नमस्कार, चिट्ठाचर्चा टाईम्स की परंपरा में मैं मसिजीवी आपके सामने लेकर आया हूँ चिट्ठाचर्चा चैनल। मगलू आदमी हैं इसलिए ये नहीं मालूम लिंक वीडियो में कैसे लगें और आडियो कैसे इम्बेड करें। तो दर्शक लिंकों के लिए उस स्क्रिप्ट पर क्लिका सकते हैं जो साथ में नीचे छापी जा रही है। तो सबसे पहले आज की ब्रेकिंग न्यूज-
बहुत दिनों तक लापता रहने के बाद आज एकाएक पंगेबाज प्रकट हुए हैं, फिर से एक बार डायरी लेकर इस बार मंत्री की। उनका कहना है-
महारानी चाहती है कि माहौल कुछ ऐसा बने की चुनाव से पहले हम भी घोषणा कर सके कि अब सेना मे केवल मुस्लिम और इसाई समुदाय से ही भर्ती की जायेगी ताकी सेना का वातावरण धर्म निर्पेक्ष बन सके . इसमे भी बंगलादेशी और पाकिस्तानी नागरिको के लिये आरक्षण का प्रविधान रखा जायेगा . इसके लिये लादेन जी और अलजवाहिरी जी से भी राय ली जा रही है.
अब जब लादेन की बात हो ही रही है तो बैलेंस लाने के लिए मोदी की बात भी कर लेते हैं। संजय बेंगाणी सवाल उठाते हैं कि मोदी मंदिर गिरा रह हैं तो गिरा रहे हैं हम (मतलब चैनल वाले, मीडिया) क्यों चिल्ला रहे हैं। हमारा कहना है मीडिया जबरिया चिल्लही, तुम का करिबै। खैर इस पर राय व्यक्त करते हुए तरुण का कहना है-
मीडिया का काम है भड़काव टाईटिल देना जिससे लोग उनको सुन सकें, वैसे ही जैसे आजकल ब्लोग में भी खिंचाव टाईटिल दिये जाने की बात होती रहती है, जिससे पाठक आ सकें।
लेकिन जहाँ तक मुझे याद है, ये मंदिर वाली बात गुजरात में पहले भी हो चुकि है, जब अहमदाबाद में ही रोड के बीच में पड़ रहे मंदिर को गिराया गया था। ये उन्ही मोदी के काल में हो रहा है जिसकी सबने हिंदू अतिवादी की छवि बना कर रखी है, और जो गुजरात को प्रगति की राह में तो ले जा ही रहा है।
अब पेश है ब्लॉग परिक्रमा-
इय खंड में हम पेश करेंगे आज के चिट्ठों पर तेज नजर
ज्ञानदत्तजी आज अंटशंटात्मक पोस्ट लेकर आए हैं और सफाई दे रहे हैं कि वे अठ्ठावन के नहीं तिरपन हैं, अब क्या फर्क पड़ता है जैसे अस्सी वैसे सत्तर, रहेंगे तो बुजुर्ग चिट्ठाकार। मोहल्ला में नसीरभाई मंदी से मार्क्स की वापसी की उम्मीद लगाए बैठे हैं। अपने ब्लॉग में रोशन मधुशाला पर फतवे को बेतुका बताते हैं मानों कोई तुकी फतवे भी होते हों...भैया फतवेबाजी ही बेतुकी चीज है। प्रभातझा जानना चाहते हैं कि आम आदमी क्यों नहीं बनता मुद्दा। गीत कलश में राकेश सुना रहे हैं कर्मर्ण्यवाधिकारस्ते
उस नगरी के गलियारों में सम्बन्धों की लुटती पूँजी
जहाँ स्वार्थ की दूकानों पर भाव बिका करते हैं सस्ते.
प्रो दिलीप शर्मा सिंह की पुस्तक भाषा का संसार की चर्चा कर रहे हैं ऋषभ देव शर्मा।
और अब पेश है कुछ ऐसे चिट्ठे जो जिनमें आज वे पोस्टें आई हैं जो खुद चिट्ठाकारी के ही बारे में हैं। यानि हमारा सेक्शन ब्लॉग पर ब्लॉग की बातें-
इस खंड में सबसे पहले सागरचंद नाहर की पोस्ट की बात करते हैं। वे पॉडकास्ट के एक्सपायर हो जाने की की समस्या का समाधान बता रहे हैं। हिन्दीटिप्स में बताया जा रहा है कि अपनी टिप्पणियॉं कैसे सजाएं, उन्हें कैसे लिंक से जड़ें, बोल्ड से मढें, इटैलिक्स से चमकाएं...जब सीख लें तो एक बार फिर टिप्पियाएं। दूसरी तरु शास्त्रजी लोकप्रिय शोधपरंपरा में बता रहे हैं कि शीर्षक का पाठक संख्या से क्या सहसंबंध है।
आकर्षक शीर्षक नये पाठकों को ले आता है, लेकिन उनको "कोर रीडरशिप" में बदलने के लिये चिट्ठे पर आकर्षक, जनोपयोगी, एवं विश्वसनीय सामग्री होनी चाहिये.
अब बिना निदेंशांकों के ग्राफ को हमक्या पढें.;कैसे पढें....जो कह रहे हैं स्वीकार कर लेते हैं :))
और लीजिए रास रंग जिसमें गीत संगीत और स्वाद पर चर्चा हो सकती है। आज परमोद बाबू लेकर आए हैं एक उदास संगत। तथा दाल रोटी चावल पर हैं कटहल के पकौड़े पर उसके लिए चाहिए चौरठा जो क्या होता है यह बताया जाएगा ब्रेक के बाद..कल।
तो यह थी अब तक की चिट्ठाचचा बुलेटिन। मिलेंगे ब्रेक के बाद।
सन्दर्भ के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंकृपया प्रो.दिलीप शर्मा को प्रो.दिलीप सिंह कर दें।
बहतरीन चर्चा ! आभार !
जवाब देंहटाएंभइया मसिजीवी बेतुका नही बेकार कहा है फतवेबाजी को.
जवाब देंहटाएंतुक खैर आपने सही ही कहा होता ही नही है
video presentation is excellent mr masijeevi
जवाब देंहटाएं"अब बिना निदेंशांकों के ग्राफ को हमक्या पढें.;कैसे पढें....जो कह रहे हैं स्वीकार कर लेते हैं :))"
जवाब देंहटाएंआप अध्यापक लोगों से क्या कुछ छुपाया जा सकता है. मैं तो मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि हे प्रभु यह बात किसी की नजर में ना आये. अब आपने तो सरे आम राज खोल दिया.
अब आप को बताते हैं राज की बात: आंकडे ग्राफ के एक्स वाय अक्षों से काट दिये गये हैं जिससे सारथी के संख्यात्मक आंकडे तब तक किसी को पता न लगे जब तक हम न चाहें!!!
आपके अभिनव प्रयोग के लिये बधाई. इस दो मिनिट बयालीस सेकंड के लिये आपने अपना कितना अधिक समय लगाया होगा! आभार मानते हैं आपका!!
एक्सीलेण्ट वीडियो चर्चा!
जवाब देंहटाएंबस आवाज भी होती इस बुलेटिन में तो मजा आ जाता !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंये आपने अच्छा किया जो चिट्ठाचर्चा चैनल खोल दिया. हर चैनल खुला रहना चाहिए. टीवी चैनल हो या चर्चा चैनल....:-)
नये रूप की चर्चा ने तो मेरे साथ गजब कर दिया। मैं ठहरा अनाड़ी। वीडियो देखकर उछल पड़ा। यू-ट्यूब चालू किया तो चल पड़ा... लेकिन आवाज गायब। ...मैने स्पीकर सेटिंग के सारे विकल्प दुहरा डाले। जब नतीजा सिफर रहा तो सारे कनेक्शन्स को टटोल कर चेक किया। ...फिर भी गड़बड़ी पकड़ में नहीं आयी, तो बच्चों की शैतानी के बारे में दरियाफ़्त की।
जवाब देंहटाएंपत्नी ने बताया कि आज बेटे ने की-बोर्ड नीचे गिरा दिया था। मैं सिर पकड़ कर बैठ गया। नाहक में नुकसान हुआ समझ कर।
फिर मैने चिठ्ठाचर्चा मिनिमाइज करके एक दूसरा ऑडियो चलाया तो स्पीकर्स फुल वॉल्यूम से बज उठे। मैने हड़बड़ाकर स्पीकर धीमा किया और चकरा कर चिठ्ठाचर्चा देखने के बजाय ‘पढ़ने’ लगा।
मुझे अपनी ‘बेवकूफी’ समझ में आ गयी। मैं यह देर से जान सका कि मेरी तरह और भी (बड़े) ब्लॉगर हैं जिन्हें तकनीक का काफी कुछ सीखना अभी बाकी है। :)
बहुत खूब, शानदार वीडियो प्रस्तुति.. साथ में हिन्दी ब्लॉग टिप्स के संदर्भ के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह छा गये आप तो... बहुत मेहनत से तैयार की गयी पोस्ट... नये प्रयोग के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चिट्ठा चर्चा, और नई तकनीक से चर्चा करने के लिए बधाई, उम्मीद है आगामी चर्चा में हमें आपकी आवाज भी सुनने मिलेगी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, लिंक देने के लिये भी।
पंगेबाज का लिंक चर्चा में नहीं लगा है, कृपया लिंक जोड़ लें। :)