अब चूंकि अखबार पुराने जमाने के हो चुके हैं अत: नया नारा हो सकता है- नेकी कर ब्लाग में डाल। संतजन नेकी की जगह शायद पब्लिसिटी का आग्रह करें- पब्लिसिटी कर ब्लाग में डाल
बहरहाल लब्बोलुआब यह कि आज की चर्चा शिवकुमार मिश्र करने वाले हैं। हम उनकी पब्लिसिटी करने के लिये यह पोस्ट लिख रहे हैं।
हुआ यह कि पिछले शनिवार को हम ज्ञानजी के घर बैठे थे। वहां बात की बात में रीता भाभी ने कहा कि हमारे लिखे एकलाइना उनको पसन्द आते हैं। हमने शर्माते हुये तारीफ़ ग्रहण की इसके बाद एक और चाय। उन्होंने यह भी कहा कि शिवकुमार मिश्र भी अच्छे एक लाइना लिख सकते हैं और चर्चा भी कर सकते हैं।
ऊपर-ऊपर से हमने भी शिवबाबू की तारीफ़ करी लेकिन अन्दर से हम कुढ़ गये। लेकिन दिखावे और स्मार्टनेस में हमने उनके घर में बैठे-बैठे अपने मोबाइल के सात रुपये सत्तर पैसे फ़ूंक-ताप के शिवबाबू को चर्चा करने का अनुरोध ठेल दिया। हमें पता नहीं था कि तरुण बाबू अपना निठल्लापन दिखा चुके हैं।
बहरहाल शिवबाबू ने चर्चा करी और करके जब पोस्ट करने तो चर्चा लटक गयी। उसको जरूर कोई बात बुरी लगी होगी। शायद यह कि एकब्लागव्रता लेखकों द्वारा लिखी जाने वाली चर्चा अब साझे का ब्लाग लिखने वाला करेगा जिसका नाम दुर्योधन से जुड़ा है। आखिर चर्चा की भी कोई इज्जत होती है। उसको भी बुरा मानने का अधिकार है!
बहरहाल हमने जब बाद में देखा तो पता चला कि शिवकुमार जी ने बहुत शानदार च जानदार चर्चा करी थी। एकलाइना तो बहुत अच्छे बन पड़े हैं। वे बन के पड़े हैं (कविता अच्छी बन पड़ी है की तर्ज पर)। पड़े-पड़े सड़ न जायें इसलिये आपको पढ़ा रहे हैं। देखिये।
दिल जब चाँद बने: तो फेफड़ा चांदनी बन जाए।
हम हूँ भोजपुरी के भैया: साथ में है हमरी गईया।
शुक्र है मुझे भी धमकी भरा ई-मेल मिल ही गया: हम तो पहले ही कह रहे थे, सब्र का फल मीठा होता है।
आतंकवाद का क्या धर्म है। : वही, जो धर्म का आतंकवाद है।
बेकरार हैं, उदास है बिन तुम्हारे: थोड़ा इंतजार करो, जल्द ही पहुंचेंगे तुम्हारे दुआरे।
नौकरी के लिए गर्मजोशी से हाथ भी मिलाईये: नौकरी मिलने पर पाँव मिलाते रहेंगे।
हमारे ब्लॉगर भैय्या चुनाव से पहले चित हो गए: चुनाव के बाद पट हो जायेंगे।
तो अब शिवबाबू चर्चा करेंगे। जायेंगे कहां?
अब जब शुरू ही हुये हैं तो एकाध गुफ़्तगू हम भी कर लें।
अगर आपका कहानी पढ़ने में जरा सा भी मन लगता है तो आप युवा कथाकार अरुण कुमार ’असफ़ल’ चर्चित कहानी पांच का सिक्का
अवश्य पढ़ें। आज के समय कुछ सबसे चर्चित कहानियों में यह कहानी है।
बाकी की कहानी आप शिवकुमार जी से सुनियेगा। हमसे एक कहानी सुन लीजिये।
दूल्हा वो बैठा है लेकिन पायजामा मेरा है
एक गांव से बारात दूसरे गांव गयी। पता चला कि दूल्हे के नये कपड़े खो गये। बड़े-बुजुर्गों ने उसके हम उम्र एक लड़के से गांव/बारात की इज्जत का हवाला देकर उसके नये कपड़े दूल्हे को दिला दिये।
बारात जब गांव पहुंची तो स्वाभाविक तौर पर लोगों ने पूछा -दूल्हा किधर है?
जिसके नये कपड़े छिन गये थे उस लड़के ने कहा- दूल्हा वह बैठा लेकिन जो पायजामा वो पहने है वह मेरा है।
गांव वाले हंसने लगे कि दूल्हा उधार के कपड़े पहने है।
बुजुर्गों ने ऊटपटांग बयान देने के लिये उसको डांटा। वह चुप हो गया।
कुछ देर बाद जब फ़िर गांव वालों ने पूछा कि दूल्हा कहां है तो वह बोला- दूल्हा वह बैठा है और जो पायजामा वह पहने है वह भी उसी का है।
लोग फ़िर हंसे। समझ गये। वह फ़िर डांटा गया कि पायजामे की कहानी कहने की क्या जरूरत है?
कुछ देर बाद फ़िर पूछा-पुछौव्वल हुई तो वह बोला- दूल्हा तो वह बैठा है लेकिन जो पायजामा वह पहने है उसके बारे में हम कुछ न कहेंगे।
तो भैया ब्लाग ब्लागजगत में है लेकिन हम जो कहना चाहते हैं उसके बारे में कुछ न कहेंगे।
और अंत में
ब्लागजगत में उत्साह बढ़ाने वाले साथी हैं। इसको सच माना जाये और सच के सिवा कुछ न माना जाये कि मुझे हिंदी ब्लाग जगत का माहौल कभी ऐसा नहीं दिखा कि ऊबन/थकन/सड़न/खिझन हो। अपने पाठकों से मुझे हमेशा बहुत अच्छी टिप्पणियां मिलीं। जो कभी नाराजगी रही भी तो ’गलतफ़ैमिली’ के कारण ज्यादा रही।’गलतफ़ैमिली’ की समर्थन वापस लेते ही नाराजगी की सरकार मुंहभरा गिर गयी।
कल की चर्चा 356 लोगों ने देखी। कुल 14+4=18 टिप्पणियां की गयीं। परसों 351 लोगों ने चर्चा देखी और 25 टिप्पणियां हुईं। कल रात विवेक सिंह की चर्चा आन डिमाण्ड देर से की गयी इसलिये कम लोगों ने इसे देखा शायद! नियमित समय पर चर्चा करने से ज्यादा लोग चर्चा देखते हैं।
कल की चर्चा पर जो टिप्पणियां आईं उनके जबाब वहीं दे रहे हैं देख लें। सभी की प्रतिक्रियां का आभार! अब चले आप करें शिवकुमार मिश्र का इंतजार!
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कौन हो तुम ,बताते क्यों नहीं?
आज की चर्चा का सीधा प्रसारण चिट्ठा चौक से..
लीजिये पहली टिप्पणी का सुख हम ही भोग लेते हैं, गजब की कहानी है पायजामे वाली, शिव कुमार की लाईना भी गजब की हैं।
जवाब देंहटाएंयह पायजामा तो अनूप शुक्ला का ही हो सकता है ! आप नही सुधरोगे !
जवाब देंहटाएं"कुछ देर बाद फ़िर पूछा-पुछौव्वल हुई तो वह बोला- दूल्हा तो वह बैठा है लेकिन जो पायजामा वह पहने है उसके बारे में हम कुछ न कहेंगे।"
जवाब देंहटाएंवाह वाह शुकल जी ! इस पायजामा कथा ने आनंद द्विगुणित कर दिया ! :)
यानी की बस मजा आगया ! धन्यवाद !
सही है गुरु.. क्या कहानी सुनाये और क्या पब्लिसिटी दिए हैं.. :)
जवाब देंहटाएंपजामे से पब्लिसिटी!:)
जवाब देंहटाएंkya kamaal karte hai aap...bahut achcha
जवाब देंहटाएं" ha ha ha ha ha ha ha publicity ke liye or kuch nahee mila kya..... ha ha great to read again"
जवाब देंहटाएंregards
चर्चा में पैजामा! क्या बात है मामा!!
जवाब देंहटाएंशिवबाबू की चर्चा का इन्तजार रहेगा। मैं भी बहुत पहले यह सुझाना चाहता था। वहाँ उन का दुर्योधन भी मौजूद रहे तो चर्चा भी होगी और रचना भी।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा बढ़िया कहानी
जवाब देंहटाएंपब्लिसिटि यानी प्रचार, क्या ख़ूब भैंस को डंडा मारा है!
जवाब देंहटाएंहमने तो काफी पहले यहीं अनुरोध किया था कि शिवकुमार जी को आमंत्रित कीजिये चर्चा के लिए. तब आपने नहीं सुनी, देखिये कितना नुक्सान हुआ अब तक. खैर कोई बात नहीं, आगे भरपाई हो जायेगी.
जवाब देंहटाएंपर ये "एकब्लागव्रता" लेखकों वाली बात समझ में नहीं आई. यहाँ के तो सभी चर्चाकार एक से अधिक चिट्ठों में फैले नजर आते हैं. तरुण, कुश, मसिजीवी, सुजाता और तो और उड़न तश्तरी भी अब एप्रिन पहन कर दाल रोटी चावल के रसोईघर में घुस चुके हैं. स्वयं फुरसतिया भी दो चिट्ठे वाले हैं. फ़िर शिव बाबू पर ही ऐसी वक्रदृष्टि क्यों?
घोस्ट बसटर है जहा तंदुरुस्ती है वहा...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठीक बात कही जी आपने... बाकी बिना पब्लिसिटी बढ़िया रही मिश्रा बाबू की...
ऐसी चर्चाएं थकन दूर करती हैं और ताजगी देती हैं ।
जवाब देंहटाएंकई दिन बाद चिट्ठाचर्चा अपनी पुरानी रंगत में लौटी दीखी। बधाई।
जवाब देंहटाएंइतनी धाँसू पब्लिसिटी करियेगा तो इंतज़ार करना ही पड़ेगा. पायजामे के बारे में हम कुछ नहीं कहेंगे !
जवाब देंहटाएंभइये प्राइम टाइम के विज्ञापन के चार्ज अलग से लगेंगे !
जवाब देंहटाएंवाह चर्चा वाह
जवाब देंहटाएंसही पब्लिसिटि वाली पोस्ट रही...साधुवाद. :)
जवाब देंहटाएंअरुण कुमार ’असफ़ल’ की कहानी पांच का सिक्का, आपके दिये लिंक के कारण ही पढ सका नहीं तो पता ही नहीं चलता कि इतनी अच्छी कहानी भी कहीं यहीं पर है.....बेहतरीन कहानी है पांच का सिक्का।
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