अनूपजी शनिवारी चर्चा ठेल के चले गए हैं नैनीताल गए तो हैं ट्रेनिंग के नाम पर हमारा मन विश्वास करने को नहीं करता तो नहीं करता इसमें भी दोष उनका ही कहा जाना चाहिए आखिर अपनी छवि आदमी खुद ही बनाता है। खैर हमें रविवार को चर्चा का स्लॉट खाली दिखा तो सोचा क्यों न अपनी उमड़-घुमड़ को दे मारें। रोजाना चिट्ठाचर्चा होती है उन चिट्ठों की जिन पर प्रविष्टियॉं लिखी गई हैं, पर कितने ही ब्लॉग ऐसे हैं जो हैं पर उनसे पोस्टें नदारद हैं। अब चिट्ठाजगत के इन दो आरेखों को ही देखें-
इस बात कामतलब है कि सक्रिय ब्लॉग संख्या में कम है आनुपातिक रूप से भी। ऐसे में उन ब्लॉगों की याद आना स्वाभाविक है जो सक्रिय रहे जो दिशा देते रहे पर न जाने क्यों लाल से नारंगी खेमे में चले गए। आस फुरसत का दिन है तो तीन चिट्ठों को याद करने का काम निपटा लेते हैं नहीं वे कहेंगे कि बस यही याराना था -
भई सबसे ज्यादा तो हैरान करते हैं श्रीश बेंजवाल शर्मा का ब्लॉग ईपंडित मास्साब की आखरी पोस्ट पिछले अक्तूबर की है तब से इक्का-दंक्का टिप्पणी तो दिखी पर वे खुद न दिखे...तिसपर तुक्का ये कि ये बेचारे तो समय की कमी का बहाना भी नहीं बना सकते। हम से बेहतर कौन बताएगा कि मास्टर के पास समय ही इफरात से होता है। हॉं ये अलग बात है कि हमारी तरह हिन्दी के नहीं गणित के मास्टर हैं इसलिए ट्यूशन व्यूशन के झंझट में पड़ गए हों तो अलग बात है।
इस क्रम में एक अन्य ब्लॉग जो याद आता है वह है अपने गदाधारी दोस्त सृजन शिल्पी का। अपने डोमेन पर जाने वाले बिल्कुल शुरूआती चिट्ठाकारों में रहे सृजन ने बीच में एक पोस्ट ठेलकर अपने सपने व मोचित होने की सूचना तो दी थी पर कुल मिलाकर उनका ब्लॉग सृजनशिल्पी मूर्तिशिल्प मोड में है। उठो पार्थ गदा संभालो, मन नहीं लग रहा।
पंकज नरूला यानि मिर्ची सेठ अपनी धुरंधर गतिशीलता या अहम के लिए नहीं वरन उसके अभाव के लिए ही जाने जाते हैं। पंकज के ब्लॉग पर पिछले महीने एक पोस्ट दिखी थी। (दरअसल हमारी निगाह से तो छूट ही गई थी। खोजते बॉंचते अब दिखी) इनके भी अधिक दिखने की उम्मीद पाले हैं।
ऐसे में जब कितने ही दोस्त टंकी आरोहण करने पर उतारू हैं। कुन्नूसिंह तक जाने की सूचना दे चुके हैं। हम तो यही कह सकते हैं कि कुछ दूर और साथ चलते तो अच्छा था।
"आपका क्या कहना है?."
जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी लगी. जो सुप्त हो गये हैं उनको झिझोडना, जगाना आदि मेरीआपकी जिम्मेदारी है.
हां, छ: पेराग्राफ की चर्चा को हम एक पूर्ण चर्चा के रूप में नहीं सिर्फ एक "एपेटाईजर" के रूप में लेंगे, एवं शाम को बाकी चर्चा का इंतजार करेंगे !!
batao !!!! bhai !!!kahan hain yah
जवाब देंहटाएंlog!!!!1
koi mile to hamka bhi bateyo bhiya!!
शायद व्यस्तता ही कारण हो... संभवतः वापसी हो !
जवाब देंहटाएंमोह भंग कथानक के लिए आभार किंतु हो सकता है वे व्यस्त हों....?
जवाब देंहटाएंहां, शास्त्री जी, इसे सूप या स्टार्टर समझें। आगे की टर-टर राम जाने।
जवाब देंहटाएंअरे बन्धु! यह क्या? पार्थ गदा उठाएगा तो फिर क्या भीम धनुष चलाएगा!
इन की चर्चा भी जरूरी है।
जवाब देंहटाएंअनूपजी शनिवारी चर्चा ठेल के चले गए हैं नैनीताल गए तो हैं ट्रेनिंग के नाम पर हमारा मन विश्वास करने को नहीं करता तो नहीं करता इसमें भी दोष उनका ही कहा जाना चाहिए आखिर अपनी छवि आदमी खुद ही बनाता है।
जवाब देंहटाएंmaster sahab, ham Nainital pahunchate hi sabase pahale kaam ye kiye kiye dekhe charcha huee ki nahi! dophar tak gayab thee. Ham anushashanatmak karyavahi karane hee vale the abhi ki charcha dikh gayee. Bach gaye! kaun ye baad me !
achchha lagaa
bakiya fir.
आज तो आपकी चिटठा चर्चा ख़ुद ही ब्लोग्स के खो जाने का ''बोलते अक्षर'' हो रही है .
जवाब देंहटाएंइतनी छोटी चिटठा चर्चा पर तो इनाम तय हो जाना चाहिए.
तो नैनीताल जाकर भी फुरसतिया भ्ौया की आत्मा चिट्ठा चर्चा में ही बसी है :)
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी यह संस्मरणात्मक चर्चा। सचमुच ये लोग इस सफर में साथ चलते तो अच्छा होता।
इस माईक्रो चचा के लिए धन्यवाद ! :)
जवाब देंहटाएंफुरसतिया जी , वहाँ नैनीताल से भी मौज जमाली आपने तो ! बहुत बढिया जी ! :) अच्छा है आपकी कमी नही अखरेगी अब !
चर्चा अच्छी रही.
जवाब देंहटाएंकिन्तु सभवत: व्यस्तता अथवा अन्य कोई व्यक्तीगत कारण हो सकते है.
वापसी की आशा करते है
जो चले गए उनका अपना निर्णय है . वापस आ जाएं तो हम सभी को खुशी होगी . जो जाने वाले हैं वे भी रुक जाएं तो भी अच्छा होगा . वैसे जिसको जो करना है करे सब स्वतन्त्र हैं . स्वाहा !
जवाब देंहटाएंन लिखे जाने वालों चिट्ठों की चर्चा बढ़िया रही । अब लिखे जाने वालों की भी हो जाए ।
जवाब देंहटाएंछोड़ के जाने वालों से यह तो अनुरोध किया जा सकता है कि वे सप्ताह में नहीं तो कम से कम महीने में एक बार तो लिखा करें । इनमें से कुछ तो हमें चिट्ठा लिखाना सिखाकर स्वयं चले गए । आशा है कि व्यस्तता कम होने पर लौटेंगे ।
घुघूती बासूती
अग्रजों की अच्छी याद दिलाया जी...। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंई-पण्डित की याद तो मुझे भी आई थी!
जवाब देंहटाएं