क्षेत्रवाद की राजनीति कर राज ठाकरे ने भले ही महाराष्ट्र की राजनीति में जगह बना ली हो, पर राष्ट्रीय राजनीति में अपना भविष्य शून्य कर लिया है। शायद उन्हें इसका आभास नहीं है अगर होता तो वह प्रेसवार्ता में यह न कहते कि सरकार बदलेगी। मेरा भी वक्त आएगा तब क्या करोगे।
.....
दरअसल, हमारी सरकारें इतनी पंगु न होती तो क्या राज की अकड़ अभी तक बची होती?
चाहे कांग्रेस हो या भाजपा दोनों को अपने स्वार्थ दिखते हैं। ये दोनों दल इस मामले में इसलिए नहींपड़ते हैं, क्योंकि उन्हें अपना वोट बैंक कम होने का भय सता रहा है।
हां, यदि राज समय के साथ-साथ खुद को भी बदलें। यानी क्षेत्रवाद से हटकर राष्ट्रहित की बात सोचें तो शायद उनकी मुराद पूरी हो जाए!
प्रेरक (?) तत्वों की कशमकश यहाँ भी रही है
धर्मपाल यादव को पीट-पीट कर मार दिया गया राहुल राज की तरह धर्मपाल यादव ने तो हाथ में बन्दुक नही उठाया था और ना किसी बस को हाइजैक किया था फिर क्यों मार दिया गया क्या महाराष्ट्र के गृ्हमंत्री के पास जवाब है।
सभी को लगता है यह लडा़ई राजनीतिक है या फिर दो राज्यों के बीच लडा़ जा रहा है। नही यह किसी तरह का राजनीतिक लडाई नही है यह तो लोकसभा का चुनावी जंग है। इस बात को हमें समझना होगा।
इम्फाल जैसे स्थान पर विस्फोट का समाचार आया, और भी जाने क्या-क्या...। कान तरस जाते हैं किसी अच्छी सूचना की प्रतीक्षा में। पर देश है कि अपराध.. अपराध...अपराध का पर्याय बनता चला जा रहा है। उसकी हरकत नहीं बदलती
और हाँ, इस बीच आई थी दीपावली भी... और हम सब बिसरा कर उत्सव की धूम में डूब गए थे । ब्लॊगजगत् पर भी यह नशा छाया रहा। यह उत्सवप्रियता भारतीय सामाजिक चरित्र का एक बड़ा अंग है। यदि हम भारत के सबसे प्रमुख त्यौहार की क्रमिक सूची बनाएँ तो सम्भवत: दीपावली का क्रम सबसे ऊपर रहेगा। भले ही देश में रहने वाले भारतीय हों या विदेश में। मुझे याद नहीं पड़ता कि नॊर्वे या अन्य किसी विदेशी भूमि पर हमने कभी दीपावली मनाने में कोई कसर रह जाने आदि की कोई रिक्तता अनुभव की हो । वहाँ बहुधा दीपावली आदि पर्व समूह में मनाए जाते हैं। सभी भारतीय परिवार दीपावली पर जुटते हैं, जिसमें सजी धजी बाल टोलियाँ विदेशी भूमि पर अनूठा अनुभव बटोर लेती हैं।भारतीयों की सामूहिकता का ऐसा संस्कार संसार में और कहीं नहीं है। आज यद्यपि वह छीजता चला जा रहा है, छीज गया है पर कम से कम एक दिन तो है जब लोग निर्वैर होकर सुख साँझे करते हैं, निस्स्वार्थ भाव से मिलते हैं। लंदन में मेरी दुर्घटनाग्रस्त बेटी को जीवन में पहली बार यह त्यौहार अकेले मनाना पड़ा। ऊपर से इस बार यकायक लंदन में दीपावली की रात २-२ फीट हिमपात हो गया। ऐसे में उसे याद आई तो केवल माँ और अपनी उस दिन की वे स्मृतियाँ जब उसने मुझे सुनाईं तो सिवाय फफक फफक कर रोने के कोई शब्द मेरे पास नहीं था। ऐसे सूनी सूनी बीती दीपावली। हर किसी को हर बार ऐसे खुमार भरे त्यौहार नहीं मिलते न !
अँधियारों के यार उजाले |
हैं कितने मक्कार उजाले |
बार बार आँखें चुंधिया कर
खो जाते हुशियार उजाले |
चौबारों छज्जों पर बैठे
करते हैं सिंगार उजाले |
'होरी' की झुग्गी में झांके *
इतने कहाँ उदार उजाले |
कल थोडा सकुचा कर करते
काले कारोबार उजाले |
बीच सड़क में लगा रहे हैं
आज 'मुक्त बाज़ार' उजाले |
जो जलते हैं वे पाते हैं
मिलते नहीं उधार उजाले |
हम नादाँ थे तुमसे मांगे
ए मेरी सरकार! उजाले | २-फरवरी-१९९५
ऐसे उजालों से प्रभावित न हुए एक्रोपोलिस (एथेंस/ ग्रीस) को आप शाम के झुटपुटे में उसकी रूप की दमक के साथ निहार सकते हैं। क्योंकि इस नगर दर्शन के बाद आप लोगों को अन्तत: लौटना तो इसी चिट्ठाजगत् और कम्प्यूटर पर ही है - क्योंकि,
अपने मैथिली गुप्तजी इस बात के पुरजोर समर्थन में लगे हैं कि आनेवाला समय वेबपत्रकारिता का है। बाकी की सारी पत्रकारिता पतझड़ के पत्ते की तरह झड़ते चले जाएंगे। अभी जो बी लोग प्रिंट माध्यम से खबरों को जान रहे हैं, वो या तो तकनीक के मामले में असमर्थ हैं या फिर उनकी अभी भी पुरानी आदत गई नहीं है। मैथिलीजी अब मैं भी कई लोगों को लैपटॉप पर कुछ न कुछ लेटकर पढते हुए देख रहा हूं
और हाँ, (याद आया, इस चिट्ठा चर्चा, चिट्ठालेखन आदि आदि से) कि कल समकालीन पत्रकारिता के युगपुरुष राजकिशोर जी से चैट पर बातचीत में इस "चिट्ठा" शब्द को लेकर एक "चर्चा" हो गई, उस चिट्ठा (की) चर्चा के कुछ अंश उन्होंने कुछ लोगों को मेल द्वारा भेजे ताकि वेबलेखन में इस श्ब्द का स्थानापन्न कोई और शब्द रखा जा सके। उन अंशों को मैं ज्यों का त्यों दे रही हूँ ताकि इस दिशा में कुछ सोच -विचार करें आप सब जन ।
मित्रो, कृपया चिट्ठा शब्द का सम्मानपूर्ण विकल्प खोजने और स्वीकृत कराने का प्रयास करें। बहुत आभार होगा। - रा.
me: चिट्ठा शब्द मुझे नहीं जंचता। कृपया विकल्प खोजें00:46 Kavita: koi naya shabdaap ne bhi socha hoga?00:47 me: एक बार कुछ सोचा था... याद नहीं आ रहाKavita: jaal patrakme: लिखंत या ऐसा ही कुछ00:48 Kavita: hmmyahi disha theek haisoch kitadbhavikritme: लिखावनKavita: ha00:49 me: या, लिखनKavita: bahut achchha haipar chale tolikkhanjaise kabhi takhti hoti thee00:50 me: चिट्ठा में सम्मानरहितता है। कच्चा चिट्ठा ने मामला बिगाड़ दिया हैKavita: ohokamal hain aapmain ha ha kar hans rahi hoonme: ब्लॉगर - लिखंतकार ब्लॉगिंग - लिखंकन00:51 Kavita: haanlekhankanya likhankanlekhakarime: लेखांकन में अतिरिक्त गंभीरता हैKavita: aha00:52 likhantume: लेखा भी अच्छा है। लेखाकार लेखाकारी लेखाकारिताKavita: jiyah poori tarahsadhe hue haingambheerva sahaj bhi00:53 me: लेखा में डेली अकाउंटिंग का भाव भी है00:54 Kavita: jime: आप कोशिश करें तो चिट्ठा से मुक्ति मिल सकती है .. गंदा लगता है यह शब्द00:55 Kavita: ab mera bhi aisa dhyan gayajab aap nekahabaat to haisahi00:56 me: अपने स्तंभों में प्रस्तावित करके देखिए। दूसरे लेखाकारों को मेल लिखिएKavita: kal hi is chat ki charcha karti hoonva aap ke sujhaye sab shabd aap ki or se hime: कुछ से मैं भी करता हूं
--
अनूप शुक्ल जी कल की बात आज तक दिल से लगाए बैठे हैं। रात भर पता नहीं कैसे कैसे सपने आए होंगे! जबकि अजित वडनेरकर ने जी ने तो झटपट अपनी नई फोटो अपने प्रोफ़ाईल पर लगाई कि भई मैं तो हँसने वाला बन्दा हूँ । पर फुरसतिया हैं जो अब तक जी को म्लान किए बैठे हैं कि किसी और की हँसी गायब तो फ़ुरसतिया की हँसी का टेटुआ घुट जाए। अब यह भी कोई बात हुई भला? काहे जी हलकान किए हैं ?
एक लाइना
- अत्र कुशलं तत्रास्तु - पैर में चक्कर
- सियाचिन और लद्दाख का सफर :कुछ तो मौसम का ख्याल किया करो भाई
- आग के सवाल :अलाव जलाना पड़ा ना
- हर दीवाली उछाल वाली दीवाली हो, यह जरुरी नहीं है :अपुन भी यहीच बोलतै
- स्वयमेव नमः :सन्नाटे को चीरती हुई ......
- लावारिस बेलौस ब्लॊगर :? ये पब्लिक है, ये सब जानती है ?
- मै ऐसी मोहब्ब्त करती हूँ :तू डाल-डाल मैं पात पात से आगे बढ़ना होगा
- मेरे पहले राजनीतिक एवं साहित्यिक गुरु डॉ. रामविलास शर्मा : डॉ. शिव कुमार मिश्र : श्री गुरुचरण सरोज रज
- लोगों को उनकी किस्मत ही बचा सकती है: मालिक मैं पूछता हूँ तू मुझको जवाब दे
- आप भी मिलिए :वैसे इनको चोट लगी है
- चाहती हूँ मैं नगाड़े की तरह :- हो जाएगा, हो जाएगा चिन्ता जास्ती करु नका
- स्विस बैंक एसोसियेशन की रिपोर्ट: 2008 :चिठिया हो तो हर कोई बाँचे
- १२ बच्चों की मौत :- निगाहें झुकाने को जी चाहता है --शर्मिन्दगी से
- बचके रहना पत्रकार भाइयो....: बहनों ने क्या गलती कर दी ?
- 'पहल' को अनवरत -सतत रखा जाय :ये- तो- होना ही था
- फ्लाप तो होना ही था - : जसविन्दर भट्टी को बुलाओ
- पूजा और बिल्ली बंधने का सम्बन्ध : कैसे कैसे सम्बन्ध
- सांप्रदायिकता का जहर : ये हाथ हमको दे दे ठाकुर!
- देखो ताऊ जिस से ठगा गया: - माया महाठगिनी हम जानी
- पढ़ भी सकता है: करामाती गुगली
- बताने का वक्त आया -: वक्त वक्त की बात है
- माता पृथ्वी पुत्रोअहम पृथिव्याः वेदमन्त्र को फिर से बाँचें, और हाँ, जरा ध्यान से व ठीक ठीक( अगली बार ऐसी गलती नहीं)
- कौन कहता है की राज ठाकरे दोषी है ?:ढूँढो- ढूँढो रे..
- नहीं रहे 'जाग मछन्दर गोरख आया' वाले विशम्भरनाथ जी -- नमन उन्हें मेरा शत बार
- महाकाव्य महत्वपूर्ण है : - बालिका की चुन्नी में शरण लेती कविता?
- हमें मोक्षप्राप्ति का चांस कब मिलेगा : नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूँढूँ रे सावरिया
- मुझ से आँख तो मिलाएँ: - हटो, काहे को झूठी बनाओ बतियाँ
- अबरार और मंजरी : छह महीनों तक गायब रहने की जाने क्या वजह थी
- मन बहौ जाए वा यमुना के संग: - काबू में रखना होगा, ऐसे ही कहीं भी संग- साथ में....फुर्र फुर्र
- प्रभु जी काहे दिए गुरु कपटी: चेलों की मंडली का बंटाधार
- दिवाली अवकाश के बाद पहला काम का दिन: - काश ! ... कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
- धार्मिक स्थानों पर स्नान करती महिलाओं को देखने: के लिए सफेद घर की मुँडेर से लगे पेड़ से काम चलाएँ
- मीडिया स्कूल - सास-बहू की किचकिच से कहीं आगे जाने की तैयारी
और अन्त में एक बहुत ही सुखद समाचार : जारी करने वाले का नाम है
34. गुलाबी रिबन
क्या आपके साथ ऐसा हुआ है कि लोग आपको अपने लिंक, दे दे कर परेशान किए दे रहे हों? मेरे साथ तो हद्द ही हो गई है । लोग बार बार फोन पर, चैट पर, पत्र से, ग्रुप में लिख लिख कर अपने ब्लॊग के लिंक को क्लिक करने की गुजारिशें पर गुजारिशें ( इसे गुजारिश नहीं कहते, जब बार बार सामने वाले की शराफ़त की ऐसी तैसी वसूलने की कोशिश हो) करते रहते हैं, कोई कहता है मुझे FOLLOW करो, कोई कहता है मेरे ब्लॊग को पढ़ो, कोई कहता है टिप्पणी करो, कोई कहता है उसके बारे में लिखो, कोई कहता है मेरे ‘बिहाफ’ पर दूसरों से टक्कर लो, कोई यह तो कोई वह। मैं इन माँगों से इतनी त्रस्त हूँ कि कह नहीं सकती। उलटा लोगबाग नाराज हो जा रहे हैं कि मुझे एक ‘रिक्वेस्ट’ (?) की और मैं हूँ कि बहुत अभिमान से भर गई हूँ। भला कोई इन सब से पूछे कि क्या इनमें से किसी ने मेरे ब्ळोग ( ११-१२) में से किसी एक पर आने की कभी जहमत उठाई! या वे ही सर्वोत्कृष्ट लेखक हैं कि सब उन्हीं का बाँचें? हद्द तो तब हो गई जब २ दिन पूर्व एक महाशय( जिनका नाम,पता, आई डी, लिंक आदि कुछ भी से मेरा कभी पाला नहीं पड़ा था) यकायक गूगल की चैट पर जाने कहाँ से कैसे प्रकट भये और सीधे सीधे डाँटा मुझे - "मैडम, जो आपको लिंक भेजे जाते हैं, कभी तो उनको क्लिक कर के खोल पढ़ लिया करो"। मैंने यद्यपि उन्हें कहा कि आज तक मेर उनके किसी भी ऐसे नेट तत्व से पाला नहीं पड़ा न जानती हूँ लिंक को, तो उन्होंने बिना एक शब्द कहे लिंक दिया और चुप लगा कर बैठ गए। मैं ही मूरख प्राणी! उस लिंक पर गई, टिप्पणी की, (निस्सन्देह प्रशंसा ही की होगी) और ऐसी उम्मीद करतीए रही कि अबतो यह भला मानुष(?) शान्ति पा गया होगा एक बार को धन्यवाद कहेगा।पर वे तो तब से चुप्पे से बैठे रहे। किसी के पास इसका इलाज है तो बताएँ कि लोग बाग बिना मेरे कुछ बिगाड़े भी गालियाँ तो न दें कम से कम।
अन्य भाषाओं की बात
आपको एक शुभ समाचार सुनाती हूँ - ALBORZ FALLAZ (running a million dollar blog) किसी भी श्रेणी में सर्वाधिक धन कमाने वाला आस्ट्रेलिया का ब्लोगर है जो Yaro Starak( ब्लॉग कोच) के सबसे पहले छात्रों में एक है | यहाँ पढ़िए सुनिए
गुजराती काव्य का रस लेने के लिए भी नेट पर प्रावधान है और तो और एक एक दिन में ३-३ पोस्ट मिलेंगी आपको ( जैसे आज ही की देख लें)
ગુજરાતી કવિતાઓ
अमृता प्रीतम को पंजाबी में पढ़ने का सुख लें
वाह सजण
सच तूं -सुपना वी तूं
ग़ैर तूं -अपणा वी तूं
वाह सजण ..वाह सजण
खुदा दा इक अंदाज़ तूं
अते फज्र दी नमाज़ तूं
जग दा इनकार तूं
अते अजल दा इकरार तूं
वाह सजण ..वाह सजण !
फानी हुसन दा नाज़ तूं
रूह दी इक आवाज़ तूं
जोग दी इक राह वी तूं
इशक दी दरगाह वी तूं
वाह सजण ..वाह सजण !
आस़क दी इक सदा वी तूं
अलाह दी इक रज़ा वी तूं
इह सारी काइनात तूं
खुदा दी मुलाकात तूं
वाह सजण ...वाह सजण !!
वाह सजण
सच तूं -सुपना वी तूं
ग़ैर तूं -अपणा वी तूं
वाह सजण ..वाह सजण
खुदा दा इक अंदाज़ तूं
अते फज्र दी नमाज़ तूं
जग दा इनकार तूं
अते अजल दा इकरार तूं
वाह सजण ..वाह सजण !
फानी हुसन दा नाज़ तूं
रूह दी इक आवाज़ तूं
जोग दी इक राह वी तूं
इशक दी दरगाह वी तूं
वाह सजण ..वाह सजण !
आस़क दी इक सदा वी तूं
अलाह दी इक रज़ा वी तूं
इह सारी काइनात तूं
खुदा दी मुलाकात तूं
वाह सजण ...वाह सजण !!
अंत में
"जाग मछन्दर गोरख आया" के लेखक डॉ.विशम्भरनाथ उपाध्याय का जयपुर में स्वर्गवास हो गया है| दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए करबद्ध हैं । पूरे चिट्ठाचर्चा परिवार की ओर से उनकी आत्मा की सद्गति के लिए प्रार्थी हैं।
अपनी टिप्पणियों द्वारा जो स्नेह आप मेरे प्रति प्रदर्शित करते हैं, भले ही उसे अभिधा में कह नहीं सकती परन्तु उस स्नेह के लिए आप सभी की ऋणी हूँ, कृतज्ञ हूँ, आभारी हूँ। नाम ले ले कर कहना या यों कहना बात एक ही है .... वह यह कि आप तक मेरा आभार किसी प्रकार पहुँच जाए बस!
@ kavita "मित्रो, कृपया चिट्ठा शब्द का सम्मानपूर्ण विकल्प खोजने और स्वीकृत कराने का प्रयास करें। बहुत आभार होगा। - रा."
जवाब देंहटाएंblog ko blog hi rehnae do koi naam na do
चिटठा चर्चा को यही रहने दे ,नाम को लेकर हीनभाव से ग्रस्त न हो ....एक लाइना के बीच में कुछ गड़बड़ हो गई है ,एडिट में जाकर उसे दुरस्त कर ले ....अमृता प्रीतम को उनके खालिस अंदाज़ में पढने का अलग मजा है ...उनकी कुछ कविताओं को गुलज़ार ने अपना स्वर दिया है .लोग उसे e-snips से डाउनलोड कर सकते है ....कुल मिलाकर हर आदमी का अपना एक अलग अंदाज है चर्चा का .....वही मजा देता है....
जवाब देंहटाएंबड़ी लम्बी और म्हणत से की गई रचना है. अनुराग जी एक लाईना वाली दिक्कत मुझे भी दिख रही है.
जवाब देंहटाएंसफेद घर की मुंडेर से लगे बेचारे पेड़ की जो दशा होने वाली है----- भगवान भली करें।
जवाब देंहटाएंचिट्ठा शब्द कर्णकटु तो लगता ही है, वैसे भी अच्छे संदर्भों में उपयोग भी नहीं किया जाता। अच्छा है विकल्प की खोज शुरु हुई। अपनी समझदानी को भी छानता हूं। शायद कुछ टपक ही पड़े।
चिट्ठा को गर कहा जाये
जवाब देंहटाएंपट्ठा, फिर तो लगेगा अच्छा
पट्ठा सिर्फ उल्लू का ही नहीं होता है
फिर तख्ता या तख्ती का भाव भी देगा
मजबूती में तो इस शब्द का नहीं है कोई सानी
जो भी लिखो, छाप देता है बेझिझक, तो
पट्ठा ही हुआ न, और किस के बस की बात है
पसंद आयेगा, जमता सही है
, ऐसी बात है
फिर देरी किस बात की है
पट्ठाजगत और पट्ठावाणी
भी होना होगा
फिर इस शब्द की तो शान निराली है
जो शान में गुस्ताखी करना चाहे
उसे उल्लू जोड़ के सुनने का डर रहेगा
इसलिए मैं तो कहता हूं कि
पट्ठा सम्मानजनक रहेगा।रहेगा।
शब्द उपयोग के साथ अर्थ बदलते हैं। ब्लाग के लिए चिट्ठा शब्द के उपयोग ने इस का नया अर्थ स्थापित किया है। जो इसे रोज सुन रहा है अनेक बार उस के लिए अब तो यह कर्णप्रिय भी हो चला है। कुछ दिन बाद राजकिशोर जी को भी अच्छा लगने लगेगा। वास्तव में वे चिट्ठा के पहले कच्चा सुनने-पढ़ने के आदी हैं। कुछ दिनों में उन की आदत बदल जानी है।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक चर्चा रही ! जब हिन्दी का चिठ्ठा लेखन अपनी ऊँचाई पायेगा तब यह चिठ्ठा शब्द भी बेशकीमती लगने लगेगा !
जवाब देंहटाएंऐसा मेरा मानना है ! बाक़ी जैसा बहुमत हो ! बहुत शुभकामनाएं !
एक यह शब्द भी देखें -चिठ्थालोचना -
जवाब देंहटाएंऔर हां कृपा कर मन्त्र का सही पाठ बताएं -
क्या यह -माता पृथ्वी पुत्रोहम पृथिव्या ?
बताएं जरूर !
मेरे विचार से जो नाम पहले से है वो ही ठीक है।
जवाब देंहटाएं1. "कान तरस जाते हैं किसी अच्छी सूचना की प्रतीक्षा में" लगभग सब के मन की बात कह दी आप ने.
जवाब देंहटाएं2. चिट्ठा अब इतना स्वीकृत शब्द हो गया है कि मूल शब्द एवं इससे व्युत्पन्न शब्द अब चिट्ठाजगत में गहरी पैठ बना चुके है. अत: चिट्ठालोग के इस प्रिय शब्द को ऐसा ही रहने दें यह अनुरोध है चिट्ठाकारों एवं चिट्ठाचर्चा से!
3. इस मेराथन चर्चा के लिये आभार!!
बहुत मेहनत से सुन्दर चर्चा करी आपने। एकलाइना जोरदार हैं। चिट्ठा की जगह दूसरा कोई नाम राजकिशोर जी सुझायें, प्रयोग करें। चलन में आयेगा तो चल जायेगा। किसी को मजबूर तो किया नहीं जा सकता कि इसके ऐसे ही लिखो/प्रयोग करो।
जवाब देंहटाएं" 'होरी' की झुग्गी में झांके *
जवाब देंहटाएंइतने कहाँ उदार उजाले |
कल थोडा सकुचा कर करते
काले कारोबार उजाले |"
बहुत प्यारी रचना है, रचनाकार ( नाम नही दिया आपने ) को शुभकामनायें !
वाह!! बड़ी विस्तृत चर्चा. गंभीर विषय भी बखूबी से प्रस्तुत किये. काफी समय लगाया इस चर्चा को करने में. बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंआशा करता हूँ कि बिटिया की तबीयत अब बेहतर होगी. घर का सदस्य तो यूँ भी त्यौहार के मौके पर जब दूर होता है तो बहुत तकलीफ देता है और उस पर से तबीयत खराब हो फिर तो...
चिट्ठा शब्द नियमित लोगों की जुबान पर चढ़ चुका है, अतः नियमित इस्तेमाल करते रहने से हमें तो अहसास भी नहीं होता कि किसी को यह खराब लग सकता है. शायद कुछ समय में राजकिशोर जी को बेहतर लगने लगे या अन्य कोई शब्द प्रचलन में आ जाये और हम सब उसके आदी हो जायें.
परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है. उसमें कैसा विरोध? बस, स्वीकार्यता और चलन की बात है.
देखिये, भविष्य क्या दिखलाता है.
अल्ब्रोज़ फलाज़ का साक्षात्कार प्रेरक है, आभार.
अनेक शुभकामनाऐं.