कवित विवेक एक नहिं मोरे फिर भी चर्चा गावें ॥
फुरसतिया की फुरसत का सब राज तुम्हें बतलाएं ।
बैठे नैनीताल, दूसरे उनका ब्लॉग चलाएं ॥
अनूप शुक्ला ने पब्लिक का आज भरोसा खोया ।
व्यंग्य पुरुष आलोक पुराणिक ने विश्वास डुबोया ॥
ज्ञानदत्त भी रहे न पीछे पोल सभी की खोली ।
ट्यूब हुई खाली तो टिप्पणियों की शामत हो ली ॥
धर्मान्तरण रोकने का गम्भीर सवाल उठाया ।
किन्तु समस्या ज्यों की त्यों कुछ ज्ञान काम ना आया ॥
गुरु कराते फतवा जारी मुफ्ती को उकसाके ।
दाँव पड गया उल्टा साझीदार छोडकर भागे ॥
मुझको तो पहले ही शक था यह कलयुग की यारी ।
संकट आता देख छोडकर जाने की तैयारी ॥
नए ब्लॉग ज्ञानदर्पण से नेहनिमन्त्रण आया ।
रतन सिंह शेखावत ने यह अपना ब्लॉग बनाया ॥
राजनीति में जाना हो तो पढें काम की बातें ।
कूटनीति की खूब बिछाएं उसके बाद बिसातें ॥
ब्लॉगजगत के हीरो ताऊ इनके बिन सब सूना ।
पर अफसोस लगाया इनको फेरीवाला चूना ॥
आया चुनाव तो नेता आकर कदमों में झूले ।
बीत गया जब नारदमुनि की सूरत तक वे भूले ॥
नीरज गोस्वामी बतलाएं इनके यार लुटेरे ।
डॉक्टर जी को मिले भाग्य से घी के लड्डू टेढे ॥
कुछ लम्हे सीमा गुप्ता ने ऐसा जादू डारा ।
पढी पोस्ट मन ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का बंजारा ॥
इनकी माँ मर गई जानकर हमें दुख हुआ भारी ।
हाय गरीबी ऊपर से यह डॉक्टर अत्याचारी ॥
वादे हैं वादों का क्या यह बलविंदर समझाएं ।
विवेक सिंह यों कहें देश से ओवरटाइम हटाएं ॥
सभी धुरन्धर एक साथ लाए संदीप पहेली ।
देखें आप निराश न होंगे है अद्भुत अलबेली ॥
हिन्दी ब्लॉग लेखन के अन्तर्विरोध समझावें ।
क्लिष्ट शब्द कुछ हैं फिर भी जैसे तैसे पढ जावें ॥
अर्थजगत की बातों को ये मुहँ फाडकर सुनाएं ।
मुहँफट इनका नाम हमें क्या आप गौर फरमाएं ॥
श्रीलंका पर भारत की यह सोच सही ठहराएं ।
किन्तु स्वयं पर क्या सोचे भारत यह तो बतलाएं ?
उत्साही फिरदौस खान कुछ हैं उदास यह जाना ।
एक कहानी यह भी है जो कविता ब्लॉग जनाना ॥
एक अजनबी बता रहे हैं सुनें सभी हम क्या हैं ।
मनुष्य की पहचान बताते सुरेश चन्द्र गुप्ता हैं ॥
सबसे मेहनतकश ब्लॉगर का मेडल जब आएगा ।
सुरेश चन्द्र गुप्ता जी को ही निर्विवाद जाएगा ॥
कन्या भ्रूणों की हत्या पर सुमित चमडिया बोले ।
घूघूती बासूती की भावुक कविता मन डोले ॥
मग्गा बाबा ने अपने अनमोल वचन यूँ बाँटे ।
द्रौपदी के पाँच पुत्र अश्वत्थामा ने काटे ॥
दिल्ली में सिक्कों की है क्यों कमी यहाँ पर जानें ।
कौपरनिकस वैज्ञानिक थे इनको भी पहचानें ॥
भारत की नारी झलकारी कथा ज्ञान की पाई ।
यहाँ वर बधू के विज्ञापन पर यह पोस्ट बनाई ॥
वोट नहीं देना भी तो है वोट, तर्क में दम है ।
इसका अर्थ व्यवस्था में विश्वास हमारा कम है ॥
पौराणिक कहानियों का हो जिनको शौक पुराना ।
चाहें चन्दा मामा के बारे में कुछ बतलाना ॥
भूतनाथ की भी सुन लें कुछ चाहें बात सुनाना ।
इनके भीतर एक फरिश्ता कैसा ताना बाना ॥
मजेदार योगेन्द्र मौद्गिल जी की सब कविताएं ।
रचना सिंह जिंदगी की गुजरी यादों में जाएं ॥
महेन्द्र मिश्रा भी जवान दिल कविताएं हैं कहते ।
मनविन्दर बिंबर के हर्फ हवा में लटके रहते ॥
भला रंजना जी भूलें अपनी पलकों के आँसू ?
आओ सुनवा ही दें सबको उनकी कविता धाँसू ॥
और अन्त में कैसे टिपियाना है सुनते जाएं ।
भला बुरा सब चल जाएगा पर अवश्य टिपियाएं ॥
क्या बात बनाई है भाई?
जवाब देंहटाएंचर्चा सब के मन भाई।
बहुत कर लिया फेरा, फ़िर भी नाम नही है मेरा
जवाब देंहटाएंपहचान नहीं है मेरी, तो ईनाम नहीं है मेरा .
सब की चर्चा हो ली, कुछ मेरी भी बात चलाओ
'चर्चा' की आपाधापी में , क्षण भर ठहरे जाओ .
बड़ी प्यारी और मनोहर चर्चा के लिए धन्यवाद .
शानदार चर्चा |
जवाब देंहटाएं@ हिमांशु पाण्डेय जी अच्छे से ढूँढिए यार !
जवाब देंहटाएंवाह,वाह! झाड़े रहो कलट्टरगंज्!
जवाब देंहटाएंभाई वाह -अब आपसे डर लगने लगा है -मेरे वाह वाह का सम्पूर्ण कोष तो आप ही खाली करवा दोगे !
जवाब देंहटाएंमुझे लगा जैसे संदीप पाण्डेय जी के चित्र में सभी धुरंधर धुर-अन्दर थे वैसे ही आपने भी मुझे निपटा दिया. गलती हो गयी . वस्तुतः ओवरटाइम हटायें? पढ़ने के बाद बहुत कुछ सोचने लगा, अपना ही नाम, अपनी ही प्रविष्टि से विरम गया .
जवाब देंहटाएंआज अच्छी मेहनत और चर्चा की है ! शुभकामनायें विवेक भाई (न जाट न ठाकुर ) ! :-)
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन चर्चा ! तबियत बाग़ बाग़ हो गई ! बधाई आपको !
जवाब देंहटाएंब्लॉगर भाई और भाभियों को हम शीश झुकावें ।
जवाब देंहटाएंsheesh jhukanae kae liyae
sab ko bhabhi aap naa banayae
mitr baney , blogger baney
aur charcha kartey jaaye
blogger shadb ko
blogger hee maney
फुरसतिया की फुरसत का सब राज तुम्हें बतलाएं ।
जवाब देंहटाएंबैठे नैनीताल, दूसरे उनका ब्लॉग चलाएं ॥
" bhut achhee treh jimedaree neebahee aapne"
Regards
चिट्ठाचर्चा का ‘विवेक’पूर्ण ताना-बाना
जवाब देंहटाएंकविता मे हमको सफ्लतापूर्ण सुनाना
फुर्सत से पढेंगे फुरसतिया की चिट्ठी
बधाई- कविता में चिट्ठाकारों को जमाना!!
आदरणीय रचना सिंह जी हम किसको क्या मानें यह तो हम खुद ही निर्णय लेंगे . बाकी यहाँ पर हमने किसी का नाम तो लिखा नहीं . न ये लिखा कि सभी ब्लॉगर हमारे भाई हैं या भाभियाँ हैं . ये तो अपने अपने समझने के फेर हैं . ये तो वही बात हो गई " जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरति देखी तिन तैसी ." फिर भी अगर आपको कुछ समझने मैं गलतफैमिली हुई है तो किलियर किये देते हैं कि जहाँ इस चर्चा को अधिकतर ब्लॉगर पढते हैं वहीं हमारे कुछ भाई भी इसको पढते हैं और कुछ भाभियाँ भी पढती हैं . अब सबके नाम तो यहाँ नही लिख सकते ना . और शीश नहीं झुकाया तो उनका अनादर हो जाएगा . अनादर हम किसी का करते नहीं . रही बात आपकी टिप्पणी की लगता है जल्दबाजी में लिखी है ऊपर जगह पाने के चक्कर में . अब गलतियाँ निकालने का काम तो हमारा है नहीं . पर चूँकि आपको यह पसंद है इसलिए हम बता देते हैं कि आपको कहना चाहिए था कि सबको भाभी आप ना बनाएं पर आप ने शीश झुकाने की बात गलत कही अब किसी को भाभी बनाएंगे तो सम्मान तो देंगे ही ना . जल्दी में आपने shabd को shadb लिख दिया है . ऐसा भी हो सकता है कि आपने यह जान बूझकर लिखा हो और हमें ही इसका मतलब ना पता हो . ऐसा हो तो कृपया बताएं . आपके मन में जो आता है आप साफ साफ कह देती हैं . सही लगता है ऐसा करना मुझे भी . इसीलिए तो आपकी छत्र छाया में सीखने का मौका तलाशते हैं . कृपया भविष्य में भी मार्गदर्शन करती रहें . धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत ज़बरदस्त चर्चा कर दी है, विवेक जी. एकदम अलग और निराले अंदाज़ में. हाँ, कवित-विवेक वाकी बात से मैं सहमत नहीं हूँ. इतनी अच्छी रचनाएँ लिखने वाले के पास कवित विवेक नहीं हो, ये हम मान नहीं सकते. हम तो क्या कोई भी मानने के लिए तैयार ना होगा.
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा रही.
मज़ेदार,शानदार,दमदार्।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब , एक हि कविता मे सब को निपटा डाला.
जवाब देंहटाएंलगता है कि बडी फुरसत मे बैठ कर लिखी गई है.
सही चर्चा है, लगे रहिये.
जवाब देंहटाएं"लिखते रहिए रोज कुछ न कुछ ।
जवाब देंहटाएंपढते ही पाठक हों बेसुध ॥
जुदा लगा अंदाज आपका ।
क्या कहना तुम्हरे प्रताप का ॥"
साभार:'यहाँ टिप्स हैं टिप्पणियों के'(http://doordrishti.blogspot.com/2008/11/blog-post_22.html):-)
इतनी सुंदर चर्चा और इन तमाम संकलनों के लिये मुबारकबाद और ढ़ेरों धन्यवाद
जवाब देंहटाएंchha rahe hai.. vivek bhai.. lage rahiye..
जवाब देंहटाएंआदरणीय न लिखा करे , क्युकी मित्रवत व्यहार हो तो बात खुल कर होती हैं . आप की चर्चा और ब्लॉग नित प्रतिदिन पढ़ती हूँ सो इस चर्चा की ओपनिंग पंक्ति नहीं सही लगी { मुझे } आप को अधिकार हैं आप जिस को जिस संबोधन से चाहे बुलाए , पर ये तो बताये ये कहा आप ने कहा की शीश आप ने अपने भाई और अपनी भाभी के लिये झुकाया . हमें तो ये लगा की सबको पाठको को भाई या भाभी आपने बनाया अब जो भी नहीं हैं और भाभी भी नहीं हैं ?? यानी कुछ इसे भी हैं जो मित्र हैं { ब्लॉगर हैं } वो इस चर्चा को पढे या ना पढे , सम्जः ये हमको नहीं आया . और आप का शीश केवल भाई भाभी के आगे ही क्यों झुके !! दीदी , चाचा , मामा , मामी जीजा ये सब क्या बेचारे करे , सो विवेक से सोचे की क्या संबोधन की परिपाटी जरुरी हैं बाकी आप भी खरी और सच्ची ही लिखते हैं सो हम निरंतर सच्चे मन से पढे ते हैं .
जवाब देंहटाएंचर्चा हो रही है धासूं , पर मैं केवल खासूं ?????
जवाब देंहटाएंटेम्पलेट भी नया !!!!
चर्चा का अंदाज भी नया !!!
@आदरणीय रचना जी आपने जो कुछ लिखा है उसको सुलझा पाना बडा मुश्किल हो रहा है . अभी इतने ऊँचे स्तर की हिन्दी से मेरा पाला नहीं पडा कभी .या यह कोई और भाषा है तो यह मैंने सीखी नहीं अभी तक .
जवाब देंहटाएंप्रिय विवेक, काव्यात्मक चर्चा अपने आप में एक नया प्रयोग है एवं जैसे जैसे करते जा रहे हो वैसे वैसे अभिव्यक्ति और अधिक सशक्त होती जा रही है. पढने में भी काव्य हर बार पहले से अच्छा होता जा रहा है.
जवाब देंहटाएंइस विधा के प्रयोग के लिये साधुवाद!!
सस्नेह -- शास्त्री
लिखते हम सब हैं, पर विवेक का है 'अंदाजे बयां कुछ और'
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जवाब देंहटाएंआजका चर्चा बना है आला
जिसको टीपैं 24 मतवाला
पढ़के चरचाजोर गरम
देखो भाभी देवर को हैं पछाड़ैं
औ' देवर भाषा पर मुँह फाड़ैं
लिखते चरचाजोर गरम
विवेक ने सबको खूब समेटा
खुश हो डाकटर टिप्पणी देता
बांचो चरचाजोर गरम
कमाल की चिठ्ठा चर्चा...न कभी ऐसी सुनी ना कभी ऐसी पढ़ी...वाह..
जवाब देंहटाएंनीरज
आप सभी को चर्चा पसंद आई .धन्यवाद ! अरविंद मिश्रा जी से कहना चाहूँगा कि आप अपना कोष भरा रखिए आशीर्वादों का भी और डाँट फटकार का भी . जहाँ जो उचित लगे दे दें .
जवाब देंहटाएंhimanshu kripya us chitra par click kar ke use poora kholen nirash nahee honge
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