कुछ ऐसे ही भाव, माफ करियेगा, फुरसतिया जी के लिए इस समय मेरे मन में मचल रहे हैं. आज ही इत्ती ऊँची टंकी से ४८ घंटे आराम करके उतरे हैं और ये हैं कि हालचाल तो दूर, पहले ही घोषणा किये चाय सिडुक रहे हैं कि आज समीर लाल चर्चा करेंगे.
क्या खाक चर्चा करें? हाथ तो चले की बोर्ड पर. अभी दिन भर ऒफिस करके लौटे हैं. आज तो पूरी टिप्पणियां भी नहीं निपटा पाये इनके चलते.
कहते हैं आज प्रलय आने वाला था. सब छुप छुपा गये, किसी ने कुछ नहीं लिखा, बस हो गई चर्चा. वैसे अगर प्रलय आ जाता तो बचता सिर्फ मैं. इत्ती ऊँची टंकी पर चढ़ा था कि बच ही जाता पक्का. और सबसे पहले लिपटाते वो जो धरती पर बैठे आँख बंद किये चाय पी रहे थे.
सब टीवी चैनल कांव कांव मचाते रहे तो प्रमोद भाई रांची मोहल्ला वाले बोले कि जबरदस्ती डरवाते हैं. वैसे ऐसा कह भर देने से भी कई बार डर जाता रहता है. वैसे अगर नीशु भाई की कविता चाहे जिस पर लिखी हो, इस प्रलय से जोड़ कर उसके इन्तजार में माना जाये तो भी फिट हो जा रही है.
वो नहीं आये,
जाने क्या बात हुई,
वादा तो किया था ,
निभाने के ही लिए,
फिर क्यों साथ नहीं आये,
राह तकते रहे उस गली का,
जिससे गुजरना था उनको,..........
ये बिल्कुल वैसा ही वाकया है जैसा कि एक बेहतरीन गज़लकार, ब्लॉगजगत के नये चेहरे वीनस केसरी गरिमा जी की कविता को हमें टंकी से उतारने का मनुहार मान कर देख रहे हैं. कहते हैं कि एक दिन पहले लिख देती तो पहला शेर समीर जी की पोस्ट पर काम आ जाता.
लौट आओ कि अंधरी ये रात हुई
अब तक खफ़ा हो, ये क्या बात हुई.......
मजाक अलग, लेकिन गरिमा जी की गज़ल ऊँचाई पर है, जरुर पढ़िये. वैसे जब गीत गज़ल की दिशा में पठन हेतु निकल ही पड़े हैं तो श्रृद्धा जी को भी जरुर पढ़ियेगा, बड़ी मर्मस्पर्शी गजल है:
मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए
मगर जब प्रलय आने ही वाला था तो थोड़ा तो आशावादी रहतीं. कपड़े अपने आप ही धुल जाते, जबरदस्ती मेहनत की. हम तो इस चक्कर में नहाये तक नहीं, कि उसी में छपाक छपाक नहा लेंगे, काहे पानी खराब करें. यूँ भी नहाने से इतने सालों में कोई फायदा तो हुआ नहीं. जिस रंग पैदा हुए थे, वही रंग बने रहे-पानी गया नाली में. साबुन ब्याज में.
ऐसा नहीं कि प्रलय प्रलय ही हाहाकार मचा है. ऐसे में ज्ञानचक्षु खोलने विवेक गुप्ता जी आये कहे कि उस मशीन के प्रयोग से प्रलय नहीं, सृजन की ओर पहला कदम बढ़ेगा. बात समझाई भी, मगर टीवी एतन चिल्ला चिल्ला कर बोला कि हम तो डरे हुए रहे.
प्रलय टाईप ही एक समाचार कविता वाचक्नवी जी कहने लगीं कि गुजारा भत्ता के लिए शादी जरुरी नहीं . है तो अच्छी बात मगर ये क्या, शादी भी नहीं भई और हर्जाना भर रहे हैं. अरे नाराज मत होईये, बिल्कुल सही है, ऐसा ही होना चाहिये.
एक नर समर्थक मोर्चा खोले हमारे ई-गुरु राजीव भी बैठे हैं. उनकी चाहत है कि जो भी उनके साथ आना चाहे, ध्यान रहे वो योद्धा हैं, वो यह लोगो अपने यहाँ लगा ले:
इस पर क्लिक करके
क्या पता, कौन सा प्रलय आयेगा. हम तो बस राम राम जप रहे हैं.
बिहार वाली बाढ़ भी तो लगभग प्रलय ही थी. इस दुखद त्रासदी पर प्रभात रंजन जी का नजरिया देखिये:
ये जो मंज़र-ऐ विकराल है ,क्या है
हर तरफ़ हश्र है,काल है ,क्या है ?
पानी-ही-पानी है उफ़ ,हर जगह ,
कोशी क्यूँ बेकरार है ,क्या है ?.......
ऐसे सब माहौल में मेहन भाई ने अमीर खुसरो रचित गीत ’मोहे सुहागिन कीनी रे’ सुनवाया, बहुत आनन्द आ गया. आप भी आनन्द ले लें.
रोहित जैन जी न जाने कहीं व्यस्त हैं, कहते हैं ’और भी काम हैं जमाने में’ और अपने मन के भाव कहने फैज साहब के बेहतरीन शेरों की लड़ी लगा दी. बढ़िया है व्यस्त रहो और ऐसे ही शेर सुनवाते रहो. भगवान भला करेगा.
प्रलय सामने खड़ा हो तो अच्छे अच्छों की यादों की पोटली खुल जाती है इसलिये शोभा जी यादों की पोटली खोली, तो कतई अचरज नहीं हुआ.
शौकीन लोगों को इन सब से कुछ अंतर नहीं पड़ता. अब देखिये, अमित खान-पान के शौकीन, लगे चाकलेट गाथा सुनाने.
महेन्द्र मिश्रा जी भी सोचे होगें सृष्टि खत्म हो ही रही है तो क्यूँ न हंसते हंसते चला जाये, बस लगे हंसाने.
अब आप लोग हंसते रहिये. हम तो कुश की चिट्ठाचर्चा जहाँ पर आई उसके बाद जितना बांच सके, लिख मारे. अब ये बंद हो तो आगे बांचे और फिर नये चिट्ठाकारों को ढ़ूंढ़ें. हमे मालूम है लगभग सभी छूट गये हैं. मगर पहला दिन है, आप समझ सकते हैं. शायद कोई भला मानस बैलेन्स चर्चा मध्ययान चर्चा के नाम से कर दे, जिसमे कभी संजय बैंगाणी की महारथ थी.
अच्छा नहीं लग रहा, मगर बंद करना ही होगा. कृप्या अन्यथा न लें. बस अनुराग वत्स की यह पेशकश और देख लें.
चित्र साभार: अनुराग वत्स :
टंकी से समीरावतरण और ढेर सी कविता चर्चा!:)
जवाब देंहटाएंयानि टंकी से पक्का उतर आये, स्वागत है जी आपका। अलग ही अंदाज रहा चर्चा का, प्रलयंकारी चर्चा बिल्कुल लय में थी।
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा ही सही - चिट्ठी तो लिखी।
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसे ही भाव, माफ करियेगा, फुरसतिया जी के लिए इस समय मेरे मन में मचल रहे हैं. आज ही इत्ती ऊँची टंकी से ४८ घंटे आराम करके उतरे हैं और ये हैं कि हालचाल तो दूर, पहले ही घोषणा किये चाय सिडुक रहे हैं कि आज समीर लाल चर्चा करेंगे
जवाब देंहटाएंभाव तो सही हैं। अब फ़ुरसतिया के विचार भी सुनें जायें। हम सोच रहे हैं कि ऐसे कौन से कारण रहे कि आसन्न बुढौती में ये बचपना करने की चिरकुटई सूझी समीरलाल को। दुनिया मनाने में जुटी है और आप कह रहे हैं थोड़ा और मनाओ न कायदे से। हम आराम से इस लिये थे और हैं भी कि जैसा आलोक पुराणिक कहते हैं- ये लोग ब्लाग जगत की खालायें हैं। ये न जाने वाली कहीं। लेकिन खालाऒं को ये समझ आनी चाहिये कि आजकल की बहुयें बहुत स्मार्ट हैं , ये न मनाने वाली खालाओं को। बहुत बचकानी हरकत करी टंकी पर चढ़कर। अच्छा किया जो उतर आये। देर करते तो दरोगा पकड़कर ले जाता कि पब्लिक प्रापर्टी को नुकसान पहुंचा रहा है बंदा। एक लाइफ़ लाइन इस्तेमाल कर ली। अब हिसाब से रहा जाये।
apka andaaj juda hai.....apke blog per bhi ja rahi hun....achchi charcha hai
जवाब देंहटाएंगुरुजी परनाम , चर्चा उत्तम रही , पर एक बात समझ में आ गई की आप टंकिया पर काहे चढ़े रहे ? आप अगर बता कर चढ़ते तो बुराई क्या थी ? आप खामखाह ४८ घंटे परेशान रहे , यहाँ चेले चपाटी परेशान रहे ! और यहाँ अरविन्द मिश्राजी पहले ही घोषणा किए रहे की प्रलय नाही
जवाब देंहटाएंआयेगा ! आप कौन सी टंकी पर चढ़े थे जिसको ढुन्ढना सबको मुश्किल रहा ! वरना निचे से कह देते की गुरुदेव उतर आवो- परलय नही आयेगा !:)
बढ़िया चिठ्ठी है यह :) अब समझ में आया कि आप डर गए थे प्रलय चर्चा से :) बधाई वापस आने की
जवाब देंहटाएंजमाये रहियेजी।
जवाब देंहटाएंशहर में हुआ हल्ला बाढ़ आ रही है। सब से ऊंची जगह पानी की टंकी। ताऊ भागे उसी तरफ। बहुत देर तलाश करते रहे मिली नहीं। उधर बाढ़ आ कर चली भी गई। ताऊ टंकी पर चढ़ने से रह गए। घर आए तो ताई ने पूछा-चढ़ आए टंकी। ताऊ क्या बोलते।
जवाब देंहटाएंवाटरवर्क्स वाले उठा ले गए। कहते थे बाढ़ में बह जाती। अब आज-कल में दुबारा फिट करेंगे टंकी को।
वैसे चर्चा काम भर की अच्छी करी है। दिल थोड़ा खुश हो लिये। :)
जवाब देंहटाएंअरे हमें सिर्फ़ नर समर्थक कहे ठहरा दिया भाई, हम तो सारे समाज को साथ लेकर चलना चाहते हैं. आप ने ग़लत पहचान लिया या हम ही ग़लत कपड़े पहने घूम रहे हैं. :)
जवाब देंहटाएंकायदे से लौटे...स्वागत है.
जवाब देंहटाएंएक कप चाय हमसे भी पूछ लेते......खैर चिटठा चर्चा मस्त है....
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह क्या खूब चर्चा जमाई.. रंग जम रहा है धीरे धीरे..
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा अच्छी लगी और समीर भाई आपकी वापसी पर खुशी हुई।
जवाब देंहटाएंटंकी पर चढ़कर हाले-ए-चर्चा बढि़या रहा। वैसे अनूप जी को शायद खफा-खफा से लग रहे हैं। थोड़ा इन नई बहुओं पर भी ध्यान दीजिए।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंदेखो समीर भाई, समझो कि बोल्ड में लिख रहा हूँ.. ताकि निग़ाहें करम हो जायें..
लौट कर मोडरेट तो करना नहीं है.. बस टिप्पणी गिन कर चले जाओगे ..
सो हर आम औ’ खास को इत्तिला दी जाती है.. प्रलय आ गया.. चिट्ठाचर्चा पर..
टिप्पणी गिनवाने की छूट है... लूट सके तो लूट
अंतकाल पछतायेगा जब टिप्पणी बक्सा जायेगी टूट
टंकी चरमराने लगी.. सो डर के उतर आये
यह स्वीकारते क्यों नहीं ?
अब टिप्पणी बक्सा चरमराने वाला है
यह साफ़ दिख रहा है..
धन्यवाद देयो किसी अनूप शुक्ला नाम के आदमी को जो, फ़ुरसतिया नाम से लिखा करे हैं..
बहुत पब्लिसिटी एडवांस में किहे बइठे हैं
ख़ैरज़रूरी भी था.. यह तो बचपन में ही देखा किया था कि
सर्कस वाले माहौल बना देते थे.. ऊहे फ़ुरसतिया किहिन हैं..
आ गया आ गया आपके शहर में.. " उड़न तश्तरी
वइसे एक बात बता दूँ.. खेल आपने अच्छा दिखाया है..
हत्त तेरे की.. कहने का मतबल है, चर्चा आपने अच्छी करी है..
आप सबकुछ अच्छा अच्छा करने का निर्वाह न करेंगे.. तो कौन करेगा ?
जनता की माँग पर, इसका टेक-ओवर कर लीजिये न समीर भाई !
जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है :)
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट देखकर अच्छा लगता है...प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंहा हा हा . बहुत मज़ा आया पढ़ कर. आप हास्य के मध्यम से बहुत कुछ कह जाते हैं और ये मधुर छींटे किसी को बुरे भी नहीं लगते. बधाई.
जवाब देंहटाएंवाह, मस्त चर्चा किए हैं। और अपन भी अनूप जी से सहमत हैं! :) वैसे आपके टंकी चढ़ने से यह साबित हो गया कि सभी में कहीं किसी कोने में एक बच्चा छिपा होता है जो कि अच्छी बात है। :)
जवाब देंहटाएंबहुत इंतज़ार के बाद
जवाब देंहटाएंइंतज़ार की घडियां खत्म और हाज़िर है ....................
हमारे समीर लाल जी चिटठा चर्चा ले कर
जब से घोषणा हुई है बड़ी आरजू थी आपकी चिटठा चर्चा पढने की ......................
आनन्दम आनन्दम ....
कुछ सवाल है जिनका उत्तर चाहता हूँ ...
सबसे पहले नीचे से शुरू करता हूँ
पहला प्रश्न - अनुराग जी की कलाकारी कुछ पल्ले नही पड़ी
(महान लोंगों की महान कृति आम आदमी के पल्ले पड़ती ही कहाँ है )
उस पर कमेन्ट देखिये -बहुत सुंदर पेंटिंग आदि आदि
((इक हमही बचे है अनपढ़ गावर कुछ पल्लेन नही पड़ रहा है हमका तो लगत है की इक ठो कागज़ में रबड़ से घिस घिस के कोई बचवा कागज़ खराब कर दिए होय और बाबू जी आय के हियाँ चिपके दिये के इ देखो हमार कारनामा :) :) ))
बताने का कस्त करें की ये कलाकारी हमारी सोंच से कितने माले ऊँची स्तर की है :) :) :)
दूसरा प्रश्न -
इ गुरु राजीव ने तो पहले माताओं बहनों को ब्लॉग बनाना बताया
फ़िर नर जाती को ब्लोग्गर न होने पर लडाकन सास की तररह उलाहना दिया
फ़िर उन पर ऐसा दोष क्यो?
((ब्लॉगजगत के नये चेहरे वीनस केसरी गरिमा जी की कविता को हमें टंकी से उतारने का मनुहार मान कर देख रहे हैं. कहते हैं कि एक दिन पहले लिख देती तो पहला शेर समीर जी की पोस्ट पर काम आ जाता.
))
तीसरा प्रश्न -
आप एक पोस्ट पर टिप्पदी करने के बाद भी उसको कब तक पढ़ते रहते है
आखरी प्रश्न - भगवान ने आपको जो ४८ घंटे दिए है उनमे से कितने घंटे आप टिप्पडी पढ़ कर गुजारते है?
समीर जी
उत्तर देने की महती कृपा करे
आपका वीनस केसरी
बेहद सतर्कता से की गई समीक्षा के लिए आभार
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