हाथ गाड़ी
    के मालिक है या दिहाडी मजदूरी वाले ! पर दोनों ही स्थितियों में मुझे तो इन पर गर्व ही हो रहा है की मेहनत
    से अपना सर उंचा करके जी रही हैं ! क्योंकि स्त्री उत्पीडन के जो अन्य पहलू हैं वो ज्यादा वीभत्स है ! जिनमे
    नारी का उत्पीडन उनकी मर्जी या बिना मर्जी के अन्य तरीको से होता है !

    @ भाई अनिल पुसदकर जी , ज्यादा नशा अच्छा नही है ! और शुकल जी इतनी भी चिलम पीने के आदी मत
    बनावो लोगो को ! तम्बाकू सेवन ठीक नही होता ! ठीक है सुबह शाम खाने के बाद दम लगा लिया ! पर आप
    खाली ही नही होने देते !:)

    बहुत अच्छी चर्चा ! आपको बधाइयां !

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  7. सच कहूँ तो मेरी समझ में यही नहीं आ रहा है कि मेरे व्यंग्य के बारे में जो चर्चा की जा रही है उसे में इसकी तारीफ समझूँ या टाँग खिंचाई . एक तो मैं नया, ऊपर से ये महानुभाव बातें घुमा फिरा कर करते हैं . अगर ये तारीफ है तो शुक्रिया . टाँगखिंचाई है तो भी शुक्रिया . क्योंकि यह भी हर किसी की नहीं होती . वैसे मेरा मानना है, किसी लेख पर चर्चा हो रही है तो सौभाग्य . पर साथ ही साथ वहाँ भी एक टिप्पणी छोड दी जाय तो परम सौभाग्य .

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  8. ये फोटो लगाने वाला आइडिया बढिया है, पर ध्यान रहे कि कॉमिक्स न बन जाए.
    फोटो ने चिट्ठा चर्चा को जीवंत कर दिया है, परन्तु यदि और अधिक हो गए तो यह बुरा हो जायेगा.

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  9. ये चित्र...


    जमाये रहिये.

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  10. लो भाई, इतना विस्तार में चर्चा और हम फिर छूट गये...:)

    http://udantashtari.blogspot.com/2008/09/blog-post_15.html

    चलो, हम तो स्वप्रचार में माहिर हईये हैं तो पताका फहरा दे रहे हैं.

    बकिया चर्चा बहुत उम्दा. सही जा रहे हैं. हम आँख मींचे टिपिया, ओह!! न न!! कट पेस्ट करके निकलते हैं. :)

    जवाब देंहटाएं
  11. शुक्ल जी, सचमुच आप एक अत्यंत कठिन, लेकिन सराहनीय कार्य में लगे हुए हैं।

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  12. "हर्र लगे न फ़िटकरी रंग चोखा यहां फ़िट बैठेगा या नहीं।"

    आधा फिट बैठता है, आधा नहीं.

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है, अत: वाकई में हिन्दी-प्रेम मेरे सर पर चढ कर बोलता है.

    "शास्त्रीजी आप समीर लाल जी आंख मींच कर टिप्पणी करते हैं!!या फ़िर दिनेशराय द्विवेदी सावधान हो जायें! शीर्षक क्यों रखते हैं अपने ब्लाग पोस्ट के। "

    जिससे कि पाठक आकर्षित हों! चिट्ठाकारी में आने के 35 साल पहले जर्नलिज्म का कोर्स किया था एवं शीर्षक की महत्ता गुरूजी ने ठोक ठोक कर मन मे भर दी थी.

    आप जिस यत्न से लिखते है उसके लिये आभार. शीर्षक चित्र देखकर मन को कष्ट हुआ. ऐसे चित्र जरूर देते रहें जो जनमानस को इस तरह जगाता रहे!!


    विनीत

    शास्त्री जे सी फिलिप

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

    जवाब देंहटाएं

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नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

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