कु्श ने आश्रम कथा लिखनी शुरू की और बेहतरीन लिखी। उसके किस्से सुनाकर हम मजा कम न करेंगे। आप खुदै बांच लो इधर।
कुश उधर आश्रम में सोटेंबाजी कर रहे थे इधर किसी ने उनका जी दुखा दिया। सो उन्होंने कल चर्चा नहीं करी। बताओ ऐसा भी कहीं होता है। कोई कुछ कह देगा और आपको कुछ-कुछ होने लगेगा। अरे लोग-बाग तो कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं।
हमने देखा है कि महिलाओं के ब्लाग के पात्र सिगरेट बहुत सुलगाते हैं। क्या कारण है इसका? धूम्रपान निषेध का ख्याल रखते हुये अपने पात्रों के फ़ेफ़ड़ों की हिफ़ाजत करनी चाहिये। आज प्रत्यक्षाजीकी पोस्ट पर, पूजाजी की पोस्ट पर और एक और पोस्ट पर सिगरेट का धुंआ दिखा। हम एक बात कह रहे हैं। अपने पात्रों को आप जैसे मन आये वैसे रखें लेकिन इसके लिये आप लोग हमको हड़काना नहीं भाई। हम डर जायेंगे।
अविनाश वा्चस्पति के व्यंग्य लेख और कीर्तिश भट्ट की जुगलबंदी भला देखने को मिलती अगर नैनो बंगाल में अब तक बन गई होती।
अब ज्यादा कहें? आप बांचिये एक लाइना। बीच-बीच में फ़िलर के रूप में और कुछ। आखिरी में टिप्पणियों के जबाब।
वर्तिका नन्दा कहती हैं
इतने सालों में बाढ़ का चेहरा तो वही है पर उसे देखने-दिखाने का नजरिया बदल गया है। अब बाढ़ प्रोडक्ट ज्यादा है- मानवीय भावनाओं का स्पंदन करता विषय कम। जब तक अगला प्रोडक्ट पैदा नहीं होता(यानी अगली ब्रेकिंग न्यूज नहीं आती), तब तक वह प्रोडक्ट लाइफलाइन बना रहता है लेकिन कुछ 'नया' आते ही पुराने का गैर-जरूरी हो जाना तो तय है। यह मीडियाई मनोविज्ञान ही है कि बड़े विस्फोटों के कुछ घंटों बाद ही फिर से हंसो-हंसाओ अभियान शुरू कर दिए जाते हैं और सास-बहुओं से किसी भी हाल में कोई समझौता नहीं किया जाता। सब अपने स्लाट पर दिखाई देते हैं और सब अलग-अलग रंग भरते हैं ताकि ट्रजेडी में भी बना रहे ह्यूमर और जीए टीआरपी।
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युनुस उवाच
सवाल ये है कि छुट्टन या राजू भाई को अपने बुढापे में क्यों घर से बाहर रहना पड़ता है । पारिवारिक स्थितियां अच्छी होते हुए भी ये बूढ़े इसलिए काम कर रहे हैं क्योंकि उन्हें घर से बाहर रहने का बहाना चाहिए । बूढ़े बाप मुंबई में हमारे परिवारों का इस क़दर बोझ बन चुके हैं
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बूरा जब वक़्त आता है, सहारे छूट जाते हैं।
जो हमदम बनते थे हरदम, वो सारे छूट जातेहै।
बड़ा दावा करें हम तैरने का जो समंदर से,
फ़सेँ जब हम भँवर में तो, किनारे छूट जाते है।
रजिया
जो हमदम बनते थे हरदम, वो सारे छूट जातेहै।
बड़ा दावा करें हम तैरने का जो समंदर से,
फ़सेँ जब हम भँवर में तो, किनारे छूट जाते है।
रजिया
पद्मा राय के ब्लाग से:
अब जब सोचतीं हूं तब समझ में नहीं आता कि उस समय की अपनी हरकतों पर हसें कि रोयें. हर साल तीज आती थी कई त्यौहार भी आते थे और तब आती थी चूडिहारिन. आलता और नहन्नी लेकर नऊनियाँ भी आती थी. भौजाई, चाची सभी रंग बिरंगी चूडीयाँ पहनते और फिर नऊनियां से अपने हाथ पैर के नाखून कटवाकर आलता से अपने पैर रंगवाते. पैरों पर नऊनियां रच रच कर चिरई बनाती. हम सबको यह सब करवाते हुये चुपचाप देखते और अपनी बारी का इंतजार करते लेकिन हमारी बारी जब अंत तक नहीं आती तब हम सारा घर सिर पर उठा लेते थे और अड जाते कि हमें भी भर हाथ चूडी पहननी है और पैरों में महावर लगवाना है.अम्मा हमें कुछ कहने के बजाय हमारे भाग को कोसतीं जातीं और अपने धोती के अचरा से अपने बह्ते आँसू पोंछती जातीं. लेकिन बडे होते जाने के साथ साथ हम सब कुछ अपने आप समझ गये थे.
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मेरा नीद से पुराना रिश्ता है,
नींद कभी फैल जाती है,
मेरे आकार लेते सपनों पर,
सपने कभी लेट जाते हैं,
मेरी नींद में,
कुछ लोग कहते हैं,
मैं नींद में समाता हुआ,
एक सपना हूं।
पंकज नारायण प्रेमाकुल
डा.प्रवीन चोपड़ा के दवाखाने से
कईं बार गैस्ट्राइटिस के सिंप्टम इतने ज़्यादा होते हैं कि पेट का एसिड बार बार मुंह तक आता है, बहुत ही अजीब सी खट्टी डकारें रूकने का नाम ही नहीं लेती और छाती की जलन परेशान कर देती है ....ऐसे में एक एमरजैंसी तरीके के तौर पर इस OMEZ- Insta को ट्राई किया जा सकता है।
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ईश्वर!
इतने बरसों से
तुम्हारी भक्ति, सेवा और श्रद्धा में लीन हूं
और
तुम हो कि कभी आते नहीं दर्शन देने!!!आकांक्षा पारे
.
और अंत में
पिछली चर्चाओं में कुछ साथियों की टिप्पणियों के जबाब इधर पेश हैं:
आज की चर्चा में टिप्पणियों के जबाब
१. सर्वेश्वर जी पर आलेख के उद्धरण का धन्यवाद | बस एक बात थी , दरअसल संशोधन था , कि कल उनका जन्मदिन नहीं पुन्युतिथि थी | उद्धरण हेतु पुनः आभार |साहित्य शिल्पीजी/दिव्यांशु शर्मा:
आपकी तारीफ़ का शुक्रिया। गलतियां ठीक कर ली।
२. एक लाइना का इन्तजार जारी है ..:रंजू भाटिया
: पेश है एक लाइना। आपने अपने पहले क्रश को लेफ़्टिनेंट बना दिया।
३.बहुत आभार शुक्ल जी ! आपका यह मुश्किल और सराहनीय प्रयास हमारे जैसे नए चिट्ठाकारों को एक ही मंच पर सभी जानकारी न केवल मुहैया करा रहा अपितु आरम्भ से ही आप जैसे लोगों से जुड़ने, सीखने और अर्जित करने के लिए सतत् प्रेरणा भी दे रहा है. पुनः धन्यवाद् !समीर यादव:
आप बस लिखते रहे हैं। प्रोत्साहन की यहां कौनो कमी नहीं है।
४.सच कहु तो चर्चा करने का मन ही नही हो रहा.. किस पोस्ट की चर्चा करू? उसकी जिसमे शहीद शर्मा को श्रद्धांजलि दी जा रही हो या उसकी जिसमे उन पर सवालिया निशान उठ रहे हो.. सच कहु तो चर्चा करने के लिए बैठा भी था कल.. पोस्ट पर नज़र डाली तो गिनती की चन्द पोस्ट मिली जिनके बारे में कुछ लिख सके..
फिर ऐसा करता तो और इल्ज़ाम अलग लग जाता की कुश गुटबाजी करता है.. या फिर कोई टिप्पणी कर जाता की गुरु जल्दी में निबटा दिया इस बार... कुश
कुश, इल्जाम/विल्जाम से डरे तो लोग दिग्जाम शूटिंग पहना के विदाई समारोह कर देंगे। लोगों का मुंह होता ही कहने के लिये है। आपको अपना मन साफ़ रखना चाहिये बस्स। इत्ता नाजुक मन रखोगे तो रोज लोग इस पर क्रिकेट पिच की तरह रोलर चलायेंगे। तुम्हारे सारे चाहने वाले यही समझा रहे हैं! समझ गये कि बुलवायें सोंटा गुरू को?
५.पिछले दो बार से तो पोस्ट डालने से पहले न चिटठा जगत खोलता हूँ न ब्लोगवाणी ...मन अजीब सा हो जाता है....अगर खोलू तो कुछ अजीब सी बातें पढने को मिलती है .फ़िर मन नही करता..कोसी का पानी अभी सूखा नही है की दूसरे धमाके अब तक दीवारों को हिला रहे है....कभी कभी मन में उब सी होने लगती है....कुश का नही सबका यही हाल है....सच तो ये है की अब हम सच बोलने से भी डरते है.डा.अनुराग:
डा.अनुराग,अब क्या कहें? इत्ता डरके भी क्या कर लोगे?
६.मशहूर साहित्यकार डी.एन.झा या मशहूर इतिहासकार डी.एन.झा?
@आदरणीय डॉक्टर अमर कुमार साहब, लेकिन मैंने सहज हास्य भाव से टिप्पणी की थी, आप इसे कहां ले जा रहे हैं :)अशोक पाण्डेय
: चूक की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिये शुक्रिया। बाकी आप डा.अमर कुमार जी की चिन्ता न करिये। ऊ बात को कहीं ले न जा पायेंगे। हम ले न जाने देंगे। मस्त रहें।
परसों की चर्चा से
१.कृपया रोज़ाना दो चार लोगों की टाँग खिंचाई एसे ही जारी रहे . बहुत मजा आता है. शुक्रिया- विवेक सिंह
बाकी का नहीं कह सकते लेकिन तुम्हारा ख्याल रखेंगे विवेक भाई।
२.आकिरी तीन एक-लाईने पसंद आये, लेकिन वहां कुछ जोड दें तो तीन और चिट्ठाकारों का कल्याण हो जायगा !! शास्त्रीजी
शास्त्रीजी कल्याण का काम आपके जिम्मे हैं। हम तो बस ऐसे ही मौज लेते हैं।
३.
"वैसे वे बड़े घाघ किस्म के आदमी थे – जल्दी कुछ उगलते नहीं थे"
ईश्वर को हाजिर-नाजिर रख कर कहता हूं कि ये शब्द मेरी पत्नी जी के ही हैं; और उन्होंने खास तौर से कहा कि मैं इन्हें तोड़ने-मरोड़ने का यत्न न करूं!
कहें तो उनसे बात करा दूं? :-) ज्ञानदत्त पाण्डेय
ज्ञानजी आखिर इमेज भी कोई चीज होती है। हम उनसे बात करके इत्ते मेहनत से बनाई आपकी इमेज अपने मन में नहीं तोड़ना चाहता।
४. धन्यवाद्,
मुझे चिटठा चर्च में सबसे उपर दिखने के लिए...
जब मैंने हिन्दी ब्लॉग्गिंग करे की सोची थी तब मेरा सबसे पहला लक्ष्य यहाँ पर स्थान पाना था और आज शायद वो पुरा हो गया.
मै एक बार फिर से पुरे चिटठा चर्चा टीम को अपने तरफ़ से धन्यवाद कहूँगा.
अंकित
इत्ते से संतुष्ट हो लिये अंकित!!
५.
अनूप जी सबसे पहले तो शुक्रिया। शायद आपने पहले ध्यान नहीं दिया कि मैंने अपनी फोटो पहले ही हटा दी थी। बहरहाल सिक्योरिटी कोड भी हटा रही हूं क्योंकि आप को तकलीफ ना हो, अगली बार टाइप ना करना पड़े। प्रीति बड़्थ्वाल
प्रीतिजी, आपने फोटो पता नहीं क्यों हटाई लेकिन वह अच्छी लगती थी। उसके हटने से आपके ब्लाग का सौंन्दर्य अनुपात गड़बड़ा गया है।
६. ऎ भाई, एक दिन गेस्ट एपीयरेन्स में ज्ञान जी को बुलाइये ना! डा.अमर कुमार, ताऊजी
ज्ञानजी सुन रहें हों तो जबाब दें, हुंकारी भरें एक दिन के हफ़्ते में।
७.पाण्डे जी की डिमांड की जा रही है. हमारा वाला दिन दे दो. समीरलाल
हमें इस डिमांड में आपका भी हाथ दिख रहा है। आपका दिन हम उनको दे दें ताकि आप टिपियाने में व्यस्त रहो। ई न होगा। कुछ जिम्मेदारी से रहा करो भाई!
बाकी सबकी तारीफ़ का थोड़ा शरमाते हुये शुक्रिया।
अब कल मिलेंगे आपको मसिजीवी परिवार की चर्चा के जलवे इसके बाद तरुण के निठल्ले रंग।
आज नये ब्लागर का जिक्र छूट गया लेकिन वह शामिल किया जायेगा आगे कभी।
फ़िलहाल इत्ता ही। बाकी फ़िर।
पंडित जी,
जवाब देंहटाएंआधी रात में हमें काम देकर सोने जा रहे हो। एक लाइना में किस-किस को बहला रहे हो।
"अनूप शुक्ल द्वारा September 25, 2008 को प्रकाशित आपका क्या कहना है?."
जवाब देंहटाएंमेरा कहना यह है कि इस तरह के मेराथन चर्चा करने के लिये आपको काफी समय एवं ऊर्जा खर्च करना पडता है, अत: ऐसी लम्बी चर्चाओं को सुबह 6 से 8 के बीच रिलीज किया करें. नहीं तो यह अधिकतर पाठकों की नजर में नहीं आ पायगा एवं इतनी मेहनत का सही फल नहीं होगा.
सांझ की चर्चा उन लोगों के जिम्मे दे दें जो चार पेराग्राफ में चर्चा निबटाने में माहिर है (या, सही कहें तो, जो आपके समान समय नहीं देते हैं) उनके हवाले कर दें.
मैं यह टिप्पणी रात 12:16 पर कर रहा हूँ एवं मुझ से पहले सिर्फ एक टिप्पणी आई है, जिसका मतलब यह है कि वाकई में बहुत कम लोगों ने इसे पढा है.
कल सुबह सारे चिट्ठामहारथियों के प्रभात-पत्र जब छपेंगे तो यह उन के पीछे दब जायगा. उम्मीद है कि इशारा स्पष्ट हो गया है.
सस्नेह
-- शास्त्री
-- हिन्दीजगत में एक वैचारिक क्राति की जरूरत है. महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
शास्त्रीजी, यह चर्चा मैंने रात के ११४५ बजे पो्स्ट की। समय और ऊर्जा जो लगे सो लगे लेकिन मैंने इसे किसी फ़ल के लिये नहीं किया। चूंकि सबेरे मैंने वायदा किया था कि शाम को एकलाइना पेश करूंगा सो किया। भले ही कॊ पढ़े या न पढ़े लेकिन मुझे यह संतोष है कि मैंने वायदा निभाया।यह चर्चा भले ही चिट्ठामहारथियों के प्रभात पत्र के नीचे दब जाये लेकिन वायदे के अनुसार अपने मन का काम करने संतोष जो मुझे मिला उसे कौन भकुआ दबा पायेगा?
जवाब देंहटाएंकिसी भी चिट्ठे को पोस्ट करने का सबसे उत्तम समय अच्छी तरह पता है। लेकिन समय हमेशा अपने हाथ में नहीं होता। आज(कल) सुबह साढ़े सात बजे समीरलाल जी का मेल मिला कि वे चर्चा न कर पायेंगे सो पंद्रह-बीस मिनट में जो बन सका करके पोस्ट कर दिया। शाम के लिये जैसा मैने कहा था किया।
आप हमारा उत्साह बढ़ाते हैं इसके लिये शुक्रिया।
शास्त्रीजी सही कहते हैं। आप कभी शाम का वादा न करें। चिट्ठाचर्चा को मेरे जैसे लोगों के लिए मेलरलिस्ट में भी डाल दें जो एग्रीगेटर पर कम जाते हैं या जाने का वक्त नहीं मिलता- ईमानदारी से ।
जवाब देंहटाएंहम शास्त्रीजी के साथ हैं। सुबह भेजिये, शाम का वादा कभी मत कीजिए।
बाकी आप गजबै करो ...
अजित जी, शास्त्री जी की टिप्पणी के नीचे लिखा रहता है- हिन्दीजगत में एक वैचारिक क्राति की जरूरत है. महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें.
जवाब देंहटाएंजब शास्त्रीजी दस साल के बाद का हवाई सपना दिखा सकते हैं तो हम सुबह वायदा करके शाम को पूरा क्यों नहीं कर सकता। बताइये भला। :)
.
जवाब देंहटाएंघोर असहमति
१. लगता है कि वायदे निभाने वाले की वक़त , वायदा करके मुकर जाने वालों से हल्की होती जा रही है ! तभी तो... नेता जनता को चरा रहे हैं !
२. सुबह की चर्चा अपरिहार्य है, वह चर्चाकार का समर्पण है । शाम को वायदा निभाने की बेताबी चर्चाकार का अभिसार है !
३. डाक्टर मरीज़ पर बिगड़े कि तुमको पेट में मरोड़ रात में ही क्यों हुआ, नाहक डिस्टर्ब कर रहे हो ! यह सरासर नाज़ायज़ होगा, ठीक ?
पर यहाँ डाक्टर ख़ुद ही चर्चाकार के पेट में मरोड़ उठने के इंतज़ार में बैठा हो, तो ? चर्चाकार राउंड कर गया, रेफ़रल केसेज कल डील किये जायेंगे, अभी घोस्ट के पोस्ट का टाइम हो रहा है ।
फिर परीसानी का है ? परीसानी ई है कि बीमार हो जईहो तो..
’ आप शीघ्र स्वस्थ हों ’ से ज़्यादा कछु न मिलिहे !
आप चिठ्ठा-चर्चकगण वाइड रीडर हैं ब्लॉगजगत के। हमारा पठन तो गूगल रीडर की फीड से सीमित है। अत: मेरे जैसे तो चिठ्ठा चर्चा बहुत पार्शियल करेंगे! या कर ही न पायेंगे।
जवाब देंहटाएंआपको क्या दिक्कत है जी रोज रोज करने में यह चर्चा? इनर्जी की कमी हो तो रिवाइटल और हॉर्लिक्स भिजवाऊं?!
दर असल सारी गड़बड़ी की जड़ दूसरे सारे चिट्ठाचर्चाकार हैं. आदमी अपने आपको तो अनुशासित कर ले मगर दूसरों का क्या करे, जो ऐन टाईम पर निश्चिंत होकर या परेशानी में, अस्पताल निकल लिए और आप झेल रहे हैं. अगर आप अकेले कर रहे होते तो यह सब परेशानी न आती. एक बार फिर से सोचिये...क्या करना है, सबको बाहर निकालिये और अकेले माहौल जमा डालिये!!!
जवाब देंहटाएंशुकल जी वादा पूरा करने के लिए धन्यवाद ! टिपणी पर टिपणी बड़ी मन मोहक रही ! अब सवाल है
जवाब देंहटाएंपोस्ट ठेलम ठाली का ! तो हमारी नजर में कमिट मेन्टवा ज्यादा जरुरी है ! नीचे दबे तो दबने दो !
जिसको पढ़ना होगा वो ख़ुद दबे को उखाड़ कर पढेगा ! टिपणी की संख्याओं पर मत जाइए !
लोग इस को पढ़ने लग गए हैं ! और मैं फ़िर मेरे कथन पर कायम हूँ की ये सुपर हिट होने जा रहा है !
बहुत शुभकामनाएं !
चिटठा चर्चा के सदस्यों की संख्या देख रहा था. पूरे २२ हैं. फ़िर भी चर्चाकार का अभाव? शिव कुमार जी भी शामिल हैं. इन्हें यहाँ बुलवाइए ना.
जवाब देंहटाएंअब यह "हमीअस्तो" क्या है? :(
जवाब देंहटाएंअब यह "हमीअस्तो" क्या है? :(
जवाब देंहटाएंकश्मीर का जिक्र यह सुनते हुये जाना-
गर फ़िरदौश बर रुये जमीनस्त,
हमींअस्तो,हमींअस्तो,हमींअस्तो।
अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है। इससे यह पता चलता है- हमीअस्त का मतलब है -यहीं है। :)
भले ही राउंड सुबह ले या रात को ,बस सारे मरीजो को इसी एनर्जी से देखते रहिये .....इन दिनों अस्पताल चकाचक नजर आ रहा है ...... दीवार पे आजू-बाजू पोस्टर भी चकाचक है.....
जवाब देंहटाएंमेरी पसंदीदा तीन लाइना-
आज इन दो दवाइयों की बात करते है -खिलायेंगे कल!
आपसे दोस्ती हम यूँ ही नही कर बैठे -हमें आपकी टिप्पणी चाहिये
मोजिला firefox का संस्करण जारी -मुफ़्त में है लपक लो
टिप्पनिओं के जवाब शानदार रहे.कोई मुद्दा नही की आप किस समय लिखतें हैं..हम जैसे लोग तो सीधे यहाँ आकर ही लेटेस्ट अपडेट देखते हैं
जवाब देंहटाएंअनूप जी, आप बार-बार ये बात पूछ रहे हैं कि मैंने क्यों हटा दी फोटो, सौंदर्य अनुपात मेरे ब्लाग का बिगड़ गया? तो कारण तो कईं हैं पर एक जो बहुत ही बुरा लगा कि कई टिप्पणीकारों का कहना था कि कई महिला ब्लॉगरों ने अपनी तस्वीरें ब्लाग पर चिपकाई हुई हैं ताकि लोग बार-बार आकर के पढ़ें। और मैं ये कतई नहीं चाहती कि मेरी तरफ से कोई भी इम्प्रेशन ऐसा जाए। तो मैंने ये फैसला किया कि मैं अपनी पोस्ट पर से अपनी तस्वीर हटा दूंगी। चाहे कुछ है अब सबको ये लगेगा कि सब मेरी कविताओं को पढ़ने आ रहे हैं ना कि मेरी तस्वीर देखने।
जवाब देंहटाएंआप के कहे अनुसार वो लॉक भी हटा दिया है।
अनूप जी, आपने वादा करके निभाया ये बहुत बढ़िया किया। इस बात से इक्तेफाक में नहीं करता कि वो कितना पढ़ा गया बस ये जरूर है कि मैंने सुबह चिट्ठाचर्चा पढ़ा और देर शाम इस इंतजार में था कि भई अब तो बारी आएगी। लेकिन देखा कि नहीं आई, सुबह लगा खंगालने कि भई कहां गई चिट्ठा चर्चा, तुरंत पढ़ी पर फिर कमेंट्स भी पढ़ने लगा। सवाल जवाब पढ़ता रहा साथ ही डॉ साहब की टिप्पणी के कारण फिर से उन तीनलाइनों को पढ़ा फिर कई वन लाइनर पढ़ डाले। हमें तो अच्छी लगी और कल के मुकाबले ये ज्यादा भी पढ़ी जाएगी।
जवाब देंहटाएंप्रीतिजी, आपको शायद मेरी बात का बुरा लगा होगा। लेकिन मैंने अपनी जो बात कहनी थी कही।
जवाब देंहटाएंकई टिप्पणीकारों का कहना था कि कई महिला ब्लॉगरों ने अपनी तस्वीरें ब्लाग पर चिपकाई हुई हैं ताकि लोग बार-बार आकर के पढ़ें।
इस तरह की बातें लोग करते हैं उनके बारे में क्या कहें? जिसकी जैसी समझ वैसा कहता है। आपकी कवितायें हमको अच्छी लगती हैं इसीलिये कई बार चर्चा में उनका उल्लेख किया।
ताऊ के स्टेटमेंटवा से सहमति :) चिट्ठा चर्चा सुपर हिट तो हो ही गयी है :)
जवाब देंहटाएंकल तो नही पढ़ पाये पर आज पढ़कर बहुत मजा आया ।
जवाब देंहटाएंहा हा :) बहुत सही ..पेश है एक लाइना। आपने अपने पहले क्रश को लेफ़्टिनेंट बना दिया।
जवाब देंहटाएंएक लाइना पढ़ कर बहुत अच्छा लगता है ..और दाद देनी पड़ेगी आपकी कलम के इस हुनर को ..बहुत बढ़िया
देबू, यह <$BlogBacklinkTitle$> दिख रहा है, इसे घुरस दो।
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