गत दिनों Ghost Buster ने प्रश्नवाचक मुद्रा में व्यंग्य किया कि
तो क्या ब्लॉग जगत में कवितायें भी लिखी जा रही हैं???? कहाँ???? (मतलब राकेश खंडेलवाल जी के अलावा.)
तो सोचा कि आज कविता की चर्चा अधिक की जाए और आप सभी को अपनी पसन्द की नेट पर रखी कुछ कविताएँ सुनाने का आनंद लिया जाए । अपने मुक्तक से ही बात शुरु करती हूँ (आखिर स्वार्थीपने पर आ गई ना!)
यहीं सब मिल - बिछुड़ना, रूठ- मनना छोड़ जायेंगे
तुम्हारी दर दीवारें , चाँद - सूरज छोड़ जायेंगे
सभी आकाश के तारे बनें , संभव नहीं होता
स्वयं अंगार ले अपने धरा में गोड़ जायेंगे
इसी क्रम में नेट पर आप पढ़ सकते हैं
तेवरी काव्यान्दोलन के प्रणेता की तेवरियाँ
और कविताएँ
जीवन
बहुत-बहुत छोटा है,
लम्बी है तकरार!
और न खींचो रार!!
यूँ भी हम तुम
मिले देर से
जन्मों के फेरे में,
मिलकर भी अनछुए रह गए
देहों के घेरे में. जग के घेरे ही क्या कम थे
अपने भी घेरे
रच डाले,
लोकलाज के पट क्या कम थे
डाल दिए
शंका के ताले?
आगे और भी प्रस्तुत करूँगी, तब तक आप बाँचें -
एक महत्वपूर्ण सच का खुलासा
"एटीएस ने नासिक कोर्ट में शनिवार को दावा किया कि समझौता एक्सप्रेस में धमाके के लिए इस्तेमाल किया गया आरडीएक्स लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने मुहैया कराया था। 19 फरवरी 2007 को हुए समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में 68 लोग मारे गए थे।आतंक की गहरी साजिश का पर्दाफाश करने के लिए IBN7 ने इस खबर की पूरी तहकीकात की। तहकीकात में ये पता चला कि समझौता एक्सप्रेस धमाकों में आरडीएक्स का इस्तेमाल ही नहीं किया गया था। यानी एटीएस सरासर झूठ बोल रही है।
Dumb Little Man : Tips for life
ने what women should know about...
में लिखा है कि
As more and more research reveals the differences in the male and female brains, it becomes easier for each gender to better understand the other and to allow the differences to unite rather than separate us.
अठारह वर्ष की एक फ़्रेंच कन्या की जोखिम भरी रोमांचकारी सचित्र कथा पढ़ना मानो किसी पुराने भारतीय चरित्र को याद करना था। आप भी अवलोकन करें
ज्ञानदत्त जी ने आमन्त्रण पर दुनिया के मेले दिखाने का सब्जबाग दिखाते दिखाते कुछ उपमा-सी रच डाली है-
इम्प्रेसिव! पर अफसोस, मैं और मेरा कम्प्यूटर मिल कर इतने इमैजिनेटिव और पावरफुल नहीं हैं! यद्यपि किसी जमाने में हम भी टेलीकम्यूनिकेशन इन्जीनियर हुआ करते थे! और धीमेपन में तो हमारी तुलना इल्ली (स्नेल) से करें!
रवि जी ने १९ कहानियाँ सुनवाईं, प्रयोग बढ़िया रहा
एक यात्रा यह खूब रही
अनीता जी ने चन्द्रयान जाने से पहले ही जो सैर कराई , तब से चुप हैं, हमें कल चन्द्रमा से आए चित्र देख कर उनकी खूब याद आई कि वे भी कुछ पोस्ट करने वाली होंगी।
मणिपुरी कविता का इतिहास गम्भीर पाठक के लिए शोध की सामग्री है।
औरतें और उनका चीखना ? चुड़ैल बनकर हाहाकार करती औरतें हाँका लगाती हैं
सुनो, सुनो,अवधूतो! सुनो,कबीर ने आज फिर
साधुओं ! सुनो,
एक अचंभा देखा है
आज फिर पानी में आग लगी है
आज फिर चींटी पहाड़ चढ़ रही है
नौ मन काजर लाय,
हाथी मार बगल में देन्हें
ऊँट लिए लटकाय!
नहीं समझे?
अरे, देखते नहीं अकल के अंधो!
औरतों की वकालत के लिए
मर्द निकले हैं,
कुरते-पाजामे-धोती-टोपी वाले मर्द!
वे उन्हें उनके हक़
दिलवाकर ही रहेंगे .
बालदिवस की चिट्ठाचर्चा में इन बच्चों की भी बात सम्मिलित हो जाती, अरमान रह गया।
एक ओर सतीश जी के कविया जाने पर अपनी नाकाम साजिशों की तकलीफ़ झेलते ताऊ रामपुरिया (मैंने तो आज तक रामपुरिया चाकू ही सुना था) ने दाद देते हुए फ़रमाया -
बड़ा गूढ़ प्रश्न है आपका ! हमारे ऋषियों ने उपनिषदों में इसी तत्व का जवाब देने की कोशीश की है ! पर तत्व को भाषा से समझाया नही जा सकता ! महसूस किया जा सकता है ! प्रश्न आपने उठाया है तो जवाब भी आपको ही मिलेगा !
संयोजक व आयोजक की व्यावहारिक समस्याओं से परिचित होने के लिए अवश्य पढ़ें और भविष्य में सावधान रहें।
लोकाचारों व विवाहसम्बन्ध के तौर तरीकों की रोचक संस्मरणिका देख कर आनन्द आ गया।
किसी का सपना पूरा होने जा रहा था कि विवेक को दु:स्वप्न ने घेर लिया
और कमाल तो तब हो गया जब विवेक के इस दुस्वप्न के जिन्न का पता शराब की बोतल में बन्द जिन्न की रिश्तेदारी का निकला जिसे अपने ओझा जी भगाने में लगे कुछ हिं क्लिं की तरह बुदबुदा रहे थे। यही कष्ट यहाँ भी परेशान करता पाया गया ।
उधर शास्त्री जी ने अपने ब्लोगियों के वर्गीकरण से हमें असमंजस में डाल दिया है, तब से परेशान हूँ। कोई तो मेरा खेमा बताओ।
उपहार का नोटिस न लिए जाने से खिन्न होकर अपनी गलती का जिक्र करके जितेन्द्र ने अपना मन हल्का किया
पर कुन्नू सिंह दूसरों की गलतियाँ बता रहे हैं
कुश ढोल बजाने में व्यस्त पाए गए, आशा की जानी चाहिए कि चर्चा तक मौज पूरी कर लेंगे।
तरुण इतने व्यस्त दिखाई दिए कि ५ दिन से ब्लॊग-बुलाहट को नज़र अंदाज़ किए हुए हैं
ऐसा ही कुछ नजारा बालेन्दु जी के यहाँ पाया गया
अब पोस्ट की तिथि यदि टेम्प्लेट में न हो तो पोस्ट का पूरा अता-पता नहीं चलता, पर दूल्हा-दुल्हन की उम्र के मामले में ऐसा नहीं चल सकता कि संख्या का पता ही न लगे।
अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने की याद करते हुए आज ध्यान रखें कि कमर की पैमाईश कितनी है आपकी
माँ का दूध को प्राण शर्मा जी की कलम से पढ़ें
दिल्ली की दौड़ और जीवन में मची दौड़ की बानगी आज आलोक पुराणिक लेकर आए हैं
उधर मानसी जी ने अपनी छुट्टी का सदुपयोग बच्चों के लिए किया
इसे बूझने के लिए सूझ बूझ का खेला चालू है
एक बहस - मुबाहिसे की चर्चा और समलैंगिकता पर चिन्ता
एक चिन्ता यहाँ भी .....चिंताएं.....
भारत के स्विट्ज़रलैंड कौसानी ( पन्त जी की जन्मभूमि) को जिसने नही देखा हो वह यात्रा का कार्यक्रम बनाए
और यहाँ तीन दिवसीय उत्सव वाला कौसानी फ़िर से देखे
इस बीच हमारे मध्य एक श्रेष्ठ कद्दावर रचनाकार कवि नहीं रहे, ऐसे कवि जिनके काव्य ने न जाने कितने प्रतिमान रचे व कितनों को कलम पकड़नी सिखाई व उस कलम में आग भरनी भी। उनका अवसान एक परम्परा का अवसान है। (ऐसे कवि की कविताओं के नेट पर उपलब्ध रहते हुए कविताओं के किसी पाठक को कविताएँ न मिलना..... हैरान करता है, परेशान भी )। ऐसे अमर रचनाकार पर अत्यन्त श्रमसाध्य सामग्री का संकलन देखना हो तो कन्हैयालाल सेठिया जी पर विशेषांक को अवश्य पढ़ें। उनकी एक प्रसिद्ध रचना के अंश देखें-
धरती धोरां री !
आ तो सुरगां नै सरमावै,
ईं पर देव रमण नै आवै,
ईं रो जस नर नारी गावै,
धरती धोरां री !
सूरज कण कण नै चमकावै,
चन्दो इमरत रस बरसावै,
तारा निछरावल कर ज्यावै,
धरती धोरां री !
काळा बादलिया घहरावै,
बिरखा घूघरिया घमकावै,
बिजली डरती ओला खावै,
धरती धोरां री !
सेठिया जी को हमारा प्रणाम!
अब से चर्चा का मेरा दिन सोमवार ही नियत रहेगा। तो अगले सप्ताह आप सभी से पुन: भेंट होगी। अपनी प्रतिक्रियाओं से थोड़ा हमें भी खुश होने का अवसर दें। वरना जाने कैसा-कैसा लगता है।
सभी को अग्रिम आभार सहित ... विदा।
और हाँ, एक लाईना के लिए शाम की प्रतीक्षा करें।
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कविता हर कहीं है। जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि।
जवाब देंहटाएं"उधर शास्त्री जी ने अपने ब्लोगियों के वर्गीकरण से हमें असमंजस में डाल दिया है, तब से परेशान हूँ। कोई तो मेरा खेमा बताओ।"
जवाब देंहटाएंडॉ. वाचक्नवी,
"परिवार" को एक सूत्र में बाधने के लिये "चिट्ठाचर्चा" एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है. उसकी एक चर्चाकार के रूप में आप परिवार की नाईकाओं में से एक हुईं!!
अब समझ में आ गया होगा कि परिवार में आप कितने महत्व का रोल अदा कर रही हैं!!!
सस्नेह -- शास्त्री
कविता की तो महिमा अनन्त है . पर कवि की महिमा भी कुछ कम नहीं . द्विवेदी जी सही फरमाते हैं कि जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि यानी जितने अँधेरे स्थान हैं वहाँ कवि के मिलने की संभावना ज्यादा रहती है . जैसे कि ..... बताने में क्या आप सभी जानते ही हैं . पर एक समस्या है इसमें मान लो रवि ही कवि हो तो उसका तो कलेश ही खतम कर दिया आपने यानी द्विवेदी जी ने . चर्चा शब्द शब्द जोड के ऐसी सजाई गई है कहीं बीच में से कुछ निकाल लें तो पूरा महल भरभरा जाय . बेहतरीन रही . एक लाइना का इंतजार रहेगा . साथ में थोडी टिप्पणी चर्चा भी लेती आइएगा प्लीज ! पर शाम का मतलब रात नहीं होता . रात को हमें ड्यूटी जाना है आज .
जवाब देंहटाएंशाष्त्री जी आजकल चिट्ठा चर्चाकारों का उत्साह बढाने में लगे हैं . इससे सुरक्षा की भावना घर कर रही है .
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन चर्चा रही आज की ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंये अब तक की बेहतरीन चर्चाओ में से रही.. बहुत शानदार.. आपकी मेहनत वाकई रंग लाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रही चर्चा. कविताओं की चर्चा ने एक नया ही रूप दे दिया. इतनी व्यापक चर्चा के बाद जाहिर है कि एक लाईना के लिए शाम को ही समय मिलता.
जवाब देंहटाएंआप के द्बारा की गयी अगली चर्चा का इंतजार रहेगा.
बहुत अच्छी चर्चा... शाम को फिर आता हूँ.
जवाब देंहटाएंजहाँ कविताजी हों, वहाँ कविता भला पीछे कैसे रहेगी! बढ़िया कविताओं से रू-ब-रू कराने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंचाकू रामपुरिया हो ताउ रामपुरिया - मकसद तो काटना ही है ना?
दिल्ली की दौड़ कोई मुल्ला की दौड़ थोडे़ ही है - यह तो आलोकजी की है तो मज़ेदार रहेगी ही।
शस्त्रीजी से डरना क्या, कविताजी- हमारे खेमें में आ जाइये- न रहे ब्लाग न बजे ब्लागरी!!!!
कविता अपनी जगह आप बना लेती है ....हिन्दी ब्लोगिंग में भी कम से कम दस चिट्ठे ऐसे है जो अर्थवान कविता ,नज़्म लिखते है ...ऑरकुट कम्युनिटी में गुलज़ार के नाम पर ढेरो कम्युनिटी है ओर युवाओं में खासी लोकप्रिय है ...ओर हजारो की संख्या में लोग पढ़ते है ...ये साबित करता है की कविता का अपना एक खास स्थान है....विधा कोई भी हो...अच्छा लिखा सब पढेगे ....मेरा ऐसा मानना है
जवाब देंहटाएं@ cmpershad कहते हैं:
जवाब देंहटाएं"शस्त्रीजी से डरना क्या, कविताजी- हमारे खेमें में आ जाइये- न रहे ब्लाग न बजे ब्लागरी!!!!"
खबरदार ! किसी को "परिवार" से निकाल कर अन्य खेमों में ले जाने की कोशिश का जीजान से विरोध होगा!!
सस्नेह -- शास्त्री
मैं तो इस पोस्ट में फैली आपकी मेहनत और क्रियेटिविटी का मुरीद हो गया हूं। बहुत बधाई इस उत्तम चर्चा के लिये।
जवाब देंहटाएंकविता जी कि कवितामय चर्चा मुझे तो स्वयं ही कवितामय प्रतीत हो रही है,
जवाब देंहटाएंतारीफ़ के पुल बाँधने की एक दर्ज़न मशक्कत तो हो ही चुकी है,
और मैं तो पुराना मुरीद हूँ, सो मेरे शब्द फ़ीके लगेंगे !
वैसे सप्ताह में एक बार अच्छी कविताओं की चर्चा होनी चाहिये !
बहुत सुंदर चर्चा, कविता जी !चिटठा चर्चा की चर्चा बढ़ रही है ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा। अपने तो बहुत सारे दिनों के चिट्ठे शामिल किये। बहुत मेहनत से चर्चा बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंअन्य भाषाओं के चिट्ठों से जानकारी मिलना भी एक बेह्तरीन सूचना है। सेठियाजी को हमारा नमन!