भाषा जिसमें सिर्फ कूल्हे मटकाने और स्त्रियों को
अपनी छाती हिलाने की छूट है
जिसमें दंडनीय है विज्ञान और अर्थशास्त्र और शासन से संबंधित विमर्श
प्रतिबंधित है जिसमें ज्ञान और सूचना की प्रणालियाँ
वर्जित है विचार
उदय जी के दिमाग में एक कल्पित तानाशाह है और है एक कल्पित विद्रोही। उस के अन्तरविरोध की तनी हुई रस्सी पर ही उदय जी अपनी सीली हुई कविता की भाषा सुखा रहे हैं। मेरा कहना है कि भई रस्सी है कि नहीं है.. है तो किस हाल में है.. ज़रा बीच-बीच में जाँच लिया जाय। कम से कम इस तरह की पंक्ति लिखने के पहले तो ज़रूर ही..
एक पाठक की नजर से अपने प्रिय कवि-कथाकार की कविता पर अपने विचार व्यक्त करते हुये अभय ने एक अच्छी शुरुआत की है।
अपना मत व्यक्त करते हुये वे लिखते हैं:
कविता, कहानी, तमाम कला और कलाकारों को तय करने का मेरा पैमाना उसकी सच्चाई ही रहा है.. बहुत साथियों को उदय जी की कविता सच का आईना लग सकती है मुझे वह अपनी तमाम भाषाई चमचमाहटों के बावजूद अतिश्योक्ति, और थके हुए-घिसे हुए शिल्प का एक प्रपंच लगती है।उनके लेख पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये बोधिसत्व ने लिखा:
भाई अभय जी
उदय प्रकाश जी की यह कविता उनकी बड़ी कविताओं में से नहीं है। और हर कवि की हर कविता अच्छी हो यह कैसे हो सकता है। यह समस्या हिंदी के अधिकतर कवियों के साथ रही है ...तीन अच्छी कविता के बाद लगातार सामान्य कथनों वाली कविता लिख कर साहित्य में बने रहना।
रमानाथ अवस्थी जी ने एक गीत लिखा है:
मेरी कविता के अर्थ अनेकों हैं
तुमसे जो लग जाये लगा लेना।
अभय के लेख को लोग अपने-अपने नजरिये से देख सकते हैं। मेरी समझ में यह एक अच्छी शुरुआत है। लोग ब्लाग-जगत में लिखी जाने वाली कविताओं की पड़ताल शुरू करें शायद!
एक आम आदमी की नजर में वह दिन राष्ट्रीय शर्म का दिन होता है जब एक महिला अपनी पुत्री के यौन शोषण की शिकायत अपने परिवार के शोषण के डर से वापस लेना चाहती है:
एक छोटी सी लड़की का यौन शोषण, उसके बाद उसकी पैरवी करने वाली उसकी माँ के लिए पैदा की जा रही दिक्कतें हमारे सभ्य समाज के मुहं पर तमाचा हैं। सनद रहे कि ऐसे ही लोग जब वोट मांगने आते हैं तो समाज को उसकी गरिमा, उसकी सुरक्षा का आश्वासन देते हैं और मौका पाते ही क़ानून की धज्जियाँ उडाने से नहीं चूकते। कम से कम अब उनकी पार्टी को तो शर्म आनी ही चाहिए, ये भेड़ की खाल में छुपे हुए वे भेड़िये हैं जो मौका मिलते ही किसी को भी नहीं बख्शेंगे।
रंजना भाटिया बताती हैं कि हिंदी का पहला उपन्यास देवरानी जेठानी की कहानी पर था।
अगर आप सात घंटे से कम सोते हैं तो आपके लिये घातक हो सकता है।
हिंदी में अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग की बढ़ती सहज प्रवृत्ति पर लिखते हुये योगेन्द्र कहते हैं:
पढ़े-लिखे लोग अंग्रेजी शब्दों के प्रति उदार रवैया बरतते हुए हिन्दी में उन्हें खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं । सवाल उठता है हि उनकी यह उदारता हिन्दी शब्दों के प्रति क्यों नहीं है ? क्यों नहीं वे अंग्रेजी में भी हिन्दी के शब्द यदा-कदा प्रयोग में ले लेते हैं ? लेकिन नहीं, वे कुछ देर सोचने भले लगें, पर हिंदी का एक भी लफ्ज वे भूले से नहीं बोलेंगे । वाह रे एक-तरफा उदारता !
हम मानते हैं कि हनुमानजी ने लंका जलाई थी। लेकिन मग्गा बाबा असली बात बताते हैं कि लंका किसने जलाई। इसके पहले बाबाजी अकल की बात करना भी नहीं भूलते।
संसद में क्या हो रहा है यह देखें दीपक की नजर से:
थोडी सी मिलावट,जनता थोडी रुष्ट है ।
थोडा कुछ ढीला और बाकी सब कुछ चुस्त है
थोडी सी महंगाई है थोडी मंदी है
थोडी सी नंगई है थोडी सी तंगी है
थोडी सी लाचारी और थॊडी बेरोजगारी है
थोडा क्षेत्रवाद थोडी सी अय्यारी है
बाकि सब ठीक है सिस्टम थोडा सुस्त है
नेताई तपेदीक ग्रस्त भारत फ़िर भी दुरुस्त है ॥
बच्चों की डायबिटीज से संबंधित जानकारी दे रहे हैं डाक्टर प्रवीन चोपड़ा।
डाक्टर शैलेश जैदी लिखते हैं:
कुछ भी हो अच्छा-बुरा, दुःख-सुख, मैं उसके साथ हूँ,
कह चुका हूँ मैं कि वह मेरा है, यह कुछ कम नहीं.
अभिषेक आनंद एक अश्लील साइट सविता भाभी के बारे में जानकारी देते हुयेलिखते हैं:
भारतीय सभ्यता और संस्कृति का मजाक उडाते इस काल्पनिक पात्र की परिकल्पना किसी देखमुख के दिमाग की उपज बताई जाती है। यह कार्टून स्ट्रिप की तरह है। इसकी मुख्य पात्र सविता भाभी है। सविता भाभी एक भारतीय शादीशुदा महिला है जो की किसी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए आतुर रहती है। हिन्दी व अंग्रेजी के अलावा मराठी, तमिल, मलयालम, तेलुगू, गुजराती भाषा में ये स्ट्रिप्स उपलब्ध हैं। यह वेबसाइट भारतीय महिलाओं के लिए असम्मानजनक है और हमारे पारिवारिक मूल्यों व संस्कारों को चकनाचूर कर रही है। भारतीय युवाओ को लक्ष्य कर के बनाई गई यह साईट निश्चित रूप से अत्यन्त खतरनाक है क्योंकि एक तो यह आम भारतीय भाषा मे है व दूसरा पूर्णतः निशुल्क है।
ताऊ की भैंस का यमराज के भैंसे कुछ-कुछ हो गया। पूरे समाचार आप यहां देख सकते हैं। नमूना देख लीजिये:
भैंसा : आप का नाम क्या है ? आपका परिचय देने की कृपा करे ! हे महिषनि जी मैं अब आपके बिना जिंदा बिना जिंदा नही रह पाउँगा !
भैंस : हे महिष राज ! कहाँ मैं और कहाँ आप ? आप साक्षात महिषासुर अवतार हैं और मैं एक सीधी साधी पृथवी लोक में एक ताऊ के घर रहने वाली गाँव की भैंस हूँ ! आपकी मेरी क्या बराबरी ?
गौरव सोलंकी को पढ़ना अपने आप में अनूठा अनुभव देता है। वे कहते हैं:
जैसे ड्राइव करते करते लोग बन जाते हैं कार,
तुम जमकर बन गई हो वनीला आईसक्रीम,
नींद, बेरुखी, फूल
या जैसे उदास सा बिहार।
समीर सृजन सौरभ की बिदाई पर चिट्ठी लिखते हैं।
राधिका वुधकर का कहना है- संसार के सबसे बड़े मायावी..मित्र ..और शत्रु...
विमल वर्माजी ठुमरी में पंडित छन्नू लाल मिश्र के बारे में बताते हैं और उनको सुनवाते भी हैं।
नीरज त्रिपाठी जब पति और कुत्ते के बारे में लिखेंगे तो क्या लिखेंगे यही न कि:
शर्मा जी का पति वाला रिश्ता कुत्ते पर भारी पड़ा और वो भार उठाने में नीलू जी असमर्थ थीं, नीलू जी ने जोजो को अपने पास रखने का फैसला किया।
शर्मा जी आजकल एक किराए के मकान में रहते हैं।
मनोज प्रताप सिंह कहते हैं-हाई रे औडी तेरे क्या कहने....
गंगा नदी के राष्ट्रीय हो जाने को अपनी नजर से देखते हुये आलोक पुराणिक निकम्मों की बात करते हैं मौलिक बात कहते हैं:
सिर्फ इतना होगा कि गंगा की जिस गंदगी के लिए हम लोकल निकम्मेपन को जिम्मेदार ठहराते हैं, अब उसके लिए राष्ट्रीय निकम्मों को जिम्मेदार मानेंगे। निकम्मेपन के लेवल का प्रमोशन हो जायेगा-समझे कि नहीं-मैंने छात्र को फाइनली समझा दिया है।
एक समाचार
भारतीय जीवनमूल्यों के लिए समर्पित साहित्यिक,सामाजिक,सांस्कृतिक संस्था "विश्वम्भरा" का वार्षिकोत्सव 12 नव. 2008 बुधवार को सायं (ठीक 5 बजे) गगन विहार, नामपल्ली स्थित आ.प्र. हिन्दी अकादमी के सभाकक्ष में संपन्न होगा।
कार्यक्रम की सफ़लता के लिये शुभकामनायें।
एक लाइना
- कौन हो तुम ? : बताते क्यों नहीं? मैं तुमको वन्दन करता हूं।
- जब भीष्म साहनीजी ने मुझे झाड़ पर चढ़ाया : तबसे अब तक चढ़े हैं कोई उतारता ही नहीं!
- ताऊ की भैंस से यमराज के भैंसे का इश्क परवान चढ़ा !:और कहानी आगे बढ़ी
- “नहारी” …यूँ अचानक ही!: हनुमान जी के बहाने
- देशद्रोही फिल्म-बात है कि हजम नहीं होती :हाजमोला लिया कि नहीं!
- पति या कुत्ता :चुनाव आप स्वयं करें
- शादी की थकान का दिन: अभी तक हावी है
- मंत्रियों को बुद्धजीवी दिखने का जुनून : कहीं सच में हो गये तो क्या होगा?
- ब्लाग में "टिप्पणी माडरेशन" तानाशाही का प्रतीक है:और ब्लाग जगत में तानाशाह बढ़ते जा रहे हैं।
- दिल्ली हॉट की गिटर-पिटर:सटर-पटर, पटर-पटर
- एक बार तुमसे प्रेम कहूंगा :कह कर तो देखो हिम्मत हो तो
- यह संसद है यहां शोर करना मना है :शोर में यहां की चिल्लपों दब जायेगी
- मैं क्या हूं? : बूझो तो जाने
- चन्दे का सांड :अब शहर में आयेंगे ,मुस्कुराएंगे ,गायों से तमीज से पेश आयेंगे
फ़िलहाल इतना ही। आपका दिन शुभ हो।
आप कुश की चर्चा आज की चर्चा का सीधा प्रसारण चिट्ठा चौक से.. का आनन्द भी लीजिये।
सही कहा, थकान अभी तक हावी है।
जवाब देंहटाएं" hmm good efforts sub ko ek sath rekhne ka.."
जवाब देंहटाएंRegards
मैं तो सीमा गुप्ता जी की टिप्पणी स्टाइल का भक्त हूँ . कुछ इसी स्टाइल की नकल आजकल ताऊ भी करने लगे हैं .योगेन्द्र जी भाषा चर्चा के परिप्रेक्ष्य में पूछा जाय तो हम तो उदारवादियों में हैं . अब चूँकि हम हिन्दी वाले हैं तो हिन्दी में ही अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा के शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं . क्योंकि हमारे विचार से भाषा सिर्फ़ संवाद का माध्यम है और सामने वाला जिस शब्द को समझ सकता है वह चाहे किसी भी भाषा का हो हमें कोई प्रोब्लम नहीं . वैसे पहले ऐसा होता रहा है कि हिन्दी में कितने ही अन्य भाषाओं के शब्द आगए . उन सब को निकाल दें तो हिन्दी शायद हम बोल ही न सकें . अब पानी को ही लेलें यह हिन्दी का शब्द नहीं है जी . अब ज्यादा बोलने की तो हमारी आदत है नहीं .
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा रही !
जवाब देंहटाएंआज तो काफ़ी सारी ब्लॉग समेट लिए है आप... बढ़िया रही जी चर्चा..
जवाब देंहटाएंएक्को फोटो न ठेली चर्चा में!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रही आज की चिट्ठा चर्चा ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएं@ विवेक जी , आपका आल्हा सुने काफी समय हो गया ! अब तो सुना ही डालो आपतो ! बेसब्री से इन्तजार है पाठको को !
बहुत ही उम्दा समेटा है विभिन्न चिट्ठों को...
जवाब देंहटाएंवाह! वाह! गिटर-पिटर से सटर-पटर या पटर-पटर...:)
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह अच्छी चर्चा !
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा चर्चा हमेशा की तरह और वन लाईना भी गजब ढहा रही हैं. :)
जवाब देंहटाएंलोग ब्लाग-जगत में लिखी जाने वाली कविताओं की पड़ताल शुरू करें शायद!
जवाब देंहटाएंतो क्या ब्लॉग जगत में कवितायें भी लिखी जा रही हैं???? कहाँ???? (मतलब राकेश खंडेलवाल जी के अलावा.)
अच्छी चर्चा रही।
जवाब देंहटाएंबता दिया जी हम अदने से ब्लागर है॥आधा दिमाग है कुछ भी ठोकते है !!हा हा हा
जवाब देंहटाएंशानदारश्च जानदारश्च चर्चा !!
द्विवेदीजी अब तो थकान उतर गयी होगी। अब थकान उतरने के बाद वाली पोस्ट लिखिये।
जवाब देंहटाएंसीमाजी, शुक्रिया।
विवेक सिंह, सीमाजी की टिप्पणी स्टाइल के भक्त हों। उनकी शायरी स्टाइल के भी भक्त बनिये और शायरी में हाथ आजमाइये।
नीलिमाजी, शुक्रिया।
कुश, हमने ब्लाग समेटे अब तुम शुक्रिया समेटो।
ज्ञानजी, फोटो न मिली तो करते। हम आपकी तरह बहादुर न हैं कि खराब फोटो ठेल दें।
ताऊजी, शुक्रिया। विवेक के आल्हा का इंतजार है।
विनय, शुक्रिया। इत्ते समेटे लेकिन फ़िर भी बहुत छूट गये।
सुनीताजी, शुक्रिया।
अभिषेक ओझा, हर बार की तरह तारीफ़ के लिये आभार!
जवाब देंहटाएंउड़न तश्तरी, हर बार की तरह आप आज फ़िर गोली दे गये। तारीफ़ के लिये शुक्रिया ले लें ढ़हने के पहले।
घोस्ट बस्टर, ब्लाग जगत में कवितायें लिखी जा रही हैं। देखिये कित्ती तो बनी पड़ी हैं। राकेश जी कवितायें भी लिखते हैं क्या? फ़िर गीत कौन सुनाता है?
जितेन्द्र भगत, शुक्रिया।
दीपक, शुक्रिया च आभार।