ताज होटल में मुठभेड़ अभी भी जारी, नरीमन हाउस में आतंकवादियों से मुठभेड़ अभी भी जारी, ओबेराय होटल में सेना-एनएसजी की करवाई जारी, शहर के सभी स्कूल, कॉलेज, कार्यालय, शेयर बाज़ार, फिल्मों और सीरियल्स की शूटिंग सब बंद. मतलब कभी न रुकने वाली मुंबई शहर आतंक के साए में जी रही है और पूरी तरह से ठहरी हुई है...यह है इंडियन तमाशा पर सन्दीप की पोस्ट।
पता नही किसने कब क्या सोचकर यह गीत लिखा और गवा दिया -ये मुम्बई शहर हादसों का शहर है.....दिल्ली मे हाई अलर्ट है ...जीवन का हर पल मानों अब हाई अलर्ट पर है...हादसे शहर की नियति हो गये हैं। कहने की बात नही कि ब्लॉगजगत पिछले 36 घण्टों से शोक, आक्रोश, दुख और आतंक के मिले जुले भावों मे प्रतिक्रिया कर रहा है।
आर.अनुराधा ने अभी अनुरोध किया कि इस एक दिन हम सब हिन्दी ब्लॉग पर अपना सम्मिलित आक्रोश व्यक्त करे और यह चित्र अपनी पोस्ट मे डाल कर शोक प्रकट करें
यह देखना शायद उतना विचित्र नही है कि इस पूरे घटना क्रम पर ब्लॉग जगत की प्रतिक्रिया दुख से आक्रोश और कटाक्ष की ओर मुड़ती दिखाई दी और अनायास ही वाणी कटु व शैली व्यंग्यात्मक हो गयी, शब्द धधकने से लगे। मुद्दा पार्टियों की ओर भी मुड़ता दिखाई दिया पर आम आदमी दुख मिश्रित आक्रोश की मुद्रा मे ही रहा है। संजय बेंगाणी की अधिकांश टिप्पणियाँ इस तरह आयीं -शोक में डूबा है मन, क्या टिप्पणी दूँ, मन नहीं कर रहा कुछ भी लिखने को।
कहते हो तो रो लेते हैं वाले अन्दाज़ मे समीर लाल समझ नही पा रहे कि शोक व्यक्त करने की रस्म अदायगी की जाए या खुद को टटोलने का प्रयास किया जाए,या शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाए।
देखिये वे सभी पोस्ट जो हम सभी के सम्मिलित आक्रोश, क्षोभ और दुख को व्यक्त कर रही हैं -
- हमारी आबरू पर हमला -ताऊ रामपुरिया
- दुख शोक आक्रोश-संगीता
- सुरक्षा मे सूराख -नटवर
- मरने वाले खुशकिस्मत हैं -प्रदीप
- तुम्हें क्या हो गया मुम्बई- सिंह
- कहाँ गये राज ठाकरे अब !- कामोद
- भला हो डैक्कन मुजाहिदीन का ....मेरा नाम नहीं लिया-मिहिर भोज
- धन्यवाद सोनिया जी -संजय बेंगाणी
- थर्राते मिम्बई की इन ललनाओं को सलाम -आर.अनुराधा
- टिप्पणी नही साथ चाहिए-रचना
- मुझे आतंकवादी हमलों की टाईमिंग पर शक है!-ई -स्वामी
- जब बिछीं लाशें विदा कर दी गयीं -हिन्द युग्म
- बस्स बहुत हो चुका -सत्यार्थमित्र
- शहीदों को हार्दिक श्रद्धांजलि-रतन
- एक और आतंकी हमला..बस बहुत हुआ- विनय जायसवाल
- कितना उचित है मुठभेड़ का लाइव-राजीव
- बयाँ नही कर सकता दर्द-एक हमले ने छीनी ज़िन्दगी - प्रभात गोपाल
- हेमंत करकरे नाम का एक आदमी मर गया था- गौरव सोलंकी
- राष्ट्रीय शोक,आकाशवाणी और एफ़एम चैनल्स-संजय
" आज शायद सभी भारतीय नागरिक की ऑंखें नम होंगी और इसी असमंजस की स्थति भी, हर कोई आज अपने को लाचार बेबस महसूस कर रहा है और रो रहा है अपनी इस बदहाली पर ..."
जवाब देंहटाएंईश्वर मारे गए लोगों की आत्मा को शान्ति प्रदान करें
ईश्वर मरने वालों की आत्माओं को शान्ति प्रदान करें और उनके परिजनों को दु:ख सहने की ताकत दें .
जवाब देंहटाएंईश्वर स्वार्थ की राजनीति करने वालों को जल्दी नरक में भिजवाएं .
जवाब देंहटाएंइस सामयिक चर्चा के लिये आभार !!
जवाब देंहटाएंआज राष्ट्रीय स्तर पर शोक मनाने की जरूरत है.
बम्बई में जो कुछ हुआ वह भारतमां के हर बच्चे के लिये व्यथा की बात है!
राष्ट्रद्रोहियों को चुन चुन कर खतम करने का समय आ गया है!!
शायद एक बार और कुछ क्रांतिकारियों को जन्म लेना पडेगा !!!
अपनी एक जुटता का परिचय दे रहा हैं हिन्दी ब्लॉग समाज । आप भी इस चित्र को डाले और अपने आक्रोश को व्यक्त करे । ये चित्र हमारे शोक का नहीं हमारे आक्रोश का प्रतीक हैं । आप भी साथ दे । जितने ब्लॉग पर हो सके इस चित्र को लगाए । ये चित्र हमारी कमजोरी का नहीं , हमारे विलाप का नहीं हमारे क्रोध और आक्रोश का प्रतीक हैं । आईये अपने तिरंगे को भी याद करे और याद रखे की देश हमारा हैं ।
जवाब देंहटाएंअनुरागजी से सहमत हूं।
जवाब देंहटाएं++++++++++++++++++++++++++++++++
जवाब देंहटाएंयह शोक का वक्त नहीं, हम युद्ध की ड्यूटी पर हैं
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यह शोक का दिन नहीं,
यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
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हर बार हमला होता है ! इसके उसके मत्थे दोष लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं !
जवाब देंहटाएंआज नई तरह का हमला है जो टिपणी लिखने तक ३८ घंटे से चालु है और अभी फ़िर से टी.वी. पर ख़बर आरही है की ताज में फ़िर से फायरिंग शुरू हो गई है ! कब रुकेगा ये सब ? आख़िर कब तक हम ये बर्दाश्त करते रहेंगे ?
आपने कभी सोचा है की अमेरिका पे दुबारा हमला करने की हिम्मत क्यों नही हुई इनकी ?अगर सिर्फ़ वही करे जो कल मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में कहा है तो काफ़ी है.....अगर करे तो....
जवाब देंहटाएंफेडरल एजेंसी जिसका काम सिर्फ़ आतंकवादी गतिविधियों को देखना ....टेक्निकली सक्षम लोगो को साथ लाना .रक्षा विशेषग से जुड़े महतवपूर्ण व्यक्तियों को इकठा करना ....ओर उन्हें जिम्मेदारी बांटना ....सिर्फ़ प्रधान मंत्री को रिपोर्ट करना ,उनके काम में कोई अड़चन न डाले कोई नेता ,कोई दल .......
कानून में बदलाव ओर सख्ती की जरुरत .....
किसी नेता ,दल या कोई धार्मिक संघठन अगर कही किसी रूप में आतंकवादियों के समर्थन में कोई ब्यान जारीकर्ता है या गतिविधियों में सलंगन पाया जाए उसे फ़ौरन निरस्त करा जाए ,उस राजनैतिक पार्टी को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए .उनके साथ देश के दुश्मनों सा बर्ताव किया जाये .......इस वाट हम देशवासियों को संयम एकजुटता ओर अपने गुस्से को बरक्ररार रखना है .इस घटना को भूलना नही है....ताकि आम जनता एकजुट होकर देश के दुश्मनों को सबक सिखाये ओर शासन में बैठे लोगो को भी जिम्मेदारी याद दिलाये ....उम्मीद करता हूँ की अब सब नपुंसक नेता अपने दडबो से बाहर निकल कर अपनी जबान बंद रखेगे ....
द्विवेदी जी की अच्छी कविता समाज के दुश्मनों को ललकारती हुई..
जवाब देंहटाएं>शास्त्रीजी, यह शोक नहीं, राष्ट्रीय प्रण का समय है जब हर हिन्दुस्तानी को [चाहे वह किसी भी मज़हब, भाषा, प्रांत...का हो]यह प्रण लेना चाहिए कि वह इस देश की माटी के प्रति वफादार रहे और इसकी अस्मिता के लिए प्रतिबद्ध हो।
ईश्वर मरने वालों की आत्माओं को शान्ति प्रदान करें
जवाब देंहटाएंबस! अब बहुत हो चुका।
जवाब देंहटाएंवास्तव मे एक राष्ट्र के रूप में हम सभी को अभी और परिपक्व होने की जरूरत है।
bahut sundar hai.
जवाब देंहटाएंhttp://therajniti.blogspot.com/
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जवाब देंहटाएं" शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"
जवाब देंहटाएंसमीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
प्राइमरी का मास्टर
यह समय है कश्मीरी आतंकी ट्रेनिंग कैम्पों पर बिना समय गवाए पूरी शक्ति के साथ सैन्य कार्यवाही का ! एक मुक्तिवाहनी सेना के हस्तक्षेप की !
जवाब देंहटाएंकृपया ग़लती सुधारे मेरा नाम वरुण जायसवाल है |
जवाब देंहटाएंआपने विनय जायसवाल लिखा है |
उल्लेख करने के लिए धन्यवाद |