यह चिट्ठा है.. अपना अपना आसमां.. और इसके चिट्ठाकार है सुमित सिंह। सुमित यूँ तो दिसम्बर २००७ से चिट्ठा लिख रहे हैं.. मगर महीने में एक ही आध पोस्ट लिखते हैं। कल उन्होने अपनी एक कविता चढ़ाई- सिगरेट पीती लड़कियाँ पिघलते एहसास की परछाई हैं।
कविताओं के प्रति मेरा रुख अक्सर उदासीनता का रहा है। पिछले दिनों मैंने कविता के बने-बनाए पन पर अपने एक प्रिय लेखक की आलोचना भी की थी.. सुमित में मुझे वही बात जँच गई जिसका अभाव मुझे प्रायः कवियों में खलता है। वो है अनुभूति की ईमानदारी।
सुमित की उक्त कविता प्रचलित राजनीति, सामाजिक मान्यताओं और पोलिटिकल करेक्टनेस की परवाह न करते हुए अपनी एहसास के प्रति निष्ठावान रहती है। हो सकता है कि मैं सुमित की राजनैतिक और सामाजिक समझ से सहमत न होऊँ.. मगर कविता कोई नारा तो नहीं होती। नारा और कविता असल में तो एक दूसरे के ठीक विपरीत हैं। नारा तमाम जटिलताओं को एक दो मोटे वाक्यों में समेटने की विधा है और कविता जीवन, मन और समाज की तमाम जटिलताओं का खोलने और उधेड़ने का काम है। ये काम तब तक नहीं होगा जब तक कवि बनी-बनाई समझ और मान्यातों को चुनौती नहीं देगा।
सुमित सिंह को मेरी बहुत शुभकामनाएं.. ताकि वे अन्य कवियों की तरह सहम कर दुबक कर कविता न करें.. और ऐसे ही साहस से रचनाकर्म करते रहें! कविता ऐसे शुरु होती है..
एक झूठ को सदी के सबसे आसान सच में बदलने की कोशिश करती हैंपूरी कविता को सुमित के चिट्ठे पर देंखे।
सिगरेट पीती हुई लड़कियाँ …
उंगलियों में हल्के से फंसाकर
धुँएं की एक सहमी लकीर बनाना चाहती हैं
ताकि वे बेबस किस्म की अपनी खूबसूरती को भाप बना कर उड़ा सकें
तिवारी जी ! आप चिट्ठा चर्चा में सक्रिय हुए तो बहुत अच्छा लगा . आपका हार्दिक अभिनन्दन है .
जवाब देंहटाएंआपने जिस चिट्ठे की चर्चा की उस पर घूम भी आए . टिप्पणी भी छोड आए सबूत के लिए . कृपया नियमित और सम्पूर्ण चर्चा करें तो अधिक प्रसन्नता होगी . आपकी शैली अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंचिट्ठा चर्चा का नया कलेवर और आपका चर्चा में उतरना बहुत अच्छा लगा। सुमित जी को हार्दिक शुभकामनाएं। नए चिट्ठों की उल्लेखनीय विशेषताओं को रेखांकित किया जाए तो यह चिट्ठाकारी के लिए अच्छा है।
जवाब देंहटाएंचर्चा का यह प्रारूप भी अच्छा है। एक अच्छी कविता प्तक पहुँचाने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंतिवारी जी के आने की बधाई! सब चिट्ठाकारों को!
जवाब देंहटाएंइस चर्चा में जिस अनुभूति की ईमानदारी की बात वे कह गए हैं वह वास्तव में साहित्य की बड़ी दौलत है। वही है, जो चीजों को सही करती रहती है। उन्हें मानवीय शक्ल देती है। इस में लेखक की ग्राह्यता, उस का प्रभाव और अभिव्यक्ति तीनों का समावेश होता है। रचना तभी संपूर्ण होती है।
चर्चा का यह प्रारूप भी अच्छा है।
जवाब देंहटाएंअभय जी का यहाँ होना सुखद लगा !
जवाब देंहटाएंवह एक सार्थक चर्चा प्रस्तुत करने में कामयाब हैं, चुनिंदा चिट्ठों की सही, किन्तु विस्तृत चर्चा एक नया आयाम दे रही है.. पसंद आया ! हम खुश हुये व यह एक टिप्पणी प्रदान करते हैं । यह दोहराना ज़रूरी नहीं है, कि बेहतरीन चर्चा !
जवाब देंहटाएंइस प्रारूप की आलोचना तो नहीं, बल्कि सुझाव है, कि..
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हालिया चर्चा और हालिया टिप्पणियाँ तो बड़ी सहलता से इसके विज़ेट से वैसे भी दिखलायी जा सकतीं थीं !
यदि टिप्पणी पोस्ट करने की विंडो अलग टैब या अलग विंडो में आये, तो भी गनीमत है ।
पाप-अप विंडो में कठिनाई तो है ही !