हम चर्चा शुरू करने ही वाले थे कि सीमा जी की ये लाइने दिखीं:
इस दिल का दोगे साथ, कहाँ तक, ये तय करो !
फिर इसके बाद दर्ज, दिले-नामा-ए-बय करो !!
मुझे लगा कि चर्चा के पहले चिट्ठा पूछ रहा है बताओ कित्ती पोस्ट का जिक्र करोगे? करोगे भी या ऐसे ही टाल दोगे? कभी-कभी तो ये ख्याल आता है कि शास्त्रीजी ही सही हैं। वे कहते हैं कि कोई भी बेवकूफ़ चिट्ठाकारी कर सकता है। उनके आत्मविश्वास को देखकर लगता है कि वे अपने अनुभव से बता रहे हैं कि कोई बेवकूफ़ ही चिट्ठाकारी कर सकता है। अब जब ऐसा होगा तो कचरा ही तो फ़ैलेगा न!
डा.अमर कुमार जी अभी फ़िर से वापस लौटे हैं। ई-स्वामी की तीन माह पहिले की चिट्ठी का हवाला बीच में देते हुये किनारे-किनारे कुछ लिखा है। बहुत लोगों की समझ में शायद कम आये।
ई-स्वामी की पोस्ट पर क्या टिपियाये थे डा.अमर कुमार यह पता नहीं चल पाया। पता चलता तो कुछ और मजा आता। डा.अमर कुमार की टिप्पणियां पढ़ने का एक अलग मजा है। ई-स्वामी भी मजेदार जीव हैं। उनकी शुरुआती औघड़ी भाषा से ने काफ़ी दिन कुछ लोगों को खिझाया। हम उसी के मुरीद थे। संगत के असर से स्वामीजी की भाषा बिगड़ गयी और संभ्रांत हो गयी। एक नुकसान है यह। एक सभ्य नमूना देखा जा्ये:
एक मित्र अपने शहर हो कर आया, फोन पे बोले यार एक बात कहता हूं - कभी गलती से खुदा से जवानी के दिनों वाली कोई दिख जाए,, ऐसी बद्दुआ मत मांगना, एक मेरेवाली दिख गई थी, जो पतली-पतंग सी बल खाती थी, टायर की दुकान हो गई! इस से तो खयालों मे सही थी.
यादों के सब जुगनू जंगल में रहते हैं
हम यादें जीने के दंगल में रहते हैं.
बीच चौराहे पर बेचारे की यादों का कत्ल हो गया!
और भी नमूने हैं ई-स्वामी के देखें मौका मिले तो।
वर्षा वशिष्ट की कहानी है मुझे चांद चाहिये में। नायिका वर्षा का शाहजहांपुर से बस केवल पैदाइश का संबंध है। बाकी अब हवा-हवाई है। सुरेन्द्र वर्मा का ये ५७१ पेज का उपन्यास अपने शाहजहांपुर के दिनों में मैंने दिन-रात जग-जग कर दो-तीन दिन में पूरा किया था। गजब की पठनीयता है। बस्स और बाकी तो जैसा कहा कि हवा-हवाई। एक खिंचाऊ समीक्षा आई थी हंस में उसका शीर्षक ही था- तो तुम्हें चांद चाहिये।
कंचन ने यह उपन्यास मुझसे पढ़ने को मांगा था। मजे की बात जब मैं इसे लेकर लखनऊ गया तो उस दिन वे कानपुर में अपनी माताजी की ऐतिहासिक सालगिरह मनाने कानपुर आई थीं। उपन्यास भी पुस्तक मेला से लाकर बांच चुकी थीं। दो दिन पहले कंचन ने विस्तार से अपनी नजर से उपन्यास के बारे में लिखा है। वे लिखती हैं:
मगर उपन्यास का अंत होते होते सभी भ्रम पीछे छूट जाते हैं.... और बस यही भावना रह जाती है कि वो शुरू से दुस्साहसी न होती तो इतना बड़ा निर्णय कैसे लेती ? धारा के विरुद्ध जाने की क्षमता न होती तो उस प्रवाह में वो जाने कहाँ बह गई होती..! और अंत में मै भी समर्थ हो ही जाती हूँ, उसे सखी बनाने में। जा के बैठ जाती हूँ उसके बगल में और जब उसे एक आँसु निकालने के लिये झकझोरा जा रहा होता है तो उसके आँसू मेरी आँखों से निकल रहे होते हैं।
एक ऐसी उपन्यास जो हमेशा मेरे द्वारा पढ़ी गई बेहतरीन किताबों में एक होगी।
सीमा जी का कहना है कि दुआयें भी मायूसियों में बेअसर हो जाती हैं:
आग फैली इधर से उधर लग गयी,
मेरे घर पे किसी की नज़र लग गयी..
दिल में मायूसियों ने है घर लिया,
अब दुआ भी होने बेअसर लग गयी..
अनुराग आर्य अपने लेख में भी कविता लिखते हैं। इस संवेदनशील पोस्ट के साथ की ये त्रिवेणी देखें:-
चिलचिलाती धूप ओर छाँव का बँटवारा हुआ है
ज़िन्दगी की कचहरी मे बेनामा लिखा है
रसूखवालो ने मौसम को रिश्वत दी है
अनुराग की इस पोस्ट पर राजेश रोशन की एक टिप्पणी का जबाब देते हुये प्रशान्त प्रियदर्शी डा. कलाम की बात का उदाहरण देते हैं:
उसके लिये हमें साधारण मानव से ऊपर उठकर माहामानव बनने कि जरूरत नहीं है.. हम अपने आम जीवन में ही जो काम करते हैं उसी को पूरी ईमानदारी से करें..
योगेन्द्र मोद्गिल के वक्त के हस्ताक्षर कापी-पेस्ट वर्जित होने के कारण हम पेश नहीं कर पा रहे हैं। आप स्वयं देख लें।
लवली कुमारी ने फ़िर कुछ व्यक्तिगत बातें लिखीं हैं। देखिये आप क्या कर सकते हैं।
पारुल के ब्लाग पर आज आपको अहमद फ़राज मिलेगें। पढ़िये, सुनिये।
मानसी अक्सर नामचीन शायरों की गजल सुनवाती रहती हैं। आज अपने पसंदीदा गायक जगजीत सिंह , जो कभी उनके दिल-दिमाग में छाये रहते थे, की गजल अपनी आवाज में सुनवा रही हैं:
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है
दिल्ली में स्नेह मिलन में जिस बात पर एकमत था वह यह है
ये बात सब ने मानी की हिन्दी ब्लोगिंग मे दोहरी मानसिकता बहुत हैं और लोग ब्लॉग कम और ब्लॉग लेखक की जिंदगी के बारे मे ज्यादा जानना चाहते हैं । इस पर भी बहुत अफ़सोस जाहिर हुआ की हिन्दी ब्लोगिंग मे जो ब्लॉगर हैं वो एक परिपक्व उम्र के हैं और काफी पढे लिखे हैं पर सोच बहुत ही संकुचित और संकिण हैं जिस की वज़ह से किसी भी बात पर खुल कर बहस नहीं हो सकती ।
ब्लॉग लिखती महिला के ब्लॉग पर कमेन्ट का कंटेंट बहुत ही गिरा हुआ होता हैं कभी कभी , सो खुल कर व्यक्त करना बहुत ही कठिन होता जा रहा हैं ।
आलोक पुराणिक अपने इतवारिया चिंतन में कहते हैं:
दरअसल काम कैलिफोर्निया से गुड़गांव ही नहीं आ रहा है।
काम नेहरु प्लेस के चमाचम दफ्तरों से गाजियाबाद और शाहदरा की गलियों में भी आ रहा है।
बाजार में महंगे और कम कुशल लोगों को कोई नहीं बचा पायेगा। सरकारें भी नहीं। नेता भी नहीं। वे नहीं बचा पा रहे हैं। ब्रिटेन और अमेरिका में नेता लाख हल्ला कर लें, कि काम भारत में नही आना चाहिए, पर वह आयेगा, क्योंकि उसके आर्थिक तर्क हैं। बतौर ग्राहक सबको सस्ती और बढ़िया सेवा चाहिए, जो कुशल कंपनी ही दे सकती
पल्लवी के बदमाशी के किस्से जारी हैं।
छठवें विश्वंभरा दिवस स्थापना दिवस समारोह की रपट पेश कर रही हैं डा. कविता वाचक्नवी!
एक लाइना
- कोई भी बेवकूफ चिट्ठाकारी कर सकता है :शास्त्री जी को ही देखो। करके बता रहे हैं।
- ब्लॉग्गिंग बनी बवाल-ए-जान :यह हर ब्लागर के साथ होता रहा है।
- अमर कुमार का ई कचरा : उनके ब्लाग पर पड़ा पसरा
- ताई, सात बच्चे और सात ताऊ: मिलकर गठबंधन सरकार का दावा पेश करेंगे
- मूंगफली की बंहगी : में ज्ञानदत्त पाण्डेय जी को वैकल्पिक रोजगार दिखा
- और गुरु, ... हमारी तो ये कहानी है... तुम अपना सुनाओ: हमारी तो तुमने सुना दी अब और क्या सुनायें?
- जाग जायेगा कोई तो खवाब मर जायेगा : एक नींद की गोली सोते में खिला दें क्या?
- एक सिगरेट और जल गई : और जलकर बुझ गई
- खामोशी हर प्रश्न का जवाब है: मतलब गूंगा के पास हर सवाल के जबाब मिल जायेंगे
- कतरन झूठ न बोले : वर्ना उसको कौवा काटेगा
- चाँद के पार चलो: चलो एक रिक्शा कर लो
- लाचारगी के कंबल में ठिठुरती सर्वोच्च संस्था: को एक कंबल और उढ़ा दो भाई
- आत्मा की सुनें, दूसरों की नहीं : आत्मा का परमात्मा से गठबंधन है
- शेयर बाजार कहा सोया है?? : जगाओ -बोलो सुबह हुई उठे हाथ मुंह धोके काम पर लगे
- शादी के पहले की रात : में परिणय कथा चेंप रखी है
- आ गये हैं वापस : क्या सोच के आये हो ? ब्लागर होंगे? शाबासी देंगे?
टिप्पणी चर्चा
ज्ञानदत्त पान्डेय :
मेरी पसंद
ओ पहाड़, मेरे पहाड़,बुला ले वापिस पहाड़
मन व्याकुल है पाने को
तेरी ठंडी बयार ।
तेरे चीड़ और देवदार
दाड़िम,काफल और हिसालू
आड़ू,किलमोड़े और स्ट्रॉबेरी
मन होता है खाने को बारबार ।
तेरी साँपों सी वे सड़कें
शेर के मुँह वाले वे नलके
वे चश्मे और वे नौले
वह स्वाद ठंडे मीठे पानी का ।
ऊबड़ खाबड़ वे रस्ते
वे चीड़ के पत्तों की फिसलन
वे सीढ़ीदार खेत तेरे
वे खुशबू वाले धान तेरे ।
नाक से बालों तक जाते
लम्बे और शुभ टीके
वे गोरी सुन्दर शाहनियाँ
वे सुन्दर भोली सैणियाँ ।
स्वस्थ पवन का जोर जहाँ
घुघुती का मार्मिक गीत जहाँ
काफल पाक्यो त्यूल नईं चाख्यो
की होती गूँज जहाँ ।
घुघुती बासूती
और अंत में
इतवार को चर्चा करना बड़ा बवाले जान है। सोचते हैं कौन बांचेगा इसे आज।
कल तरुण ने फ़िर एक बेहतरीन चर्चा की। टिप्पणी चर्चा मजेदार काम है। समय मांगती है। एक लाइना के एकदम उलट। एकलाइना ऊपर-ऊपर देखकर कर सकते हैं। टिप्पणी चर्चा के लिये नीचे तक आना पड़ता है। आज प्रयास किया लेकिन पूरा नहीं हो पाया।
कल की चर्चा डा.कविता वाचक्नवी करेंगी। आज उन्होंने समाज में बढ़ती असहिष्णुता पर एक बहुत संक्षिप्त पोस्ट लिखी।
पुनश्च: पता चला कि विवेक ३० साल के हो गये। वे बताते हैं:
हैप्पी बड्डे आगया , असली वाला आज ।विवेक को जन्मदिन की बधाई।
तीस साल के हो गए सुन ले ब्लॉग समाज ॥
सुन ले ब्लॉग समाज बधाई भिज़वा देना ।
बड़े हो गए हम भी अब छोटा मत कहना ॥
विवेक सिंह यों कहें शर्म है इसमें कैसी ।
देउ मुबारकवाद , आपकी श्रद्धा जैसी ॥
नीचे की फोटो लावण्या शाह जी की है। देखिये। पिछले दिनों अमृतलाल नागर जी का संस्मरण पढ़ा। उसमें लावण्याजी के पिता पंडित नरेन्द्र शर्मा के किस्से थे। उनकी पंतजी के साथ की गई चुहल के किस्से भी। ऊपर की पिक्चर शोले की है जिसके डायरेक्टर कुश हैं जो कि सिगरेट सुलगा रहे हैं।
...एक मेरेवाली दिख गई थी, जो पतली-पतंग सी बल खाती थी, टायर की दुकान हो गई!...
जवाब देंहटाएं--------------
टायर की दुकान एकदम टन्च बिजनेस है। कारें बढ़ेंगी, बेकारें बढ़ेंगी तो टायर की जरूरत बढ़ेगी!
(ईस्वामी से रिलक्टेण्ट क्षमायाचना सहित):)
धन्यवाद्, काफी रोचक बन पड़ी है आज की चर्चा.. ये शोले की फोटो - एकदम सही समीकरण बैठाया है आपने...आभार..
जवाब देंहटाएंचर्चा बेहतरीन,
जवाब देंहटाएंज्ञानदत्तजी वाली टिप्पणी में लिंकदोष है, कृपया दूर कर लें।
rochak charcha//
जवाब देंहटाएं'ek lina' khaaas aakarshan rahta hai.
highlight of the article-'ऊपर की पिक्चर शोले की है जिसके डायरेक्टर कुश हैं जो कि सिगरेट सुलगा रहे हैं।'
फुरसतिया ने आज की चर्चा फुरसत से नहीं की .माफ करें जल्दी का काम शैतान का होता है .
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा रही।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रही चर्चा ! आनंद आया ! एक लाईना फ़िर से कमाल की ! तरुण जी जैसी टिपणी चर्चा का भी इंतजार था ! पर आप पहले ही पला झाड़ गए की निचे तक जाना पड़ता है ! इस काम के लिए आप एक साथी चर्चाकार के बारे में सोचे ! यानी एक ही पोस्ट को दो चर्चाकार निपटाए तो यह सम्भव हो सकता है ! आपका यह कहना सही है की इसमे समय बहुत लगता है ! सो एक ही पोस्ट में तरुण भाई स्थायी रूप से टिपणी चर्चा देते रहे और बाक़ी जैसे नियमित करते हैं वैसे करते रहे ! टिपणी चर्चा भी एक लाईना जैसी ही मजेदार लगती हैं ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंऔर हाँ आज विवेक सिंह जी का जन्म दिन है ! सो उनको हार्दिक बधाईया और शतायु होने की शुभकामनाएं !
charcha to khub rahi ........
जवाब देंहटाएंकोई भी बेवकूफ चिट्ठाकारी कर सकता है देखकर हमने तो फ़ौरन अपना लेप-टॉप छिपा दिया की भैय्या शास्त्री जी सबकी पोल ऐसे बीच बाज़ार खोल देते है.....हम ऐसे ही इतरा रहे थे की ब्लोगिंग -ब्लोगिंग..... स्वामी जी की यादो का भी यादगार क़त्ल हुआ .....डॉ अमर कुमार भी अज्ञातवास से लौट गये ...चलिए ...कुछ खास किस्म की टिप्पणी अब दुबारा दिखने को मिलेगी ...एक लाइना का पेटेंट करा लेते तो अच्छा रहता......
जवाब देंहटाएंचलते चलते विवेक को जन्म दिन की बधाई !
रविवार की ये चर्चा बेहद मन भायी....
जवाब देंहटाएंआप लोगों के इस प्रयास की जितनी सराहना की जाय,कम है...
वाह! कमाल की इतवारी चर्चा है। विवेक सिंह को जन्म दिन की बधाई।
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी ठीक ही कहते होंगे- कोई भी बेवकूफ ब्लागिंग कर सकता है, तो अकलमंद को इशारा काफी है। गब्बर सिंह उडन तश्तरी उडा़ ले गया!!
जवाब देंहटाएंबहुते बढ़िया है ! विवेकजी को जन्म दिन मुबारक... सन्डे है मैं अब फिर सोता हूँ !
जवाब देंहटाएंऔर फिर पिटारा खुला!
जवाब देंहटाएंईर्ष्योत्पादक
जवाब देंहटाएंतुमने मेरे मन में बस के , जीवन को इक मोड़ दिया.
मेरा नाता चुभन तपन से , अनजाने ही जोड़ दिया
तुलना कुंठा वृत्ति धाय से, इर्षा पलती बनती आग !
aache charcha hai ya per be
जवाब देंहटाएंvisit my site shyari---Recipes and Etc...
http://www.discobhangra.com/recipes/
http://www.discobhangra.com/shayari/
ई स्वामी की पोस्ट्स की लिंक्स के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. कम ही लोगों का लेखन ऐसा लाजवाब होता है.
जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी लगी. विवेक को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंचर्चा तो मजेदार है भइया !!!!
जवाब देंहटाएंपर ताऊ के डर से मई जल्दी भाग रहा हूँ
ये ताऊ भी मुझसे पहले ही पहुंचेगा सब जगह????
मेरे ऊपर उधारी (http://primarykamaster.blogspot.com/2008/11/blog-post_15.html?showComment=1226815380000#c3086677292002697748) जो कर रखी है !!!!!
ई-स्वामी एक बहुत प्यारा जीव है। बहुत प्यारा दोस्त, अच्छा पति, ज़िम्मेदार पिता। अमर जी, इससे ज़्यादा जानने की ज़रूरत भी क्या है। ब्लागर है, एक और परिचय, अच्छा लिखता है।
जवाब देंहटाएंभई वाह पहली बार में ही आपका हो गया
जवाब देंहटाएंमजेदार चिंतन
साधुवाद
आज दिन भर यात्रा कर रहा था, अत: चर्चा देखने में देर हो गई.
जवाब देंहटाएंमजा आ गया आज तो!!
आप ने लिखा है:
"उनके आत्मविश्वास को देखकर लगता है कि वे अपने अनुभव से बता रहे हैं कि कोई बेवकूफ़ ही चिट्ठाकारी कर सकता है। अब जब ऐसा होगा तो कचरा ही तो फ़ैलेगा न!"
मजे की बात है कि मैं ने इतना कुछ लिख दिया, किसी को कचरा न दिखा. अंत में मुझे ही घोषणा करनी पडी किय क्या लिख रहा हूँ. अनूप को भी तब समझ में आया कि असलियत क्या है.
चलो, देर आये दुरुस्त आये!!
अगली चर्चा के इंतजार में -- सस्नेह, शास्त्री
काफ़ी रोचक और गम्भीर चर्चा रही। देर आयद दुरुस्त आयद! देर हो ही गई।
जवाब देंहटाएंऔर हाँ,आपके लिए तो सब वार एक से हैं। जमा देते हैं गोष्ठी।
" मुझे लगा कि चर्चा के पहले चिट्ठा पूछ रहा है बताओ कित्ती पोस्ट का जिक्र करोगे? करोगे भी या ऐसे ही टाल दोगे? WAH BHAI WAH, AAPNE TO SBHEE KO EK JGEH IKKTTA KR DIYA BHUT ACCHA LGA, CHLO KISEE BATA KA ASSAR HUA JIKR ABHEE KA HUA...."
जवाब देंहटाएंVIVEK JEE KO JANMDIN KE BHUT BHUT BDHAEE..."
rEGARDS