आज की चर्चा शुरू करने के पहले कल के अखबार की एक खबर। कल हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के दिल्ली संस्करण के वरिष्ठ स्थानीय संपादक प्रमोद जोशी ने अपने एक लेख घटती साख वाला बुद्धि-विलास में लिखा- ब्लाग राइटिंग अच्छी भी हो रही है, पर उसकी तुलना में कचरा कहीं ज्यादा लिखा जा रहा है। कचरे की हमें चिंता नहीं लेकिन हम इसी में गच्च हैं कि ब्लाग राइटिंग को अच्छा भी माना जाने लगा है। लेकिन अगर आप सच्ची में अच्छे लेख लिखना चाहते हो तो आपके लिये दस ठो स्टेप्स इधर दिये हैं।
कल चर्चा करके जब पोस्ट की तो पता चला कि अपने ताऊ के साथ ऊंच-नीच होते-होते बची। एक क्यूट सी छोरी ने ताऊ को रोक लिया और चीखने-चिल्लाने लगी इस लफ़ंगे ताऊ ने मुझे नही छेडा
क्या मैं इसकी अम्मा लगती हुं ? वो तो कहो ताऊ का दिमाग काम कर गया वर्ना उसके तो लट्ठ बज जाते। ताऊ बोले:
ताऊ बोल्यो अरे छोरी बात तो तू सांची कहवै सै
पर मन्नै या बतादे
यदि किम्मै उंच नीच हो जाती
तो ताई लठ्ठ लेकै
के थारै बाप के पास जाती ?
- मेरा शेखावटी : आपको अपना लगेगा
- प्रहार :धार्मिक रूढिवादिता और सामाजिक कुरीतियों पर
- :आनलाइन काव्य संगम: वाह-वाह जी वाह
- :पंचायतनामा नीरज सिंह का
- सतरंगे : के सब रंग गायब हैं
- अपनी ढपली : पर विनय का राग
- मेरी तलाश में : शोकाकुल न हों मैं अशोक हूं
- या मेरा डर लौटेगा:या फ़िर कोई और लेकिन लौटेगा
- विचारों का ट्रैफिक जाम: ब्लाग पर खुल रहा है
- जिंदगी इम्तहान भी लेगी क्या?
- विष्णु राजगढ़िया वाह भाई बहुत बढिया
- मेरी आवाज मेरे ब्लाग पर
डा.अनुराग आर्य अपनी पोस्टों में अपना दिल उड़ेल के रख देते हैं। अपना बचपन याद करते हुये उन्होंने लिखा:
बचपन ऐसी अलमारी की तरह है जिसके हर खाने मे ढेर सारी बाते जमा होती है कुछ बाते उम्र के एक मोड़ पे जाकर अपना रहस्य खोलती है ..... "अपनी शक्ल पे कभी गरूर मत करना क्यूंकि इसके ऐसा होने मे तेरा कोई हाथ नही है " ,............ बड़े होके भी छोटे का हाथ ऐसे ही पकड़ना ओर............ "भगवान् तुम्हारी छत पे रोज आता है उससे डर के रहना " बड़ा तो हो गया पर शायद मन उतना बड़ा नही रहा जरूरतों ओर ख्वाहिशों ने इसे मैला कर दिया है
प्रीति बड़थ्वाल के ब्लाग पर झील के साथ पहले उनकी फोटो भी हुआ करती थी। अब पता नहीं क्यों वह वहां से हट गयी है और ब्लाग का सौंन्दर्य अनुपात कुछ गड़बड़ा गया है। कल की उनकी कविता लोगों को बहुत पसंद आयी। उनके ब्लाग पर कापी-पेस्ट की सुविधा न होने के कारण उसे टाइप करके पेश करना पड़ रहा है:
मैं एक आंसू हूं
ठहर नहीं पाउंगी
जब भी बुलाओगे मुझे
मैं पास आ जाऊंगी
शिवकुमार मिश्र दो दिन टीवी न्यूज चैनले के कान्फ़ेन्स हाल में रहे। वहां से निकले तो परमीशन के झमले में पड़ गये| तब उनको परमीशन बोध हुआ:
अनुमति, जिसे बोल-चाल की भाषा में परमीशन कहते हैं, बड़ी जरूरी चीज होती है. जरूरी इसलिए कि लेनेवाले और देनेवाले दोनों को औकातोचित ऊंचाई प्रदान करती है. जिसे मिलती है, उसे कुछ करने की औकात का एहसास होता है और जो देता है वो यह सोचकर संतुष्ट होता है कि उसके पास भी औकात है कुछ देने की. लेकिन अगर परमीशन के लेन-देन का कार्यक्रम पूरी तरह से न संपन्न किया जाय तो बड़ी झंझट होती है.
राज भाटिया जी ने गांधीजी के माध्यम से बताया
ऎक ऎसी दुनिया मे.... जिसमे सर्वत्र वेभव-विलास का ही वातावरण नजर आता हे , वहां सादा जीवन जीना सम्म्भब हे या नही , यह सवाल व्यक्ति के मन मे हमेशा उठ सकता हे लेकिन सादा जीवन जीने योग्या हे तो यह प्रयत्र भी करने योग्या हे,चाहे वह किसी एक व्यक्ति या किसी एक ही समुदाय द्वारा क्यो ना किया जाये.
ब्लागिंग के साथ कमाई भी हो क्या कहने। आप तरीके जानना चाहते हैं तो संजीव तिवारी की शरण में जायें। हालांकि संजीव तिवारी ने अपनी ब्लाग-कमाई का खुलासा नहीं किया।
अभिषेक ओझा की कल की पोस्ट ब्लागरी और माड्रर्न आर्ट हमने बाद में दुबारा पढ़ी। उसमें बताया गया है कि
एक नए, साधारण छोटे ब्लोगर को ब्लॉग जगत माडर्न आर्ट की तरह दीखता है... संग्रहालय की एक-एक बात से जोड़ लीजिये सब कुछ मिल जायेगा यहाँ भी। दो लाइन की तुकबंदी पता नहीं चले की कविता है या गद्य और लोग कह जाते हैं...
'आप महादेवी वर्मा के पाँचवे और निराला के बाइसवें अवतार की तरह लिखते हैं...'छोटा ब्लोगर सोचता है चलो अभी लिखते जाओ... एक बार लोकप्रिय होने दो... फिर यही पोस्ट वापिस ठेला करूँगा... तब तो लोग पढेंगे ही, और पता नहीं तब समय मिले ना मिले !
इसको पढ़कर समीरलालजी ने उचित ही सवाल उठाया है कि टिपण्णी करने से पहले पोस्ट समझाना भी होता है क्या? ब्लागिंग से संबंधित तमाम भ्रम इसलिये भी पैदा होते हैं क्योंकि लोग ब्लागिंग के मूल सिद्धांतों का सही से पारायण नहीं करते और ब्लागरी करते रहते हैं। टिप्पणी की प्रकृति की व्याख्या करते हुये ब्लागिंग का सिद्धांत कहता है:
किसी पोस्ट पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा। अगर आपके ब्लाग पर लोग टिप्पणियां नहीं करते हैं तो यह मानने में कोई बुराई नहीं है कि जनता की समझ का स्तर अभी आपकी समझ के स्तर तक नहीं पहुंचा है। अक्सर समझ के स्तर को उठने या गिरने में लगने वाला समय स्तर के अंतर के समानुपाती होता है।
पोस्ट और टिप्पणियों को ध्यान से पढ़ने के पचड़े में न पड़नी की बात संजय पटेल की इस पोस्ट से भी साफ़ हुई। इसमें लावण्याजी का बड्डे कल मन गया जबकि उनका जन्मदिन २२ नवंबर को पड़ता है। लावण्या जी ने इस बारे में बताया भी टिपण्णी करके लेकिन भाई लोग आगे भी उनका केक कल ही काट गये।
तरुण को आप खाली निठल्ला चर्चाकार ही न समझें। वो फ़िलिम विलिम देखकर उसकी वो भी कर देते हैं जिसे भाई लोग समीक्षा कहते हैं। वुधवार पिच्चर की करी है उन्होंने सोमवार को वो क्या कहते हैं समीक्षा। धांसू है जी। भाई लोग कह रहे हैं। देखिये न!
ममताजी दिल्ली से गोवा जेट लाइट से गयीं। उन मुओं ने उनसे ५००० रुपये ऐंठे और खाने तक को नहीं पूछा। अगर सफ़र में दिखने को मनभावन बादल न होते तो भला बताइये वे क्या करतीं
आप अगर पर्यावरण के प्रति तनिक भी जागरूक हैं तो आप सतीश पंचम का यह लेख बांचिये। इसमें पर्यावरण की चिंता करने की अभिनव तरकीब बताई गयी है। आप देखिये न मज्जा आयेगा।
नीरज गोस्वामी ने खोपोली में हुये कवि सम्मेलन की आखिरी रपट पेश की। अपनी तारीफ़ से कित्ता शरमाते हैं नीरज देखिये जरा:
मैं उनकी बातें सुन कर गर्म तवे पर रख्खे बर्फ के टुकड़े की मानिंद पानी पानी हो गया. इतनी भरी सभा में अपनी प्रशंशा सुनने का ये मेरा पहला अनुभव था. आसपास बैठे लोग मुझे शंकालु नजरों से घूरने लगे, बहुत सो ने अपनी गर्दन दूसरी और घुमा ली जैसे की जिसके बारे में कहा जा रहा है वो कोई और हो. कुछ एक ने बाद में कहा की नीरज जी आप तो ऐसे ना थे.हमने आपको क्या समझा...लेकिन आप तो शायर निकले च च च च....मेरा बैंड बजा कर अनीता जी मुस्कुराती हुई वापस अपनी जगह पर बैठ गयीं.
फ़िडेल कास्त्रो के बारे में एक खबर ने देखिये लोगों को लाल-केसरिया कर दिया।
अमित तकनीकी विषयों की अक्सर जानकारी देते रहते हैं। कल उन्होंने माइक्रोब्लागिंग के फ़ंडे बताये। देखिये शायद आपका मन भी माइक्रो-माइक्रो करने लगे।
परसों २१ सितम्बर को इंडिया हैबिटेट सेंटर (भारत पर्यावास केन्द्र) में हिन्द-युग्म ने एक बैठक की। मीटिंग दोपहर २ बजे से संध्या ६ बजे तक चली। बैठक की रिपोर्ट यहां देखें। ऊपर की तस्वीर भी वहीं की है।
भार्गव परिवार ने अमेरिकन डायरी लिखना शुरू किया है। पिछली बार अनूप भार्गव ने अपना काम किया और कहा- क्या तुम मुझ से शादी करोगी ? । अबकी बारी थी रजनीजी की। तो वे अपने साथ क्लास रूम ले गयीं। वहां तरह-तरह के बच्चे हैं। आप भी देखिये इस अनूठे संसार को:
गर्मी में घास के साथ बहुत सारे डैंडलाईन उग आते हैं, एक किस्म की वीड (मोथा) जिसमें पीले फूल निकलते हैं। केटी इन पीले फूलों के साथ दो तीन जंगली पत्तियाँ ला कर हाथ में देती है और कहती है ये सब मेरे लिये है। वो फूल उसके जाने से पहले मुरझा जाते हैं पर मैं सब बटॊर कर घर ले आती हूँ। जब स्कूल में थी तो हमारी बायोलोजी की टीचर मेरी पसंदीदा टीचर हुआ करती थीं पर मैं कभी भी हिम्मत नहीं जुटा पाई फूल पत्ती देने की। आज जब ये सब बच्चे करते हैं तो बहुत अच्छा लगता है।
ज्ञानजी कल डंडी मारना क्या सीखे कि उनका पोस्ट लिखने का मन ही नहीं किया उनका। मजबूरी में भाभीजी ने अपनी कुछ यादें दीं पोस्ट करने को। लेकिन टाइप करते समय ज्ञानजी ने अपनी ’सद्य लर्नित विद्या’ का फ़ायदा उठाते हुये डंडी मार दी और नाना जी के बारे में लिखा- वैसे वे बड़े घाघ किस्म के आदमी थे – जल्दी कुछ उगलते नहीं थे
रामायण संदर्शन का सितंबर अंक देखते चलिये- मिटई न मलिन सुभाव अभंगू
अब अफ़लातून जी का पाडकास्ट सुनिये- हिंदू बनाम हिंदू
एक और जरूरी खबर रविरतलामी सुना रहे हैं-ऑनलाइन हिन्दी प्रोग्रामिंग औजार हिन्दवी जारी|
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वही फूल भवरों को
अब भरमाने लगे है ।
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सजाते थे ख़ुद को,
वही आईने देख उन्हें
अब शर्माने लगे है.....पूनम अग्रवाल
कुर्सी ही इनका सपना है,
अरे देश कौन सा अपना है,
चाहे देश हमारा..... ओये
चाहे देश हमारा मिट जाए,
पर कुर्सी इनको मिल जाए।डा. कुमारेंद्रि
अरे देश कौन सा अपना है,
चाहे देश हमारा..... ओये
चाहे देश हमारा मिट जाए,
पर कुर्सी इनको मिल जाए।डा. कुमारेंद्रि
जो मुश्किलात में हंस कर यहाँ निभा लेगा
मुझे यकीं है वो मंजिल जरूर पा लेगा
तू हमसफ़र है मेरा मुझको कोई फ़िक्र नहीं
मैं लड़खड़ाउं तो अब तू मुझे संभालेगासादिका नबाब
मुझे यकीं है वो मंजिल जरूर पा लेगा
तू हमसफ़र है मेरा मुझको कोई फ़िक्र नहीं
मैं लड़खड़ाउं तो अब तू मुझे संभालेगासादिका नबाब
मेरी पसंद
जहाँ में मुस्कुराना सीख लो तुम
दिलों से दिल मिलाना सीख लो तुम
न जाने कब कटे साँसों की डोरी
किसी के काम आना सीख लो तुम
दुआ बन कर के गूंजे हर जुबां से
कोई ऐसा तराना सीख लो तुम
सफर में काम आए वक्ते मुश्किल
हुनर कोई सुहाना सीख लो तुम
जहाँ में कोई भी दुश्मन नहीं हो
सभी से दोस्ताना सीख लो तुम
रेखा रोशनी
और अंत में
कल की चर्चा में विवेक सिंह की शिकायत और उलाहना है -इसको प्रकाशित करने का समय नित्य नियत होना चाहिये . सुबह से इसके इंतज़ार में खोल खोल कर देखते रहते हैं . कुछ मिलता नहीं . आज पहली बार में ही मिल गया . आभार ! बहस का जवाब भी आना चाहिए (पर छोटों की बात सुनता कौन है ?) तो भैया पहले दूसरी शिकायत तो निस्तारित मानी जाये काहे से कि हम सुन भी रहे हैं और सफ़ाई भी दे रहे हैं। बकिया जहां तक रही पहली बात कि चर्चा नित्य-नियत होनी चाहिये। उसमें भी नित्य तो है लेकिन नियत वाला मामला लफ़ड़े में फ़ंस जाता है अक्सर। तमाम लफ़ड़े हैं इस चर्चा की राह में। घर-परिवार, इधर-उधर और न जाने किधर-किधर। हम सभी चाहते हैं कि ब्लागर का जब मन आये लिखे लेकिन हम नित्य-नियमित चर्चा करते रहें। लेकिन कहा है न! कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी,यूं ही कोई चर्चाकार नहीं होता। कभी हम लोग दिन में कई बार चर्चा ठेल देते थे। अब एक बार करते हैं। बहरहाल देखते हैं कैसे हम लोग नित्य-नियमित कर पाते हैं इसे। या तो ऐसा करें कि एक समय तक जित्ती हो सके उत्ती कर दें या फ़िर देशी पण्डित की तरह जब मन आये कर दें। कुछ और चर्चाकार आयें साथ में तो कुछ और मजा आये।
यू कोई चर्चाकार नही होता। सत्य वचन महाराज
जवाब देंहटाएंवाकई मेहनत का काम है, आज की चर्चा काफी अच्छी रही।
जवाब देंहटाएंकभी कभी रेडियो पर समाचार में सुनाई देता है," भारत और चीन बातचीत जारी रखने की संभावनाएं तलाशने के लिए सिद्धांतत: सहमत हो गए हैं ." वह सुन कर जो राहत होती है उससे कहीं अधिक राहत यह देख कर है कि मेरी बात से आप सिद्धांतत: तो सहमत हैं . आभार !
जवाब देंहटाएं(कृपया रोज़ाना दो चार लोगों की टाँग खिंचाईे एसे ही जारी रहे . बहुत मजा आता है. शुक्रिया .)
आकिरी तीन एक-लाईने पसंद आये, लेकिन वहां कुछ जोड दें तो तीन और चिट्ठाकारों का कल्याण हो जायगा !!
जवाब देंहटाएं-- शास्त्री
-- हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाजगत में विकास तभी आयगा जब हम एक परिवार के रूप में कार्य करें. अत: कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर अन्य चिट्ठाकारों को जरूर प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
आपकी चिट्ठा ऊर्जा को प्रणाम.
जवाब देंहटाएं"वैसे वे बड़े घाघ किस्म के आदमी थे – जल्दी कुछ उगलते नहीं थे"
जवाब देंहटाएंईश्वर को हाजिर-नाजिर रख कर कहता हूं कि ये शब्द मेरी पत्नी जी के ही हैं; और उन्होंने खास तौर से कहा कि मैं इन्हें तोड़ने-मरोड़ने का यत्न न करूं!
कहें तो उनसे बात करा दूं? :-)
---
और हां, आप बहुत मेहनत का काम करते हैं यह चर्चा करने में।
धन्यवाद्,
जवाब देंहटाएंमुझे चिटठा चर्च में सबसे उपर दिखने के लिए...
जब मैंने हिन्दी ब्लॉग्गिंग करे की सोची थी तब मेरा सबसे पहला लक्ष्य यहाँ पर स्थान पाना था और आज शायद वो पुरा हो गया.
मै एक बार फिर से पुरे चिटठा चर्चा टीम को अपने तरफ़ से धन्यवाद कहूँगा.
अंकित
अनूप जी सबसे पहले तो शुक्रिया। शायद आपने पहले ध्यान नहीं दिया कि मैंने अपनी फोटो पहले ही हटा दी थी। बहरहाल सिक्योरिटी कोड भी हटा रही हूं क्योंकि आप को तकलीफ ना हो, अगली बार टाइप ना करना पड़े।
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तृत चर्चा है.. सारी बा्तें आ गई..आभार..
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंआज तो बहुत सारा होमवर्क ( ? ) दे दिहो है, भाई ।
बिना पढ़े हम कुछ लिखेंगे नहीं !
अउर होमवर्क पर प्रश्नचिन्ह इसलिये, कि ब्लागिंग तो
ज़्यादातर लोग होमै पर करते हैं, हाँ वर्क भी करना पड़ेगा,
यह दूसरे किसिम की बात है ।
और अब..इस कनिष्ठ का एक गरिष्ठ सवाल वरिष्ठजनों से..
ई ब्लागिंग के सिद्धान्त किस ईस्वी में किन महापुरुषों द्वारा प्रतिपादित किये गये,
जरा हिंयई से खुलासा हो जाता,
तो कई तरह की अज्ञानता से मुक्ति मिल जाती ।
मेरे कन्ने हर सिद्धान्त को तोड़ने का एक बेजोर तोड़ है !
कल किसका लम्बर लगेगा, चर्चवा में ?
अच्छा अच्छा, अपने गरिष्ठ-वरिष्ठ समीर लाला ही हैं, कल !
.. उत्तम बल्कि कहिये कि अतिउत्तम
... स्क्रूद्राइवर पर तो कमांड हासिल है, दद्दू को,
ज़रूर से हम नवे लोगन के दिमाग का बलफ-होल्डर सब दुरुस्त कर देंगे ।
अग्रिम धन्यवाद, भईय्या !
ऎ भाई, एक दिन गेस्ट एपीयरेन्स में ज्ञान जी को बुलाइये ना,
आज तक पाईचार्ट.बार डायाग्राम वाली चर्चा की बाट जोह रहे हैं,
एगो दुगो टेबुल-ऊबुल भी रहेगा त बन्हिंया न लगेगा ।
सोचिये...सोचिये. तनि !
"...संपादक प्रमोद जोशी ने अपने एक लेख घटती साख वाला बुद्धि-विलास में लिखा- ब्लाग राइटिंग अच्छी भी हो रही है, पर उसकी तुलना में कचरा कहीं ज्यादा लिखा जा रहा है। ..."
जवाब देंहटाएंये बात बहुत पहले कही जा चुकी है, पर तब भाई लोगों ने बहुत बवाल मचाया था. प्रमोद जोशी ने नया कुछ नहीं कहा है. वैसे 20-80 प्रतिशत का अनुपात तो सब जगह रहता है. उनका ही अखबार उठा लो. 20 प्रतिशत ही पढ़ने लायक रहता है... बाकी तो रद्दी वाले को बेचना ही पड़ता है...:)
भाई शुक्ल जी आपने तो चिठ्ठा चर्चा को ऐसा बना दिया है की दिनों दिन
जवाब देंहटाएंनिखार पर आती जा रही है ! ये ऐसे ही उन्नती के नए नए शिखर तय करें !
और हम भी ताऊ-बाबा हैं हमारे वचन कभी ग़लत नही हो सकते ! :)
अब ज़रा हमारे गुरुदेव की मांग पर तनिक ध्यान दिया जाए !
"ऎ भाई, एक दिन गेस्ट एपीयरेन्स में ज्ञान जी को बुलाइये ना,
आज तक पाईचार्ट.बार डायाग्राम वाली चर्चा की बाट जोह रहे हैं,
एगो दुगो टेबुल-ऊबुल भी रहेगा त बन्हिंया न लगेगा ।
सोचिये...सोचिये. तनि ! "
शुभकामनाएं !
बहुते मज्जा आया आज की चर्चा में.
जवाब देंहटाएंकुछ ज्यादा ही मस्त रही आज की चिटठा चर्चा ।
जवाब देंहटाएंरवि रतलामी जी की टिप्पणी से सहमत हूं।
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा का जलवा तो देखते बन रहा है।
अमित गुप्ता जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
अनूप जी,
जवाब देंहटाएंआप तो छा गये. बहुते खूब चर्चा करते हो आप. पाण्डे जी की डिमांड की जा रही है. हमारा वाला दिन दे दो.
अमित गुप्ता जी को जन्म दिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाऐं.
एक लाइना धाँसू है खास तौर से ..... बारात ओर मै उस टाइप की लड़की नही हूँ....नए चिट्ठाकार की फोटो देकर प्रोत्साहन सराहनीय है......रंग चकाचक है.......
जवाब देंहटाएंयू कोई चर्चाकार नही होता।
"अनूप जी चिठ्ठाचर्चा दिनों दिन बेहतर से बेहतर होती जा रही है, हमारी मुश्किल भी बढ़ रही है, इतने सारे चिठ्ठे पढ़ने का टाइम कहां से लाएं आप कैसे कर लेते हो? अपना अल्लाह्दीन के चिराग वाला जिन्न उधार दे दो पिछली चिठ्ठाचर्चा के बहुत सारे चिठ्ठे पढ़ने बकाया हैं। अमित गुप्ता से मिलवाने के लिए धन्यवाद, अब आप की माइक्रोब्लोगिंग के जलवे देखने का इंतजार है"
जवाब देंहटाएंअमित जी को जन्मदिन की बधाई।
जवाब देंहटाएंइतनी विस्तृत चर्चा में आप का श्रम स्पष्ट झलकता है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
धन्यवाद, आपने मेरे ब्लॉग को नए ब्लॉगरों की सूची में अपने ब्लॉग पे शामिल किया है.
जवाब देंहटाएं-नीरज