बोलचाल में या अपने व्यवहार में कोई किसी भी शब्द का प्रयोग करे , उसकी इच्छा | पर यहाँ बोलचाल की भाषा की बात नहीं की गयी थी; राजकिशोर जी व मेरी उक्त चर्चा में हिन्दी की भावी पत्रकारिता में प्रयोग के लिए इस नए भाषाप्रयोग के क्षेत्र के लिए पारिभाषिक शब्द के निर्माण की बात की गयी है | उसमें इतना विचलित होने या परिवर्तन से परेशान होने जैसी तो कोई बात ही नहीं थी| क्यों तात्विक धरातल पर भी हम लोग हिन्दी में शब्द निर्माण की प्रक्रिया से इतना बचना चाहते हैं और शब्दों पर पुनर्विचार की स्थितियों को खारिज करते हैं ?
यद्यपि यह स्थान ऐसी चर्चा के लिए उपयुक्त नहीं है लेकिन चूंकि बात उठी इसलिये यहाँ इतनी विशद यह चर्चा की है इस विषय पर | इस शब्द निर्माण के लिए विकल्प सुझाना चाहें तो आपका यहां या मेरे व्यक्तिगत ब्लॉग पर स्वागत है , भविष्य में यह शब्द चर्चा वहीं किसी पर |
इस लम्बी अवांछित टिप्पणी के लिए क्षमा चाहते हुए आज अब तक आई कुछ प्रविष्टियों को आप से बाँट रही हूँ -
दादियों के गीतों की बात सुन कर संसार की प्रत्येक स्त्री की आन्तरिकता में विद्यमान वही एक नन्ही गौरेय्या बार बार कौंधती है जिसका जीवन तिनके जोड़ने से शुरू होता है और वहीं समाप्त -- "रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखो गोय" क्योंकि जब यह फूटती है तो सारे संसार की औरतें एक-सी क्रन्दन करती जान पड़ती हैं -
बोलोनिया, इटलीः देखने में सामान्य औरतें दिखतीं हैं और नाम है बिसट्रिश्की बाबी यानि "बिसट्रिश्की की दादियाँ", बल्गारिया की राजधानी सोफिया से करीब दस किलोमीटर दूर के गाँव बिसट्रिश्की से आयी हैं. जब गाना शुरु करती हैं तो इस तरह की आवाज़ निकालती हैं कि दिल धक धक करने लगे. उनके गाने सदियों से चली आने वाली परम्परा के गीत हैं, जिनके प्राचीन शब्दों के अर्थ वह स्वयं भी नहीं जानतीं. इन गीतों में कोमलता नहीं, चीत्कार और दहाड़ें हैं, स्वरों का अंतर्द्वँद है, विभिन्न सुरों कि लहरें हैं जैसे स्वर सागरों के संगम पर खड़े हों. बीच में अचानक लगा मानों यज्ञ के वैदिक मंत्र पढ़ रहीं हों.
चुनावी हथकंडों में पारंगत कुर्सी भोगी जीवों को चुनाव की चिंता सताने क्या लगी कि वे मृत्यु से पूर्व किए जाने वाले अनुष्ठानों की तरह का धंधा करने में रूचि लेने लगे हैं | देखते हैं ये सपने कब सच होते हैं या केवल कागजी ही रह जाते हैं
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने काफी समय से लंबित पड़े शिक्षा के अधिकार संबंधी विधेयक को मंजूरी दे दी है। इसके तहत छह से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है। विधेयक के कानून की शक्ल में आने के बाद छह से 14 साल के हर बच्चे को मुफत व अनिवार्य शिक्षा का हक हासिल हो जाएगा। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर आधारभूत ढांचा मुहैया कराएंगी। कानून को अमलीजामा पहनाने के लिए 2,28,000 करोड़ रुपए से ज्यादा के खर्च का अनुमान है।
जोग लिखी में आज की सबसे ज्वलंत समस्या पर आई निम्न पुस्तक पर टिप्पणी हिन्दी में पढ़ें
Hot, Flat and Crowded: Why We Need a Green Revolution – and How It Can Renew America
By Thomas L. Friedman
ग्लोबल वार्मिंग, ग्लोबल फ्लैटनिंग और ग्लोबल क्राउडिंग. ये तीन बदलाव ऐसी तीन लपटों की तरह है जो आपस में मिलकर बहुत बड़ी आग में बदल चुकी है. यह आग पांच बड़ी समस्याओं को पैदा कर रही है. ये समस्याएं हैं – मौसम का बदलाव, पेट्रो-तानाशाही, ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों के के उपभोग और उपलब्धता का बिगड़ता जा रहा संतुलन, जैव विविधता का खत्म होते जाना, और ऊर्जा दारिद्रय. आने वाला समय कैसा होगा, यह इसी बात पर निर्भर करेगा कि हम इन पांचों समस्याओं का सामना कैसे करते हैं.
और समाचार ये हैं कि
१ ) कुछ भक्तगण परमात्मा के दरबार में पाए गए बतियाते
२) अपनी दाँत सम्बन्धी समस्याओं में सहायता के लिए यहाँ दस्तक दे सकते हैं ऑनलाइन मेडिकल सेवा
३) अभी अभी प्राप्त विश्वस्त सूत्रों की जानकारी से पता चला है कि राजठाकरे काण्ड का असली सूत्रधार खोज निकाला गया
४) यमराज दुविधाग्रस्त पाए गए
५) हेलोवीन का सांस्कृतिक सन्दर्भ कृषि सभ्यता में आज के मानव की जड़ें तलाशता दिखाता है - एकदम भारतीय त्यौहारों की तरह - एक प्रत्यक्षदर्शी से जानें
६) नाटक चालू आहे - अथ श्री लालू यादव कथा
७) किस्मत तेरे खेले निराले - क्योंकि
इस टेलीविज़न शो 'पॉप आइडल' में सिर्फ़ रिक्शा चालक ही हिस्सा ले सकते थे.८) हिन्दी ब्लॉगरों को टोपी पहनाने के लिए आ रहे नेटवर्क मार्केटरों को प्रणाम निवेदित करते मिले रवि रतलामी
९) ... इनसे बचें तो सेवें काशी
१०) समाज व्यवस्था पर लिखी कविता तकियों को आरक्षित पाती देखी गयी
११) विद्या व अर्थलिप्सा को जोड़ने के दुष्परिणाम शब्दों ने ऐसे भोगे जान ने के लिए अवश्य पढ़ें
१२) तरक्की के लिए टाँग खिंचाई करते पाए जाने वालों के लिए मैं कुत्ता सीरीज की इस कड़ी का पारायण करने को उपलब्ध हुए ब्लॉग पर बैनर लगा था
कुत्ता एक सामाजिक प्राणी है। इसकी कई विशेषताएं हैं। यह वफादार भी होता है और काटता भी है। यह पूंछ भी हिलाता है और इसकी पूंछ टेढ़ी भी होती है। जो कुत्ते भौंकते हैं वो कभी काटते नहीं। कुत्तों के सामाजिक जीवन और हमारे सभ्य समाज में कई विशेषताएं और समानताएं भरी पड़ी हैं। इन समानताओं, विषमानताओं और विशेषताओं पर अपने दास जी ने पांच सौ साल रिसर्च की है। उनकी इस रिसर्च पर डाक्टरेट........
अंत में
सतीश सक्सेना जी ! उजाले वाली कविता के अंत में तिथि पर उस कविता के ब्लॉग का लिंक लगा है |
अरविंद जी ! इसका सही रूप है - "माता भूमि: पुत्रोहम् पृथिव्या: "
रचना जी ! हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास इस `ब्लॉग रहने दो कोई नाम न दो' से बहुत ऊँची चीज है, उसकी परम्परा की मर्यादा यदि हम रख सकें, रखनी चाहिए| उधार के शब्दों से कब तक पीठ दुखाएँ?
अभी इतना ही - सभी को आने वाले दिन के लिए शुभकामनाएँ |
"माता भूमि: पुत्रोहम् पृथिव्या: "
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कविता जी ,हाँ यह भूल हो गयी थी खेद है !!
चिठ्ठा शब्द अटपटा लगता है मुझे भी। और शायद यही कारण है कि मैं इसका ज्यादा प्रयोग नहीं करता।
जवाब देंहटाएंआभार इस चर्चा के लिए...चिट्ठा शब्द पर सबके अपने विचार हैं मगर ज्ञान जी को भी अटपटा लगना मुझे अटपटा लगा.
जवाब देंहटाएंयही वजह है कि मैं ज्ञान जी को कहना चाहूँगा कि हिन्दी में प्रचलित शब्दों के लिए अंग्रेजी इस्तेमाल कम कर दें और गैर प्रचलित शब्दों पर ही अपनी स्टाईल ठेले रहें..तो अच्छा लगने लगेगा.
वैसे, कुछ नया शब्द सुझाते तो और मजा आता..उनकी नई शब्द सुझाने की प्रतिभा भी विलक्क्षण है..इसी वजह से कह रहा हूँ.
वैसे उनकी तस्वीर चमेली का तेल लगाये आज के उनके ब्लॉग पर...जबरदस्त!!!
कविताजी, आज की आपकी चर्चा बहुत अच्छी लगी। खासकर पंजाबी में ईमेल की जगह बीजल चिट्ठी प्रयोग वाली बात। इसी तरह संजय बेंगाणी ने बताया था कि वे लोग गुजराती में मोबाइल को घुमंतू कहते हैं।
जवाब देंहटाएंब्लाग के लिये चिट्ठा शब्द का प्रयोग सबसे पहले आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार ने लिया था। बेवलाग में जैसे दिन-प्रतिदिन की बातें लिखने की बात कही जाती है और रिकार्ड रहती हैं वैसे ही पण्डों के पास पीढियों के चिट्ठे रहते हैं। शादी-ब्याह में खर्चे के चिट्ठे बनाये जाते हैं। चिट्ठे से कच्चे माल और अनगढ़ता का भी बोध होता है। इधर लिखा ,उधर पोस्ट किया की प्रकृति से भी यह मेल खाता है। कच्चा चिट्ठा नाम से ब्लागर का परिचय हम निरंतर में देते रहे हैं। कच्चा चिट्ठा पोल खोलने के अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन वह भी तो एक परिचय ही हुआ न।
इस ब्लाग के नाम की बात छोड़ दें तो तमाम चिट्ठाकार चिट्ठे की जगह ब्लाग शब्द का प्रयोग करते हैं। ज्ञानजी को चिट्ठा शब्द अटपटा लगता है लेकिन वे शायद भूल गये कि उन्होंने ब्लागर-ब्लागराइन के लिये चिठेरा-चिठेरी शब्द सुझाया था जिस पर मैंने कुछ चिठेरा-चिठेरी संवाद भी लिखे थे।
शब्द जो लोगों की जबान में चढ़ेगा वह चलेगा। आगे शायद इसकी जगह कोई और शब्द चल निकले लेकिन तब जबकि वह इससे अधिक आकर्षक , सहज होगा।
पिछली चर्चा में आपने अपनी बेटी की चोट और अपनी पीडा़ का जिक्र किया था लंदन में मेरी दुर्घटनाग्रस्त बेटी को जीवन में पहली बार यह त्यौहार अकेले मनाना पड़ा। ऊपर से इस बार यकायक लंदन में दीपावली की रात २-२ फीट हिमपात हो गया। ऐसे में उसे याद आई तो केवल माँ और अपनी उस दिन की वे स्मृतियाँ जब उसने मुझे सुनाईं तो सिवाय फफक फफक कर रोने के कोई शब्द मेरे पास नहीं था।
उसकी अनदेखी हुयी हमसे। अफ़सोस है इसके लिये। आपकी बिटिया के शीघ्र स्वस्थ होने के लिये और आपके मन के सुकून के लिये दुआ करता हूं।
चर्चा धांसू च फ़ांसू है। :)
आपके चिट्ठाचर्चा में जुड़ने से इसे नया आयाम मिला है। इसके लिये आपके आभारी हैं।
ब्लॉग की शब्द चर्चा अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंहालाकि चिट्ठा शब्द तो आम प्रचलन में दिखता है
कविता जी पुत्री के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना सहित!!!!!!!
कविता जी !
जवाब देंहटाएंचिटठा चर्चा में आप जैसे लेखकों के आने से चर्चा और सम्रद्ध होगी ऐसा मेरा विश्वास है ! बेटी वाला कष्ट एक बार मैं भोग चुका हूँ जब मेरा बेटा पहली बार घर से दूर अकेले कमरे में दीपक जला कर बैठा हुआ था, वह दीवाली ठीक उसी प्रकार सूनी थी !
बहुत अच्छी चर्चा के लिए शुभकामनायें !
ब्लॉग साहित्य और पत्रकारिता नहीं हैं । जो लोग ब्लॉग लिखते हैं उन मे से कुछ साहित्य और पत्रकार भी हैं । शब्द और भाषा कभी कहीं से उधार नहीं होती कम से कम ब्लॉग पर । ना जाने कितने ब्लॉग पर केवल और केवल प्रिंट मीडियम मे छपे आलेखों को कॉपी करके डाला जा रहा हैं , कविता डियर , अब अगर वो सब उधारी नहीं हैं तो मेरी बिचारी ज़रा सी लाइन "ब्लॉग को ब्लॉग ही रहने दो कोई नाम न दो" से आप इतना खफा क्यूँ हो गयी ।
जवाब देंहटाएंहिन्दी भाषा मे अनेक शब्द हैं जो हिन्दी के नहीं हैं पर प्रयोग हो रहे हैं तो "ब्लॉग को ब्लॉग ही रहने दो कोई नाम ना दो " भी रह सकता हैं । बाकी मुझे चिट्ठा शब्द बिल्कुल नहीं अच्छा लगता सो मै ब्लॉग ही कहती हूँ और जितने भी अखबार हैं जहाँ ब्लॉग पर लिखा जाता हैं वो सब "ब्लॉग कोना " इत्यादि ही कहते हैं । हिन्दी ब्लोगिंग सर्च परिणामो मै आती रहे इसके लिये भी HINDI BLOGING हे कह जाता हैं बाकी ब्लॉग मीडियम हैं अभिव्यक्ति का सो जाकी रही भावना जैसी
आपके लेख से प्रेरित होकर "सूनी दीवाली" पर आपको उद्धृत किया है कविता जी,
जवाब देंहटाएंhttp://satish-saxena.blogspot.com/2008/11/blog-post.html
"यद्यपि यह स्थान ऐसी चर्चा के लिए उपयुक्त नहीं है लेकिन चूंकि बात उठी इसलिये यहाँ इतनी विशद यह चर्चा की है इस विषय पर"
जवाब देंहटाएंउपयोगी कार्य के चर्चाओं को लिये सीमा लांघने दीजिये. इससे सबको फायदा ही होगा.
आपके लेख से प्रेरित होकर "सूनी दीवाली" पर आपको उद्धृत किया है कविता जी,
जवाब देंहटाएंhttp://satish-saxena.blogspot.com/2008/11/blog-post.html
" read this post on satish jee's blog...and felt a deep pain...cant say more than that"
Regards
हम कोई विद्वान तो हैं नहीं पर चूँकि फुरसतिया ने कहा है कि हर फटे में टाँग अडाना सीखिए तो हमने प्रैक्टिस चालू कर दी है इसीलिए बिना माँगे अपनी राय फेंक रहे हैं कैच इट : हमारा मानना है कि हिन्दी की जगह हिन्दी ठीक है पर उस हिन्दी को ऐसा न बना दें कि हिन्दी वालों को ही फिर से हिन्दी सीखनी पडे .भाषाओं की दूरियों को मिटाने की ओर कदम बढाते हुए अन्य भाषाओं के शब्दों को हिन्दी में आत्मसात कर लेना चाहिए . जहाँ हिन्दी में कोई शब्द का अभाव दिखाई दे बस किसी अन्य भाषा से उठवालो अच्छा सा देखकर . इस तरह से भविष्य की तस्वीर ऐसी हो जाएगी कि भाषाएं तो अलग होग़ी पर शब्द जाने पहचाने हो जाएंगे . फिर हिन्दी वाले भी इल्लै का मतलब समझ जाया करेंगे . कुछ ज्यादा बोल गया हूँ टिप्पणी के हिसाब से . मुद्दे की बात यह कि चिट्ठा को चिट्ठा हो रहने दिया जाय इस पक्ष में हैं हम . नहीं तो कल को वर्मा जी ( कोई वर्मा जी हों तो कृपया बुरा न मानें ) से लोग कहेंगे कि वर्मा तो छेद करने वाला होता है आप अपना कोई और उपनाम रख लो जी . अग्रवाल भी सुनने में अग्रबाल सा लगता है बदल दो .
जवाब देंहटाएंबीजल चिट्ठी और वार्ता हम तो दोनों को मानते हैं, और इनके प्रशंसक भी हैं. हाँ, चिट्ठा की बात बकौल समीरजी जरुर विचारणीय है.
जवाब देंहटाएंहम चिट्ठे शब्द के प्रचलन में आने की प्रक्रिया का हिस्सेदार नहीं तो कम से कम साक्षी तो हैं ही। मैं कतई सहमत नहीं कि ये 'गंदा' लगता है। 2004-05 में यह प्रचलन में आया तथा लिखंत, विचार वगैरह वगैरह के साथ जिस भाव को ये लिए हुए है वह बिंदासपन व अनौपचारिकता है कुछ कुछ अनगढ़पन भी। ये सब चिट्ठाकारी के मूल तत्व हैं, यही इसे खांटी पत्रकारिता से अलहदा भी करते हैं तथा साहित्य के आभिजात्य से भी बचाते हैं।
जवाब देंहटाएंसंदर्भ तब तक पूरा नहीं होगा जब तक हम बालमुकुन्द गुप्त के 'शिवशम्भू के चिट्ठे' पर नजर नहीं डालेंगे, आखिर शब्द का मूल तो वहीं से आया है न। शिवशम्भू का हर चिट्ठा अपने अनगढ़पन पर गहरे प्रतिरोध व कटाक्ष के कारण एकदम चिट्ठा ही तो है। आज बालमुकुन्द लिखते तो अखबार में नहीं लिखते ब्लॉग पर ही लिखते। नहीं... ?
मुझे लगता है कि चिट्ठा शब्द हाईपर टेक्स्ट की जिस विशिष्ट प्रवृत्ति के भाव का विशेषकर अनौपचारितका का वहन करता है वो खूब दमदार है।
पर मेरी राय बस मेरी राय ठहरी। :))
@ कविता जी , आज सतीश जी के ब्लॉग पर बिटिया के बारे में पढ़ कर बहुत कष्ट हुआ ! बिटिया शीघ्र स्वास्थय लाभ करे यही आशीष है ! आपको बहुत शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंकविता जी शायद मेरे कुछ कहने का इंतज़ार न कर रहीं हों अतएव यह टिप्पणी की जा रही है
जवाब देंहटाएंदो दिनों से यह सब देख पढ़ रहा हूँ,
पर यथा राजा तथा प्रजा का अनुसरण करते हुये
भारत सरकार की तर्ज़ पर चुप्पी साधे रहने का प्रयास कर रहा था
वैसे भी गत 20 अक्टूबर से मेरा विवाद योग चल रहा है !
इस चिट्ठा शब्दीकरण संदर्भ में मुझे यही कहना है, कि..
यदि हम ज्ञानजी को आकंठ चमेली के तेल में डूबे रहने को छोड़ भी दें
तो भी 'डाइसी' होने के इल्ज़ाम से तो बरी न हो पायेंगे
अतः जिस दिन मैं स्टेशन से ट्रेन पकड़ना या फ़लानी फ़्लाईट से इंडिया आना बंद कर दूँगा,
उस दिन 'चिट्ठे' पर भी विचार करने का प्रयास करूँगा !
ब्लाग को ब्लाग ही रहने दो कोई नाम न दो,
ऎसा मैं अपने एक आलेख में 8-9 महीने भी लिख चुका हूँ ।
ऎसे किसी भी वाक्य पर मेरा आधिपत्य नहीं है, इसलिये रचना जी से शिकायत करना वाज़िब न होगा ।
किन्तु मेरा कहना यही है कि,
हम केवल अपनी रचनाधर्मिता के प्रति समर्पित रहें,
ज़मीन से ऊपर तैरने के प्रयास में बेवज़ह अंग्रेज़ी शब्द न ठूँसें, तो यह बहस बेमानी है
क्या भाषा के प्रति ऎसा दुराग्रह ग्राह्य होगा ? एक बार देखें तो सही..
आम बोलचाल की भाषा को भी विभिन्न शैलियों में प्रस्तुत करते रहने पर भी
इसके 'सधुक्कड़ी होने का', स्लैंग लिखने का, सिर के ऊपर से निकल जाने का,
समझने में दिमाग़ी कसरत करवाने का अनेकानेक आक्षेप होते रहे हैं,
पण अपुन तो नहीं सुधरेंगे, जी
ब्लाग को ब्लाग ही लिखेंगे, और पोस्ट को चिट्ठे से प्रोमोट कर आलेख ही कहते रहेंगे ।
आप चाहें तो अपने निजी ब्लाग को आलेखपटल कह दें या पोस्ट को आलेख.. क्या फ़र्क पड़ता है
व्हाट इज़ इन ए नेम ?
रही बात गरिमा की..
तो उसके लिये गरिमामय लेखन को यदि प्रोत्साहित नहीं किया जाता,
तो इस मंच की गरिमा अपमानित ही होती है ।
पर ब्लाग बेचारा तो सबकुछ अपने में समाहित कर लेता है ।
इतने स्वर्णकारों के मध्य इस टिप्पणी का लोहार
यदि नज़र अंदाज़ भी कर दिया जाये, तो कोई वांदा नहिंइच है, बाप !
अपुन लिखेला-ठेलेला टाइप मानुष है,
ठेलेला में ठलुअई या ठेलने में किसी अन्य अश्लील संदर्भ की बू आती भी हो तो क्या ?
अब मैं पोस्ट को पाती, और पोस्ट-आफ़िस को पाती-निलयम तो कहने से रहा !
गंगा जमुना कावेरी नर्मता के मध्य टेम्स को भी रहने दो..
या फिर टेम्स वालों के शब्दकोष से ठग, डकैत, बाज़ार इत्यादि को छीन लाओ तो जानें !
'रविवार्ता' और उसका परिशिष्ट - दोनों ही रोचक रहे और विचारोत्तेजक भी. बधाई!
जवाब देंहटाएंभारत में नए सिरे से उभर रहे क्षेत्रवाद और भाषावाद के अलगाववादी स्वरुप पर आपकी चिंता प्रत्येक संवेदनशील हिन्दुस्तानी नागरिक की चिंता है. इन समस्याओं पर तटस्थ चिंतन की आवश्यकता है. सच ही ऐसा वक़्त आ गया है कि अच्छी सूचना के प्रतीक्षा बस प्रतीक्षा ही रह जाती है.
दीवाली के अवसर पर सुपुत्री की अस्वस्थता और दूरदेश में बैठी माँ की व्यग्रता मर्मस्पर्शी है. आशा है, बिटिया स्वस्थ्य लाभ कर रही होगी. शुभाशीष!
वेबलॉग/ब्लॉग/बीजल चिट्ठी/चिट्ठा/लेखा - की चर्चा सार्थक और प्रासंगिक है. नई वस्तुओं और अवधारणाओं के लिए नए शब्दों की खोज सदा की जाती रही है, रहेगी. यदि तत्सम शब्द ही खोजना
है या बनाना है तो भी स्वागतेय है. और यदि पहले से उपलब्ध किसी शब्द को नए परिभाषिक अर्थ से अभिमंडित करना है तो यह भी आपत्तिजनक नहीं है. चिट्ठा के साथ आग्रह जुड़े हो सकते हैं. जिनसे मुक्त भी हुआ जा सकता है. इसमें दो राय नहीं कि यह शब्द अर्थ की दृष्टि सी पारदर्शी तथा प्रजनन शक्ति से युक्त है. हिन्दी की तद्भव प्रियता और देशज प्रकृति के भी यह अनुरूप है. हिन्दी की सम्पदा का राज यह भी है कि इसमें अनेक वस्तुओं और अवधारणाओं के लिए तत्सम-तद्भव-देशज-विदेशी गृहीत - अनूदित - अनुकूलित - नवनिर्मित शब्द एक साथ स्वीकृत हैं. ब्लॉग के लिए भी ऐसा किया जा सकता है.
चिट्ठा चर्चा में अन्य देशी-विदेशी भाषाओं के ब्लोगों और रचनाओं की चर्चा इसे सच मुच व्यापकता प्रदान करती है. यही क्रम बनाये रखें तो अच्छा है.
और हाँ, नगाडे वाली प्रविष्टि के उल्लेख के लिए विशेष आभार.
शुभकामनाओं सहित.
ऋषभ.