वाकई फिलिम मा बड़ी आग है मानना तो होगा और इस इत्तेफाक का फायदा भी फिल्म को मिलने वाला है पर पर नीतिश जब बिहार मे विश्वस्तरीय फिल्म स्टूडियो बनाने का फैसला ले चुके तो यह भी मानना होगा कि यह आग और भड़कने वाली है।फिल्म और राजनीति की नई रीजनल ट्यून बजेगी।
अब भी जनता ने समवेत स्वर मे न गाया -जागो रे भइया जागो रे , जागो रे भइया जागो रे तो क्षेत्रवाद ले डूबेगा।
एक दौर था पारम्परिक लेखन परिपाटियों के!समर्थक ब्लॉगिंग को लेकर इस-उस तरह के बयों से आक्रांत थे पर खुशी यह है कि मुख्य धारा साहित्य के भीतर इंटरनेट और ब्लॉगिंग की ध्वनियाँ सुनाई देने लगीं हैं।यूँ ब्लॉगिंग तो शुरु से ही साहित्य से अपना प्रेम ज़ाहिर करती चली है।फीरोज़ अहमद का ब्लॉग {किसी पुरानी किताब के पीले पड़े क्षीण पन्नों जैसा जिसका टेमप्लेट मुझे बहुत भाया}राही मासूम रज़ा के साहित्य और लेखन पर केन्द्रित है।
संजय कुन्दन के हालिया प्रकाशित उपन्यास टूटने के बाद का नायक अप्पू अनतत: ब्लॉगिंग मे राहत पाता है।विनीत लिखते हैं-
हम तो उम्मीद लगाए बैठे हैं कि आगे कोई कहानी या उपन्यास हो जिसके पात्र ब्लॉग के बहाने जीना शुरु कर दे, ब्लॉगिंग करते-करते जिंदगी जीत जाए।...
समीर लाल की पोस्ट"ये कैसा उत्सव है रे भाई" की चर्चा नहें करूंगी ,क्यों? उन्हें तो लोग वैसे ही ढूंढ ढूंढ कर पढ डालते हैं।यह भी नहीं बताऊंगी कि वे जर्मनी मे इस बात से प्रभावित हुए कि-
कि महिलाऐं एक अलग समूह बना कर नाच रही थीं और पुरुष अलग. न रामलीला जैसे रस्से से बंधा अलग एरिया केवल महिलाओं के लिए और न कोई एनाऊन्समेन्ट कि माताओं, बहनों की अलग व्यवस्था बाईं ओर वाले हिस्से में है, कृप्या कोई पुरुष वहाँ न जाये और न कोई रोकने टोकने वाला. बस, सब स्वतः
बहती गंगा मे - आइये हाथ धो लें हम भी ,राष्ट्रीय नदी मे गंदगी धोना कितना गौरवपूर्ण होता होगा
टुच्चा देश- लुच्चा देश कहें तो कैसा रहेगा ...ज़्यादा हो जाएगा
फुरसतिया जबरिया लिखिस हैं और समीर लाल जी का नाम ले रहे हैं अब् जबरिया यह कबिता पढ डालिये वर्ना ...अरे आप भी पूछने लगे तो क्या होगा?
और कसूरवार है डॉन की माशूका का बाप : बाप रे बाप !16 सितम्बर की डेट से ही पोस्ट चढ गयी है।
पुलिस विमर्श-आइए इसका भी आगाज़ करें
शुरु से आखिर तक दुनिया मे ओबामा ही छए रहे - दुनिया मे ही क्यों , ब्लॉग मे भी ,प्रशंसा मे ही नही प्रश्नों मे भी
हिन्दू आतंकवाद-इस्लामिक आतंकवाद् और देश की सिसायत
: ह्म्म ! अब आतंकवाद के आगे भी विशेषण लगने लगे!!
एक हिन्दू का आत्ममंथन : आत्ममंथन तो करना ही होगा दोनो को , सभी को ।
यह ज़रूरी तो नही: जी बिलकुल नही , आपको इच्छा हो तो पढें ,वर्ना टिपिया कर चले जाएँ !
एक ट्रक का समसामयिक चिंतन: बुरी नज़र वाले तू मुम्बई जा : चलो जी अपने निबन्ध के छात्रों को इसी के पास भेज दो पुराणिक जी।
और स्मार्ट इंडियन आलस्य के बावजूद कविता लिख दिये हैं तो हम तो हईं आलस्य की प्रतिमा , सो अब हमसे और न लिखा जाएगा ! आप स्टार प्लस वाली सास-बहू के विदाई का समारोह मनाओ हम अब काम पर चलें ।
बाई- बाई !!
कहते हैं कि notepad का है अन्दाजे बयाँ और .
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया चर्चा ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएं"wah wah, interesting to read"
जवाब देंहटाएंRegards
बिलोंग में आग तो नही उ.... बा... माँ.... जरूर है ....आपका अंदाज पसंद आया
जवाब देंहटाएंबिलॉग के कमरे में बेलाग सब के हाथ बिलाक-:)
जवाब देंहटाएंबढ़िया है !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा. अच्छा कीं कि हमारी चर्चा नहीं की..आगे भी ऐसे ही मत करियेगा तब तो आनन्द ही आ जायेगा. :)
जवाब देंहटाएंबहुत आभार. और बधाई इस चर्चा के लिए.
बहुत बढ़िया चर्चा रही । बधाई हो।
जवाब देंहटाएंआपके शैली में संक्षिप्त मगर असरदार चर्चा. शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंस्कूल के वार्षिकोत्सव से मोहल्ले की राम लीला। फिर नाटक- ड्रामा। फिर छोटा पर्दा और फिर चलचित्र जगत। कुछ इसी तरह छुटभैएयों की डगर भी तय होती है।
जवाब देंहटाएंकलकत्ते में ममता बनर्जी ने अपनी दीदीगिरी (दादा) सार्वजनिक नलों पर पानी के लिए होने वाले झगड़ों से शुरु की थी।
badhiya charcha rahi....
जवाब देंहटाएंMetro me rehne wale aur greater noida ke kisi gaon me rehne wale, dono ka mansik vikas ek saman hi hai. Jara si baat per dono hi maarne per utaroo ho jaate hain.
जवाब देंहटाएंSUKRIYA JI
जवाब देंहटाएंयह ज़रूरी तो नही: जी बिलकुल नही , आपको इच्छा हो तो पढें ,वर्ना टिपिया कर चले जाएँ !
जवाब देंहटाएंhaa haa