पूरा बिहार बाढ़ की विभीषिका झेल रहा है। तमाम साथी बाढ़ की विभीषिका के बारे में लिख रहे हैं। नितीश राज लिखते हैं-
एक मां अपनी बगल में दो बच्चों को दबाए बाढ़ के उफनते पानी को चीरते हुए आगे बढ़ रही थी। साथ में कुछ और लोग भी थे। धीरे-धीरे सब चलते जा रहे थे किसी को पता नहीं था कि आखिर इस बाढ़ का अंत कहां है, पर बचने के लिए चलना तो जरूरी था। पानी का एक तेज बहाव उनकी तरफ आया। सबने संभलने की कोशिश की। मां ने भी अपने आप को बचाने के लिए एक पेड़ की टहनी को पकड़ लिया और उस बहाव से जूझने लगी। पर जिस हाथ से टहनी पकड़ी थी उसकी बगल में दबा बच्चा तो उस बहाव की भेंट चढ़ गया।
विनीत उत्पल का गांव डूब गया है। वे बतातें हैं:
आज शंकर भैया बता रहे थे कि राहत सामग्री नही के बराबर है।कई-कई दिनों के बाद नाव आती है. हेलिकाप्टर से गिराये जा रही राहत सामग्री पानी में जा रहा है. यहां किसी का कोई सुनने वाला नही है. जीवन का क्या होगा, पता नहीं|
पापा की सबसे बड़ी बहन यानी मेरी बूआ लापता है। बूढ़ी आंखें पता नही अपनों को देख पायी होगी या पायेगी मालूम नही.
अविनाश कहते हैं- ये कोसी नहीं करप्शन का कहर है।
बाढ में सब कुछ बहा जा रहा है, सामान, लोग-बाग,नाते-रिश्तेदार, हौसला। कोसी कुछ रहम करे।
मनीष यायावर ब्लागर हैं। घूमते रहते हैं, लिखते रहते हैं। कोलकता गये तो उसके बारे में रपट लिखी:
हमारी टैक्सी कलकत्ता से हावड़ा के सफर पर जा रही है । ड्राइवर के बातचीत के लहजे से हम सब जान चुके हैं कि ये बंदा अपने मुलुक का है । पूछा भाई किधर के हो ? छूटते ही जवाब मिला देवघर से । जैसे ही उसे पता चला कि हम सब राँची से आए हैं, झारखंड के बारे में अपना सारा ज्ञान वो धाराप्रवाह बोलता गया । थोड़ी देर बाद एक उदासी उसकी आवाज में तैर गई । पहले गाए भैंस हांकते थे साहब, अब कलकत्ता जैसे शहर में इस टैक्सी को हाँक रहे हैं।
ममताजी इलाहाबाद में अकेले-अकेले जलेबी खा रही हैं। कोई इलाहाबादी ब्लागर उनको टोंक भी नहीं रहा है।
राज भाटिया की हर पोस्ट आशा का संचार करती है। आज भी उन्होंने दीपक जलाये।
सुनिये: मुकेश के स्वर में रामचरित मानस का अंश
आज के नये चिट्ठे
भूतपूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब का कहना है- सपने वो नही होते जो आपकी नींद में आते है सपने तो वो होते है जो आपकी नींदे उड़ा देते है | सपनो के प्रति यही बेचैनी पंचलाइन है- Welcome in World of Dream से शुरू हुये ब्लाग की।- चंडीगड़ के आशीष छह ब्लागों से संबद्ध हैं। आज धार्मिक बातें बना रहे हैं।
- नयी दिल्ली और पटना से संबंधित कुमार नरोत्तम दो ब्लाग चलाते हैं। अंतर्गाथा ब्लाग मार्च, २००८ से चला रहे हैं। अभी तक कुल जमा अठारह पोस्ट में से दस अगस्त माह में लिखीं गयीं। अपनी नवीनतम पोस्ट जो कि लिखी जुलाई में गयी थी लेकिन प्रकाशित अब हुयी वे बताते हैं- बिहार में नहीं मिली है रोजगार की गारंटी
- विष्णु शर्मा को १२ अगस्त को अपनी मूर्खता का ज्ञान हुआ और उन्होंने ब्लाग शुरू किया। कल वे कल की चादर तान के बैठ गये, कहते हुये-कल की चादर बड़ी ही विशाल और चुम्बकीय है..जो भी डालो सब छुप जाता है और फ़िर बापस( वापस) भी आने की सम्भावना कहा (कहां) है ।
- लोकेश मार्च २००८ में शुरू करके पांचवी पोस्ट तक पहुंच गये। अब कहते हैं: गहराइयाँ बढ़तीं हैं साहिलों के बाद,
नजदीकियां बढ़तीं हैं फासलों के बाद,
उसूल-ऐ-रिश्ता राह है,
मंजिल मिलती है दिलों के बाद - मेरठ शहर की मनविन्दर भिंभर ने अपना नया ब्लाग अमृता प्रीतम को याद करते हुये शुरू किया।
- प्रवीन दिवेदी लखनऊ के हैं। कल हिंदी में पहली पोस्ट लिखी। उनका मासूम सवाल है- ब्रेकिंग न्यूज़, ताजा खबर... आखिर क्या है इनमें ब्रेकिंग और ताजा
एक लाइना
- बड़ा दर्द सहा है तुमने ऊफ : कोई ’पेन किलर’ क्यों नहीं ली?
- क्या श्री अभय तिवारी एक प्रो-मुस्लिम प्रोपेगेंडिस्ट हैं? : खाली शक्ल देखकर क्या कहें?
- सैकुलर भैस और संघी गाय : के साथ पंगेबाज का गठबंधन
- मेरे जिस्म मेरी रूह को अच्छा कर दे : बहुत दिन से कष्ट में हैं रूह! देखा नहीं जाता!
- पाकिस्तान में सोरेन : गये हैं मुख्यमंत्री बनने! झारखंड साथ ले गये हैं।
- अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग :लगातार जारी है।
- महायान बाइक और काली को पेप्सी का भोग : वे पी रहे हैं सर उठा के।
- तरह तरह के बिच्छू :तरह तरह के डंक।
- सुबह,-"सुबह" उदास सी रेखाजी के साथ रहोगे तो शाम भी ऐसेइच होगी।
- वोही तो मेरा गीत है : ज्यदा करोगे तो गाने लगेंगे।
- बड़े-बड़े सपने :पर हल चला दिया।
- मत जाओ चांद पर : कोई फ़ायदा नहीं जाने का! न पानी न बिजली एकदम अपने शहर जैसा है।
- ये कोसी का नहीं, करप्शन का कहर है: तय करो किस ओर हो तुम!
- चैनलों की भ्रामक खबर से बंदा खुश हुआ : असलियत जान के मुंह लटक गया।
- उन्हें अभी नींद से मत उठाओ : वो राहत कोष की गोली खा के सोये हैं।
- व्यापार में अवरोध अनुबंध शून्य हैं : और शून्य में सब कुछ समाया है ये तो आपको पता ही है।
- निर्माण : कोशिश बढ़िया, निर्माण अधूरा- अबरार अहमद
- आखिर हम भी एक दिन बेइमान हो गए : इसी बहाने कुछ अपने कद्रदान हो गए।
- क्या दूं : उधार, जुदाई, करार और इस मुये चांद के सिवा जो हो दे दीजिये।
- चिंतन दीपक : में अपने हिस्से का तेल डालते रहें।
- सवाल : कि आखिर मेरी उलझन क्या है?
- चाटुकारिता में पत्रकारों को मात दे दी नेताओं ने : पत्रकारों ने मात का उत्सव मनाया नेताऒं के साथ
- औंधे आ गिरी चित्र पहेली : अरे देखो मुंह तो नहीं फ़ूटा!
- आदमी की पीर गूंगी ही सही गाती तो है.. : सुनाई पड़ रहा है न!
- नया महीना, पहली तारीख़ और आमद नए कबाड़ी की: क्या भाव पड़ा ये कबाड़ी!
- इलाहाबाद यात्रा की यादें (२) सुबह-सुबह जलेबी खाना :): अकेले-अकेले !
- ...... मॉं की याद आती है, पर माँ नहीं आती!: उनके पास ‘’तीन बहुरानियाँ’’जो हैं!
- यात्रा की यात्रा :घबराइए मत, डीजल भराया जा रहा है। सफर अब शुरू होने वाला है।
- जीवन उनका धन्य...! : जिनकी पोस्ट पर एक भी टीप मिली।
- फ़ोर्ब्स पत्रिका में आम-मजदूर महिलायें क्यों जगह नहीं पाती: ये अन्दर की बात है!
- एन डी टी वी और अजीब उलझन : .टाटा ये......टाटा वो....टाटा फलाना.....टाटा ढेकाना.।
- चौराहे पे, धरती माँ के गिर्द, एक नंगा बच्चा लेटा है... : हम उसी पर ये पोस्ट लिख रहे हैं।
- सपनों का मर जाना सामाजिक हर्ष का विषय है :मरे हुए सपनों वाले ग्रेजुएट बनते हैं अच्छे क्लर्क, अच्छे नागरिक।
- महोदय अ का शाश्वत लेखन : सही है यहां हर कोई अपनी ढपली बजा सकता है।
मुखौटे
दुनिया के बाजार में
जहाँ कहीं भी जाओगे
हर तरफ, हर किसी को
मुखौटे में ही पाओगे ।
यहाँ खुले आम मुखौटे बिकते हैं
और इन्हीं को पहन कर
सब कितने अच्छे लगते हैं
विश्वास नहीं होता --?
आओ मिलवाऊँ
ये तुम्हारा पुत्र है
नितान्त शरीफ,आग्याकारी
मातृ-पितृ भक्त
हो गये ना तृप्त ?
लो मैने इसका
मुखौटा उतार दिया
अरे भागते क्यों हो--
ये आँखें क्यों हैं लाल
क्या दिख गया इनमें
सुअर का बाल ?
आओ मिलो -
ये तुम्हारी पत्नी है
लगती है ना अपनी ?
प्यारी सी, भोली सी,
पतिव्रता नारी है पर-
मुखौटे के पीछे की छवि
भी कभी निहारी है ?
ये तुम्हारा मित्र है
परम प्रिय
गले लगाता है तो
दिल बाग-बाग
हो जाता है
क्या तुम्हे पता है
घर में सेंध वही लगाता है
ये तो दोस्ती का मुखौटा है
जो प्यार टपकाता है
और दोस्तों को भरमाता है
मुखौटे और भी हैं
जो हम सब
समय और आवश्यकता
के अनुरूप पहन लेते हैं
इनके बिना सूरत
बहुत कुरूप सी लगती है
मुखौटा तुमने भी पहना है
और मैने भी
सच तुम्हे भी पता है
और मुझे भी
फिर शिकायत व्यर्थ है
जो है और जो हो रहा है
उसके मात्र साक्षी बन जाओ
मुखौटे में छिपी घृणा, ईर्ष्या
को मत देखो
बस---
प्यारी मीठी- मीठी बातों का
लुत्फ उठाओ ।
शोभा महेन्द्रू
दुनिया के बाजार में
जहाँ कहीं भी जाओगे
हर तरफ, हर किसी को
मुखौटे में ही पाओगे ।
यहाँ खुले आम मुखौटे बिकते हैं
और इन्हीं को पहन कर
सब कितने अच्छे लगते हैं
विश्वास नहीं होता --?
आओ मिलवाऊँ
ये तुम्हारा पुत्र है
नितान्त शरीफ,आग्याकारी
मातृ-पितृ भक्त
हो गये ना तृप्त ?
लो मैने इसका
मुखौटा उतार दिया
अरे भागते क्यों हो--
ये आँखें क्यों हैं लाल
क्या दिख गया इनमें
सुअर का बाल ?
आओ मिलो -
ये तुम्हारी पत्नी है
लगती है ना अपनी ?
प्यारी सी, भोली सी,
पतिव्रता नारी है पर-
मुखौटे के पीछे की छवि
भी कभी निहारी है ?
ये तुम्हारा मित्र है
परम प्रिय
गले लगाता है तो
दिल बाग-बाग
हो जाता है
क्या तुम्हे पता है
घर में सेंध वही लगाता है
ये तो दोस्ती का मुखौटा है
जो प्यार टपकाता है
और दोस्तों को भरमाता है
मुखौटे और भी हैं
जो हम सब
समय और आवश्यकता
के अनुरूप पहन लेते हैं
इनके बिना सूरत
बहुत कुरूप सी लगती है
मुखौटा तुमने भी पहना है
और मैने भी
सच तुम्हे भी पता है
और मुझे भी
फिर शिकायत व्यर्थ है
जो है और जो हो रहा है
उसके मात्र साक्षी बन जाओ
मुखौटे में छिपी घृणा, ईर्ष्या
को मत देखो
बस---
प्यारी मीठी- मीठी बातों का
लुत्फ उठाओ ।
शोभा महेन्द्रू
मेरी पसन्द
नींद आंखों में बुलाता कौन है
ख्वाब से इनको सजाता कौन है
भूलना तो चाहता हूँ मैं उसे
याद उसकी पर दिलाता कौन है
ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन देता और पाता कौन है
गुल बिछाता हूँ मैं उसकी राह में
खार नफरत के उगाता कौन है
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है
राग अपने और अपनी ढफलियां
पीठ दूजी थपथपाता कौन है
हम किसे आवाज दें "नीरज" बता
देख के बदहाल आता कौन है
नीरज गोस्वामी
... और अंत में
कल सिद्धार्थ त्रिपाठी का उलाहना था-
मुझे अपना संकोच त्याग कर ये कहना है कि आपकी चिठ्ठा चर्चा में अगर मेरे प्रयास की चर्चा छूट जाती है तो मन मायूस हो जाता है। मैं जब भी कुछ लिखने की कोशिश करता हूँ तो चाहता हूँ कि पिछली पोस्ट से बेहतर बात हो सके। अब अगर आप जैसे बड़े भाई का आशीर्वाद नहीं मिलता है , यानि आपका ध्यान उस ओर नहीं जाता है तो कदाचित् उपेक्षित होने का भाव सिर उठाने लगता है
सिद्धार्थ का उलाहना जायज है। बाढ़ की विभीषिका पर उन्होंने जो लिखा वो अद्भुत है। उनके संवेदनशील मन का परिचायक है:
रघुबर काका बतलाते हैं, अबतक यह बाढ़ नही देखी।
सत्तर वर्षों की उमर गयी, ऐसी मझधार नहीं देखी॥
कल टी.वी. वाले आये थे, सोचा पाएंगे खाने को।
बस पूछ्ताछ कर चले गए,मन तरस गया कुछ पाने को॥
ऐसी रचनाओं का जब कायदे से उल्लेख नहीं होता तो ऐसा लगना स्वाभाविक है। लेकिन हम कोशिश करते हैं कि उल्लेख करने योग्य है वह छूटे न। आगे भी प्रयास रहेगा।
घोस्ट बस्टर ने अभय तिवारी के लेख को घटिया बताया है। अब वे उनकी विवेचना करेंगे। निष्कर्ष निकाल लेने के बाद विवेचना करने में आसानी रहती है।
फ़िलहाल इतना ही। बकिया फ़िर।
.
जवाब देंहटाएंचर्चा तो पढ़ ली,
पर यह बताइये कि पंक्चुअलिटी एवार्ड आपको क्यों न दिया जाय ?
बेहतरीन चर्चा .शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअनूप जी फिर से वो ही लाइन बढ़िया चर्चा, लेकिन कई बार सोचता हूं कि इतना पढ़ कब पाते हो आप और फिर सब पर कमेंट फिर चर्चा...सच बहुत काम है। और हां सच बाढ़ तो बिहार को लील(डकार) रही है। त्रासदी है ये, भयानक त्रासदी।
जवाब देंहटाएंnice comments!
जवाब देंहटाएंहमेसा की तरह अच्छी चिठ्ठा चर्चा .आश्चर्य होता है आप वक्त कहाँ से निकालातें हैं.
जवाब देंहटाएंहमेसा की तरह अच्छी चिठ्ठा चर्चा .आश्चर्य होता है आप वक्त कहाँ से निकालातें हैं.
जवाब देंहटाएंsahi charcha... bilkul durust.. parantu kal ham nahi aa payenge.. charcha karne.. kshma chahte hai..
जवाब देंहटाएंबिहार की बाढ़ त्रासदी ने सचमुच मन को व्यथित कर रखा है !
जवाब देंहटाएंएक लाइना देखकर फ़िर जी खुश हुआ ....खास तौर से फोर्ब्स....ओंधे आ गिरी .....
जवाब देंहटाएंनिष्कर्ष निकाल लेने के बाद विवेचना करने में आसानी रहती है।
जवाब देंहटाएंफारमूला अच्छा है।
बिहार त्रासदी अभी तो सबको बैचैन किए दे रही है !
जवाब देंहटाएंचर्चा बेहतरीन है ! शुभकामनाएं !
रोज़-रोज़ 'अच्छी चर्चा' कहना अच्छा नहीं लग रहा... कुछ और सोच नहीं पाया...
जवाब देंहटाएंकल भी चर्चा कीजिये तब तक मैं सोचता हूँ, क्या लिखना है :-)
अरे वाह ! आज तो हम भी शामिल है। :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हमेशा की तरह चिट्ठा चर्चा बहुत बढ़िया और मस्त रही।
बाढ़ का इस बार का स्वरूप जितना विकराल है उतना ही हमारे सिस्टम की चाल सुस्त। समय पर बाँध की मरम्मत और रखरखाव पर ध्यान दिया जाता तो इस त्रासदी का ये रूप देखने को नहीं मिलता।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअगर अनामदास का वास्तविक नाम बता दें तो मानें कि आपको ब्लाग पंथ की खबर रहती है।