आज झरोखे में पेश है एक ही लेखक राजेन्द्र सिंह बेदी की लिखी हुई दो फिल्में, दोनों की ही कहानी भारत में नारी की दशा बयान करती है। ज्यादा झरोखे में पढ़िये हम शुरू करते हैं आज की चर्चा लवली के अनुरोध के साथ।
हमारे प्रिय कवि और हिन्दी के सबसे ज्यादा लिखने वाले ब्लॉगर श्री दीपक भारतदीप जी अपनी तथा अपनी जीवनसंगिनी के बुरे स्वास्थ्य की समस्या से बहुत परेशान हैं .आप सब से विनती है की उनके लिए प्रार्थना करें ..उनको इस वक्त हम सब के संबल की जरुरत है।दीपकजी थोड़ा ब्लोगिंग और अपने आप को आराम दीजिये जल्दी से स्वास्थ्य लाभ करके आप नयी उर्जा के साथ लौटें यही कामना है।
पैसे और फेम दोनों की माया भी गजब की होती है, एक के पैसे से काली पट्टी बाँधे कानून की आँखे ऐसी चौंधयाई की उसे ये ही नही दिखा कि वो पाँच साल की सजा का बटन दबा रहा है या दस। नयनसुख बताते हैं -
लेकिन लगातार तीन दिन इंतजार के बाद पांच साल की सजा दी गई और उसमें से भी वे दो साल कम कर दिए जाएंगे जो संजीव नंदा विचाराधीन कैदी के रूप में काट चुके हैं।अब बात करते हैं फैम की, अब निठल्ला है नही इसलिये दिये गये लिंक को उसका ही मान लिया जाय। तो बात कुछ यूँ है कि हम सोचते आये थे कि अपने बच्चों के अच्छे कामों की या उनकी तारीफ करते सुनते हुए माँ बाप की छाती चौड़ी हो जाती है। लेकिन ऐसी तारीफ हमने पहली बार सुनी, इनकी अपनी बेटी से झींगा कुश्ती तो हम तय मानकर चल रहे हैं। अपनी नयी किताब 'Through the Storm' में अपनी मुसीबतजदा बेटी की तारीफ करते हुए इन मोहतरमा का कहना है (अंग्रेजी में है हम हिंदी में बता रहे हैं ;)) -
ब्रिटनी ने १३ साल की उम्र में शराब पीनी शुरू की, १४ साल की उम्र में अपना कुँवारापन खोया और अगले साल यानि १५ साल की उम्र में ड्रग्स लेनी शुरू की।आगे और भी है, आप यहाँ जाकर ये गुणगान देख सकते हैं, क्या सच क्या झूठ, सही गलत का गणित आप खुद लगाईये।
पाँच सितम्बर यानि टीचरस डे, बहुत लोगों ने अपने अपने तरीके से गुरूओं को याद किया। चिट्ठेकारों और मीडिया की मानसिकता में फर्क है ये तो सब मानते हैं ही वो टीचरस डे में भी दिखता है। चिट्ठेकार कुछ कुछ ऐसा-वैसा लिखकर गुरूदिवस मना रहे हैं, जरा बानगी देखिये (जिसकी बात रह जाये, टिप्पणी में अपना तरीका चिपका दे) -
गुरू जी राम-राम, नमन, हे गुरू, अध्यापक, शिक्षक, आचार्य, टीचर, मास्टर, तुम्हें प्रणाम,
मौन में जिसके वाणी हो...!
बाहर-बाहर कर दे खालीकुछ इस तरह से याद करते हैं आज गुरु जी का दिन है तो कुछ इस तरह ऐ ! टीचर तुझे सलाम ये तो था चिट्ठेकारों का याद करना, अब मीडिया वाले कुछ यूँ याद कर रहे हैं टीचरस को - Bollywood's Sexiest Teacher Roles, किसी टीचर के आगे ये शब्द हमने पहली बार लगा देखा इसलिये यहाँ बता दिया इसे उन नंगे दिखे शब्दों का असर ना समझें। लगे हाथ आपको मास्टर नाना से भी मिलाते चलें, ये उस वक्त के हैं जिस जमाने में मास्टर की समाज में बहुत इज्जत होती थी, उन्हें आजकल की तरह सैक्सी नही कहा जाता था।
भीतर-भीतर अमृत भर दे
कंकर को शंकर जो कर दे
उस गुरू को शीश नवाता हूँ
कार्टून अभिषेक के सौजन्य से
गाहे-बेगाहे धमकने वाले विनीत का कहना है बिना ब्ऑयफ्रैंड के लड़कियां ठूंठ होती है -
स्त्री अभी संतान नहीं होने पर बांझ कहलाने के दर्द से मुक्त भी नहीं हो पायी है कि पुरुष समाज ने उसके दर्द को बढ़ाने के लिए एक और मुहावरा गढ़ लिया है।.......जिस लड़की के अब तक भी कोई ब्ऑयफ्रैंड नहीं है वो समझो ठूंठ है।अब पढ़कर तो ऐसा ही लगा कि ये काफी बड़ी लड़कियों के लिये कहा गया है और अगर ऐसा है तो भाई लोग आप अभी पीछे हो यहाँ तो दूध के दाँत भी पूरे नही टूटे होते हैं और इस तरह का ही कुछ सुनने को मिलने लगता है।
पांच सितम्बर के दिन जब सारे शिष्य जय गुरू देव का जयघोष कर रहे थे वहीं एक मास्टरनी ढोल की पोल खोलने में आमदा थी, कह रही थीं बचपन के हत्यारे स्कूल -
स्कूलों को पहले दिन से ही ट्रेंड बच्चे चाहिये जो अपना काम समय पर पूरा करने, टेस्ट में नम्बर लाने, कक्षा मे चुप बैठने, अध्यापक के कहे को पत्थर की लकीर मानने, और अपनी समझ –सहजता-बालपन का त्याग करके इस दोहे का गूढार्थ समझ लेंबड़ी गंभीर बात है ये, हमे तो डर ये लग रहा है कि कहीं स्कूलों की देखा देखी माँ-बाप भी ये ना चाहने लगे कि कितना अच्छा हो सीधे ही ट्रेंड बच्चा पैदा हो जाये। यानि बचपना फिर सिर्फ किस्से कहानियों में पढ़ने को मिलेगा।
बालेन्दु देश से बाहर नजर दौड़ाते हुए कहते हैं फिर से शीत युद्ध की ओर लौट रही है दुनिया?
रूस अपनी नौसेना और वायुसेना को भी बड़े पैमाने पर सुसंगठित और हथियारबंद करने में लगा है। हाल में रूसी उप प्रधानमंत्री सर्गेई इवानोव ने कहा था कि हम करीब-करीब उतने ही जहाज बनाने में लगे हुए हैं जितने कि सोवियत संघ के जमाने में बनाया करते थे। इधर प्रधानमंत्री व्लादीमीर पुतिन ने यह कहकर अपने देश का आक्रामक रुख स्पष्ट किया है कि रूस काला सागर में अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के जहाजों के जमाव का जवाब देगा।चलिये नौबत शीत युद्ध तक ही है, यहीं तक रहे तो सबके लिये अच्छा है।
युद्ध के नाम से ही हमें ऐसा वैसा दिखने लगता है, इसलिये हम तो अब जा रहे हैं प्रीति के घर कोई अच्छी सी कविता पढ़कर आते हैं, अरे रे रे मेरा मतलब ब्लोग से है, मेरा सागर। शायद इन्हें पता था हमारे आने का इसीलिये ऐसे ऐसे आईने लगा रखे थे कि क्या बतायें। देखिये तो -
ये आईने भी,बाप रे, युद्ध के बमों के सामने भी कोई आशियाँ नही टिकता। वाह री किस्मत, यहाँ आने से पहले सिर्फ युद्ध के नाम से ऐसा वैसा दिख रहा था, अब आईने के नाम से भी यही दिख रहा है।
दुश्मनी निभाते हैं,
जिन ख्वाबों से,
मैं डरती हूं,
उन ख्वाबों को ही,
दिखाते हैं,
पल-भर भी जो,
न ठहर सकें,
वो आशियां बनाते हैं
ये विनिता जी का आँगन दिख रहा है, यहीं चलकर देखते हैं शायद कुछ फूल वगैरह दिख जाय तो ये मन थोड़ा शांत हो, अरे ये क्या ये तो सबको फैमिली फोटो दिखा रही हैं। अले ले ले बड़े प्याले प्याले फोतो हैं ये तो
चलिये जब तक हम आज की चर्चा के लिये लास्ट कविता ढूँढते हैं तब तक आप चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा बाँचिये और अगर चैप्लिन नही जमता तो रतलामी क्या बुरा है, फिर से गलती मेरा मतलब भोपाली।
आह आखिर मिल ही गयी, दुबई में जा कर ओस की बूँद मिली, स्वाति बिटिया के प्रेम में इतनी अभिभूत हो गयी कि आँखों से आँसुओं की जगह हाइकू टपकने लगे। अब इन्होंने इन आँसूरूपेण हाइकुओं को समेट के ले जाने के लिये सिर्फ छन्नी रखी हुई, इसलिये बड़ी मुश्किल से इतने ही आ पाये बकिया आप वही देखिये
ओस सी स्वच्छ
घर फूटी कोपल
हरी या लाल?
अब कुछ सूचनायें- आप लोगों से हमेशा एक मेल की दूरी पर रहने वाले जीतू के पन्ने ने अपने चार साल पूरे किये, और नीरजजी ने भी नीरज के एक साल पूरे किये।, एक साल पूरा होने पर उन्होंने जो पोस्ट लिखी है उसे सहेज के रखी जानी चाहिये क्योंकि इसमें उन्होंने अपना दिल उडेलने के बजाय सारे ब्लोगर ही उड़ेल के रख दिये हैं। नीरजजी आपको भी बधाई और हमें भी उड़ेलने के लिये धन्यवाद।
नाम इनका लवली लवली टाईप का है लेकिन काम इतना हिम्मत वाल करके आयीं हैं कि क्या कहें? कैसी हिम्मत? एक भारतीय भुजंग को लाने की, लवली लेकर आयीं हैं भारतीय भुजंग
एक दूजे के लिये
1. अरे …ये तो वही है कमबख्त इश्क़
2. बूढ़ी माँ को जंगल में छोड़ दिया बेटे ने, पहचानने से भी किया इंकार फिर कहता है तो क्या हुआ क्या मैं आत्महत्या कर लूँ?
3. अपने नेक सीख से ज़िन्दगी को सवाँरने वाला शिक्षक ये ही हैं वो हरदम जिनसे खिले गीत के छंद
दस्तक, संजीव कुमार और रेहाना सुल्तान अभिनीत ये फिल्म आयी थी १९७० में। राजेन्दर बेदी ने इसे लिखा भी था और निर्देशित भी किया था। फिल्म की कहानी कुछ यूँ थी कि अपने हीरो हीरोईन एक ऐसे मकान को किराये पर ले लेते हैं जहाँ पहले कोई तवायफ रहती थी। घर लेने के बाद हमेशा रात को कोई ना कोई आकर दस्तक देता था और उसी तवायफ के लिये पूछने लगता था। आगे का हाल फिल्म देख कर पता लगाईयेगा। संगीत था मदनमोहन का, गीत मजरूह के।
१. बैंया ना धरो, वो बलमा
२. हम हैं, माता-ए-कूचा बजार की तरह
३. माई री माई कासे कहूँ (मदन मोहन ने इस गीत को अपनी आवाज दी है)
४. तुमसे कहूँ एक बात
राजेन्द्र सिंह बेदी की लिखी एक दूसरी दमदार कहानी पर बनी फिल्म है, एक चादर मैली सी। १९८६ में ये फिल्म आयी थी जिसमें ऋषि कपूर, पूनम ढिल्लन और हेमामालिनी का मुख्य किरदार था। ये दोनों ही फिल्में देखने लायक हैं।
4. गंगा मौसी जरा बतायें आखिर अनपढ़ क्यों हैं मुस्लिम औरतें
5. बमों की हम पर नजर और नजर के हटते ही हमको लगी
विरह अगन सी तपन!!
6. आज लिखने का मन करता है अच्छा हुआ वक्त रहते कर गया वरना तो बुलावा आया था चलो भिखारी बने
7. रूप बदल के सयाने सैया आराम से आओ हम्मैँ कउनो जल्दी ना हौ
8. भगतसिंह ने कहा़ सावधान तोड़े गए सारे पुल एक दिन लौटकर पुकारेंगे तुम्हें
9. ग्वालियर में भाजपा से नरेंद्र या सुषमा स्वराज कोई भी हो, जादू नही रहा अब पहले जैसा
10. उद्योग वाला आलू और आलू वाली उद्योगनीति मिलकर बनाते हैं एक घनिष्ठ सम्बन्ध
11. हर ‘बाल्टी’ डस्ट-बीन नहीं होती और हर ‘डस्ट-बीन’ बाल्टी नहीं होता!! ना ये पहले होता था ना ये अब होता है इसलिये इतना ना सिखाओ कि मुन्ना थर थर कांपे रोज अंगनवा
चलो भईया भूल चूक लेनी देनी, फिर मिलेंगे अगले शनिवार।
एक दूजे के लिए और झरोखा ..बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं...आज का बेहतरीन एक दूजे के लिए ...आज लिखने का मन करता है ..अच्छा हुआ वक्त रहते कर गया वरना तो बुलावा आया था चलो भिखारी बने :)
बाकी सब तो ठीक लेकिन बिना गर्लफ्रेंड के लड़कों को क्या कहेंगे ? उन्हें भी कुछ कहा जाय ये भेद-भाव सही नहीं है.
जवाब देंहटाएंलगता है घुस देने का असर हुआ है.
जवाब देंहटाएं------------------------------------------
एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.
बहुत मेहनत से की गयी चिठ्ठाचर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत समय पहले बिना मेहनत से की गयी चिठ्ठाचर्चा भी ठूंठ हुआ करती थी!
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जवाब देंहटाएंचिट्ठाचर्चा पर आज टिप्पणी टोटा ?
नारायण नारायण..
अरे बंधुओं एवं मातॄ-भगिनी-दुहिता गठबंधन सदस्याओं
कुछ तो लिहाज़ करो..
तरूण ने कितना समय खर्चा
फिर संभव हुआ यह चिट्ठाचर्चा
अब मेरे को तरूण का प्रज्ञा पुरुष ही न कह देना
इन्होंने तो मेरे नये पोस्ट का नाम तक न लिया
फिर भी टिप्पणी ठोकी जा रही है, कि नहीं ?
किसी ने आपके लिये समय दिया..
चुनिन्दा पोस्ट चुने, यहाँ तक पहुँचाया
एक दूजे की कुंडली मिलाने में 8-10 ग्राम दिमाग ख़र्च किया होगा
अब दर्ज़न भर टिप्पणी के भी मँहगे तो नहीं
भईय्या समीर लाला के ब्लाग पर से कापी-पेस्ट भी ना कर सकते, आप लोग ?
नमस्कार अनूपजी, आज की चिट्ठाचर्चा के शीर्षक को पढ़कर सोच में पड़ गए...बीस दिन से कोई पोस्ट न डालने के कारण शायद हमारा ब्लॉग भी ठूँठ हो गया ...क्या जड़ से उखाड़ दें...निर्दयी समय ने साथ छोड़ दिया है...आपकी हरी भरी चिट्ठाचर्चा की छाँव में बैठकर कुछ देर सुस्ता लेते हैं...
जवाब देंहटाएंमस्त चिट्ठा चर्चा।
जवाब देंहटाएंझरोखा पसंद आया।
@अभिषेक, इंडिया का नही कह सकता लेकिन यहाँ लड़कियों के बीच इस तरह की बातें ज्यादा होती है। अब होंगे तो वो भी ठूँठ लेकिन ठूँठ में भी दुनिया फर्क करती है मेरे भाई।
जवाब देंहटाएंवाह भई तरुण, बेहतरीन विस्तृत चर्चा की है और बहुत मजेदार एवं रोचक. नियमित करते रहो. शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएं@अमरजी, आप ही की नही बल्कि एक-दो और चिट्ठे छूट गये हैं जिनमें अपनी नजर थी, और इसका ठीकरा सीधे सीधे हम ब्लोगवाणी के सिर फोड़ने जा रहे हैं। जो घड़ी दर घड़ी Refresh होकर कन्फूजिया जा रहा था। बकिया आपकी टिप्पणी ही दो-चार के बराबर है। सभी लोगों को शुक्रिया है जी हमारा।
जवाब देंहटाएं@मीनाक्षी जी हम आपकी बात अनूपजी तक पहुँचा देंगे।
जवाब देंहटाएंसभी चिट्ठाकारों से:
जवाब देंहटाएंनिवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.
-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
बहुत बढ़िया .....मेहनत से किया हुआ प्रस्तुतीकरण ओर आमने सामने का बेहद सफल प्रयोग....आपको बधाई ....इत्तेफकान आज ही राजेंदर बेदी के बारे में पढ़ रहा था की नारी जीवन पर फ़िल्म बनाने वाले अपनी असल जिंदगी में अपनी पत्नी के लिए बड़े बेरहम थे......उनके साहितिक मित्रो ने भी इस पर काफ़ी कुछ लिखा है ये भी अजीब पहलु है.....
जवाब देंहटाएंसबसे आख़िर में समीर जी की टिपण्णी भी रोचक है.......
बहुत बढिया चर्चा है ! गुरुजी जबरन ही टोटा टोटा कर रहे हैं !
जवाब देंहटाएंमुझे तो 160 टिपणी दिख रही हैं ! डा. अमरकुमार जी की ५०+
समीरजी की ५० + दुबारा समीरजी की ५० + अन्य की १० =
१६० हो गई और १६१ वीं मेरी !
तरुण जी बहुत सुंदर ! आपको अब क्या सलाह दूँ ? टिपणी
की फिकर नही ! यह आइटम भविष्य का सुपरहिट प्रोग्राम
होवेगा ! नही हो तो ताऊ का लट्ठ ताऊ के सर पे ही बजा
देना !
बहुत बढि़या है चिट्ठा चर्चा। झरोखा अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंहमारा तो यही कहना है कि मन खुश हो गया।
जवाब देंहटाएंआपके चिट्ठा चर्चा को केवल ७ दिनों से पढ़ रहा हूँ मगर इन ७ दिनों में ही इतना जुडाव मसूस कर रहा हूँ की अब ब्लोग्वानी से पहले चिट्ठा चर्चा पढता हूँ
जवाब देंहटाएंये ब्लॉग के संचालक समिति का जादू है जो ब्लॉग के सञ्चालन में साफ़ ही नज़र आता है
तरुणजी, कई दिनों के बाद भूखा जैसे रोटी पर झपटता है वैसे ही हमने कुछ वक्त पाकर निवालो की तरह कई ब्लॉग़ निगलने की कोशिश की जिस कारण चिट्ठाचर्चा के लेखक का नाम न देख पाए..माफी चाहती हूँ....
जवाब देंहटाएंआपका विवरण स विस्तार ,
जवाब देंहटाएंबढिया लगा !
- लावण्या