ब्लागिंग और पत्रकारिता से संबंधित एक लेख गाहे-बगाहे में विनीत कुमार ने लिखा था। उसी से जुड़ी चर्चा विजेन्द्र ने जनसत्ता में छपे अपने लेख में की। वे कहते हैं:
दरअसल पिछले सालभर में हुआ ये है कि पत्रकारों की एक पूरी रेवड़ खुद को हिन्दी ब्लॉगिंग की ओर हांक लाई है यानि अब ढेर से पत्रकार ब्लॉगर हैं इसलिए सवाल उठाया जा रहा है कि क्या इसका विपरीत न्याय भी लागू माना जाए। क्या ब्लॉगर खुद को पत्रकार मान सकते हैं, और ये भी कि क्या ब्लॉगिंग पत्रकारिता है? गाहे बगाहे के विनीत ने ये बहस शुरू की और इसमें कई ब्लॉगरों ने शिरकत की लेकिन मजे की बात है कि 'पत्रकार' इस बहस से दूर ही रहे। बंटी हुई निष्ठा का मन पलायन में ही मुदित रहा।
आलोक पुराणिक इतवार को अपने असली मूड में होते हैं। कल के लेख में उन्होंने हाल ही में जेट एयरवेज के कर्मचारियों के विरोध और उनकी नौकरी वापसी का किस्सा सुनाते हुये लिखा:
मीडिया में तमाम मामलों के अध्ययन से साफ होता है कि जो विरोध फोटोजेनिक होता है, वह मीडिया में फौरन स्थान पा जाता है। इंगलिश बोलती सुदर्शना एयरहोस्टेस, फोटोजनिक मामला बनता है। बार बार दिखाया जा सकता है, टीवी पर भी, अखबारों में भी। मामला और चलता, तो सीरिज भी चल सकती थी।
आलोक पुराणिक ने पत्रकारिता के फोटोजेनिक सिद्धांत की स्थापना करते हुये लिखा:
इसे पत्रकारिता का फोटोजेनिक सिद्धांत कहा जा सकता है। जिसका फोटो आकर्षक दिखेगा, उसका फोटो ज्यादा बिकेगा। जो ज्यादा बिकेगा, सो ज्यादा दिखेगा। जो ज्यादा दिखेगा, वह फिर ज्यादा बिकेगा।
आज के उनके एक्सचेंज आफ़र भी देख लीजिये।
डा.प्रवीन चोपड़ा सरल भाषा में डाक्टरी से जुड़ी जानकारी अपने ब्लाग पर पेश करते रहते हैं। उसका सपना है कि जो सेहत संबंधी पोस्टें वे लिखते हैं, इन की एक किताब बने और खूब बिके।
किताब कैसी हो यह भी सुनिये
मैं जिस पुस्तक की बात कर रहा हूं वह केवल पांच-दस रूपये में लोगों तक पहुंचनी चाहिये----सस्ते से रीसाइकल्ड पेपर पर छपनी चाहिये और यह बस-स्टैंडों पर, बसों के अंदर चुटकलों वाली किताबों के साथ ही बिकनी चाहिये----यह फुटपाथों पर भी मिलनी चाहिये----हां, हां, उन्हीं फुटपाथों पर जिन पर मस्तराम के नावल भी बिकते हों--- यह केवल इन जगहों पर ही बिकनी चाहिये क्योंकि अधिकांश लोग बुक-स्टाल से खरीदने से या किसी पुस्तक के बारे में पूछने से झिझकते हैं कि पता नहीं कितनी महंगी हो।
डा. प्रवीन पूछते हैं:
क्या कोई ऐसी संस्था है जो इस तरह के प्रकाशन में मदद कर सकती है, वैसे मैं अपने खर्च पर भी इसे छपवा कर इसे नो-प्राफिट-नो-लास पर उपलब्ध करवा सकता हूं , लेकिन मुझे इस का कुछ अनुभव नहीं है।
आप यह पोस्ट पढ़ें और उनको अपने सुझाव दें। पोस्ट में आपको अपनी भी तारीफ़ मिलेगी।
कहते है कि चीजें अपने को दोहराती हैं। आज हस्तलेख कम हो रहे हैं तो वे नये रूप में सामने आ रहे हैं। बायीं बगल का चित्र ज्ञानजी की पोस्ट से है। प्रमोद जी ने भी लिखाई और स्केचिंग में अपने हाथ आजमाये हैं। नमूना दांई बगल में देख लीजिये बाकी के लिये उनकी पोस्ट पर जाइये।
बावरे फ़कीरा ने सवाल पूछा कि अगर चर्चा ऐसी हो तो कैसी रहेगी विवेक सिंह ने लगता है टिप्पणी बूथ कब्जिया लिया और सब कमेंट खुद कर दिये। यही होगा फ़कीरा भाई ऐसी सुन्दर चर्चा का।
पंकज अवधिया का मानना है- लिख ले बेटा जो कुछ भी लिखना है! पर कोई पढ़ेगा तब ना? महेन्द्र मिश्र के ब्लागर भैया तो चुनाव के पहले चित्त हो गए!
मग्गाबाबा आपको धर्म-कर्म की वे बातें बताते रहते हैं जो कम प्रचलित हैं और जिनके बारे में लोग कम जानते हैं। इस बार उन्होंने बताया कि जब रामचन्द्र जी हनुमान से मिले तो उन्होंने हनुमान से कहा -तुम मुझे लक्ष्मण से दुगुने प्रिय हो। इस पर लक्ष्मण के क्या हाल हुये सुनें
उनको लगा की अभी भैया राम से पूछे की - यही इनाम दिया मेरी सेवा का ? उनका मन ये सहन नही कर पाया ! मन कह रहा था की अभी लौट चले वापस अयोद्धया को ! उनका अब क्या काम ? अब ये बन्दर महाराज मिल तो गए मुझसे सीधे दुगुने प्रिय ! यही ढूंढ़ लायेंगे सीता भाभी को ! मन हाहाकार करने लगा ! बस मन बगावत करने को तैयार था ! फ़िर सोचा - पहले ये बन्दर हनुमान चला जाए , फ़िर पूछता हूँ और उसके बाद अगला कदम उठाउंगा !लक्ष्मण मन ही मन पूरी तरह बगावत पर उतर आए !
आगे की कथा जानने के लिये आप मग्गाबाबा के आश्रम चलें।
मानसी अपने सखा का याद में डूबी लिखती हैं
कल की शाम बहुत भीगी थी। मेरे आँसुओं में तुम भी समा गये थे। ओ मेरे सखा, तुम्हारी उंगलियों की छुअन का अहसास मेरे चेहरे पर, मेरी आँसुओं को तुम्हारे कंधे की गोद...मेरे आसपास एक प्राचीर बन कर जकड़ लिया था तुमने मुझे, कोई ग़म तुम्हें छू नहीं पायेगा... मैं हूँ न...मेरी हर बात को कैसे समझ जाते हो तुम? मैं भी क्यों नहीं छुपा सकती तुमसे कुछ? मेरी ख़ुशी, मेरे ग़म...इस बार छुपाने की कोशिश की थी...सोचा देखूँ तो... पर नहीं छुपा सकी फिर...मेरी तेज़ लहरों को चट्टान बन कर झेल लिया तुमने...ओ मेरे सखा...
एक लाइना
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और अंत में
कल की पोस्ट में कविताजी ने रक्षंदा के परिवार वालों को मिली धमकियों और उसके चलते रक्षंदा का ब्लाग लेखन बंद होने का जिक्र किया। लवली कुमारी रक्षंदा के संपर्क में हैं। रक्षंदा का लिखना एक माह से बंद है। किसी ने उनके घर में फोन करके धमकी दी कि उसका ब्लाग लिखना बंद करा दो। अन्य लोगों के अलावा सतीश सक्सेनाजी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी
आज की व्यस्त जीवन शैली में, प्रगति पथ पर आगे बढ़तीं हजारों हिन्दुस्तानी लड़कियों के लिए, रख्शंदा के पत्र बहादुरी और हिम्मत का प्रतीक बनना शुरू ही हुए थे कि इस बच्ची के आगे रुकावटें आनी शुरू हो गयीं ! प्रतिभावान रख्शंदा के परिवार को क्या समस्या आयी है, यह जानने का प्रयत्न किया जाना चाहिए ! चूंकि लवली जी उनके संपर्क में हैं तो उन्हें ही प्रयत्न करने होंगे ! व्यक्तिगत तौर पर मैं इस लडकी को परिवार को साथ हूँ और किसी भी प्रकार की सहायता, को लिए तत्पर हूँ !
यह आवश्यक नही है कि यह धमकी कोई गंभीर धमकी ही हो, किसी साधारण और घटिया प्रवृत्ति का कोई ब्लागर भी हो सकता है , सो उसकी जांच कराई जा सकती है ! आशा है साथी ब्लागर लोग इस परिवार का साथ देंगें !
मैं सतीश जी की आवाज में अपनी आवाज मिलाता हूं। रक्षंदा और उनके परिवार को हर तरह से सहयोग करने को तैयार हूं। रक्षंदा को उनकी ही कही बात याद दिलाता हूं:
और फैलुंगी जो लौटाओगे आवाज़ मेरी ,
इतना गूंजुंगी की सदियों को सुनाई दूंगी
हमें रक्षंदा के लौटने का इंतजार है।
कल कविताजी की चर्चा के पहले कुश ने परसों चर्चा की। नये अंदाज में। शिवकुमार मिश्र जी ड्राफ़्ट मोड में शानदार चर्चा करके रह गये। आशा है अगले शनिवार वे जब चर्चा करेंगे तो उनका कम्प्यूटर हैंग न होगा।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचिट्ठाचर्चा अच्छी रही, काफ़ी विस्तृत। मेरे पोस्ट का ज़िक्र करने का भी शुक्रिया। सखा की याद नहीं अनूप, सखा (मेरे पति देव जी) के लिये ही लिखा है...:-)
जवाब देंहटाएंकैसे कर लेते हैं इतनी विस्तृत चर्चा? क्या स्पीड है आपके टाइपिंग की?
वैसे लिंक में भी गड़बड़ है शायद कुछ...
मानसी,लिंक की गड़बड़ी ठीक कर दी। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंarre waah...bahut khoobsurat chcarcha hui hai...
जवाब देंहटाएंबहुत जोरदार चर्चा रही ! रक्षंदा के बारे में जान कर मन बड़ा बैचेन हो गया है ! ये किसी घटिया मानसिकता वाले का काम है ! इस तरह नही होना चाहिए ! जो भी हम लोग कर सके वो अवश्य करना चाहिए ! मैं उनके साथ हूँ ! आप बताए की किस तरह इस समस्या का हल निकाला जा सकता है ? पहले भी एक बार शायद ऐसा ही कुछ हो चुका है ! बार बार ये हरकते इंसान का मनोबल तोड़ती हैं ! मैं इस सार्वजनिक मंच से यह कहना चाहूँगा की - रक्षंदा तुम चिंता मत करो और हम सब तुम्हारे साथ हैं !
जवाब देंहटाएंऔर फैलुंगी जो लौटाओगे आवाज़ मेरी ,
इतना गूंजुंगी की सदियों को सुनाई दूंगी
ईश्वर तुमको हिम्मत दे और फ़टाफ़ट लोटो और मेरे योग्य जो भी उसके लिए कृपया संपर्क करिए !
@ लवली जी , मैंने डा. बी.पी.साहनी अरुण के फोन नंबर आपको मेल में दिए थे ! उसी मेल में मेरे फोन नंबर भी हैं ! आपको रक्षंदा के मैटर में मेरी निजी रूप से आवश्यकता लगती हो आप बेहिचक आदेश करिए ! पर उस बच्ची का मनोबल बना कर रखिये ! मैं सबसे अपील करूंगा की सब लोग रक्षंदा के समर्थन में आगे आए !
chhittha charcha achchee rahi --
जवाब देंहटाएंaap ka vishesh 'ek lina' kafi impressive hai.
" very good analysis to read... great"
जवाब देंहटाएंRegards
पंकज अवधिया का मानना है- लिख ले बेटा जो कुछ भी लिखना है! पर कोई पढ़ेगा तब ना?
जवाब देंहटाएं------
अवधिया जी का लेख बहुत अच्छा है। पर वे शायद जी.के. अवधिया हैं। पंकज नहीं।
सुधीश पचौरी जी ने जो कहा है, उससे लगता है कि आनेवाले दिनों में प्रिंट मीडिया को ब्लॉगिग से एक कड़ी चुनौती मिलने वाली है और यह कथन कहीं न कहीं ब्लॉगिंग की बढ़ती ताकत को दर्शाता है।
जवाब देंहटाएंचर्चा तो जोरदार है... पर रक्षंदा के बारे में सुनकर बहुत बुरा लग रहा है. अगर हम किसी काम आ सकें तो खुशी होगी. कैसे-कैसे लोग हैं !
जवाब देंहटाएंबढ़िया, उम्दा चर्चा हमेशा की तरह.
जवाब देंहटाएंरख्शंदा के विषय में जानकर दुख हुआ.
मेरी शुभकामनाऐं उनके साथ हैं और उनके लौटने का इन्तजार.
लवली जी से अनुरोध है कि वो रक्षंदा जी तक यह बात पहुंचाएं कि ब्लॉग जगत के लोग उनके साथ हैं. जिन्हें बात का जवाब बात से नही देना आता वो इस तरह की असभ्य हरकतें भी करते हैं अजीब लगता है कि अब ब्लॉग जगत से भी लोग इस तरह हरकतें कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंहमने रक्षंदा जी का ब्लॉग कुछ ही दिन पहले पढ़ना शुरू किया था. उनकी लेखन शैली वाकई बहुत अच्छी है . उम्मीद है वो जल्दी ही फ़िर लिखना शुरू करेंगी.
धमकी क्या उसे एक गुमनाम टिप्पणी मानिये और लिखते रहिये !भाई एक धमकी मे बंद हो जाये वो ब्लागिंग कैसी !!
जवाब देंहटाएंअनुप जी ने चर्चा ही आपसे शुरु कर दी यह बढिया किया !!
चिटठा चर्चा बढ़िया लगी पर रक्षंदा के बारे में पढ़ कर अच्छा नही लगा ...
जवाब देंहटाएंअनूप भाई !
जवाब देंहटाएंआपकी सह्रदयता का आभार, यह हम सबका फ़र्ज़ बनता है ! यह लडकी बहुत ईमानदार और बहादुर है, इसे मुरझाना नही चाहिए ! हो सके तो रख्शंदा के पापा से बात करने का कोई जरिया निकालें ! इसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है ! आपका ईमेल एड्रेस भी मुझे चाहिए !
साभार
9811076451
satish1954@gmail.com
किसी के अभिबावक ने एक निर्णय लिया हैं वज़ह कुछ भी हो सकती हैं . जरुरी नहीं हैं की वो वज़ह सार्जनिक रूप से वो सब को बता सके . कोई ब्लॉग लिखता हैं या नहीं लिखता हैं ये उसका अपना नजरिया हैं . अगर कोई अपने अभिभावक के संग रहता हैं और आप उसके अभिभावक से इस विषय मे बात करते हैं { जो उस परिवार से नितांत अपरिचित हैं } तो आप एक पारिवारिक बात मे दखल अन्दाजी कर रहे हैं . हर बच्चे का अभिभावक इस जगह अपने को रख कर सोचे की क्या वोह इस दखल अंदाजी को पसंद करेगा
जवाब देंहटाएंकिसी के अभिबावक ने एक निर्णय लिया हैं वज़ह कुछ भी हो सकती हैं . जरुरी नहीं हैं की वो वज़ह सार्जनिक रूप से वो सब को बता सके . कोई ब्लॉग लिखता हैं या नहीं लिखता हैं ये उसका अपना नजरिया हैं . अगर कोई अपने अभिभावक के संग रहता हैं और आप उसके अभिभावक से इस विषय मे बात करते हैं { जो उस परिवार से नितांत अपरिचित हैं } तो आप एक पारिवारिक बात मे दखल अन्दाजी कर रहे हैं . हर बच्चे का अभिभावक इस जगह अपने को रख कर सोचे की क्या वोह इस दखल अंदाजी को पसंद करेगा / करेगी . फिर ये बात लवली जी की तरफ़ से शुरू हुई हैं जिनका उसके बाद कोई भी व्यक्तव्य नहीं आया हैं ? हो सकता हैं की बात कुछ और हो और केवल और केवल ब्लॉग लेखन तक ही सिमित ना हो . अभिभावक से बात करने का कोई मतलब नहीं निकलता हैं और इस इस्शु को यही ख़तम करदेना चाहिये ताकि अगर ब्लॉग की दुनिया की वज़ह से परेशानी हुई हो तो ख़तम हो जाये उस परिवार से. ब्लॉग परिवार की कोई भी पहल केवल और केवल एक दखलंदाजी भी समझी जा सकती हैं किस परिवार मे . ब्लॉग लाखन कोई ऐसी चीज़ नहीं हैं की जिस के बिना एक लड़की का जीवन ख़तम हो जाएगा . ये मेरी व्यक्तिगत राय हैं
तस्वीर साफ नहीं है। पर यदि यह एक परिवार का मामला है तो उसमें हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। पर किसी की शरारत की वजह से या डर के कारण किसी का मनोबल ना टुटे इसका भी ध्यान रखना जरूरी है। यदि ऐसा है तो हम सब रक्षंदा के साथ हैं।
जवाब देंहटाएंपहली बात रक्ष्नंदा को लेकर -
जवाब देंहटाएंतथ्यों को जाने बगैर प्रतिक्रिया व्यक्त करने की जल्दबाजी ना करे ....ये भी ध्यान रखना होगा की किसी की निजता का उलंघन न हो ......रचना जी की बात से सहमत हूँ.....
दूसरी बात -
पत्रकार जब ब्लोगर बन जाते है तब अलग क्यों दिखने लगते है ?
तीसरी बात -
अब जब की भारत ने चौथा टेस्ट मैच जीत लिया है.....गांगुली ओर कुंबले भारतीय क्रिकेट से विदा हो गये है .हमें उम्मीद है गिलक्रिस्ट ,साईंमंड्स ओर पोंटिंग के बाद अब क्लार्क किताब नही लिखेगे ......
चौथी बात
कुछ एक लाइना झकास है जी
अच्छी लगी चर्चा।
जवाब देंहटाएंcharcha bhi padhi!!!
जवाब देंहटाएंaur sari tippaniyan bhi!!!!!
मान गए चिट्ठाचर्चा की चर्चा को....कविताजी ने रक्षंदा की जो बात उठाई, वह किसी निजी जीवन से वाबस्ता नहीं बल्कि एक ब्लागर की मजबूरी को उजागर किया। ऐसा मेरा मानना है। यदि बेबाक ब्लागर को धमकियां मिलें, तो निश्चय ही वह मजबूर हो जाएगा। यह एक गम्भीर मसला है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब चिट्ठाचर्चा रही...
जवाब देंहटाएंरक्षंदा को धमकियों से घबराना नहीं चाहिए...
आज के एक लाइनर अच्छे हैं..
जवाब देंहटाएं