घोस्ट बस्टर ने अभय तिवारी की इज्रायल संबंधी लेखों की बखिया उधेड़नी शुरू की। लेकिन अभी वे इज्रायल पर ध्यान न लगाकर अभय पर ही टिके हैं। लेख से ज्यादा इसकी टिप्पणियां पठनीय हैं। ई-स्वामी मानते हैं कि अभय के लेख संतुलित हैं। दिवेदी जी कहते हैं बहस होनी चाहिये, शिवकुमार पूछते हैं -इस तरह की बहस कितनी जरूरी है! ज्ञानजी कहते हैं -अरब देशों का तेल निकल जाये तो सब समस्या हल हो जाये। शिवकुमार मिश्र को एतराज है कि उनको गलत कोट किया गया वहीं विजय शंकर चतुर्वेदी का कहना है-
ये लोग फुनगी पकड़कर कुतर्क करना शुरू करते हैं. जड़ की तरफ जाने का इनके पास धैर्य नहीं. अभय तिवारी के शोधपूर्ण आलेख के जवाब में इनकी वैचारिक दरिद्रता देखते ही बनती है|
पल्लवी नें अपनी पोस्ट का शानदार सैकड़ा पूरा किया। अपने अनुभव बांटते हुये वे विचार करती हैं
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.वो क्या चीज़ है जो अनजान होते हुए भी हमें एक दूसरे से जोड़े रखती है? शायद हम एक जैसे हैं इसलिए दूसरे के प्रयत्नों में हमें अपने प्रयत्न दिखाई देते हैं... जब कोई और हिम्मत हारता है तो हम सब उसकी हिम्मत बढाते हैं क्योकी उसके अन्दर भी हमें अपना सा ही एक अक्स नज़र आता है.
ममताजी आजकल इलाहाबाद की सैर पर हैं। खूब घूम रही हैं लिख रहीं हैं फोटो समेत। बहुत मेहनत ये पोस्ट लिखी है। अच्छी। आज वे स्वराज भवन घु्मायेंगी।
दिल्ली में ब्लागर मीट होने वाली है- जाइये न! बहुत लोग आने का तय कर चुके हैं।
इसे बांचिये- इंग्लिछ मात्तर का बेता हो के लोता है बेते!
नये चिट्ठाकार
- संजीव ने जिला अभिवक्ता संघ दुर्ग की मासिक बुलेटिन शुरू की।
- अमित कुमार कोबचपन से ही अपने गांव के बारे में अख़बारों में छपी कतरनों को जमा करने का शौक़ था। सोचता थे अख़बारों में फालतू की इतनी बातें छपती हैं,...काम की नहीं। इसलिए स्थिति बदलनी चाहिए। बाद में लिखना शुरू किया। पेशेवर पत्रकारिता ईटीवी बिहार-झारखंड से शुरू की,...अब वॉयस ऑफ इंडिया राजस्थान में काम कर रहे हैं। तीन ब्लाग चलाते हैं- चार पहर, पुण्यार्क और मुनादी| चार पहर के अलावा बाकी में कुछ लिखा नहीं।
- जल प्रबंधन से संबंधित जा्नकारी देने के लिये इंडिया वाटर पोर्टल बहुत काम की साइट है। पानी की बातें चाहे वे बुंदेलखंड का सूखा हो या कोसी का कहर या फ़िर रेनवा्टर हार्वे्स्टिंग सभी की चर्चा यहां है।
- अम्बेदकर नगर के हिमांशु त्रिपाठी गली मोहल्ले की बात करते हैं।
- लेखक, कवि, पत्रकार अशोक लव ३० वर्षों के अध्यापन के बाद निजी कार्यों में व्यस्त। मोहयाल मित्र पत्रिका का १९८१ से संपादन। साहित्यिक एवं शैक्षिक लगभग ८० पुस्तकें प्रकाशित। शिखरों से आगे...! ब्लाग की शुरुआत कंचन के सहयोग से।
- २४ साल के अनजाने भारतीय कच्चा चिट्ठा ब्लाग स्पाट पर अगस्त, २००८ में शुरू किया। इसके पहले बेवदुनिया पर चिट्ठा चलाते थे।
- पटना के दीप नारायन एक एक नई सोच के साथ अपना ब्लाग जून में शुरू किया। अब तक कुल आठ पोस्टें लिखीं।
- झारखंड की शशिप्रिया अपनी आत्मस्वीकृतियां लिखनी इसी माह शुरू की। दो पोस्ट लिख चुकी हैं। अंदाजे बयां शानदार, लेकिन आपकी टिप्पणियों के लिये अभी वहां है इंतजार!
- विवेक ने कोसी की खबरों के लिये ही ब्लाग शुरू किया क्या!
- अजब-गजब फ़रवरी ,२००८ से खबर संसार में हैं। शुरुआती पोस्टें सिनेमा, खेल और आफ़िस से। नवीनतम पोस्ट दम तोड़ता बचपन उनकी संवेदना का परिचय देती है।
बेटियाँ होती हैं ठंडी हवाएं,
तपते हृदय को शीतल करने वाली,
बेटियाँ होती हैं सदाबहार फूल,
खिली रहती हैं जीवन भर,
रहती हैं चाहे जहाँ,
महकाती हैं,
सजाती हैं,
माता पिता का आँगन
बेटियाँ होती हैं मरहम,
गहरे से गहरे घाव को भर देती हैं,
संजीवनी स्पर्श से|
अशोक लव
तपते हृदय को शीतल करने वाली,
बेटियाँ होती हैं सदाबहार फूल,
खिली रहती हैं जीवन भर,
रहती हैं चाहे जहाँ,
महकाती हैं,
सजाती हैं,
माता पिता का आँगन
बेटियाँ होती हैं मरहम,
गहरे से गहरे घाव को भर देती हैं,
संजीवनी स्पर्श से|
अशोक लव
* जिस दिन रोटी ज्यादा बनानी होती थी और गरमी से मैं परेशान हो जाती तो आंटे की कई लोइयां मैं चूल्हे के भीतर फेंक देती थी।
** अब पढाई लिखाई में मेरा मन नहीं लगता था हर समय उसकी शक्ल आंखों के सामने घूमती रहती और उसका हिलता हाथ दिखता रहता। शशिप्रिया
** अब पढाई लिखाई में मेरा मन नहीं लगता था हर समय उसकी शक्ल आंखों के सामने घूमती रहती और उसका हिलता हाथ दिखता रहता। शशिप्रिया
चित्तो एक साल से पहाड़ पर पक्षी की डिजाइन बना रहे हैं। अब तक लगभग 250 लीटर पेंट लग चुका है। पहाड़ पर सबसे छोटा पक्षी 40 फीट व सबसे बड़ा 120 फीट का बनेगा और कुल 120 आकृतियां बननी हैं।
अजब-गजब
अजब-गजब
एक लाइना
- खुदा हूं देवता हूं :आजकल हर तरफ़ खुदाई चल रही है। लोग खोद के डाल जाते हैं।
- : अमानत : में खयानत न की जाये तो किसमें की जाये ये तो बतायें। आखिर कहीं तो करनी पड़ेगी न!
- विरह के दो रंग :मिलाकर ये कविता पेश है!
- मोहब्बत में कभी ऐसी भी हालत पायी जाती है:तबीयत और घबराती है जब बहलाई जाती है।
- रवीश, कुछ ज्यादा ही नहीं हो गई तारीफ!! इसी को कहते हैं- मन-मन भावै, मूड़ हलावै!
- अभय जी, आतंकवादियों को हीरो साबित करना कहाँ तक सही है? : हीरो का रोल घो्स्ट बस्टर को दिया जाये, अभय रहेंगे साइड हीरो।
- बहस :पढकर 'बिदक' गए थे फिर भी 'बहक' गए और 'बौराए' से 'बाँच' गए।
- अनोखी पहेली : बूझो तो जानें
- :आज कम से कम हम सब फक्र से कह सकते हैं स्त्री ही स्त्री का शोषण नहीं करती : उसे इस काम में हर तरफ़ से सहयोग मिल रहा है।
- अभिनव स्पर्ष तुम्हारा: मेरी कथा, व्यथा, गाथा को क्रमश: जिलाये, सुलाये, गुंजाये हुये है।
- अनिश्चित काल के लिये निठल्ला चिंतन बंद : लौट आ चिठेरे, तेरे पाठक तुझे टेरें।
- चिठीया हो तो हर कोई बांचे... : कोई बांचे न ब्लाग हमार!
- कोई बताएगा कि बच्चे का क्या दोष है ? यही कि वो बच्चा है।
- किताबों की अलमारी : साह्त्यिक झोले में डाले हैं!
- वो गुजरा बचपन वो बारिश: चाहिये!! अब कहां मिलेगा इत्ता पुराना रिकार्ड!
- काश बिहारियों की मूढ़ता धो सकती बाढ़: मतलब आप कह रहे हैं कि बाढ़ जमीन पर पड़ी गंदगी है और बिहारी मूढ़्ता पोंछा!
- Blogger Template: आओ जाने सीखें ब्लोगर टेंपलेट - पार्ट 1 : क्या फ़ायदा हमें बनवाना दूसरों से ही है!
- मैं हूं नटखट अंश तुम्हारा: ब्लागर हो गये, अब तो बड़े बन जाओ मीत!
- नमस्कार-नमस्कार: अरे चंदू भाई आओ लिखो बहुत हुआ उधार!
- ताऊ के ब्लाग की टूटी हड्डी फ़िर जुड़ी : कित्ते तो डाक्टर लग गये इलाज में।
- रोशन हो हर घर हर कोना : कैसे बिजली बत्ती तो सब गायब है!
- सूरज की लालिमा देखो :पहले काम निपटा लें वर्ना बास लाल हो जायेंगे।
- कौम के डर से खाते हैं डिनर हुक्काम के साथ: रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ
- बिगुल बजा दो महाक्राँति का : एक मिनट जरा कान बँद कर लेँ
- खिले गीत के छंद सुरभित पुष्पों का मकरंद !
- सब कुछ सापेक्ष है... मच्छर हत्या से मांसाहार समर्थन तक
- सब कुछ सापेक्ष है... बमों की हम पर नजर : है! वे मौका पाते ही फूट लेँगे।
मेरी पसन्द
पनीली ऑंखों में
गुजरा जमाना
अब भी कायम है
कुछ भूमिकाएँ भर बदलीं हैं
बाकी दुनिया यथावत है
पहले उसकी जरूरतें
कोई और पूरी करता था
अब कोई और करता है.
कीमत की उसे नहीं फिकर
कमतरी से है नफरत
नायाब से नायाबपना
उसे हमेशा ललचाता है.
एक दिन उसने पूछा--
पत्तियों के पीलेपन और
बालों के क्लिप के नीलेपन में
क्या संबंध हो सकता है
मैं नहीं समझ पाता
क्या बोलूँ.
हमने कहा--
तुम रूठ तो जाओ ज़रा
बला टले
मगर वह नहीं रूठी और टली भी नहीं
बोली-
उसे तो चाँद चाहिए
कहीं से भी लाकर दो
कैसे भी खरीदकर लाओ
किसी भी कीमत पर
कुछ न बचा हो तो
खुद को बेच आओ
मगर
चाँद लाओ.
मैंने पूछा--
मेरे बगैर करोगी क्या चाँद का
उसने कहा--
पहले लाओ तो
बाद में सोचेंगे.
वह पगली
नहीं जानती
इंसान का मैं-पना ही
उसकी ताकत है
जब वही झर जायेगा
चीज़ों के मायने बदल जायेंगे
आत्माराम शर्मा
और अँत मेँ
--- कल अधिकाँश पोस्टोँ पर समीरलाल जी की टिप्पणी इस तरह रही-
५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद.हम भी सोचे कि टिपियायेँ-
भन्नाना पुरवा से गड्रिया मोहाल की यात्रा से लौटा हूँ, हड्डियाँ हिल रहीँ है! सुखद नहीँ है! लेकिन मन दुखी नहीँ है! मौज है! आखिर ब्लागजगत मेँ लौटे हैँ।या फिर ये
तीसरे कमरे से दुसरे कमरे मेँ लौटे हैँ। अभी पहले मेँ जाना है। बहुत झाम है इस दोहराव मेँ लेकिन क्या करेँ! करना है!
लेकिन फिर नहीँ लिखे। नकल मेँ फिर यह भी लिखना पडता-
पत्नी साथ मेँ नहीँ है लेकिन फिर भी विरह मेँ तप रहे हैँ। आप का तो विरह मेँ तपना जायज है क्योँकि भाभी जी साथ मेँ हैँ, हम किस भरोसे ये नियामत हासिल करेँ। पत्नी बाहर है। मन कर रहा है कविता पेल देँ लेकिन नहीँ किये। अगर हम करेँगे तो आप क्या करेँगे!
कल सतीश सक्सेना जी ने सलाह दी गम्भीर हो जाने की।- मगर आप हर कार्य ही "लाइट ले यार" मूड में ही करते हो हम कहने वाले थे अब हम कहाँ से सीरियस होँ। आप अकेले बहुत हो भाई! लेकिन पता हुआ कि वो बात उन्होँने अरुण के लिये कही थी।
अरविन्द जी का रोना है कि वे न घर के न रहे न घाट के। सिर्फ ब्लाग के हो कर रह गये हैँ।
--जितना लिखा उससे कहीँ बहुत रह गया। अवध बिहारी की कविता याद आती है-
इस खिडकी से जितना दिखता है,
बस उतना सावन मेरा है,
हैँ जहाँ नहीँ नीले निशान
बस उतना ही तन मेरा है!
बकिया मौज। कल की बात सुनियेगा निठल्ले तरुण से।
'और अंत में' छा गए.
जवाब देंहटाएंआप चिट्ठाचर्चा पर काफी मेहनत करते हैं, एवं इससे हम सब को काफी उपयोगी जानकारी एक साथ एक जगह मिल जाती है.
जवाब देंहटाएंमैं क्या कहूँ ,मुझपर घुस देने का आरोप है .
जवाब देंहटाएंnice comment on sameer ji
जवाब देंहटाएंबहुत सही अच्छी चर्चा समीर जी की टिप्पणी :)
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंथोड़ी देर से लौट के आता हूँ,
नहीं नहीं, कोई ख़ास बात नहीं..
कल की टिप्पणियों से एक जानकारी मिली रही,
सो आज अनूप शुक्ल जी के साथ के प्रज्ञा पुरूष की तलाश में नि्कलना पड़ रहा है..
उनसे एक बार मिल लें, बुद्धि भर गुन लें..तभी
टिप्पणी करने में दम आये ।
जल्दी क्या है, रे ब्लागर ?
लौट के पढ़ लेना, काहे भरम रहे कि..
’ ब्लागर के पंछी रे... तेरा मरम न जाने कोय ’
chacha achchi hai .....
जवाब देंहटाएंor mai bh to hu.....achacha hai n
Sameer ji ki tippni mene bhi notice ki....
Anup ji ki najar se kya bach sakata hai koi
अनूप भाई !
जवाब देंहटाएंकल का मेरा कमेन्ट आपके लिए ही था ! अरुण जी का नाम भूल से लिख दिया गया था, अगर सच बताऊँ तो अरुण और अनूप चिटठा चर्चा के पर्याय ही हैं, आप गहरी से गहरी बात अपने लाइट मूड में बिहारी अंदाज़ में कहते हो ! इस नाते आपको शुभकामनायें !
वैरी सैड, यह पोस्ट-चर्चा है! चिठ्ठा-चर्चा नहीं। अब हम पोस्ट न लिखें तो फेड आउट हो जायें! :-)
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा चर्चा. खात्मा इतनी सटीक रचना से किया कि कुछ कहने को बाकी ही नहीं रह जाता:
जवाब देंहटाएंइस खिडकी से जितना दिखता है,
बस उतना सावन मेरा है,
हैँ जहाँ नहीँ नीले निशान
बस उतना ही तन मेरा है!
वाह!! छा गये जी आप तो इस सेलेक्शन के साथ.
बहुत परिश्रम कर रहे हैं शुकुल जी ,घरबार और बच्चों का भी ख्याल रखियेगा !
जवाब देंहटाएं"भन्नाना पुरवा से गड्रिया मोहाल की यात्रा से लौटा हूँ,
जवाब देंहटाएंहड्डियाँ हिल रहीँ है! सुखद नहीँ है! लेकिन मन दुखी नहीँ है!
मौज है! आखिर ब्लागजगत मेँ लौटे हैँ।"
शुक्ल जी नमन है आपको ! कितना श्रम लगता होगा ?
एक एक वाक्य पढ़ने काबिल होता है आपकी चिठ्ठा चर्चा का !
शुभकामनाएं !
वह पगली
जवाब देंहटाएंनहीं जानती
इंसान का मैं-पना ही
उसकी ताकत है
जब वही झर जायेगा
चीज़ों के मायने बदल जायेंगे
इस खिडकी से जितना दिखता है,
बस उतना सावन मेरा है,
हैँ जहाँ नहीँ नीले निशान
बस उतना ही तन मेरा है!
खुदा हूं देवता हूं :आजकल हर तरफ़ खुदाई चल रही है। लोग खोद के डाल जाते हैं।
वाह
बहुत सुंदर, बहुत दिनों बाद आप की पसंद की अच्छी कविता सुनी है। क्या बात है फ़ुरसतिया जी, जिसकी मौज लेते हैं बड़ी फ़ुरसत से लेते हैं। आजकल समीर जी निशाने पर हैं। खैर आशा है आप की तीसरे कमरे से दूसरे कमरे तक की यात्रा सुखद रही होगी