कवियों और शायरों ने हमें समझ क्या रखा है? हमारी तुलना इंसान से कर रहे हैं! हम इसके विरोध में आज से ही रंग बदलना बंद करते हैं. फिर देखते हैं कि कवितायें कैसे लिखेंगे ये कविगण.
अपने विरोध के प्रथम चरण में हम उद्देश्य है कि दुनियाँ में कविता लिखने में कमी आए. कम से कम साढ़े नौ प्रतिशत की कमी.
दुनियाँ के सारे गिरगिट एक हों.
इन्कलाब जिंदाबाद
जिस पर अनुराग जी के दिल की बात को कहना पड़ा कि
एक अच्छा पढने वाला ही एक अच्छा लिख सकता है…
हम उस भाषण के अंश आप तक अपने डिस्कवरी चैनल के जुझारू पत्रकारों के सहयोग से पहुँचाने में सफल हुए हैं -
प्यारे गिरगिट और गिरगिटानियों। लेकिन वह हमें समझ में न आ रही हो। ऐसा होना सहज-संभाव्य है। जब अपने समान बोली-बानी वाले बहुसंख्यकों की बात उनके कल्याण के लिये प्रतिबद्ध लोगों तक नहीं पहुंच पातीं और अगर पहुंचती भी हैं तो वे उसे समझ नहीं पाते तो गिरगिट की बातें समझ न पाना हमारे लिये सहज-संभाव्य है।(इन ’शब्द युग्मों” को रोमन में इसलिये नहीं लिखा क्योंकि स्पेलिंग में हमारा हाथ जाड़े के कारण थोड़ा सिकुड़ा हुआ है बोले तो तंग है) जिन साथियों की समझ-गाड़ी सहज-संभाव्य के स्पीड-ब्रेकर पर रुकी हो वे इसके स्थान पर ’क्वाइट नेचुरल’ या ’क्वाइट पासिबल’ पढ़ लें।
अब जो दूसरी घटना आज हुई वह यह कि ब्लॉग- जगत में खेमे और तम्बू छाए रहे | शास्त्री जी ने सुबह की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए आकर धमकाया भी कि खबरदार किसी ने हिमाकत की तो पर अब वे क्या जानें कि उनके परिवार के लोग ही उनसे जुड़ (लिंक) नहीं पा रहे हैं
चलिए माने लेते हैं कि एकाध दिन चूक गए होंगे, नहीं पढ़ पाए कि आप किस बारे में बात कर रहे हैं पर दोस्त आप ही एकाध लिंक लगा देते तो हम भी अद्यतन रह पाते। अब तो ऐसे पढ़ रह हैं मानो किसी और दुनिय के बारे में बात है। किसने कहा कब कहा क्यों कहा ??
यही ब्लॉग जगत के सम्बन्ध और पारिवारिकता का संस्कार कॉमन मैन से नमन का अधिकारी बनता है
अब एक लाईना का ही समय हाथ में रहा है , सो --
एक लाईना
ये चमकीली औरतें : मेरा आईना उनका दीवाना हो गया
ब्लोगिंग के खेमे : हम नहीं सुधरेंगे
चितौडगढ़ में काशीनाथसिंह का कहानी पाठ : खेत की खातिर
मंदी में किधर जाएँ : गोविन्दाचार्य राजनीति में लौटेंगे
पहचानिए यह कौन सा साँप है : कम्युनिस्टों की सच्चाई
भारत की परेशानी बढाएँगे : वजूद ही ख़त्म हो जाए
कच्चा माल : संगम तट पर
लोक नर्तक : नरकवासी होगा
सेकेण्ड लाईफ से बर्बादी : देखादेखी बलम हुई जाए
किधरकथा : वाया लंदन के टूरिस्ट स्थल
प्राइवेट कॉलेज : मौत का ताबूत
शोख मैडम से टक्कर : हाय दैया
बंदर घुस आया किचेन में : नारियल के लड्डू बचाकर रखिए
और अंत में
शाम से रात हो गई , इसलिए अभी इतने पर ही विराम लेना होगा | बाकी, जो भूलवश और समयाभाव में छूट गए हैं, उन को कल कुश समेट लेंगे ऐसा विश्वास है|
आपकी प्रतिक्रियाएँ मनोबल बढ़ाती हैं, सुबह की चर्चा पर की गई हौसला अफजाई के लिए सभी सहयोगियों व मित्रों के प्रति आभारी हूँ |
शुभरात्रि | स्वीट ड्रीम्स !!
चिट्ठाचर्चा का यह परिशिष्ट अच्छा/रोचक लगा|
जवाब देंहटाएंमूल प्रविष्टि पर विलंब से टिपण्णी कर रहा हूँ -
~चिट्ठाचर्चा के नए तेवर के लिए साधुवाद स्वीकारें.
~कृतज्ञ हूँ कि इस अंक में तेवरी काव्यान्दोलन के साथ साथ मेरी 'निवेदन' और 'औरतें' शीर्षक कविताओं को उल्लेख के योग्य समझा.
~बहुत सही उद्धृत किया है अंग्रेज़ी कथन को. सन्दर्भ भले ही अलग हो लेकिन यह संदेश कि मतभेद हमें तोड़ने के बजाय जोड़ने का काम करे - केवल स्त्री-पुरूष सम्बन्ध के लिए ही नहीं, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध के लिए भी प्रासंगिक है.
~मणिपुरी कविता पर चर्चा पर ध्यान जाना स्वाभाविक है. इस बहाने यह लेखमाला सांस्कृतिक सेतु निर्माण का कार्य कर रही है.
~खेमे बनाने वाले बनाते रहें, लिखने वाले की खेमाबंदी न हो यही बेहतर है.
~पंत जी के स्मरण और सेठिया जी को श्रद्धांजलि से निश्चय ही आज की चर्चा को परिपूर्णता मिली है.
अब फुरसतिया को कौन समझाएं कि फुरसत के समय कवि कौवा होता है जो रंग नहीं बदलता। बस, एक प्याली चाय पर काँव-काँव शुरू...
जवाब देंहटाएंएक लाइना तो बेमिसाल है- ऐसा तो नहीं देखा था... पहले कभी...बधाई कविताजी, आपका अंदाज़ निराला है..मज़ा आ गया
cmpershad जी के बात से सहमत हूँ ...
जवाब देंहटाएंएक लाइना अच्छे थे ..खासकर सेकेंड लाइफ वाली
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा। एक-दूजे के लिये टाइप एकलाईना गजब के हैं। सुन्दर। बधाई। हमारी पोस्ट की चर्चा काफ़ी विस्तार से करी इसके लिये शुक्रिया। सीएमप्रसादजी ने जो लिखा भी न कि फ़ुरसत के समय कवि कौवा होता है। हम इसीलिये कवि बनने में संकोच करते हैं।
जवाब देंहटाएंआज की दोनों चर्चाएँ अच्छी रहीं, और तीसरी (फुरसतिया) भी।
जवाब देंहटाएंkavitaa gi itni mehnat ke liye aabhar
जवाब देंहटाएंकविता जी , आपका ये अंदाज बहुत पसंद आया ! आपने तो चर्चा बिल्कुल मूवी स्टाईल में कर डाली ! इंटरवल के बाद ये क्लाईमेक्स शानदार रहा ! बहुत शुभकामनाएं और बधाई आपको इस शानदार चर्चा के लिए !
जवाब देंहटाएंहाँ शुक्लजी, मैं भी........
जवाब देंहटाएंनहीं, अनूप भाई.. मान्यता बटोरने के लिये मैंने कौव्वे को भी कविता करते देखा है..
जवाब देंहटाएंबस नाम न पूछना, हंगामा बरपा हो जायेगा,
अभी तो दिल बहलाने को स्वामी हईये हैं,
और सब बाद में..
aapki jamaat me shamil ho kar kuchh naya to milega hi
जवाब देंहटाएं-KISALY-
Bahut sahi andaj, kishton me charch, thora thora karke sabko lapeto.
जवाब देंहटाएंAur haan hum waqai me bahut busy hain, :(
अच्छी रही चर्चा।
जवाब देंहटाएं"अब वे क्या जानें कि उनके परिवार के लोग ही उनसे जुड़ (लिंक) नहीं पा रहे हैं"
जवाब देंहटाएंयह जुडने अलग होने का मामला नहीं है, बल्कि एक परिवार के अलग अलग लोगों को मिली अभिव्यक्ति की आजादी का नमूना है.
किसी जमाने में हरेक की आवाज दबा दी जाती थी. तब वह परिवार था. आज हरेक को अपनी बात रखने की आजादी है. आज यह "परिवार" है. अत: हमारी बात तो, कविताजी, रुपये में सोलह आने सच निकली!!!
सस्नेह -- शास्त्री
बहुत बढ़िया रही चर्चा. आपने दो बार चर्चा की. बहुत मेहनत का काम है.
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