रवीश कुमार बिहार के दौरे से वापस आये हैं। कोसी की बाढ़ की असलियत बता रहे हैं। उनका आक्रोश उनसे कहलवाता है:
मेरी राय में कोशी को पटना तक आना चाहिए। इस सड़े हुए प्रदेश को सिरे से उजाड़ देना चाहिए। किसी को बिहार की ऐसी छवि से परेशानी हो सकती है लेकिन कोशी जानती है कि बिहार को एक दिन नई छवि बनानी होगी तब तक के लिए वो तटबंधों को तोड़ ऐसे भ्रष्ट समाज और सरकार को ढूंढने के लिए तबाही लाती रहेगी।
कभी अपने नवजात पंखों को देखता हूं
कभी आकाश को उड़ते हुए
लेकिन ऋणी मैं
फिर भी जमीन का हूं
जहां तब भी था जब पंखहीन था
तब भी रहूंगा जब पंख झर जाएंगे। वेणुगोपाल
प्रख्यात पर्या्वरणविद अनुपम मिश्र का लेख तैरने वाला समाज डूब रहा है पिछले दो दिन से बहुत चर्चा में है। यह लेख चार साल पहले लिखा गया था। वे लिखते हैं: कभी आकाश को उड़ते हुए
लेकिन ऋणी मैं
फिर भी जमीन का हूं
जहां तब भी था जब पंखहीन था
तब भी रहूंगा जब पंख झर जाएंगे। वेणुगोपाल
बाढ़ आज से नहीं आ रही है... हमें कुछ विशेष करके दिखाना है तो हम लोगों को नेपाल, बिहार, बंगाल और बांग्लादेश- सभी को मिलकर बात करनी होगी। पुरानी स्मृतियों में बाढ़ से निपटने के क्या तरीके थे, उनका फिर से आदान-प्रदान करना होगा। उन्हें समझना होगा और उन्हें नई व्यवस्था में हम किस तरह से ज्यों का त्यों या कुछ सुधार कर अपना सकते हैं, इस पर ध्यान देना होगा।अब देखिये कोसी का दुख मुम्बई तक पीछा करता है। ट्रैफ़िक के दलदल में मन बहलाते प्रमोदजी कहते हैं:
जिनके जीवन में जल आना था, तबाहियों का गाना व टूट-टूटकर जिनका जीवन बिलाना था, वो मृतप्राय व ध्वस्त न हुए हों, और अभी भी आसमान और हवाओं में हाथ भांजते रहने की ताक़त रखते हों, लेकिन अंत में अंतत: उनकी औकात क्या है? चार दिन तक भूखे रहने के बाद पांचवे पेट में कहीं से कुछ अन्न पहुंच जाये, हाहाकारी जिजीविषा कहीं किसी तरह का ज़रा ठौर पा जाये, इतना ही भर तो उनके जीवन चरम कौतुकगान होगा, सहरसा का मगही सौगाती पान होगा?
आज ख़ुद को एक बेरहम सजा दी मैंने ,
एक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने
तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
"आग लगा दी मैंने" सीमा गुप्ता
मानसी ने रवींन्द्र नाथ टैगोर की कविता का भावानुवाद करने का दुस्साहस किया तो ममताजी अभी तक इलाहाबाद की ही सैर करा रही हैं। बकौल ज्ञानजी- बड़ा ही सूक्षम परिचय। जैसे चित्रों के साथ पूरा नैरेटिव बोला जा रहा हो।एक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने
तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
"आग लगा दी मैंने" सीमा गुप्ता
वीरेन डंगवाल अपने मित्र कवि वेणुगोपाल को याद करते हैं| याद में जमाने कि प्रति तल्खी भी है:
इस वक्त जब मैं यह लिख रहा हूं सितंबर की तीन तारीख की रात को, तो बाएं हाथ में मोबाइल पर वेणु का नंबर भी ढूंढ़ रहा हूं। और वह लीजिए, अंगूठा दबाकर मैंने उसे डिलीट भी कर दिया। भीषण कैरियरिज़्म, स्वार्थ, अवसरवाद और अहंकार से बजबजाती हिंदी कविता की कृतघ्न समकालीन दुनिया तो अपनी तरफ़ से उसे कभी का डिलीट कर चुकी थी। विचारदारिद्र्य, चापलूसी और प्रगति तथा नवताद्रोह के अक्षय कोष हिंदी विभागों की तो खैर बात ही क्या करनी।
इधर देखिये अभिषेक सौन्दर्य का गणितीय अनुपात बताते हैं।
एक पठनीय लेख: बलात्कार की सायकोलाजी - यह एक मानसिक ट्रामा है!
ये भी बांचिये: विज्ञान की रंगोली साहित्य के झरोखे से
एक लाइना
- जिंदगी........ जिंदगी..............जिंदगी एक के साथ दो मुफ़्त में।
- : शाकाहार तो प्राकृतिक नहीं हो सकता! : सिवाय दिमाग खाने के।
- तुम्हारी याद है : इश्क में तेरे ये दिल बर्बाद है!
- :कोशी ढूंढ रही है सबको : उस मतदाता को भी भ्रष्ट राजनेता चुनता है
- जिनसे मिलता है प्यार : उनको याद करना कौन बहादुरी है यार!
- एक पिता का पत्र पुत्री के नाम: मिल गया पढ़ा जा रहा है!
- गम कहते हैं : हमको लिख के पोस्ट कर दो!
- ईनके पिताजी घाटन किये थे - चाकू भाला लेकर कट्टा बन्दूक का जुगाड़ हो नहीं पाया था उस समय!
- समझेगा कुरान की वो खामोशियाँ कैसे कोई जुगाड़ी साफ़्टवेयर तलाशेगा!
- कैसे हुआ मैं आदित्य रंजन : मां-बाप की खुराफ़ातों से!
- एक नरसंहार के बाद दूसरे भीषण नरसंहार की तैयारी : में कोई कमी नहीं होनी चाहिये
- वूमेन नहीं नहीं सुपर वूमेन चाहिये :जल्दी करें। लेकिन उसे ’ट्रेडीशनल मैन’ ही मिलेगा
- आम आदमी ले तो घूस नेता ले तो दान इस सच से काहे हैं निठल्ले हलकान
- अपनी सी धरती: चुपके से सूरज को निगल जाती है।
- साईंबाबा-का-समाधि-मन्दिर/: देख लीजिये जब आयें हैं तो
- कानूनी कार्यवाहियों में बाधक अनुबंध शून्य हैं। : ये शून्य कानून से खुद का गुणा करके कानून को भी शून्य कर लेते हैं!
- नया ज्ञानोदय मे साइबर फेमिनिज़्म और हिन्दुस्तान में चोखेर बालियाँ : छाई हैं।
- हमें सिनेमा से प्यार है: हमें भी।
- : जोगी के शेर पेशे खिदमत हैं।
- कोशिश: जारी है!
- जनसाहित्य : में पार्टी प्रोग्राम!
- कविता प्रयास : शुरू हुआ अनायास
- शब्द निरंतर:निरंतरता बनायें रहें।
- प्रहलाद कुमार अग्रवाल : ब्लाग टाइटिल तो हिंदी में करें।
- भारतीय भुजंग: लवली की पेशकश
- आते हुये लोग : अच्छे लगते हैं।
- दिव्य सतसंग: उड़ी बाबा बापू आशाराम
- समृद्धि घर ले आई गई : उसका समृद्धिकर भरते नहीं इसी बात से खफ़ा हैं डा. अमर कुमार
- मुझे अपना विश्वास तो दो : हम उसमें ’अ’ जोड़ के लौटा देंगे! प्रामिस!!
- यही होता ब्लाग है क्या????????? : और क्या सोच के आये थे?
- कोसी के पेटे से एफो़ - दूफो़ ... और तीफ़ो: वहां लोग मर रहे हैं और आप बिंब तलाश रहे हैं
- और उन्हें मुझसे प्यार हो गया : और इसके बाद कुछ बचता नहीं कहानी खल्लास कर दी!
- गम और मैं : साथ हैं और अच्छी निभ रही है।
- भूखी जनता नेताओं से मारपीट पर उतरी : लेकिन नेता जनता का कल्याण करने पर आमादा हैं
- सरकार कहती है, ये हैं बाल अधिकार !: और आप बच्चों को अधिकार न देकर पट्टी पढ़ा रहे हैं।
- …और ये फ़ुरसतिया के चार साल : अरे बाप रे इत्ते दिन से झिला रहे हैं!
- सफलता और उद्यम - अशोक का शिलालेख : उठा के शास्त्री जी ने अपने ब्लाग पर धर लिया।
- कोसी से कितनी दूर : पानी कम हो तो नपाई हो
-
एक साल का नन्हा चिट्ठा : कित्ता क्यूट लग रहा है! है न! - बाढ़ पर झूठ का परदा न डालें : बह जायेगा, बेफ़ालतू में नुकसान होगा!
- इस बर्बादी के किरदार : हम नहीं हैं यार!
कभी दिन के पहर यूँ ढ़ीले से चढ़ते हैं... हर धुन बेसुरी हो जाती है...
कुछ तो करो की तन जाये तार....
कोई बात छेड़ो ऐसी सुरीली शाम हो जाये बेजी
कुछ तो करो की तन जाये तार....
कोई बात छेड़ो ऐसी सुरीली शाम हो जाये बेजी
साथ-साथ
चलते थे तारे
गाँव छूटते जाते थे पीछे
अगल– बगल सब
साथ तो थे पर
सोते ढीले
टिकी रहीं आँखें तारों पर
पैरों तले
ज़मीन निकलती रही
अजाने. . .
पूर्णिमा वर्मन
चलते थे तारे
गाँव छूटते जाते थे पीछे
अगल– बगल सब
साथ तो थे पर
सोते ढीले
टिकी रहीं आँखें तारों पर
पैरों तले
ज़मीन निकलती रही
अजाने. . .
पूर्णिमा वर्मन
मेरी पसन्द
घर जला, रोशनी हुई साहिब
ये भी क्या जिन्दगी हुई साहिब
है न मुझको हुनर इबादत का
सर झुका, बन्दगी हुई साहिब
भूलकर खुदको जब चले हम, तब
दोस्ती आपसे हुई साहिब
तू नही और ही सही कहना
क्या भला आशिकी हुई साहिब
खुद से चलकर तो ये नहीं आई
दिल दुखा, शायरी हुई साहिब
जीतकर वो मजा नहीं आया
हारकर जो खुशी हुई साहिब
तुम पे मरकर दिखा दिया हमने
मौत की बानगी हुई साहिब
'श्याम' से दोस्ती हुई ऐसी
सब से ही दुश्मनी हुई साहिब
डा.श्याम सखा’श्याम’
और अंत में
भोर भयी इतवार की, हम रहे बिस्तर पर अंगड़ाय,ई जो ऊपर कवितानुमा चीज दिखाई दे रही है ऊ हम नहीं लिखे। सच्चाई है अपने आप लिख गयी। कविता के इस फ़ार्म को मुंडलिया के नाम से जाना जाता है और ब्लागजगत में इसकी शुरुआत समीरलाल ने की। इसीलिये उनको मुंडलिया नरेश भी कहा जाता है।
सूरज आया गेट पर, हम उसको भी दिये भगाय,
उसको दिये भगाय कि अभी तो धांस के सोना है,
रात जगे हैं देर तक, उसका हिसाब भी होना है,
अभी पधारकर आप जी, मत करिये मुझको बोर,
जब हम जागेंगे नींद से, तभी होयेगी अपनी तो भोर।
समीरलालजी का जिक्र इसलिये भी आया कि यह अब वे हर गुरुवार की चर्चा करेंगे। पहले जब वे नियमित चर्चा करते थे तो शुरुआत मुंडलिया से ही करते थे। अब आगे आप उनकी शानदार च जानदार चर्चा का आनंद गुरुवार को उठायें। इस तरह अब चार चर्चाकार नियमित हो गये हैं। वुधवार को कुश, गुरुवार को समीरलाल और शनिवार को तरुण। बकिया दिन के लिये फ़िलहाल हमीं को झेलना होगा आपको जब तक कोई साथी उत्साहित नहीं होता।
कल तरुण ने अच्छी चर्चा की। फ़िल्मी कोना उनकी पसंदीदा चीज है। एक-दूजे के लिये नया आइटम था। ज्ञानजी परसों से खफ़ा हैं काहे से उनके ब्लाग की चर्चा नहीं हुयी। परसों बोले-
वैरी सैड, यह पोस्ट-चर्चा है! चिठ्ठा-चर्चा नहीं। अब हम पोस्ट न लिखें तो फेड आउट हो जायें! :-)
कल भी मूड वही रहा:
बहुत समय पहले बिना मेहनत से की गयी चिठ्ठाचर्चा भी ठूंठ हुआ करती थी!यहां बहुत समय पहले से उनका मतलब एक दिन पहले से था। अब ज्ञान जी को कैसे समझाया वो मुंह फ़ुलाये उत्ते हसीन नहीं लगते जित्ते समीर लाल लगते हैं। समीरलाल तो गाते हुये भी हसीन लगने का भरम बनाये रहते हैं लेकिन ज्ञानजी को इस तरह के छलावे में नहीं पड़ना चाहिये। वे तो ज्ञानी पुरुष हैं।
वैसे ताऊ जब तक हमारे साथ हैं तब तक वैसे भी कौनौ चिंता नहीं। कल उन्होंने कह भी दिया:
तरुण जी बहुत सुंदर ! आपको अब क्या सलाह दूँ ? टिपणी की फिकर नही ! यह आइटम भविष्य का सुपरहिट प्रोग्राम होवेगा ! नही हो तो ताऊ का लट्ठ ताऊ के सर पे ही बजा देना !
हमारे ब्लाग फ़ुरसतिया के चार साल पूरे होने के साथ-साथ मीनाक्षी जी के ब्लाग का साल पूरा हुआ। उनको हार्दिक बधाई!
लवली को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिये कि तारीफ़ करने को घूस मानते हैं- डा.अमर कुमार। सबसे बेलौस घूस देने वाले तो वे खुद हैं। बहरहाल फ़िलहाल इत्ता ही। बाकी कल फ़िर।
शुक्ल जी बहुत बढिया जम रही है ! ताऊ पाला नही बदलते !
जवाब देंहटाएंआप चिंता फिकर छोड़ कर काम पे ध्यान दो ! ताऊ लट्ठ
लिए आपके साथ खडा है ! जिस पर बजवाना हो आप तो
आदेश करिएगा ! :)
इतनी मेहनत और चर्चा की उत्कृष्टता को एक्नॉलेज करने और प्रशंसा करने के सिवाय किया भी क्या जा सकता है - भले ही हमसे मौज लेने का प्रयास किया गया हो! :)
जवाब देंहटाएं"नए चिट्ठाकार" बहुत प्रोत्साहन का कार्य है.
जवाब देंहटाएंकार्टून बहुत पसंद आया!
आपके मेहनत की दाद देते हैं!!
आदित्य को चर्चा में स्थान दिया.. धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंबहुत सही!!!
जवाब देंहटाएंकसरत चालू है, गुरुवार की तैय्यारी के लिए.
बधाई इस बेहतरीन चर्चा के लिए.
.
जवाब देंहटाएंघूस काहे नहीं कहेंगे, भाई ?
लोग सीने पर चढ़ कर घूस लेते हैं
बल्कि घुस घुस कर घूस लेते हैं,
चर्चा न हो तो घूँसा दिखा कर घूस लेते हैं
फिर लगता है कि चर्चाकार के मर्ज़ी की क्या वक़त ?
आज ज्ञानचारा देखकर ज्ञान जी की लहालोट टिप्पणी प्रगट हुई कि नहीं ?
ज्ञानचारा का मतलब आज की चर्चा में ज्ञान शब्द का चार बार उल्लेख किहे हो,
अऊर .. ’ धत्त, बड़े वो हो कि तर्ज़ पर’ मौज़ लेने का प्रियास किया जा रहा है,
कह कर फ़ारिग हो लिये..
प्रियास किया नहीं जा रहा है.. बल्कि आप पर प्रयास तो हो गया समझो, गुरुवर !
ई फ़ुरसतिया हैं ऊपर से जन्मजात कनपुरिया ..
अब प्रियास से और आगे बढ़ने को क्यों न्यौत रहे हो, गुरुवर ?
हम तो एक्को बार नहीं कहे कि,
भाई हम रो पीट कर महीने में एक पोस्ट जनते हैं, सोहर बधावा कुच्छौ नहीं,
बेचारा शब्दों की तलाश में भटक रहा है.. दो दिन से !
अरे, चर्चाकार की मर्ज़ी का आदर बतौर पाठक करना चाहिये कि नहीं ?
या अब हर कोई जबरिया चर्चा करवायेगा, क्या ?
ऒऎ ताऊ, अपना लट्ठ ब्लागजगत के दीमकों से संभाल के रख ले.. ये पानीपत कोनी ?
देख, आदित्य को स्थान मिला कि नहीं ... लट्ठ पर लगाम दे.. वरना दीमक चर जांगे !
और, शास्त्री जी आपने दाद तो यहाँ दे दी,
अब हमको एक रिंगकटर न सही ज़ालिम लोशन ही थमा दो !
बढिया चर्चा रही !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब चर्चा भी खिंचाई भी, तभी हम कहें समीरजी नियाग्रा फाल के किनारे दंड बैठक करते क्यों दिखे थे। कारण यहाँ आकर पता चला। उन्होंने भी कह ही दिया कसरत चल रही है कहाँ चल रही है वो हमने खुलासा कर ही दिया। चलिये अब आपको भी थोड़ा घरबार देखने को मिल जायेगा।
जवाब देंहटाएंनही बख्शा आपने हमें
जवाब देंहटाएंसोंच कर तो हम कुछ और ही आए थे
मगर क्या करे दिल के अरमा आसुओं में बह गए
बहुत अच्छी चिटठा चर्चा
वीनस केसरी
www.venuskesari.blogspot.com
शुक्रिया अनूपजी ... चार साल का चिट्ठा मुबारक...आजकल चिट्ठाचर्चा ऐसी जैसे अखबार की सुर्खियाँ हों...ब्लॉगजगत की लगभग सारी खबर मिल जाती है फिर भी 'एक लाइना' को बढ़ाया
जवाब देंहटाएंजा सकता है जो पढ़ने रोचक तो होती ही हैं, नए नए ब्लॉग पढ़ने को भी मिल जाते हैं.
४ साल पूरे होने की बधाई.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंअभी इलाहाबाद घूमने से घबराएं नही क्यूंकि अभी हम और घुमाने वाले है। :)