आज हिंदी दिवस है। सरकारी दफ़्तरों में सप्ताह, पखवाड़ा और कहीं-कहीं तो हिंदी माह भी मनाया जाता है। पत्रिकायें प्रकाशित होती हैं। गाना गाया जाता है। भाषण होते हैं। प्रतियोगितायें होती हैं। इनाम बांटे जाते हैं। और भी न जाने क्या-क्या अल्लम-गल्लम होता है। हिंदी को वैज्ञानिक भाषा बताया जाता है। निज भाषा उन्नति अहै और मानस भवन में आर्य जन जिसकी उतारें आरती दोहराया जाता है। साल भर में जित्ती हिन्दी लिखी जाती है उत्ती अकेले इस मौके पर लिख डाली जाती है। बहरहाल इसमें कोई नयी बात नहीं है। हर साल होता है सो सोचा कि आपको बता दें। आपको हिन्दी दिवस की बधाई।
ब्लाग जगत में भी हिंदी दिवस के अवसर पर अनेक लेख लिखे गये। आप देखिये बड़े अच्छे-अच्छे लेख हैं। संजय बेगाणी ने हिंदी दिवस सेलिब्रेट करने के कुछ सरल सुझाव दिये हैं। उनमें से ज्ञानजी को अपने कर्मचारियों को हिंदी में ही लताड़ने वाला सुझाव बेस्टतम लगा। लेकिन बेस्टतम कहते समय वे यह भूल गये कि हिंदी दिवस के दिन जहां वे हैं वहां का बास कोई और है और उसका हाथ शायद हिंदी में इत्ता तंग भी नहीं है।
हिंदी दिवस के अवसर पर आइये आपको कुछ मुहावरों के बारे में बताते हैं। इनके अर्थ आप जानते होंते लेकिन प्रयोग में हिचकिचाहट होती है। गलत प्रयोग हो जाने से सुनने वाले में किचकिचाहट होती होगी। सो हम हिंदी दिवस के बहाने कुछ मुहावरों और कहावतों का प्रयोग करके बता रहे हैं।
- दिल से :ब्लाग लिखेंगी मयूरिका
- नुक्ताचीनी: अप्रैल से नहीं हुई
- :आरोहण चलता रहे तब है
- स्नेहांचल : में उमर खैयाम की रुबाइयां हैं
- शारदा हिंदी में लिखें ब्रजमोहन जी।
- नमस्कार : नमस्कार कोटक जी।
- शब्द निरंतर:निरंतरता बनायें रखें।
- पीपी का ब्लाग : हिंदी में पीपी करिये जी।
- अधोगामी: हरकतें मती करियेगा जी
- लिया का हिंदी चिट्ठा:लिया अमेरिका से हैं जी!
- सोनल के शब्द:सुनाई देंगे आपको यहां।
- हम लोगों की दुनिया :घुमायेंगे प्रभात
- अपना सपना इस ब्लाग पर ही दिखेगा अब तो।
- मानस के अमोघ शब्द: हिंदी, मात्र भाषा या मातृ भाषा...
- शाश्वत:शाश्वती किधर हैं भाई!
- मेरी कविता : पहली में ही दूल्हा बेंच दिया -वाह हेमंत।
- फ़तेहपुर : घुमायेंगे आपको मास्टर प्रवीण त्रिवेदी
- मग्निफ़िसेंट बिहार:बिहार भी मैग्निफ़िसेंट हो लिया- व् चौचक!
- सवा सेर:सेर कहां धर दिया जी।
- चिंतन :चालू आहे
- ढाक के तीन पात: ज्ञान जी को इत्ता सिखाया गया कि मजाक कैसे किया जाता है। भाभी जी ने जिन्दगी भर ट्रेनिग दी लेकिन उन्होंने जो मजाक करने का प्रयास किया उसमें मजा नहीं आया मामला वही ढाक के तीन पात रहा।
- दूर के ढोल सुहावने होना: दूर के इतिहासकार अच्छे लगना मतलब दूर के ढोल सुहावने होना।
- मुंह तोड़ जबाब: अपने खिलाफ़ फ़ैलायी जा रही अफ़वाहों का मुंह तोड़ जबाब देते हुये रक्षंदा फ़िर से ब्लाग जगत में लौट आयी।
- काम से जी चुराना: घोस्ट बस्टर काम से जी चुराते हैं। कोई काम कायदे से पूरा नहीं करते। पहले अभय के खिलाफ़ मामला अधूरा छोड़ दिया, फ़िर रक्षंदा को लड़का साबित करने का काम अधूरा छोड़ कर ब्लागर प्रोफ़ाइल के बारे में बताने लगे। ऐसे आधे-अधूरे मन से काम करने से किसका भंडा फ़ूटता है भाई!
- नुक्स निकालना: नुक्स निकालना भी कभी-कभी कित्ता फ़ायदेमंद होता है। करेला अच्छा लगने लगता है, क्षणिका बन जाती है।
- गुस्से में विवेक की वाट लगना: दिल्ली में मीडिया की दुकानदारी देखकर मसिजीवी गुस्सा हो उट्ठे और गुस्से में उनके विवेक की वाट लग गयी
- जैसी दुकान वैसा पकवान: टिप्पणी की दुकान खुली है और डुगडुगी बजी है। इससे हैरान क्यों हैं जी ये तो सहज बात है जैसी दुकान वैसा पकवान।
- अंतस खंगालना: हिंदी वालों को अपना अंतस खंगालते रहना चाहिये और हिंदी की हार के बारे के लिये नये-नये कारणों की खोज करते रहना चाहिये : इससे हिंदी का हाजमा दुरुस्त रहता है।
- डंके की चोट: एक बात डंके की चोट परसुनिये । हिंदी को कोई राज ठाकरे बढ़ने से नहीं रोक सकता क्योंकि अब ये कारपोरेट की मजबूरी बन गई है।
- चिलम भरना: चिलम भरना माने चेला होना। शास्त्री जी को लगा कि कहीं ई-गुरू उनके राज न खोल दें इसलिये उन्होंने ई-गुरू की चिलम भर दी।
- मांग का सिंदूर: अरे हत्यारों तुम भी किसी की मांग का सिंदूर हो। किसी की आंख के नूर हो। अगर ये पोस्ट पढ़ रहे हो तो फ़टाक से खून-खराबे से दूर हो।
- जामातलाशी होना मतलब नंगाझोरी होना: कभी जमादार बहुत रूआबदार अफ़सर होता था। चोर या जेब कतरे की जामातलाशी करता था। साहूकार तब भी नहीं पकड़े जाते थे।
- हर मर्ज की दवा: दुनिया में हर मर्ज की दवा मिलती है। अगर दुनिया में कुछ सवाल हैं तो जिन्दगी सवालों के लिए अर्थ की एक दुकान है। बोलिये खरीदना है अर्थ!
- सलामती की दुआ करना माने खैर मनाना: छत्तीसगढ़ में एक महिला ने अपनी जीभ काटकर शंकरजी को चढ़ा दी। लोग उसकी सलामती की दुआ कर रहे हैं।
- जुगलबंदी माने सांठगांठ का पवित्र रूप: कलाकारों ने सेक्सोफोन और बांसुरी पर जुगलबंदी की
- नेकी हराम गुनाह लाज़िम:मुसलमान कोई बाहर से नहीं आए हैं...वो भी इसी देश की संतान हैं। ये समझाने के लिये फ़िरदौस खान को कहना पड़ा- नेकी हराम गुनाह लाज़िम
- पतझडों की आंधियाँ: पतझडों की आंधियाँ हमारे देश में हर वक्त चलती रहती हैं। ये आंधियां नैतिक पतन, तबाही और अंधेरे के साथ मिलकर डा. जैन को गुमशुदा हैं पासबां...! लिखने के माहौल मुहैया कराते हैं मतलब कि वातावरण प्रदान करते हैं।
- आंख मींचना: अपनी भाषा की ओर से यूँ आँखें ना मीचो । उठो हिंदी दिवस पर एक धांसू कविता खींचो।
- मुछों की मुस्कान: उधर वे अपने बाप बदल रहे हैं इधर दूध वाला मुछों की मुस्कान बिखेर रहा है।
- हू!हू!हू!हिंदी! होय!होय!हिंदी!: हिंदी दिवस पर हू!हू!हू!हिंदी! होय!होय!हिंदी! करके बताया गया कि अनुप्रास अलंकार क्या होता है।
- आसमान से कूदे...: ब्लाग में आकर गिरे।
- मैं और मेरा परिवार...: आपसे बातें करते हैं!
- समूह से समझदारी की उम्मीदें : करने का खतरा अपने रिस्क पर उठायें।
- मेरे रात और दिन :काली डोरियों में पिरे सुनहरे ताबीज़ों की तरह हैं लेकिन होते बारह-बारह घंटे के ही हैं।
- आज बच्चा सोकर उठता है तो किताबों के साथ: जिसके साथ सोयेगा उसी के साथ तो उठेगा।
- बचपन में सुनता था माँ से……: अब वो सुनाती है। कान पक गये सुनते-सुनते।
- सोते समय मैडम साड़ी में होती हैं: इसीलिये ये कविता बन पड़ी!
- भारत की आत्मा ने हरियाणा के थाने में आत्महत्या कर ली. : अब पहले तो उसका पोस्टपार्टम होगा इसके बाद नक्सलवाद-फ़क्सलवाद की बात होगी।
- रसभरी (किशोर प्रेम की कोमलांगी कहानी) : वयस्क लोग अपनी कहानी के लिये इंतजार करें।
- अमेरिकन हथियार विवेकसिंह के हत्थे चढ़े। ब्लैकमेल पर आमादा।
- कौड़ियों में बिक रही है संसद मेरे मुल्क की , दो टके ही हो गई है संसद मेरे मुल्क की: ये शायद ऐसे देश के ब्लागर हैं जहां अभी भी कौड़ियां और टके चलन में हैं।
- 40 मिनट के अंदर 4 धमाके: धमाके ससुर मिनट के अन्दर घुस गये। निकालो वर्ना मिनटों के चिथड़े-चिथड़े हो जायेंगे।
- अब फिर दिल्ली...हाय-हाय मुजाहिदीन! फ़िर वही राग फ़िर वही खटराग!
- फीचर फिल्म का शेष भाग 13 साल बाद (?): बहरहाल बीता हुआ कल लौट के तो आया।
- ऍम. फिल एंट्रेंस 2008 1923 साल की प्रतिमा
- हिम्मत को नहीं हिला सकते ये धमाके हिम्मत हमारी अम्बुजा सीमेंट से बनी है।
- कोई आसान गणित नहीं है क्या? : कहां से मिलेगा? आपको चाहिये अक्कड़-बक्कड़ और गणित पढ़ाया जायेगा अंग्रेजी में।
- दिल्ली धमाकों ने जिन अपनों को हमसे छीन लिया, उनकी याद में :अश्रुपूरित श्रृद्धांजलि। अफसोस यह है कि पूरी दबंगई से यह रिपीट हो जाता है। और फिर कुछ नहीं होता।
- क्या होम्योपैथिक पेटेन्ट दवायें या काम्बीनेशन प्रयोग करना तर्कसंगत है ?: हिंदुस्तान में तर्क से काम करें तो कुछ कर ही न पायें।
- मैगजीन की मौत : शवयात्रा का आंखो देखा हाल आलोक पुराणिक से सुने।
- नौकर नाराज हैं और मालिक बेकदर : यही रोना है घर-घर!
- कौन है आतंकवादी : इहां न है कोई। इहां सब ब्लागर हैं।
- टके के लिए सब कुछ जायज सौ टके की बात!
- हम मुस्कुराते रहे कौनौ मंजन के विज्ञापन की शूटिंग चल रही होगी न!
- इन राष्ट्रविरोधी ताकतों से डरे नहीं : ब्लाग लिखें, लिखते रहें!
- गणेश पूजा को लेकर सलमान खान के खिलाफ फतवा : सलमान के बल्ले-बल्ले। मुफ़्त में प्रचार!
- हिंदी तब और अब : वैसा ही बना है सब
- ख़ून-खराबा, धमाका और नेतागिरी: सब कुछ शामिल है सुप्रतिम के चिंतन में।
- ये राज ठाकरे कौन हैं? : चिरकटई की औलाद, संकीर्णता के बाप, क्या कल्लोगे इनका आप!
- सीमेंट और सरिया: किसके पेट में गया? : मामले की जांच बैठा दी गयी है।
- एक दिन में, मंत्री ने किए 11 सौ शिलान्यास:इससे साबित होता है कि मंत्री जी काम से भी जी नहीं चुराते
- एक अच्छे सूचना आयुक्त का इंतज़ार: करते आंखें पथरा गईं।
- अतिक्रमण से प्रतिक्रमण की ओर मतलब क्या उल्टे बांस बरेली को!
- आज बम दिवस कल हिन्दी दिवस: नया दिन नया नाम
- एक खुरदरी सतह पर हाथ रखते हुए: बड़ा अच्छा लग रहा है आप जारी रखो जी!
- रूह का जख्मएक आम रोग है: इसकी कोई आम दवा है कि दवा खास है!
- ख़राब परिस्थितियों के बावजूद अमित बना वैज्ञानिक : पूरे मामले की जांच रपट एक प्राइमरी मास्टर ने पेश की
- ओये बजाजे : आजा तेरे को अपने ब्लाग पर बजा दें!
- लाल टिब्बा पर पिज्जा...: इकल्ले-इकल्ले खाकर आ गये।
- आइक से मुलाक़ात का विवरण और कुछ तस्वीरें !!! : नीरज रोहिल्ला के ब्लाग पर
- तीन कालम वाले टेम्पलेट : ब्लागिंग के लिये और मजेदार होंगे।
नीरज रोहिल्ला ने ह्यूस्टन में आये तूफ़ान की मजेदार रिपोर्टिंग की है। उन्होंने तो आये हुये तूफ़ान आइक से ब्लाग लिखने की पेशकश कर दिये:
आइक महोदय रात को हमारे घर तशरीफ़ लाये लेकिन आने से थोडी देर पहले उन्होंने हमारी बत्ती गुल कर दी | लिहाजा आइक और हमने मोमबत्ती में गुफ्तगू की, हमने आइक को हिन्दी में एक ब्लॉग खोलने को कहा जिस पर वो विचार कर रहे हैं :-)
नीरज के लेखन कौशल और फोटोग्राफ़ी को देखकर लगा कि ये लड़का नियमित क्यों नहीं लिखता!
- रवीश कुमार मीडिया और ब्लागजगत की दूरी पाटने का काम बखूबी कर रहे हैं। पिछले दिनों कोसी की बाढ़ के बारे में ब्लाग पर जो कुछ लिखा गया उसका विवरण उन्होंने हिन्दुस्तान में मय ब्लाग की कड़ी के दिया। कल उनको बिहार के बाढ़ के बारे में एन.डी.टी.वी. पर रिपोर्टिंग करनी थी लेकिन दिल्ली में हुये धमाकों के चलते उनको अपनी प्राथमिकतायें बदलनी पड़ीं। दिल्ली धमाकों पर रिपोर्टिंग करते हुये उनका कहना है-
दिल्ली वासी धमाकों के बाद बाहर निकल पड़े यह उनकी बहादुरी नहीं मजबूरी है। अगर वे बाहर न जायें तो रोटी-रोजी का क्या होगा?
एन.डी.टी.वी. के पत्रकार हादसे के बाद अस्पताल के बाहर और सड़कों पर जमा हुये लोगों के लिये बार-बार तमाशबीन शब्द का इस्तेमाल करते रहे। यह मुझे खटकता रहा लेकिन इसकी जगह क्या कहना चाहिये मुझे तत्काल समझ में नहीं आ रहा। - नये साथी जो चिट्ठा लिखना शुरू कर रहे हैं ज्यादा उनके ब्लाग के नाम रोमन में आ रहे हैं! पता नहीं ऐसा उनसे जानकारी के अभाव में हो रहा है या फ़िर यह नया ट्रेंड है।
- चिट्ठाचर्चा में समीरलालजी और मसिजीवी के दुबारा आने से इसकी विविधता में इजाफ़ा हुआ है। समीरलाल जी अपनी मुंडलियां लिखते रहें तो अच्छा है। कुश और तरुण के चिट्ठे तो उनके लिखने की स्टाइल से अलग दिखते हैं। चर्चा करते समय का अभाव रहता है लेकिन नये चिट्ठाकारों का परिचय होता रहे तो बहुत अच्छा।
- लोग साल, दो साल , तीन साल में अपना बहीखाता पेश करते हैं लेकिन ज्ञानजी ने डेढ़ साल का ही अपना ब्लाग खाता पेश कर दिया। आप उनकी बैलेंस सीट देखें और अपना मूल्यांकन करें। आप पौने दो साल का सवा तीन साल का या तिमाही और न हो तो माहवारी खाता पेश कर सकते हैं। लेकिन हम ज्ञानजी को बधाई देकर अपनी बात खतम करते हैं।
- सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी के सौजन्य से ज्ञात हुआ कि हिन्दी और उर्दू के विकास को समर्पित संस्था हिन्दुस्तानी एकेडेमी का ब्लाग कल प्रारम्भ हुआ। संस्था अपने उद्देश्य पूरे कर सके इसके लिये हमारी मंगलकामनायें।
सम्मान
इंटरनेट पर अभिव्यक्ति और अनुभूति पत्रिकाओं के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार और संवर्धन में निरंतर संलग्न बहुमुखी प्रतिभा की धनी पूर्णिमा वर्मन जी का "जयजयवंती सम्मान" सम्मान दिनांक ११ सितम्बर को इंडिया हैवीटेट सेंटर में किया गया। इस अवसर पर पूर्णिमाजी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुये कहा-
हिन्दीं कई जगहों पर अभी भी बहुत पीछे हैं, जैसे यदि विकीपीडिया में सभी रोज़ कुछ ना कुछ डालें तो भी हम हिन्दी को बेहतरी के ओर ला सकते हैं
डा कृष्णशंकर सोनाने को महरूम रीझवानी सम्मान प्रदान किया गया।
हमारी बधाइयां, शुभकामनायें।
एक लाइना
मेरी पसन्द
हिंदी दिवस मनाने के कुछ सरल सुझाव
# अपने मोबाइल की भाषा सेटिंग हिन्दी कर लें, भाषा आपकी मुठी में होगी. मन को भी अच्छा लगेगा.
# टीवी संचालन की भाषा हिन्दी कर लें, घर का वातावरण कुछ हिन्दीमय लगेगा.
# डीस-टीवी है तो उसकी भाषा भी हिन्दी कर लें, टाटा स्काय यह सेवा देता है. बच्चे भी कार्टून चैनल खोजते खोजते हिन्दी पढ़ना सीख जाएंगे.
# एक दिन के लिए सबसे हिन्दी में ही बतीयाएं, चाहे चपरासी हो या प्रबन्धक, घबराएं नहीं राज ठाकरे कौन-सा आपके आस-पास है.
# आदत नहीं है, फिर भी कोशिश करें की बैंक के काम हिन्दी में निपटाए जाएं, बैंक वाले भी समझ जाएंगे आखिर उनके यहाँ भी हिन्दी सप्ताह चल रहा होगा.
# भेजी जाने वाली डाक पर हिन्दी में पता लिखें, अगर हीनभावना पनप रही है तो लिफाफे पर हैप्पी हिन्दी डे लिख दें, गर्व महसूस होने लगेगा.
# अगर आप बॉस है तो कर्मचारियों को हिन्दी में ही लताड़ें, यह मुश्किल जरूर है मगर असम्भव नहीं.
संजय बेंगाणी
और अंत में:
फ़िलहाल इतना ही। आप सभी को हिंदी दिवस की मंगलकामनायें।
हमें किसी की टाँग खिंचाई होती देखकर एक अद्भुत आनंद की अनुभूति होती है . आपको टाँग खींचते हुए कैसा लगता है ? मेरा मानना है कि किसी पोस्ट पर मिली प्रतिक्रियाओं का उत्तर लेखक को अगले दिन अन्तिम टिप्पणी के रूप में अवश्य देना चाहिए .
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंअनूप सर की चर्चा में विविधता की एकरसता अपनी जगह पर तो ठीक है,
पर , यहाँ कोई आतंकवादी नहीं.. सब ब्लागर मात्र हैं,
शायद यह उनकी ख़ुशफ़हमी है..
कुछेक जन तो सिरे से आतंकवादी ब्लागर हैं, जी !
भारतीय सुरक्षातंत्र का आ्दर करते हुये उनकी अनदेखी की गयी हो,
तो चलेंगा ...
पण, भाई तो गृहमंत्री की तरियों
एक लाइना में निरीह ब्लागर समेत इन आतंकवादी ब्लागरों को भी बचा ले गये... साधुवाद साधुवाद
यह बेतुकी टीप , मेरे नव गुरु टिपेर तांत्रिक महाराज़ के आदेश से , करनी पड़ी..
चारणत्व शर्म करो , शर्म करो ..
टिपेर अघोरी हाय हाय हाय हाय
गज़ब के कमेंट्स हैं अनूप भाई , बिहारी नुमा चोट करते हो ! ( बिहार वाला नहीं सतसैया वाले की बात कर रहा हूँ ). किसी को नहीं बख्श रहे हो मगर !
जवाब देंहटाएंमगर आईटम नंबर २९ - भाई संभल के...... माफी मंगनी पड़ जायेगी नेशनल टीवी पर ...
शुभकामनाएं !
10 वें नंबर की चीलम अच्छे से भरी गयी है, अब डरिये कि कहीं वह बाक़ी सबकी चीलम न भर दे.
जवाब देंहटाएंइत्मीनान से की गई फुरसतिया चर्चा।
जवाब देंहटाएंदिक्कत यही है कि लोगों की एक्पेक्टेशन फुरसतिया हो जाती हैं और हम बाकी चर्चाकार फुरसतिया हो नहीं पाते। पर झाड़े रहो... :)
हम तो आज हिन्दी में बात करेंगे ! भले ही उच्चारण देशी हो ! राम राम !
जवाब देंहटाएं१.विवेक भाई टांग खिंचाई अपने आपमें मजेदार काम है। लेकिन मजा तब और बढ़ जाता है जब टांगखिंचाई में सम्पूर्ण आत्मनिर्भरता हो माने कि टांग भी आपकी और खिंचाई भी आपकी।
जवाब देंहटाएं२. डा.साहब सब तो अपने ही हैं। एक नूर से सब जग उपज्या। किसको बुरा कहें।
३. सतीश भाई हम चोट नहीं पहुंचाना चाहते किसी को। अगर आपको या किसी को चोट पहुंची हो तो हमें फ़ुर्ती से मांग लेंगे। गंगा किनारे वाला हिंदी पट्टी का आदमी बना ही माफ़ी मांगने के लिये होता है!
४.ई-गुरू आपको तो बढ़िया हुनरमंद चिलमची मिला। मौज करो।
५. मसिजीवी। इतवारी चर्चा करो न तुम। वैसे जिंदगी में फ़ुरसत है मिलती कभी-कभी!
६. ताऊ जी राम-राम। लेकिन बिना लट्ठ के आपका हाथ सूना-सूना लगता है जैसे बिना घपले के स्कोप के कोई सरकारी दफ़्तर!
अरे नईं मास्ससाब, हम कोई काम से जी नईं चुराए हैं. गलती माफ़ हो हुजूर पर पोस्ट की चर्चा तो कर दिए आप पर लग जे रिया है कि जुनिभार्सटी के बड़े मास्टरान की माफिक आप भी बिना कॉपी पढ़े बस पन्ने गिनकर ही नंबर चढ़ा दिए. पढ़ते तो जानते कि हमने कच्छू अधूरा नहीं छोड़ा है. समझदार लोग सारा माजरा समझ भी रहे हैं. (समझदार और ब्लॉगर? हा हा हा)
जवाब देंहटाएंऔर आप भरोसा रखिये. अभय भाई को बिसराया नहीं न है. अब ओखली में सर दे ही दिए हैं, तो फ़िर भंडा फूटे या फ़िर मुंडा, पीछे नहीं ना हटेंगे. बस देखते रहिये मालिक.
आज हिन्दी दिवस है। कल ही हिन्दुस्तानी एकेडेमी का ब्लॉग जगत में पदार्पण हुआ है। यहाँ चिठ्ठा-चर्चा में इसका जिक्र होता तो मुझे बड़ी खुशी होती।
जवाब देंहटाएंइस हिन्दी-सेवी संस्था के सुनहरे अतीत से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। इसके वर्तमान को और ऊचाइयाँ देने में हिन्दी चिठ्ठाकारों को अपनी भूमिका स्वयं तय करके इस संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सहयोग करना है। धन्यवाद।
बढ़िया विस्तृत चर्चा. अच्छा लगा पढ़कर. साधुवाद.
जवाब देंहटाएंसभी को हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
तमाशबीन के स्थान पर जिज्ञासु कहा जा सकता था.
जवाब देंहटाएंचिठ्ठा चर्चा पर भी विशद चर्चा को जमा होते हैं लोग। यह तो आपकी लोकप्रियता का प्रमाण है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रही यह सदा की तरह।
सभी को हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस के मौक़े पर आप सुखद अहसास करा गए कि बहुत बड़े स्तर पर और विविध विषयों पर लेखन हो रहा है हिंदी ब्लॉग जगत में. धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंanup ji,
जवाब देंहटाएंkai din pe chrcha hui lekin isme freshness ki bhi chamak rahi or hindi ki bindi bhi....
आज तो बड़ी मेहनत की सजाया सवांरा भी खूब... बधाई हो।
जवाब देंहटाएंआपको भी मंगलकामनायें... आज बड़ी लम्बी चर्चा हुई. आपकी मेहनत को सलाम है.
जवाब देंहटाएंअनूप जी आजकी चिठ्ठाचर्चा तो बड़ी फ़ुर्सत से बनायी लगती है। हम तो पढ़ते पढ़ते ही थक लिए, अभी तो सारे लिंक खोलने बाकी हैं अब टिपियाएगें कल्। ये क्या है? मात्र एक सेम्पल टिप्पणी का असली टिप्पणी तो आनी बाकी है…:)
जवाब देंहटाएंदो बातें कहनी हैं
जवाब देंहटाएं1. "# चिलम भरना: चिलम भरना माने चेला होना। शास्त्री जी को लगा कि कहीं ई-गुरू उनके राज न खोल दें इसलिये उन्होंने ई-गुरू की चिलम भर दी। " पता नहीं आपने कैसे बूझ लिया.
2. इस मेराथन लम्बाई की चर्चा के लिये आभार !!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
आपने बिखरे हुए मोतियों को एक जगह पिरोकर जो माला गूंथी है वह काबिले तारीफ है।
जवाब देंहटाएं